सोलह अगस्त से विहिप अयोध्या से हनुमान शक्ति जागरण अभियान छेड़ चुकी है। इस अभियान को देश के दो लाख गांवों में ले जाने की उसकी महत्वाकांक्षी योजना है। रथ यात्रा और राम शिला पूजन के बाद की यह उसकी सबसे व्यापक योजना है।
ये सब उस समय किया जा रहा है जब अयोध्या के विवादित स्थल के मालिकाना हक के मुकदमें का फैसला आने के करीब है। इस संभावित फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में तनाव बढ़ाने की कोशिशें चल रहीं हैं। विहिप और आरएसएस का इरादा यह है कि फैसला कुछ भी हो, उन्हें मन्दिर निर्माण के लिए हिन्दूओं को भड़काना और समाज में सद्भाव के वातावरण को दूषित करना है - यदि वे हारते हैं तो आस्था के नाम पर और जीतते हैं तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील के खिलाफ एक उभार पैदा करके। उनके राजनीतिक हित बिना भड़कावे के पूरे नहीं हो सकते हैं।
आज पूरे देश की जनता महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है। बाजार में खाद्यान्नों की कीमतें आसमान पर पहुंच जाने के बावजूद किसानों को उनकी फसलों का लाभप्रद मूल्य नहीं मिल पा रहा है। सरकार को महंगाई थामने की कोई चिन्ता नहीं है जिसके कारण महंगाई कुलांचे भर रही है। संगठित क्षेत्र में रोजगार कम होते जाने के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है। अनौपचारिक क्षेत्रों में रोजगार चले जाने के कारण कहने को तो पूर्णकालिक रोजगार मिलता है परन्तु मिलने वाला वेतन या मजदूरी अर्द्धरोजगार से भी बदतर होती है। अपनी मेहनत से होने वाली कमाई पर निर्भर आम जन-मानस परेशान हाल है।
देश के जन-मानस में महंगाई और आर्थिक नीतियों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है। आन्दोलन खड़े हो रहे हैं। किसान जगह-जगह पर सड़कों पर आ रहे हैं। आर्थिक नीतियों और महंगाई के खिलाफ खड़े हो रहे आन्दोलन वर्गीय चेतना से लैस नहीं हैं परन्तु उनका आधार निश्चित रूप से वर्गीय ही है। कोई सरमायेदार अथवा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा व्यक्ति इन आन्दोलनों में शिरकत नहीं कर रहा है।
केन्द्र एवं कई राज्यों में सत्तासीन कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इन आन्दोलनों को भ्र्रमित कर उन्हें समाप्त करना और कुंठित कर देना चाहते हैं। भाजपा भी अच्छी तरह जानती है कि महंगाई एवं आर्थिक नीतियों के खिलाफ पनप रहा जनाक्रोश उसके हित में नहीं है क्योंकि वह भी उन्हीं आर्थिक नीतियों की पैरोकार है जिन्हें कांग्रेस चला रही है। उसका जनाधार सिकुड़ रहा है। अपने जनाधार को व्यापक करने के लिए आक्रोशित जनता का ध्यान आर्थिक मुद्दों से वह भी हटाना चाहती है।
साम्प्रदायिक या किसी अन्य संकीर्ण उभार की क्रिया और प्रतिक्रिया अंतोगत्वा वर्गीय आधार पर संघर्षों के लिए तैयार हो रही जनता की एकता को ही छिन्न-भिन्न करेंगे और उससे फायदा पूंजीवाद और पूंजीवाद के पैरोकार राजनीतिक दलों को ही होगा। इन तथ्यों के मद्देनजर हमें पूरी चौकसी रखनी है और साजिशों को पराजित कर महंगाई और अन्य आर्थिक मुद्दों पर संघर्षों को और तेज करना और उन्हें धार देना है।
- प्रदीप तिवारी