ए0आई0एस0एफ0 का अठारहवाँ सम्मेलन दिल्ली में 21-23 दिसम्बर 1969 को सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में देशभर से 350 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्घाटन प्रो0 हीरेन मुखर्जी ने किया। सम्मेलन में शिक्षा एवं परीक्षा में सुधार, प्रबन्धन में छात्रों की भागीदारी, छात्र संघांे के गठन की अनिवार्यता, रोजगार या बेकारी भत्ता और 18 वर्ष की आयु में मताधिकार के सवालों पर एक माँग पत्र भी तैयार किया गया। 1969 में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी और आन्दोलन हुए। इसी दौर में भा0क0पा0, वामपंथ और इंदिरा कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार वी0वी0 गिरी देश के राष्ट्रपति चुने गए। 14 बैंकांे का राष्ट्रीयकरण किया गया और राजाआंे का प्रीवी पर्स भी इसी समय खत्म कर दिया गया। जिसका ए0आई0एस0एफ0 ने भारी स्वागत किया।
इसी समय देश की कई समस्याओं को लेकर भी राजनैतिक बहस का दौर शुरू हुआ। देश में व्याप्त विसंगतियांे, असमानताआंे और आर्थिक सामाजिक समस्याओं के
समाधान के लिए एक सामाजिक-आर्थिक रूपान्तरण की आवश्यकता थी जिसके लिए छात्र-युवा संगठनों में भी वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर एक जबरदस्त बहस छिड़ी हुई थी। इन हालात में ए0आई0एस0एफ0-ए0आई0वाई0एफ0 के सामने भी यह महत्वपूर्ण सवाल था कि क्या उन्हंे वैज्ञानिक समाजवाद को अपने लक्ष्यों में शामिल करना चाहिए। इन्हीं सवालों पर बात करने के लिए जून 1969 को दिल्ली में दोनों संगठनांे की कैडर मीटिंग हुई। लम्बी बहस और चर्चा के बाद तय हुआ कि ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 को अपनी एक वैचारिक दिशा निर्धारित करते हुए वैज्ञानिक समाजवाद के लक्ष्यांे की ओर जाने के लिए छात्रों और युवाओं को वैचाारिक रूप से शिक्षित करना होगा। छात्रों और नौजवानों की एक अन्य कैडर मीटिंग जून 1971 में दिल्ली में हुई जिसमें सांगठनिक ढ़ाँचे और उसके कार्यों को लेकर चर्चा हुई।
भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में विघटन के कारण माक्र्सवादी विचारधारा को कई तरह के वैचारिक भटकावों से होकर गुजरना पड़ा। सी0पी0एम0 के उदय के साथ ही देश का परिचय माओवाद जैसे माक्र्सवादी भटकाव से हुआ। आज बेशक सी0पी0एम0 अपने आप को माओवाद की मुखर आलोचक और प्रमुख शत्रु सिद्ध करने की कोशिश करे परन्तु वास्तविकता यह है कि सी0पी0एम0 का निर्माण माओवादी दर्शन के आधार पर ही हुआ है। यह माओवाद ही है जिसने माक्र्सवाद के मूल सिद्धान्त द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की गलत एवं विध्वसंक परिभाषा दुनिया के सामने पेश की जिसके कारण पूरी दुनिया और विशेषकर तीसरी दुनिया के कम्युनिस्ट आन्दोलन को बिखराव का सामना करना पड़ा। देश में अतिवामपंथी नक्सलवाद भी इसी माकपाई संकीर्णता की देन रहा। इसी संकीर्णतावादी अतिक्रान्तिकारी दुस्साहस ने देश के छात्रों और नौजवानांे में एक राजनैतिक विभ्रम का प्रसार किया जिसका परिणाम पार्टी की टूट के बाद जन संगठनों के विघटन में भी दिखाई दिया। 1970 में एस0एफ0आई0 का निर्माण इसी संकीर्णता का परिणाम था।
वैचारिक प्रश्नांे पर बहस की इस प्रक्रिया में एक ओर छात्र-युवा कैडर मीटिंग 20-22 मई को हैदराबाद में हुई। इन कैडर मीटिंगों में वैज्ञानिक समाजवाद, माक्र्सवाद, लेनिनवाद और अन्ततोगत्वा राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति की संकल्पना को छात्र नौजवान संगठनों के संविधान में शामिल किए जाने का निर्णय हुआ। इन सवालांे पर औपचारिक फैसला ए0आई0एस0एफ0 के 19वें सम्मेलन में लिया गया।
19वाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का 19वाँ सम्मेलन 14-17 जनवरी 1974 को कोचीन में संपन्न हुआ। यह सम्मेलन अपने महत्वपूर्ण संवैधानिक बदलावांे के कारण एक विशिष्ट आयोजन था। इस सम्मेलन के पूर्व एवं पश्चात् का समय देश और संगठन के लिए महत्वपूर्ण एवं प्रभावकारी घटनाओं और आंदोलनांे का समय था। जहाँ ए0आई0एस0एफ0 ने छात्रांे के जनवादी अधिकारांे के लिए और बेरोजगारी के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलनांे में सक्रिय और निर्णायक भूमिका अदा की, तो वहीं वाम, प्रगतिशील और जनवादी ताकतों के साथ मिलकर महँगाई, काला बाजारी और जमाखोरी के खिलाफ भी ए0आई0एस0एफ0 ने आंदोलनों में भाग लिया। यही वह समय भी था जब देश में जयप्रकाश नारायण का पार्टी विहीन जनवाद और सम्पूर्ण क्रान्ति का आन्दोलन सर उठा रहा था। दक्षिणपंथी और फासीवादी शक्तियांे के कन्धों पर खड़ा यह आन्दोलन भ्रष्टाचार, महँगाई और बेकारी जैसे मुद्दों को लुभावने नारों में बदलकर आगे बढ़ा। इस आन्दोलन के खतरों को उजागर करने के लिए ए0आई0एस0एफ0 ने एक कंवेंशन का आयोजन 26-27 अप्रैल 1974 को पटना में किया। जिसमें कुछ सहयोगी जनवादी प्रगतिशील संगठनांे के साथ 2000 छात्रों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा पटना में आयोजित जे0पी0 आन्दोलन विरोधी रैली में लाखों की संख्या में लोगांे ने भाग लिया जिसमें बड़ी संख्या में छात्र और नौजवान भी शामिल थे। आखिरकार यह आन्दोलन जे0पी0 और इंदिरा गांधी दोनांे के लिए अपने अपने वर्चस्व की लड़ाई में बदल गया। इंदिरा गांधी ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए देश में जून 1975 में आपात्तकाल की घोषणा कर दी। शुरुआत में आपातकाल का उपयोग दक्षिणपंथी, आर0एस0एस0 और जनसंघ जैसी ताकतों पर लगाम लगाने के लिए किया गया परन्तु बाद में यह जनवादी, प्रगतिशील और वामपंथी ताकतांे के भी दमन का औजार बन गया। ऐसी स्थिति में ए0आई0एस0एफ0 ने आपातकालीन दमन का पुरजोर विरोध किया। ए0आई0एस0एफ0 ने मेडिकल छात्रांे और जूनियर डाॅक्टरांे को लामबद्ध करने का महत्वपूर्ण काम किया। जिनका 26 अक्टूबर 1974 को अमृतसर में सम्मेलन करते हुए आॅल इण्डिया मेडिकोज फेडरेशन की स्थापना की गई।
आपातकाल के बाद का समय
इंदिरा गांधी को आपातकाल के दमन की सजा 1977 के चुनाव नतीजों में मिल गई। इंदिरा गांधी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। जनसंघ और अन्य कई दलांे और गुटांे के घालमेल से बनी जनता पार्टी सत्ता में आई परन्तु जल्दी ही जनता पार्टी की वास्तविकता और विफलता लोगांे के सामने आ गई। जनता पार्टी लोगांे की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई, लोगांे में पार्टी के खिलाफ भारी असंतोष व्याप्त हो चुका था। अन्ततोगत्वा जनता पार्टी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और उसमें टूट हो गई। इसी जनता पार्टी की टूट से भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई।
जनता पार्टी की जन विरोधी नीतियांे और संघीय ढ़ाँचे पर हमले की उसकी दक्षिणपंथी योजनाआंे के खिलाफ ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने देशव्यापी जुझारु आंदोलन चलाया। कई अवस्थाओं में चलते इस आंदोलन में कंवेंशन, हस्ताक्षर अभियान, घेराव और गिरफ्तारी हर एक तरीके से ए0आई0एस0एफ0 ने जनता पार्टी सरकार की दक्षिणपंथी नीतियों का विरोध किया। ए0आई0एस0एफ0 ने साम्राज्यवाद के खिलाफ और हिंद महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करने के लिए भी इस बीच कई आंदोलन चलाए और क्यूबा में होने वाले छात्र-युवा महोत्सव की तैयारी के सिलसिले में भी देश भर में भारत-सोवियत युवा उत्सवांे का आयोजन किया गया।
बीसवाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का बीसवाँ सम्मेलन 7-9 फरवरी 1979 को पंजाब के
लुधियाना में सम्पन्न हुआ। जनता पार्टी के दो वर्षों के विफल शासन के बाद ही देश में फिर से इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) की वापसी हो गई। इंदिरा गांधी राजनैतिक स्थायित्व का नारा देकर वापस सत्ता में आई थीं। मगर नतीजे इसके विपरीत जान पड़ रहे थे साम्प्रदायिक, अलगाववादी और विभाजक शक्तियाँ दिन प्रतिदिन मजबूत हो रही थीं। आर0एस0एस0, जमायत जैसी साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ ही खालिस्तान जैसी अलगाववादी शक्तियाँ देश की एकता अखण्डता के लिए लगातार गंभीर चुनौती बन रही थीं। ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने जनवादी अधिकारों के लिए और बेरोजगारी के खिलाफ 21-22 जुलाई 1979 से देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत की। ‘‘काम दो या जेल दो‘‘ नारे के तहत चला यह जुझारु आंदोलन छात्र एवं युवा संघर्षांे की ऐतिहासिक मिसाल है। इस आंदोलन में भाग लेते हुए हजारांे छात्र नौजवान गिरफ्तार किए गए जिनको लम्बे समय तक जेलांे में गुजारना पड़ा।
इसी दौरान ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने एक गौरवशाली परम्परा की शुरुआत की। 23 मई 1979 से शहीदे आज़म भगत सिंह, उनके साथियों राजगुरू और सुखदेव की शहादत को याद करते हुए हर साल 23 मार्च को शहीदी सप्ताह और शहीदी पखवाड़ा मनाने की शुरुआत ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 द्वारा हुई। इस बीच ए0आई0एस0एफ0 ने कई जनवादी, धर्मनिरपेक्ष छात्र-युवा संगठनों से मिलकर धर्मनिरपेक्ष छात्र सम्मेलन, राष्ट्रीय एकता के लिए और मास्को ओलम्पिक के सर्मथन में सम्मेलनों का आयोजन किया। साथ ही 1981-82 के दौरान केरल, बंगाल, यू0पी0, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा, मणिपुर और तमिलनाडु आदि में छात्र और नौजवानों की विभिन्न माँगों के समर्थन में धरना, प्रदर्शन, घेराव, रैली और जत्थों का आयोजन किया। इस दौर में ए0आई0एस0एफ0-ए0आई0वाई0एफ0 का ‘‘काम या जेल‘‘ छात्र-नौजवान आंदोलन की एक ऐतिहासिक उपलब्धि ही कहा जाएगा। हिन्द महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करने की माँग को लेकर अगस्त 1981 को तिरूअनन्तपुरम में किया गया सम्मेलन भी संगठन का एक उल्लेखनीय आयोजन था।
क्रमश: