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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
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”माक्र्सवाद तथा समकालीन विश्व“ सम्बंधी वर्कशॉप
गत 21 से 24 दिसम्बर 2009 को हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) में “माक्र्सवाद तथा समकालीन विश्व“ विषय पर एक चार दिवसीय वर्कशाॅप का आयोजन किया गया। इसका आयोजन सी.आर.फाउंडेशन तथा एन. राजशेखर रेड्डी रिसर्च सेंटर द्वारा उन्हीं के परिसर में किया गया।यह वर्कशाॅप जनवरी 2008 में हैदराबाद में ही आयोजित “21वीं सदी में समाजवाद“ विषय पर किए गए सेमिनार की ही अगली कड़ी थी। सेमिनर में तय किया गया था कि इस विषय पर अधिक गहराई से अलग-अलग हिस्सों में विचार...
at 11:31 am | 0 comments | सत्य नारायण ठाकुर
हमारा लोकतंत्र: कितना लोक, कितना तंत्र है
60वें गणतंत्र दिवस के मौके पर यह देखना अप्रासंगिक नहीं होगा कि हमारे लोकतंत्र में कितना लोक और कितना तंत्र है। लोकतंत्र की जनकांक्षा पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांगलादेश और नेपाल में हिलोरे मारती रही है। छोटा देश भूटान भी इससे प्रभावित हुए बगैर नहीं रहा। यहां भी जनता ने चुनकर संसद का निर्माण किया है। लातिन अमरीकी देशों में हालिया इतिहास लोकतंत्र की जय, पराजय और फिर विजय की उथल-पुथल की घटनाओं से भरा है। इस जय, पराजय और विजय में निःसंदेह...
at 11:31 am | 0 comments |
प्रगतिशील लेखक संघ का प्रान्तीय सम्मेलन
20-21 फरवरी 2010, वाराणसीउत्तर प्रदेश को प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना का गौरव प्राप्त है। बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचंद ने 1936 में लखनऊ में हुए पहले अधिवेशल की अध्यक्षता की थी। प्रेमचंद ने ही हिन्दी-उर्दू साहित्य को राजमहल से निकाल कर किसान-मजदूर की झोपड़ी में प्रतिष्ठित किया था। प्रेमचंद सज्जाद ज़हीर, डाॅ. रशीद जहां से शुरू हुई जनवादी प्रगतिशील धारा पर आज बाजारवाद साम्प्रदायिकता, जातीयता के हमले हो रहे हैं।ऐसे समय में...
at 11:29 am | 0 comments |
मुशी प्रेमचन्द्र की प्रतिमा हटाने की भाकपा द्वारा निन्दा
लखनऊ 8 फरवरी 2009। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव डाॅ. गिरीश ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती से मांग की है कि वे कहानी सम्राट, मूर्धन्य साहित्यकार एवं प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक अध्यक्ष मुंशी प्रेमचन्द्र की अवमानना करने की वाराणसी के जिला प्रशासन की कार्यवाही को तत्काल रोंके साथ ही उनके गांव लमही में प्रस्तावित प्रेमचन्द्र शोध संस्थान के लिये जमीन उपलब्ध करपने को तत्काल ठोस कदम उठायें।मुख्यमंत्री को...
at 11:29 am | 0 comments | सी.पी. नायर
केरल के वनमंत्री का सराहनीय कार्य
संभवतः लश्करे-तैयबा कार्यकर्ता तादियांतविदा नासिक की आतंकवादी गतिविधियों के संबंध में राजनैतिक रूप से संवेदनशील रिपोर्टों से जुड़ी खबरों और पाॅल जार्ज मुथूट एवं भास्कर करनवार की हत्याओं के मामले केरल में इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में छाये रहने के कारण वन विभाग द्वारा गत 25 नवम्बर को जारी एक अत्यंत महत्वपूर्ण अधिसूचना पर मीडिया द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। यह आदेश राज्य के वनमंत्री विनय विश्वम द्वारा तीन साल पहले किये गये एक...
जनता का साहित्य किसे कहते हैं?
जिन्दगी के दौरान जो तजुर्बे हासिल होते हैं, उनसे नसीहतें लेने का सबक तो हमारे यहां सैकड़ों बार पढ़ाया गया है। होशियार और बेवकूफ में फर्क बताते हुए एक बहुत बड़े विचारक ने यह कहा, “गलतियां सब करते हैं, लेकिन होशियार वह है, जो कम-से-कम गलतियां करें और गलती कहां हुई यह जान ले और सावधानी बरते कि कहीं वैसी गलती तो फिर नहीं हो रही है।” जो आदमी अपनी गलतियों से पक्षपात करता है, उसका दिमाग साफ नहीं रह सकता।गलतियों के पीछे एक मनोविज्ञान होता...
at 11:27 am | 0 comments | कामेश्वर अग्रवाल
२६ जनवरी को कामरेड सुभाष मुख़र्जी की शहादत की ६०वी वर्षगांठ
अमर शहीद कामरेड सुभाष मुखर्जीइलाहाबाद के तरूण कम्युनिस्ट कार्यकर्ता साथी सुभाष मुखर्जी लगभग 25 वर्ष की आयु में 26 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ग्राम कुड़वा-मानिकपुर में खेत मजदूरों और किसानों के एक सम्मेलन में पुलिस की गोली के शिकार होकर शहीद हुए। उनके साथ शहीद होने वालों में महिला कम्युनिस्ट कार्यकर्ता सुबंशा भी थीं।पार्टी में साथी सुभाष का जीवन बड़ा अल्पकालीन था परन्तु उस अल्प समय में भी जिस लगन से उन्होंने काम...
at 11:26 am | 0 comments | डा. गिरीश
मंत्रियों-विधायकों की वेतन वृद्धि से जनता हलकान

सुप्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल की पंक्तियां इस प्रकार हैं -
एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक।
लेकिन साहिर लुधियानवी की ये पंक्तियां उस शाहजहां के बारे में थी जो एक सामंती सम्राट था, जनता द्वारा चुना गया नेता नहीं। लेकिन सुश्री मायावती की सरकार तो एक जनता द्वारा निर्वाचित सरकार है।...
at 11:25 am | 0 comments | फिडेल कास्ट्रो
दुनिया आधी शताब्दी के बाद
दो दिन पहले क्रांति की विजय की 51वीं जयंती पर पहली जनवरी 1959 की बातें उमड़घुमड़कर फिर से याद आयी। हममें से किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि आधी शताब्दी के बाद एक ऐसे समय के बाद जो बहुत तेजी के साथ गुजर गया - हम उस तरह इसकी याद करेंगे मानो यह कल की ही घटना हो।28 दिसंबर 1958 को शत्रु सेनाओं के कमांडर-इन-चीफ जिसकी संभ्रांत इकाईयों को भय सता रहा था कि कर निकल जाने की कोई संभावना नहीं रह गयी है - के साथ ओरियंट चीनी में एक मीटिंग के दौरान...
at 11:24 am | 0 comments | चतुरानन मिश्रा
खेत मजदूर यूनियनों की कार्यप्रणाली में परिवर्तन जरूरी
ग्लोबलाइजेशन में जब यह देखा गया है कि एक तरफ बहुराष्ट्रीय, एकाधिकारी अपार मुनाफा कमा रहे हैं और दूसरी ओर गरीबों की तादात बहुत ज्यादा बढ़ रही है तो सारे विश्व में सार्वजनिक(एकध्रुवीय) विकास की चर्चा हो रही है। राष्ट्र संघ ने भी इसके लिए एक कमेटी बनायी है। भारत में भी ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजनाय मेें गरीबों की मदद के लिए कुछ कार्यक्रम बने हैं लेकिन अगर इसका कार्यान्वयन सिर्फ अधिकारियों पर छोड़ दिया गया तो यह भी असफल हो जायगा। इसलिए...
at 11:22 am | 0 comments | ए.बी. बर्धन
कृषि में संकट: किसानों द्वारा आत्महत्या
पी. सांईनाथ ने हिंदू में प्रकाशित अपने दो लेखों में अपने सामान्य भावावेश एवं सवेदना के साथ भारत में किसानों की आत्महत्या के सिलसिले के जारी रहने के दारूण चित्र पर ध्यान आकर्षित किया है। 1997 के बाद से (जबकि किसानों की आत्महत्या के आंकड़े रखने का काम शुरू हुआ) लेकर 2004 तक लगभग दो लाख (सही-सही कहें तो 199,132) किसान आत्महत्या कर चुके हैं। 2008 के एक अकेले वर्ष में ही कम से कम 16196 किसानों ने (यानी 2007 के मुकाबले केवल 436 कम संख्या...
at 11:21 am | 0 comments | ए.बी. बर्धन
भारतीय गणतंत्र - वर्तमान और भविष्य
भारतीय गणतंत्र 60 वर्ष का हो गया है। साठ वर्ष सही में एक लंबी अवधि है - हमारी उपलब्धियों एवं विफलताओं का पक्का चिट्ठा तैयार करने के लिए पर्याप्त लंबी अवधि।भारत एक बड़ा देश है जिसकी एक पुरानी परंपरा और राष्ट्रीय मुक्ति के लिए साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष की एक गौरवपूर्ण विरासत है।आजादी के बाद उसकी गुट- निरपेक्षता की सर्वमान्य नीति तथा अपनी स्ववतंत्रता एवं प्रगति के लिए संघर्षरत जनगण को दिये गये समर्थन ने उसे उन सभी देशों के शीर्ष...
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