गत कई वर्षों में उत्तर प्रदेश में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की इकाइयां और उसके नेता/कार्यकर्ता बेहद सक्रिय रहे हैं। जन-समस्याओं पर आन्दोलन दर आन्दोलन चलाये गये हैं, राष्ट्र एवं प्रान्त स्तरीय कार्यक्रमों में आशा से अधिक भागीदारी की है, पार्टी शिक्षा पर बेहद ध्यान दिया गया है और दो राज्य स्तरीय एवं दर्जनों क्षेत्रीय एवं जिला स्तरीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये गये हैं, जन संगठनों में जान डालने की कोशिशें जारी हैं, कई सीटों पर लोकसभा चुनावों एवं विधानसभा के उप चुनावों में भागीदारी की गयी है, त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव लड़े और जीते गये हैं, महंगाई और बढ़ती गतिविधियों से बढ़ते खर्चों को पूरा करने को अनाज एवं धन संग्रह अभियान चलाने की कोशिशें की गयी हैं, राज्य मुख्यालय पर बेहद जरूरी सुविधायें जुटाई गयी हैं और संभवतः पहली बार राज्य मुख्यालय पर एक नया चार पहिया वाहन खरीदा गया है। यह सारी गतिविधियां उत्तर प्रदेश में पार्टी के विकास और विस्तार की छटपटाहट की द्योतक हैं।
अब हमारे सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां मौजूद हैं। देश की ही भांति उत्तर प्रदेश की जनता भी तमाम समस्याओं से जूझ रही है। केन्द्र और राज्य सरकार दोनों जनता पर कुल्हाड़ा चला रही हैं मगर विपक्ष की बड़ी पार्टियां जनता के सरोकारों को उठा नहीं पा रही हैं। एक राजनैतिक विकल्पशून्यता की स्थिति से उत्तर प्रदेश गुजर रहा है। इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश में कई ताकतें जुट गई हैं। श्री अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल की ड्राफ्ट कमेटी में अपने प्रतिनिधि रखवाने के आन्दोलन के प्रति भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता - खासकर मध्यम वर्ग में काफी लगाव दिखा। वहीं भ्रष्टाचार से धन अर्जन करने वालों में इस अवसर को अपने को सदाचारी जताने को भुनाने की होड़ लगी रही। ऐसे प्रयास आगे भी होंगे। इन सवालों पर भाकपा और वामपंथ की सक्रियता और संघर्षशीलता ही ऐसे भटकावों को रोक सकती है।
प्रदेश में दो-दो चुनाव सामने हैं। विधान सभा चुनाव जहां अप्रैल-मई 2012 में वांछित है वहीं नगर निकायों के चुनाव नवम्बर-दिसम्बर 2011 में। लेकिन दोनों के ही समय से पूर्व होने के कयास लगाये जा रहे हैं। नगर निकाय चुनाव जून-जुलाई में कराने की तैयारी चल रही है तो विधान सभा चुनाव अक्टूबर-नवम्बर 2011 में कराये जाने की संभावना है। तमाम दलों ने इनकी तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन हमारी स्थिति भिन्न है। हम चुनावी तैयारियां भी आन्दोलन और सांगठनिक कार्यों को तेज करके ही किया करते हैं।
उपर्युक्त दृष्टि से 13, 14 एवं 15 मई को चलाया जाने वाला धन एवं अनाज संग्रह अभियान हमारे लिये बेहद महत्वपूर्ण है। इसे कैसे सफल बनाया जाये, इसकी चर्चा ”पार्टी जीवन“ के गत अंक में की जा चुकी है।
गत दिनों सम्पन्न राज्य कार्यकारिणी की बैठक में बहुत सोच-समझ कर ही ”गांव चलो-मोहल्ला घूमो“ अभियान व्यापक तौर पर चलाने का निर्णय लिया गया था। जन-जागरण अभियान 16 मई से 29 मई तक चलाया जाना है जिसका समापन 30 मई को जिला मुख्यालयों पर जुझारू धरने/प्रदर्शनों के साथ किया जाना है। जाहिर है ज्वलन्त सवालों पर जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल महोदय को ज्ञापन तो सौंपे ही जायेंगे।
अनेक सवाल हैं जो इस अभियान के अंतर्गत जनता के बीच स्पष्टता से रखे जाने हैं। उत्तर अफ्रीकी देशों की जनता लम्बे समय से तानाशाही, कुशासन, भ्रष्टाचार एवं अत्याचारों से त्रस्त है। जनता सड़कों पर उतरी तो एक के बाद एक तानाशाही उखड़ने या लड़खड़ाने लगीं। पहले ट्यूनीशिया की जनता ने निरंकुश शासक को खदेड़ा तो फिर मिस्र की जनता ने 32 सालों से राज चला रहे होस्नी मुबारक को हटा कर ही दम लिया। बहरीन, यमन, सीरिया, जोर्डन, लीबिया की जनता ने करवट ली और वहां भी आन्दोलन जोर पकड़ने लगा। अब समूचे अरब जगत में यह आग धधक रही है। दुनियां के लोकतंत्रवादी एवं प्रगतिशील सोच के लोगों में इन घटनाक्रमों से भारी उत्साह जगा है। मगर ऊपर से लोकतांत्रिक शक्तियों की विजय पर खुशी जताने वाली अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों की सरकारों को जनता की यह बढ़ती ताकत रास नहीं आई। वे इन आन्दोलनों में भीतरघात की कोशिशों में जुट गईं। बहरीन की जनता के आन्दोलन को सऊदी अरब के माध्यम से दबाने की कोशिश की गयी। लेकिन लीबिया में तो अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और नाटो देशों ने सीधे सैनिक कार्यवाही कर डाली और लीबिया में भारी तबाही मचा दी है। इससे लीबिया की जनता के अपने निर्णय के अधिकार का हनन तो हुआ ही, लीबियाई संकट का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो गया। इससे कर्नल गद्दाफी को ही लाभ पहुंचा क्योंकि इराक की तबाही देख चुका विश्व जनमत अमेरिकी गुट की इस कारगुजारी को गले नहीं उतार पा रहा है। बाहरी हमला फौरन रोका जाये और संकट का हल बातचीत से निकाला जाना चाहिये, यह मांग जोर पकड़ रही है। अरब जगत में चल रही बदलाव की यह आंधी भ्रष्टाचार और जनलूट में आकंठ डूबे भारत के शोषक वर्गों एवं उनके द्वारा संचालित सरकारों और पार्टियों के लिए एक बड़ी चेतावनी है।
जापान में आये भयंकर भूकंप एवं सुनामी के बाद वहां के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों - खासकर फुकुशिमा संयंत्र में आग लग गयी। तापमान बढ़ने से रेडियम छड़ें पिघलने लगीं और बड़े पैमाने पर हानिकर रेडियोधर्मी विकिरण (रेडियेशन) होने लगा। यह विकिरण इतना जबरदस्त था कि तमाम बचावकर्मी ही जान बचाकर भागने लगे। चेरनोबिल परमाणु बिजली घर में हुए हादसे से भी यह बड़ा हादसा है। इससे मिट्टी, पानी, पर्यावरण, समुद्र सभी प्रदूषित हो गये हैं। खाद्य पदार्थों सहित तमाम उपभोक्ता वस्तुयें इसकी चपेट में हैं। इसने मानवता ही नहीं समूची प्रकृति को असीमित बरबादी की मांद में धकेल दिया है। यह हादसा समूचे विश्व की आंखें खोलने को काफी है। चीन में भी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को लगाने का जनता सड़कों पर उतर कर विरोध कर रही है। लेकिन हमारे देश की सरकार इससे कोई सबक लेने को तैयार नहीं। जैतापुर (महाराष्ट्र) के अलावा गुजरात और हरियाणा में नये परमाणु बिजली घर बनाने का काम जारी है जबकि स्थानीय जनता, पर्यावरणविद और किसान इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। विरोध कर रही जनता को अब दमन के बल पर दबाया जा रहा है। जैतापुर प्लांट का विरोध कर रहे आन्दोलन में पुलिस की गोली से एक नागरिक शहीद हो चुका है।जिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इसके निर्माण का काम सौंपा जा रहा है, उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। भूकंप की स्थिति या तकनीकी खराबी आने पर जन-धन की भयंकर बरबादी अवश्यंभावी है। हमारे मौजूदा परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा के सम्बंध में भी हम अधिक नहीं जानते। तारापुर परमाणु संयंत्र की बनावट फुकुशिमा जैसी ही है। समझा जा सकता है कि यदि कोई बड़ा भूकम्प आया तो हमारा क्या हाल होगा। यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि विकास के नाम पर विनाश का ये रास्ता किसके कहने पर अपनाया जा रहा है। कहीं यूरेनियम आपूर्ति कर भारी मुनाफा बटोरने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कहने पर तो नहीं? जो भी हो फुकुशिमा की त्रासदी के बाद भारत-अमेरिकी परमाणु करार के वक्त भाकपा और वामदलों द्वारा खड़े किये गये सवाल आज फिर से प्रासंगिक हो गये हैं। हमें इस सवाल को जनता के बीच ले जाना है। साथ ही परमाणु करार के समर्थन में उतरी समाजवादी पार्टी से भी सवाल किया जाना चाहिये कि उसने इसका समर्थन क्यों किया?
देश में इस बार रबी की फसल में बम्पर पैदावार हुई है जिसका श्रेय देश के किसानों और खेतिहर मजदूरों को जाता है जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अधिक अनाज का उत्पादन किया। लेकिन प्याज, लहसुन और सब्जियों की भरपूर पैदावार के बावजूद महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही है। मार्च महीने में महंगाई की दर पिछली 8.31 प्रतिशत से बढ़कर 8.98 हो गई जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके घटने का दावा किया था। केन्द्र सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नीतियां, जिसके तहत पेट्रोलियम की कीमतें लगातार बढ़ाई जा रही हैं, इसके लिए जिम्मेदार हैं। राज्य सरकार द्वारा जमाखोरी एवं कालाबाजारी पर रोक न लगाना, राशन प्रणाली एवं अन्य राहतकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। कुछ भी हो महंगाई की मार से आम आदमी तबाह हो रहा है। रोज कमा कर खाने वालों की जान के लाले पड़े हुए हैं। हमारे अभियान का यह एक प्रमुख मुद्दा रहना चाहिए।
एक के बाद एक उजागर हो रहे महाघोटालों और उनमें नेता, अफसर, पूंजीपति, उद्योगपति और दलालों की संलिप्तता ने जन-मानस को झकझोर कर रख दिया है। हाल ही में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, इसरो में हुआ घोटाला, पामोलिन तेल घोटाला, मनरेगा योजना तथा गरीबी उन्मूलन की अन्य तमाम सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, भूमि-अधिग्रहण में चल रहे घोटाले तथा उच्च पदस्थ नेताओं को धन इकट्ठा कर मुहैया कराने के घोटाले लगातार सामने आ रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा तथा कई क्षेत्रीय दल इन घोटालों में साफ दोषी दिखाई दे रहे हैं। भ्रष्टाचार आज समाज में कैंसर का रूप ले चुका है जिससे आम और गरीब आदमी बेहद परेशान है। उन्हें इसके भंवरजाल से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। भाकपा और वामदलों ने सड़क से लेकर संसद तक इसके खिलाफ आवाज उठाई है लेकिन यह आवाज जनता की आवाज अभी तक नहीं बन पायी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस देश में केवल और केवल वामपंथी हैं जिनको भ्रष्टाचार छू तक नहीं पाया है। लेकिन मीडिया हमारी भूमिका को पूरी तरह दबाता रहा है। अतएव अब भ्रष्टाचार के खिलाफ कई तात्कालिक तत्व सक्रिय हो गये हैं और मीडिया उन्हें पूरी ताकत से उछाल रहा है। कार्पोरेट मीडिया नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई बन जाये जोकि वामपंथ का लक्ष्य है। पूंजीवादी व्यवस्था में जहां हर तरह से पूंजी के विस्तार की छूट है, कुछ कानूनों और कुछ कदमों से भ्रष्टाचार रूकने वाला नहीं है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग को तेज तो करना ही है, इसे व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की लड़ाई में तब्दील करना है। इसके लिये व्यापक जन-लामबंदी आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था जार-जार हो चुकी है। दलितों, महिलाओं, आदिवासियों तथा अन्य कमजोर वर्गों को सबसे अधिक दमन का शिकार होना पड़ रहा है। पुलिस व प्रशासन न केवल आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं अपितु वे सत्ता शिखर के लिये धन जुटाने का औजार बन गये हैं। तीन माह के भीतर राजधानी में दो-दो सीएमओ की जघन्य हत्यायें इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। अब सरकार और उसके वरिष्ठ अधिकारियों पर हसन अली से सम्बंध होने के आरोप उजागर हो रहे हैं। प्रशासन शासक दल के औजारों की तरह काम कर रहा है। विपक्ष की लोकतांत्रिक गतिविधियों को कुचलने के प्रयास हो रहे हैं। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में जबरदस्त तरीके से जोर जबरदस्ती कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया गया। अब नगर निकायों पर बलात् कब्जा करने की तैयारी है। इसके लिए अध्यक्षों के सीधे चुनाव रोकने सम्बंधी विधेयक को विधान सभा में आनन-फानन में जबरदस्ती पारित कर घोषित कर दिया गया जिसको महामहिम राज्यपाल महोदय ने स्वीकृत नहीं किया। इन चुनावों को पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ने से भी रोका जा रहा है। लोकतंत्र को नेस्तनाबूद करने की इस साजिश का हम विरोध करते रहेंगे और दोनों कदमों को वापस लेने की मांग करते हैं।
भाकपा ने प्रदेश के बुनकरों के हित में लड़ाई लड़ी और कुछ राहतें उन्हें दिलाने में कामयाबी हासिल की है। लेकिन बुनकर समुदाय के तमाम सवाल अब भी मुंह बायें खड़े हैं। मनरेगा मजदूर काम और दाम से वंचित किये जा रहे हैं। आशा, आंगनबाड़ी, मिड डे मील रसोइये, हेल्थ वर्कर्स तथा असंगठित क्षेत्र के तमाम मेहनतकश अति अल्प वेतन और बेहद कम सुविधाओं में जीवनयापन को मजबूर हैं। खेतिहर मजदूरों के सवाल भी जहां थे वहीं लटके पड़े हैं।
विकास के नाम पर पूरे प्रदेश में किसानों की उपजाऊ जमीनों का जबरिया अधिग्रहण किया जा रहा है। इसके विरूद्ध हमने कई आन्दोलन चलाये और कई जगह सफलता भी हासिल की। आज के दौर में यह मामूली बात नहीं है। लेकिन इस सवाल को और अधिक गंभीरता से लेना है। किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को हमें हर कीमत पर बदलवाना है। इस बीच रासायनिक खादों, कृषि उपकरणों, बीजों, कीटनाशकों, बिजली और डीजल आदि के दामों में बड़ी बढ़ोतरी हुई है जबकि उनकी पैदावार के दाम उसी अनुपात में नहीं बढ़ाये गये हैं। किसान लगातार घाटे में जा रहे हैं और कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं। उनमें से तमाम आत्महत्यायें कर चुके हैं। हाल में आये आंधी, पानी, ओलों से भी रबी की फसल को बड़ा नुकसान पहुंचा है। उनकी इस हानि का शत-प्रतिशत मुआवजा तत्काल मिलना चाहिये तथा लगान, आबपाशी आदि माफ किया जाना चाहिये। उनका अनाज सरकारी खरीद केन्द्रों पर बेरोकटोक खरीदा जाना चाहिये। खरीद केन्द्र सुचारू काम करें यह भी हमें देखना चाहिये।
प्रदेश में शासन एवं प्रशासन में तमाम स्थान रिक्त पड़े हैं। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षण संस्थाओं में तमाम जगह खाली पड़ी हैं। ये स्थान भरे नहीं जा रहे और यदि भरे जा रहे हैं तो भारी रिश्वतखोरी जारी है। प्रदेश के नौजवान दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पढ़ाई दुकानदारी में तब्दील कर दी गई है। स्तरहीन निजी स्कूल डिग्रियां बेच रहे हैं। भारी फीस वसूली जा रही है। आम नागरिक बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में सीटों की कमी है। तमाम लोग वहां दाखिलों से वंचित रहने हैं। शिक्षा का बाजारीकरण रोके बिना जनशिक्षा संभव नहीं और बिना जन शिक्षा के देश का विकास संभव नहीं है। इस सबको अभियान में महत्वपूर्ण जगह दी जानी चाहिये।
उपर्युक्त सवालों के साथ-साथ स्थानीय समस्याओं को लेकर हमें गांव, मोहल्लों, कस्बों, नगरों और महानगरों में अलख जगानी है। पर्चे छाप कर बांटे जाने चाहिये। ग्रामों में रात और दोपहर को चौपालें लगाई जायें। अखबारों को खबरें लगातार दी जायें। जनता से 30 मई को जिला/तहसील केन्द्रों पर होने वाले प्रदर्शन में व्यापक रूप से भाग लेने का आह्वान किया जाये।
जहां-जहां जायें वहां जन संगठनों की स्थापना का प्रयास करें। पार्टी की शाखायें व सदस्यता स्थापित करें। जहां चुनाव लड़े जाने हैं, वहां बूथ स्तर पर कमेटियां गठित करें। पार्टी के अखबारों के वार्षिक ग्राहक बनाये जायें। पार्टी संचालन के लिये लोगों से धन और अनाज भी अवश्य मांगें। हर तरह से अभियान को कारगर बनाया जाये।
जिला कार्यकारिणी और काउसिंल की बैठक कर इसकी व्यापक रूपरेखा तैयार करनी चाहिये। शाखाओं और मध्यवर्ती कमेटियों को भी सक्रिय करना चाहिये। हर सदस्य एवं जन संगठनों को इसमें भागीदार बनाना चाहिये। इसके जरिये जनता को उसके ज्वलन्त सवालों पर लामबंद करने के साथ-साथ हम अपनी चुनावी तैयारियों को भी आगे बढ़ा पायेंगे।
अतएव ”गांव चलो, मुहल्ला घूमों“ अभियान में हमें पूरी तरह कमर कस कर उतरना है। विकल्पशून्यता की इस स्थिति में हमें प्रदेश में अपनी ताकत में इजाफा करने के इस अवसर को गंवाना नहीं है। यही वक्त का तकाजा है और यही हमारा दायित्व है।
(डा. गिरीश)