सत्ता में पहुंचने के बाद सरकार ने चुनाव घोषणापत्र दिखाते हुए घोषणा कर दी कि केवल 35 साल के ऊपर के नौजवान बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जायेगा। चर्चा शुरू हुई, असंतोष शुरू हुआ। चुनाव घोषणापत्र में जो छापा था, वह तो नौजवानों को दिखाया नहीं गया था। 35 साल की उम्र तक आदमी रोजगार न मिलने पर कुछ न कुछ तो करने लगता है चाहे रिक्शा चलाये या जूता गांठे या मजदूरी करे। बेरोजगारी के असली दंश को उसे शिक्षा पूरी करने के बाद 18-20 साल की उम्र में ही झेलना शुरू करना पड़ता है। जहां नौकरी निकलती है, वहां आवेदन देने के पैसे भी भरने पड़ते हैं फिर दौड़ कर टिकट खरीद कर जाना भी पड़ता है। उससे 35 साल की उम्र तक बेरोजगार रहने और इंतजार करने को कहना निश्चित रूप से उसकी बेरोजगारी का मजाक उड़ाना नहीं तो क्या था। दूसरे 35 साल की उम्र में आदमी प्रौढ़ होना शुरू कर देता है, जवानी तो उसकी खत्म ही हो जाती है।
हल्ला मचना शुरू हुआ, रोष उपजना शुरू हुआ तो उम्र कम करते करते पहले 30 फिर 25 साल कर दी गयी। कम से कम लोगों को बेरोजगारी भत्ता देना पड़े इसके लिए कई शर्ते लगाई जाने लगीं - मसलन बेरोजगारी भत्ता पाने वाले को जब बुलाया जायेगा, उसे काम करने के लिए हाजिर होना होगा नहीं तो भत्ता बन्द कर दिया जायेगा और दिये गये भत्ते की वसूली कर ली जायेगी। विरोध होने पर कुछ शर्तों को तो वापस ले लिया गया लेकिन एक नई शर्त के साथ कि बेरोजगार नौजवान की कुल श्रोतों से पारिवारिक आमदनी 3000 रूपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और उसे कम से कम ग्रैजुएट तो होना ही चाहिए।
बेरोजगार आखिर बेरोजगार ही होता है। चाहे कितना भी पढ़ा लिखा हो या फिर न पढ़ा लिखा हो, बेरोजगारी का दंश को उसे ही झेलना होता है। उसका परिवार चाहे कितना भी कमाता हो अथवा भूखा मरता हो। बेरोजगारी की पीड़ा तो किसी बेरोजगार से पूछिये।
कल के इस समारोह के समाचार कई दिनों से समाचार पत्रों में छप रहे थे। अधिकारिक आंकड़े को अभी तक मालूम नहीं हुए हैं परन्तु इतना पता चला है कि सरकार ने लगभग सत्तर-पचहत्तर हजार नौजवानों को चिन्हित कर लिया है जोकि प्रदेश में बेरोजगार हैं।
जानकर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि जिस तरह से सरकार बेरोजगारी भत्ता देना चाहती थी और नही भी देना चाहती थी, उसको देखते हुए लगभग इतने ही लोगों को बेरोजगारी भत्ता मिलने का अंदाजा हमें था। लेकिन उत्तर प्रदेश के बेरोजगार नौजवानों को शायद आश्चर्य हुआ हो।
योजना आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं जिसमें से लगभग 1 करोड़ लोग नौजवान हैं। योजना आयोग द्वारा गरीबी की परिभाषा के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति दिन आय 26 रूपये और शहरी क्षेत्र में 32 रूपये है। इस प्रकार यदि 30 दिनों का महीना माना जाये और 4 व्यक्तियों का परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों की प्रति परिवार मासिक आय 3120 रूपये और शहरी क्षेत्र में 3840 रूपये बनती है। उत्तर प्रदेश ने 3000 रूपये प्रतिमाह की आमदनी का आंकड़ा उससे भी कम रख दिया। गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के बच्चे ग्रैजुएट बन कहां पाते हैं? अगर बन भी जाते हैं तो बेरोजगार कहां रह पाते हैं दस-पांच रूपये के लिए किसी न किसी पंचर बनाने की दुकान या होटल पर बर्तन साफ करने की नौकरी करने लग जाते हैं।
लोगों को कायल होना चाहिए कि ऐसी विषम परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश सरकार को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी पात्र बेरोजगारों को ढूंढने के लिए। लोगों को बेवकूफ बनाने के हुनर के लिए हमें समाजवादियों की तारीफ करनी चाहिए। लेकिन जो बार-बार बेवकूफ बन कर भी न समझ सके ...........?
- प्रदीप तिवारी
10 सितम्बर 2012