महंगाई एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित महासंघर्ष का शंखनाद करने के नाम पर राजग - विशेषकर भाजपा ने कानपुर में 5 फरवरी को एक विराट जनसभा आयोजित करने की घोषणा की थी जिसे भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी सहित जनता दल (एकी) के शरद यादव और अकाली नेता बलविंदर सिंह भुल्लर को भी सम्बोधित करना था। जनता दल (एकी) और अकाली दल जैसे दल उत्तर प्रदेश में अस्तित्वहीन हैं। लेकिन भाजपा की गिनती चार प्रमुख राजनीतिक दलों में होती है। विधान सभा में बसपा और सपा के बाद वह तीसरा सबसे बड़ा दल है। पूरे प्रदेश से कार्यकर्ताओं और जनता
को कानपुर के ऐतिहासिक फूलबाग मैदान पहुंचाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।
रैली का यह दिन भाजपा के लिए बहुत बड़े झटके का दिन था। अखबारों में छपी खबरों के अनुसार रैली शुरू होने तक फूलबाग मैदान में केवल पांच हजार लोग थे। वैसे बाद में यहां कुछ और लोग पहुंच गये थे। यह बात अलग है कि भाजपा ने इस रैली को लक्खी रैली बनाने के मंसूबे बांध रखे थे। रैली में राजग के कई दिग्गज नेता चार्टर्ड हवाई जहाज से दिल्ली से कानपुर के लिए चले। खबर है कि भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने आडवानी को बता दिया कि भीड़ बहुत कम है। भाजपा की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया तो यह गया है कि कानपुर में धुंध और कोहरे के कारण हवाई जहाज का उतरना संभव नहीं था, इसलिए नेतागण कानपुर जाने के बजाय लखनऊ आ गये। लेकिन चर्चा यह है कि रैली में इतनी कम भीड़ की सूचना पाकर हवाई जहाज को लखनऊ लाया गया। रैली के दिन आसमान साफ था। पूरे उत्तर प्रदेश में धूप निकली हुई थी। वक्त भी दोपहर का था जिसमें दृश्यता की कमी का सवाल पैदा नहीं होता। चार्टर्ड प्लेन से आये राजग के सभी धुरंधर लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डे पर बैठे रहे। भाजपा के कार्यालय से तीन बजे दोपहर पत्रकारों को फोन किया गया कि नेतागण मीडिया से वार्ता करेंगे। उन्होंने यहां पत्रकारों को सम्बोधित किया। जनता के सामने नहीं तो पत्रकारों के सामने ही सही उन्होंने भ्रष्टाचार पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों को लताड़ने का नाटक रचा।
राजग नेता बाद में सीधे दिल्ली वापस चले गये। लखनऊ में वे जितनी देर बैठे रहे, उससे कम देर में वे कानपुर सड़क मार्ग से पहुंच सकते थे। जिस समय वे यहां से दिल्ली के लिए रवाना हुए, कहा जाता है कि कानपुर में उस वक्त भी रैली चल रही थी और उनका इंतजार किया जा रहा था। भाजपा ने यह रैली उत्तर प्रदेश के आसन्न विधान सभा चुनावों को ध्यान में रख कर आयोजित की थी। उनका इरादा
यहां से चुनावी शंखनाद करना था। इस रैली का इंतजाम प्रदेश के कई बड़े भाजपा नेता देख रहे थे। इस रैली के फ्लाप होने से यह साबित होता है कि भाजपा का जनता पर प्रभाव धीरे-धीरे उतर रहा है। उसके सभी एजेन्डे - चाहे वह जन समस्याओं पर हो अथवा साम्प्रदायिकता के आधार पर, जनता को आकर्षित करने में लगातार विफल हो रहे हैं।
पिछले हफ्ते में ही 2 फरवरी को लखनऊ में बुनकरों की समस्याओं, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भाकपा ने एक महाधरना दिया था। उसे महाधरने में पांच हजार से अधिक लोग आये थे। यह संख्या बताती है कि जनता में भाकपा के प्रति रूझान है। जब प्रमुख दल - बसपा, भाजपा, सपा और कांग्रेस का ग्राफ उतार पर हो और प्रदेश के राजनैतिक कैनवास पर रिक्त स्थान पैदा हो रहा हो हमें इसी तरह के संघर्षों को चलाने और जनता के मध्य अधिक से अधिक पहुंचाने में जी-जान एक कर इस स्थान पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ना होगा।
- प्रदीप तिवारी