कामरेड चन्द्रप्पन पुन्नप्रा व्यालार जनसंघर्ष के अप्रतिम योद्धा सी. के. कुमार पनिक्कर तथा अम्मुकुट्टी की संतान थे जो अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गये थे। 11 नवम्बर 1936 को जन्मे कामरेड चन्द्रप्पन 1956 में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के केरल राज्य के अध्यक्ष चुने गये थे। बाद में वे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईवॉयएफ) तथा अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लम्बे समय तक रहे। वे तीन बार 1971, 1977 तथा 2004 में लोकसभा के सदस्य चुने गये तथा एक बार केरल विधान सभा के भी सदस्य रहे। वनवासियों को वन उपजों का अधिकार देने वाले कानून को ड्राफ्ट करने में तथा उसे संसद में पास करवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
कामरेड चन्द्रप्पन की शुरूआती शिक्षा चेरथला और थिरूपुंथुरा में हुई। बाद में उन्होंने चित्तूर राजकीय कालेज से स्नातक की उपाधि ली तथा परास्नातक स्तर की शिक्षा थिरूअनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कालेज में ग्रहण की।
उन्होंने बहुत कम उम्र में गोवा की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में हिस्सा लिया था। वे कई बार जनता के लिए संघर्ष करते हुए गिरफ्तार किये गये और जेल भेज गये। जनसंघर्षों में उन्हें दिल्ली की तिहाड़ तथा कोलकाता की रेजीडेंसी जेल में लम्बे समय तक रहना पड़ा।
1970 में वे भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गये और लम्बे समय तक उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी और सचिव मंडल के सदस्य रहे। मृत्युपर्यन्त वे राष्ट्रीय परिषद के सचिव तथा केरल के राज्य सचिव रहे। जनसंघर्षों के योद्धा कामरेड चन्द्रप्पन के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को बड़ा आघात लगा है। उनकी मृत्यु से उत्पन्न शून्य को निकट भविष्य में भरा नहीं जा सकेगा।
उनके निधन का समाचार मिलते ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। राज्य कार्यालय पर आयोजित एक शोक सभा में भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र, प्रदीप तिवारी, आशा मिश्रा, शमशेर बहादुर सिंह, मुख्तार अहमद तथा ओ. पी. अवस्थी आदि ने उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये।