जिस दर्द को मीडिया उभारने की कोशिश करता दिख रहा है, वह एक मध्यमवर्गीय दर्द है। वह दिल में नहीं दिमाग में होता है। दिमाग में होता है, इसलिए कागजों पर उभरता है और अखबारों में छपता है। लेकिन जो दर्द भूखे पेट में होता है, वह आज-कल उत्तर प्रदेश में मुखर नहीं होता, मुखर होता तो निदा फाजली के शब्दों के अनुसार उसे सुना जाता। उन भूखे पेटों का प्रतिनिधित्व करने वाले अगर कुछ ज्यादा संख्या में कभी-कभार प्रदेश की राजधानी पहुंच जाते हैं, धरनास्थल से निकल कर प्रदेश की राजधानी की जीवन रेखा विधान सभा मार्ग पर ठीक विधान सभा के सामने आ जाते हैं, तो निश्चित रूप से कभी-कभार जाम की समस्या होती है। तेज रफ्तार से इस रोड पर चलता ट्रैफिक कुछ समय के लिए थम सा जाता है, तो उसमें समस्या क्या है? यह रास्ता कोई ऐसा रास्ता नहीं है जिसके दायें-बायें होकर गंतव्य तक पहुंचा न जा सकता हो।
हाल में अपदस्थ हुई मायावती के कार्यकाल में इस धरनास्थल को पहले शहीद स्मारक पहुंचा दिया गया था। प्रदेश के कोने-कोने से आये प्रदर्शनकारियों को कई बार पुलिस पीटती हुई गोमती के छोर तक ले गयी कि उन्हें गोमती नदी में फांद कर अपनी जान बचानी पड़ी। यह मध्यमवर्गीय सोच उस वक्त भी अखबारों में चीख रही थी जाम की समस्या को लेकर। धरनास्थल को फिर गोमती नदी के दूसरे किनारे झूलेलाल पार्क पहुंचा दिया गया। फिर वही लाठी-चार्ज और गोमती में कूदने की घटनायें। तब भी वही मध्यमवर्गीय सोच अखबारों में चीख रही थी कि जाम की समस्या को लेकर। हमारे इन स्वरों को अखबारों में जगह नहीं मिली कि बर्बर पुलिसिया युग में नदी के किनारे धरनास्थल कितना असुरक्षित है? इन जगहों पर जाम लगता था तो दायंे-बायें होकर भी निकला नहीं जा सकता था।
प्रदेश की राजधानी के तमाम मार्गों पर जाम की समस्या लगातार बनी रहती है। अखबार चुप रहते हैं। इस मध्यमवर्ग को वे जाम दिखाई नहीं देते। बच्चों और मरीजों का दर्द उसे महसूस नहीं होता। जब कोई राजनेता प्रदेश की सड़कों से गुजरता है, तब भी ट्रैफिक रोक कर जाम लगा दिया जाता है। सरकारी मशीनरी द्वारा लगाया गया जाम इस मध्यमवर्ग को नहीं दिखता। बच्चों और मरीजों का दर्द महसूस नहीं होता।
हमारी यही सलाह है कि मीडिया का मध्यमवर्ग भूखे पेटों से निकलने वाली आवाज और उसके कारण लगने वाले जाम को भी बर्दाश्त करने की आदत डाल ले क्योंकि यह आवाज प्रदेश की राजधानी में कभी कभार ही सुनाई देती है, बाकी वक्त तो प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में यह आवाज दिलों में, करोड़ों दिलों में डूबी रहती है, जिसे कोई नहीं सुनता।