उस समय जब 100 में से 77 लोग 20 रूपये रोज में गुजारा करने को मजबूर हैं उस समय बीपीएल और एपीएल का लफड़ा खतम कर क्या हर परिवार को 35 कि.ग्रा. अनाज हर परिवार को हर माह 2 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर पर मुहैय्या कराने की मांग से बढ कर कोई और मांग उचित हो सकती है? उस समय जब देश का किसान अपना पसीना बहा कर खाद्यान्नों के उत्पादन में जुटा हो; उसे उसकी पैदावारों की बाजिव कीमतें दिलाने और उन्हें खाद, बीज, कीटनाशक तथा डीजल आदि उचित मूल्य पर दिलाने की की मांग से अधिक महत्वपूर्ण कोई और मांग हो सकती है क्या? बेहद मेहनत से पैदा किये खाद्यान्न भण्डारण की व्यवस्था के अभाव में नष्ट हो रहे हों तो उनके भण्डारण की समुचित व्यवस्था की मांग करना कोई गुनाह है क्या? और इन मुद्दों को प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम में शामिल कराने की आवाज उठाना अनुचित है क्या? इन प्रश्नों का केवल यह जवाब है कि यह मांगे अनुचित नहीं बल्कि उचित हैं।
और जब देश भर की जनता कमरतोड़ महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही हो तथा महाभ्रष्टाचार के खिलाफ सडकों पर उतर रही हो उस वक्त वामपंथी दलों द्वारा राजधानी दिल्ली में दिया जा रहा पांच दिवसीय महाधरना नजरअंदाज किये जाने योग्य है क्या? इस प्रश्न का केवल एक ही उत्तर है कि कदापि नहीं।
लेकिन यही हो रहा है. उपर्युक्त ज्वलंत सवालों पर देश के चारों वामदल जो देश की राजनीति को जनोन्मुख बनाने में अहम् भूमिका निभाते रहे हैं, 30 जुलाई से जंतर मंतर पर पांच दिवसीय धरना दे रहे हैं जिसमें प्रतिदिन हजारों गरीब, मजदूर ,किसान भाग ले रहे हैं। इतना ही नहीं चारों दलों का शीर्ष नेतृत्व प्रतिदिन धरने में कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बैठ रहे हैं। लेकिन प्रमुख समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों द्वारा इस धरने को अपने समाचारों में पूरी तरह से नजरअंदाज करना एकदम विचित्र मगर सही घटना है जिस पर सहज विश्वास करना बेहद कठिन है। मीडिया का यह रवैय्या न केवल आश्चर्यजनक है अपितु खुद उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला है जिसका दावा मीडिया चीख कर करता रहा है।
डॉ. गिरीश ने मीडिया से अपेक्षा जताई है कि वह जन हित के इन प्रमुख सवालों पर अनुकूल रुख अपनाएगा और निष्पक्षता की अपनी छवि को बनाये रखने में अपनी ही मदद करेगा।
कार्यालय सचिव