आजमगढ़ जनपद के खरसहन कलां गांव में जन्में कामरेड भानु प्रताप सिंह की शिक्षा-दीक्षा आजमगढ़ जनपद में ही हुई। वहीं वे मार्क्सवाद के प्रति आकर्षित हुए। हिंडालको कारखाने में नौकरी पाने पर वे साठ के दशक में रेणूकूट चले गये। हिंडालको में मजदूरों के शोषण के फलस्वरूप उन्होंने हिंडालको प्रगतिशील मजदूर सभा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ट्रेड यूनियन के अपने कामों के साथ फैक्ट्री में भी अपने काम को पूर्ण तल्लीनता और लगन के साथ करने के कारण वे न केवल हिंडालको के श्रमिकों बल्कि वहां के प्रबंधन द्वारा भी सम्मान की निगाहों से देखे जाते थे। वे ट्रेड यूनियन आन्दोलन के उन नेताओं की विरासत का प्रतिनिधित्व करते थे जिन्होंने अपना सर्वस्व मजदूर आन्दोलन में गंवा दिया। ट्रेड यूनियन कामों के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था।
लगभग एक दशक पहले उन्होंने सोनभद्र जनपद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कुलवक्ती कार्यकर्ता के रूप में अपनी पारी शुरू की और उन्होंने सोनभद्र के पठारों के गांव-गांव की खाक छानी और वहां रहने वाले किसानों, खेत मजदूरों तथा आदिवासियों के मध्य पार्टी के काम को शुरू किया और पार्टी संगठन को एक मजबूत आधार प्रदान किया। उन्होंने न कभी अपने परिवार की चिन्ता की और न ही अपने आराम या खाने की। कोई आय का जरिया न होने के बावजूद वे पूरी लगन से सोनभद्र जनपद में जनता को संघर्षों में उतारने और उसे संगठित करने का प्रयास करते रहे। जहां रात हो जाती, वही जो कुछ मिल जाता खाकर सो जाते थे और अगली सुबह अपने अगले गंतव्य की ओर चल देते थे। जीवन की इन्हीं विषम परिस्थितियों में उन्हें कब हृदय रोग हो गया पता नहीं चला।
कामरेड भानु प्रताप सिंह के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना एक लगनशील सिपाही खो दिया है तो सोनभद्र की गरीब जनता ने अपने संघर्षों के एक प्रणेता को। उनके निधन से उत्पन्न शून्य को कभी भरा नहीं जा सकेगा।
कल उनकी अंतेष्टि उनके पैत्रक गांव खरसहन कलां में कर दी गयी।
कार्यालय सचिव