भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

दुर्गाशक्ति के बाद अब लेखक कँवल भारती को निशाना बनाना महंगा पड़ेगा सरकार को.

शोषित,पीड़ित,दमित और दलितों के लिये अपनी कलम को सदैव सक्रिय रखने वाले श्री कँवल भारती की गिरफ्तारी से सारे देश में आलोचना झेल रही समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार के कर्ता-धर्ताओं ने लगता है भूल सुधार न करने की कसम खाली है. तभी तो कल सरकार के एक दबंग मंत्री के सिपहसालारों ने पुलिस अधीक्षक, रामपुर से मिल कर लेखक के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही करने की मांग कर डाली. ऐसी ही हठधर्मिता दुर्गाशक्ति के निलम्बन के मामले में अपनायी गयी. पूरी की पूरी सरकार एक अदने से अधिकारी के खिलाफ ऐसे ही मोर्चा खोले हुये है मानो चीन और पाकिस्तान से जूझ रही हो. मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है कि सरकार और परिवार के सुप्रीमो जब-तब आपात्काल के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं लेकिन आपातकाल जैसी ही कारगुजारियों में संलिप्त अपनी पार्टी की सरकार की कारगुजारियों पर रोक नहीं लगा रहे हैं. अपने सबा साल के शासनकाल में इस सरकार ने पहले ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों को किनारे किया और भ्रष्ट, नाकारा और चाटुकार अधिकारियों को ताकत के केन्द्रों पर आरूढ़ किया. फिर खनन मफियायों को प्रश्रय देने के लिये दुर्गाशक्ति का निलम्बन कर उसे चार्जशीट देदी.इतना ही नहीं उसे आत्मसमर्पण कराने के लिये सर्वोच्च सत्ता शिखर से धमकियाँ तक दी गयीं. यहाँ तक कि साम्प्रदायिक हथकंडे अपनाने से भी यह सरकार चूकी नहीं.ये बात अलग है कि कई मुस्लिम इदारों और समाज ने सरकार के आकाओं की इस साजिश का पर्दाफाश कर दिया. सता-परिवार के एक राजनीतिशास्त्र के विद्वान् ने तो संघवाद की धज्जियाँ विखेरते हुये केंद्र से मांग कर डाली कि वह उत्तर प्रदेश से समस्त आई.ए.एस. अधिकारियों को वापस बुला ले. एक कदम और आगे बढ़ाते हुए सरकार ने लेखक कँवल भारती को गिरफ्तार करा दिया और अब उनके खिलाफ एन.एस.ए. लगाने की साजिश रची जा रही है. ये सारे कदम इस बात के परिचायक हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार उसी अधिनायकवाद का सहारा ले रही है जिसकी आलोचना समय-समय पर सरकार के आका करते रहे हैं. लेकिन सरकार के कर्णधारों को समझ लेना चाहिये कि सत्ता के बलबूते वे अपनी मनमानी को बेशक जारी रख सकते हैं लेकिन ये मनमानी सत्ता की जड़ें हिला सकती है. डॉ.गिरीश .
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शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कर्मठ आइएस अधिकारी दुर्गाशक्ति के निलम्बन मामले में अपने ही बुने जाल में फंसते जा रहे हैं श्री अखिलेश यादव.

दल-दल में छलांग लगाने का एक ही मतलब है उसमें और भी फंसते जाना. ऐसा ही उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के साथ हो रहा है. बेचारे अंडर ट्रेनी मुख्यमन्त्री एक कर्मठ अंडर ट्रेनी महिला आइएस को अब्बा,चाचा,मौसी के कहने पर निलम्बित तो कर बैठे पर अब मामला संभाले नहीं संभल रहा. जांचे-परखे मुस्लिम कार्ड को खेला तो चच्चा मियां ने यह कह कर हवा निकाल दी कि उन्हें इस अफसर को निलम्बित कराने में ४१ मिनट भी नहीं लगे. वैसे कादरपुर गाँव के निवासियों और नोइडा के जिलाधिकारी दोनों के कथन ने कि मस्जिद के नाम पर वहां कोई तनाव नहीं था मुख्यमन्त्री के दाबों को पहले ही झुठला दिया था. अखिलेश यादव समझ लें कि वे दिन कब के हवा हो चुके हैं जब उनको उज्ज्वल छवि वाला नौजवान राजनेता माना जाता था और उनके कतिपय कामों को परिवारवाद में फंसे एक नौसिखिये की बेबसी मान कर लोग नजरंदाज कर देते थे. लेकिन बाबूसिंह कुशवाहा जैसे दागी नेता को पार्टी में शामिल करने, एक से बड कर एक महाभ्रष्ट अफसरों को महिमामंडित करने और कई दागियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने वाले अखिलेश निलम्बित अफसर पर जिस तरह अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के चलते सांप्रदायिकता भड़काने का आरोप जड़ रहे हैं उससे उनका असली चेहरा सामने आगया है. बात यहीं खत्म नहीं होजाती. वे आइएस एसोसिएशन तक को धमका रहे हैं. वे उसको याद दिला रहे हैं कि उन्होंने ही इस एसोसिएशन को जिन्दा किया था. सवाल उठता है कि क्या अब श्री अखिलेश इस अहसान की कीमत बसूलना चाहते हैं? यदि ऐसा है तो इससे घटिया और क्या होसकता है एक मुख्यमन्त्री के पार्ट पर. डॉ.गिरीश.
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बुधवार, 31 जुलाई 2013

अखिलेश सरकार पर माफिया गिरोह हावी

आज एक बात पर बेहद आश्चर्य हो रहा है.अपने एक साल से अधिक के शासन काल में मुख्यमंत्री,उ.प्र.श्री अखिलेश यादव ने एक से एक शातिर और कुख्यात अधिकारी को मलाईदार पदों पर स्थापित किया है और वे अपने कुक्र्त्यों के चलते बेनकाब हो गए तो उनको दिखाबे के तौर पर स्थानांतरित या बुझे मन से निलंबित कर तो दिया लेकिन शीघ्र से शीघ्र उन्हें पुनर्स्थापित कर दिया.भले ही इन बे-ईमानों के पक्ष में चुहिया भी न आई हो.लेकिन दुर्गाशक्ति नागपाल जिसके निलम्बन पर समूचा समाज उद्वेलित है,उसके निलम्बन को आज तक वापस न लेना उत्तर प्रदेश सरकार के माफिया प्रेम को उजागर कर देता है.अखिलेश के इस माफिया प्रेम की भारी कीमत उस परिवार को चुकानी पड़ गयी जिस परिवार के पुरुष सदस्य की हत्या आज नॉएडा में उस समय कर दी गयी जब वह अपने घर में था.उसका कसूर बस इतना था कि वह खनन मफियायों की शिकायत समय-समय पर अधिकारियों से करता रहा था.इसीको कहते हैं उज्जवल छवि का युवा नेता. डॉ.गिरीश
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