भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

भाकपा की 90 वीं सालगिरह: साम्यवाद ही क्यों? विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित

भाकपा की 90वीं वर्षगांठ- साम्यवाद ही क्यों? विषय पर गोष्ठी आयोजित हाथरस- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 90 गौरवशाली साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह जनपद- हाथरस के कस्बा- मेंडू में आयोजित किया गया. गीत और संगीत के कार्यक्रमों के अतिरिक्त वहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया. गोष्ठी का विषय था- साम्यवाद ही क्यों? गोष्ठी को संबोधित करते हुये भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने और आजाद भारत में एक समानता, भाईचारे पर आधारित और सभी प्रकार के शोषण से मुक्त साम्यवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से भाकपा का गठन देश के उन क्रांतिकरियों ने किया था जो रुस की समाजवादी क्रांति से प्रेरित थे तथा मजदूरों- किसानों को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे. भाकपा की स्थापना से पहले और उसके बाद मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के विचारों से प्रेरित इन क्रांतिकारियों ने कदम ब कदम अनेक कदम उठाये जिनके चलते देश को आज़ाद कराने में भारी मदद मिली. लेकिन साम्यवादी समाज की रचना का काम आज भी शेष है. सबका साथ और सबका विकास की बात करने वाले आज के शासक अल्पसंख्यक समुदाय को कदम कदम पर हानि पहुंचा रहे हैं और गरीब तथा आम आदमी की कीमत पर कार्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचा रहे हैं. डा. गिरीश ने कहा कि आजादी के बाद शासक पूंजीपति वर्ग की पार्टियों – कांग्रेस, भाजपा, क्षेत्रीय और जातिवादी दलों ने मेहनतकशों को लुभावने नारे दे कर और उन्हें जाति, क्षेत्र और सांप्रदायिक आधारों पर बांट कर समाजवाद और साम्यवाद के लक्ष्य को भारी हानि पहुंचाई है. वहीं पार्टी में विभाजन करने वालों ने भी इस पावन उद्देश्य को कम हानि नहीं पहुंचाई. महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि आज विभाजन करने वाली पार्टियां उसी नीति और कार्यनीति पर चल रहे हैं जिनकी कि आलोचना करके उन्होने अलग पार्टियां बनायीं थीं. उन्होने कहा कि आजादी के बाद के इन 67 सालों में जनता ने हर पूंजीवादी दल की सत्ता का स्वाद चख लिया है. आज इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस पूरे कालखंड में किसान कामगार और अन्य मेहनतकश तवाह हुये हैं तथा पूंजीपति, माफिया और राजनेता मालामाल हुये हैं. हमें इन लुटे पिटे तबकों की चेतना को जगाना होगा. इसके लिये भारी मेहनत करनी होगी. लोगों को बताना होगा कि अब उन्हें पूंजीवादी दलों के मायाजाल से बाहर आना होगा. हमें अब सत्ता में पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा और संकल्प लेना होगा कि हम भाकपा की 100 वीं वर्षगांठ तक सत्ता शिखर तक अवश्य पहुंचेंगे. इसके लिये भाकपा को अपने संगठन की चूलें तो कसनी ही होगी तमाम संकीर्णताओं के प्रति वैचारिक विमर्श चलाते हुये वामपंथी एकता को भी मजबूत करना होगा. वामपंथ को मजबूत बना कर ही वाम जनवादी एकता का रास्ता हमवार होता है. बिना वामपंथ को मजबूत किये जनवादी एकता की बात बेमानी साबित होगी. भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. गफ्फार अब्बास ने कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा का खेल अब नहीं चलने दिया जायेगा. हम मेहनतकश 100 में नब्बे हैं जिनका हित केवल साम्य्वाद में ही संभव है. समाजवाद और फिर साम्यवाद ही हम सब को सम्रध्द और खुशहाल बना सकता है. गोष्ठी में डी.एस. छोंकर, बाबूसिंह थंबार, चरनसिंह बघेल, जगदीश आर्य, सत्यपाल रावल, द्रुगपाल सिंह, नूर मुहम्मद, आर. डी. आर्य, नैपाल सिंह( बी. डी. सी.), संजय खान, पप्पेंद्र कुमार, राजाराम कुशवाहा, आबिद अहमद एवं महेंद्र सिंह ने भी विचार व्यक्त किये. डा. गिरीशभा
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