भाकपा राज्य सचिव मंडल की ओर से जारी बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार का यह कदम केन्द्र की संप्रग-2 सरकार द्वारा खेती में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से कारपोरेट एवं कांट्रैक्ट खेती शुरू करने की नीति को ही आगे बढ़ाने वाला है। यह आर्थिक नव उदारवाद की नीति का विस्तार है जिसे राज्य सरकार अनेक रूपों में आगे बढ़ा रही है।
भाकपा का आरोप है कि कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियां उच्च तकनीकी लायेंगी जिससे कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी। यह कदम खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की बैकडोर एंट्री है और कृषि उत्पादों के कारोबार को विदेशी कम्पनियों के हवाले करना है। इसका विरोध खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने वाम दलों के नेताओं के साथ गत दिनों प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में किया है। इससे मंडी समितियां भी अपंग हो जायेंगी।
भाकपा का सीधा तर्क है कि विदेशी कम्पनियां लाभ कमाने को कांट्रैक्ट फार्मिंग में प्रवेश कर रही हैं और यह लाभ वे हमारे देश के व्यापारी और किसान की कीमत पर ही तो कमायेंगी। दूसरे कांट्रैक्ट के जरिये कृषि उत्पादों पर एकाधिकार कायम कर वे मनमाने दामों पर उन्हें उपभोक्ताओं को बेचेंगी। छोटे और मझोले किसान, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, उन्हें एडवांस धन देकर वे मनमानी शर्तों पर कांट्रैक्ट करेंगी और उन्हें कर्ज के जाल में फंसा कर उनकी जमीनों को हड़प लेंगी। स्पष्ट है कि कारपोरेट खेती को बढ़ावा देकर पहले केन्द्र सरकार और अब राज्य सरकार भूमि सुधार के सवाल को ही उलट रही हैं और सीलिंग कानूनों को और भी असरहीन बनाने जा रही है।
इसके अलावा मांसेन्टो और कारगिल जैसी कंपनियां जो अपने बीज, खाद और कीटनाशकों को कृषि पर थोप रही हैं, को और भी बल मिलेगा तथा बेहद महंगी एवं पर्यावरण के लिये हानिकारक जैनैटिकली मॉडीफाईड तकनीकी का विस्तार प्रदेश के कृषि संकट को और भी बढ़ायेगा।
भाकपा राज्य सचिव मंडल ने मुख्यमंत्री को आगाह किया है कि वे अति उत्साह में उत्तर प्रदेश की खेती, किसान, खुदरा व्यापार के साथ-साथ पर्यावरण के विनाश के इस रास्ते को न खोलें और प्रदेश के ऊपर कांट्रैक्ट फार्मिंग थोपे जाने के घातक कदमों को पीछे खींच लें।