भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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सोमवार, 26 अप्रैल 2010

वर्कला राधाकृष्णन का निधन

खास खबर ने आज छापा है :
तिरूवनंतपुरम। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के वयोवृद्ध नेता वर्कला राधाकृष्णन का सोमवार सुबह निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे।
पार्टी के एक अधिकारी ने बताया कि राधाकृष्णन को पिछले सप्ताह अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। रविवार को उनकी हालत बिग़ड जाने पर उन्हें तिरूवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज के आईसीयू ले जाया गया जहां सोमवार सुबह उन्होंने दम तो़ड दिया। उनका अंतिम संस्कार सोमवार रात करीब 9.30 बजे होगा। राजनीति में राधाकृष्णन के केरियर की शुरूआत वर्ष 1952 में ग्राम परिषद के प्रमुख के रूप में हुई। वह 1980 से 1996 तक केरल विधानसभा के सदस्य रहे। 1987 से 1991 के दौरान वह विधानसभा अध्यक्ष थे। वर्ष 1998 से वह चिरयांकीझु लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
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कल अजमेर बंद का ऎलान

http://www.pressnote.इन ने आज छपा है
26 Apr, 2010 08:14 AM अजमेर। महंगाई के खिलाफ 27 अप्रेल को भारत बंद के समर्थन में वाममोर्चा समर्थक दलों ने अजमेर बंद का ऎलान किया है। बंद की तैयारियों को लेकर अजमेर-मेरवाडा गण परिषद अध्यक्ष सज्जनसिंह चौधरी की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई। जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रमेश टेलर, फारवर्ड ब्लाक के धर्मेंद्र लालवानी, जन ??ा दल के घनश्यामसिंह राठौड, जनता दल 'यू' के सी।पी। कोली, समाजवादी विचार मंच के अब्दुल सलाम कुरैशी, बहुजन समाज पार्टी के दयाशंकर राठौडिया, अजमेर-मेरवाडा गण परिषद से अजयपाल, एमएमटी वर्कर्स यूनियन के हरिभाई शर्मा, असंगठित मजदूर एकता यूनियन के के। प्रवीण, सीपीएम के दिनेश गौड, आर।सी. गुप्ता ने भाग लिया। दवाई की दुकानों, दूध-सब्जी विके्रताओं और शिक्षण संस्थाओं को बंद से अलग रखा गया है।
http://www.pressnote.in/hindi/readnews.php?id=76680
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भारत बंद कल

प्रभात खबर ने आज छपा है :
नयी दिल्ली : वामपंथी पार्टियों तथा राष्ट्रीय जनता दल समेत 13 दलों की दिल्ली इकाइयों के नेताओं ने महंगाई के विरोध में कल (मंगलवार) आयोजित भारत बंद की तैयारियों के सिलसिले में आज यहां बातचीत की. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता ने बताया कि 13 पार्टियों की दिल्ली शाखा ने कल होने वाले राष्ट्रव्यापी बंद की तैयारियां शु कर दी है. जो पार्टियां कल के भारत बंद में शामिल हो रही हैं उनमें माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, तेलुगू देशम पार्टी, अखिल भारतीय फ़ारवर्ड ब्लॉक, रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल (एस), लोक जनशक्ति पार्टी, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्न्ोत्र कड़घम, इंडियन नेशनल लोक दल और असम गण परिषद पार्टी भी शामिल हैं. गौरतलब है कि इन 13 गैर कांग्रेसी एवं गैर भाजपाई राजनीतिक दलों ने महंगाई के विरोध में कल संसद में कटौती का प्रस्ताव लाने की भी घोषणा की है. माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी ने कहा कि आवश्यक वस्तुओं खाद्य, डीजल व उर्वरक आदि के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इसके विरोध में यह बंद आयोजित किया जा रहा है. राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह ने कहा कि तीसरा मोर्चा एकजुट है और 27 अप्रैल को वह संसद में कटौती का प्रस्ताव लाकर सरकार को घेरेगा. उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण ही देश में महंगाई बढ़ी है जिसने आम आदमी की कमर तोड़ दी है.
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Anti-price hike strike fixed on April 27

The Sanghai Express published today :
Imphal, April 25 2010: The nation-wide strike being planned by Opposition political parties in protest against escalating price of essential commodities would be joined by the working class of Manipur, said national Secretary of Communist party of India L Sotinkumar.Speaking to newspersons at the irabot Bhavan office of the CPI today, Sotinkumar said the day-long general strike planned for April 27 would be joined by employees/workers of State-based banks, LIC, medical representatives, pharmacists, women vendors, drivers, rickshaw pullers and employees of some flight services.Contending that budgetary provisions of the Congress-led UPA Government is anti-poor, the CPI functionary also alleged that rather than take a holistic look on the negative points being pointed out by Left parties against the Central Government's economic policy, the Communist parties are being projected in poor light.Informing that the strike centred around cessation of economic activities would be held from 6 am till 4 pm, he also disclosed that in continuation of the protest against hike in prices of essential commodities Left parties would insist on a cut motion discussion on the issue.The cut motion with support of 13 opposition political organisations would proposed for a voice vote failing which the entire opposition MPs are ready to stage a walk-out, Sotinkumar maintained.Joining the media briefing, CPI state Secretary Sarat Salam confided that the cut motion would have the support of 278 MPs.All India Forward Block secretary Kh Gyaneswor and RSP secretary N Ratan were also presented at the briefing.
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Even Indian diaspora not free of caste bias, says Raja


The Hindu today published the following news :


डी. Raja, National Secretary of the Communist Party of India (CPI), said that the caste system and untouchability are deep rooted even among the Indian diaspora.


He was speaking at the State conference of the CPI at Chidambaram near here on Saturday to mark the birth anniversary of B.R. Ambedkar.
In an era of neo-liberalism, Dalits were put to hardship and the new economic policy had worsened their plight. Mr. Raja said that communists were fighting social ills and if Ambedkar were alive, he would have associated with the communists because he had striven to create a casteless society.
State Secretary of the CPI, D. Pandian, said that caste had become inalienable from birth to death. Even after conversion, it would not fade away.
Horrendous crimes were committed in the name of “honour killings” to do away with youngsters who married ignoring caste delineations.
Unless a genuine social transformation occurred, it was difficult to eradicate untouchability, he said.
Veteran communist leader R. Nallakannu deplored the double-tumbler system and denial of entry to temples that still existed in Tamil Nadu.
Mr. Nallakannu said that the Dalits could not wage a solitary battle; they had to align with like-minded organisations.
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Bharat Bandh against price rise tomorrow


http://www.mynews.in/ ने निम्न समाचार प्रकाशित किया है :


New Delhi: Delhi units of 13 parties, including Communist Party of India (CPI) and Rashtriya Janta Dal (RJD), met here today to discuss the nationwide strike against price rise tomorrow।


''Delhi chapter of 13 parties met today to intensify preparations for the nationwide strike which is on April 27,'' a CPI, Delhi, spokesperson said.
Workers and activists of CPI, CPI (Marxist), RJD, Samajwadi Party (SP), Rashtriya Lok Dal (RLD), Telugu Desam Party (TDP), All India Forward Bloc (AIFB), Revolutionary Socialist Party (RSP), Janta Dal (Secular), Lok Janshakti Party (LJP), All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam (AIADMK), Indian National Lok Dal (INLD) and Asom Gana Parishad (AGP) will take out a procession tomorrow in various parts of Delhi to protest the rising prices of essential commodities.
''The procession is to spread the message that the Government's failure to control hoarding, black marketing and future trading in grains is the root cause of continuous rise in prices of essential commodities,''the spokesperson added.
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मई दिवस की चुनौतियां

मई दिवस काम के घंटे कम करने के संघर्षों की प्रारंभिक घटनाओं से संबंधित है। हर साल की पहली मई शिकागो में सन् 1885 की मई के रक्रंजित प्रथम सप्ताह की उन घटनाओं की याद दिलाती है। मजदूरों की मांग थी काम के घंटे कम किये जायें और आठ घंटे काम के, आठ घंटे परिवार के और आठ घंटे आराम के माने जाये। बाद के दिनों में तकनीकी विकास के फलस्वरूप कार्यदिन और भी कम करने की मांग उठने लगी। कई कार्यालयों में साप्ताहिक छुट्टी और काम के घंटे और भी कम किये गये। भारत के 5वें श्रम सम्मेलन में साप्ताहिक छुट्टी के साथ सप्ताह में 48 घंटे तय किये गये। लेकिन अब यह सब बीते दिनों की बात हो गयी। 60 और 70 के दशक के वैज्ञानिक तकनीकी क्रान्ति के बाद उल्टी गंगा बहने लगी। वैज्ञानिक तकनीकी उपकरण के अविष्कार के बाद आशा की जाती थी कि मजदूरों के कार्य हल्के होंगे, खतरनाक काम आसान होंगे और नये रोजगार के अवसर बढे़गे, किन्तु इन सभी आशाओं पर तुषारापात हो गया और तमाम अपेक्षाओं के प्रतिकूल नियोजकों ने कार्य दिवस अत्यधिक बढ़ा दिये हैं तथा कार्यदशा बद से बदतर किये है। वैज्ञानिक तकनीकी क्रान्ति की उपलब्धियों को पूंजीपतियों ने हाथिया लिया हैं और उनका इस्तेमाल वे अपने वर्ग स्वार्थ में करते हैं।भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के अधिनस्थ वी वी गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान ने नोएडा और गुडगांव में अत्याधुनिक तकनीकी के बीपीओ (बिजनेस प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग) और कालसेंटरांे में कार्यरत आधुनिकतमपरिधानों में सजे-सवरें शूटेड-बूटेड नवकार्य-संस्कृति के कर्मचारियों (दरअसल इन्हें कर्मचारी पुकारा जाना पसंद नहीं) की कार्यदशा का अध्ययन किया है। संस्थान के शोधकर्ता िवद्धानों ने विस्तृत छानबीन के बाद अपने तथ्यपूर्ण शोधगं्रथ में उजागर किया है कि कॉल सेंटरों में काम करने वालों की कार्यस्थिति प्राचीन रोम के गुलाम जैसी है। इन्हें प्रतिदिन प्रायः दस घंटे (और ज्यादा भी) बंदी अवस्था में काम करना पड़ता है। इससे नाना प्रकार की नयी शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां परिलक्षित हो रही है। आईसीआईसीआई जैसी बैंकिंग कारोबार में भी काम करनेवालों के घंटे निर्धारित नहीं है और इन्हें 10 घंटे और इससे ज्यादा भी रोजाना काम करना पड़ता है। यह अलग-थलग अकेली घटना नहीं है।मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग में ठेकाकरण, आउटसोर्सिंग और पीसरेट सिस्टम चल पड़ा है, जहां काम के घंटे निर्धारित नहीं है। उत्पादन प्रक्रिया में मूलचूल बदलाव आया है। कारखानों की भीड़भाड़ कम करके ‘लीन मॉडल’ अपनाया जा रहा है, जिसमें कुछेक अतिकुशल मजदूरों को कार्यस्थल में बुलाकर शेष काम ठेके पर बाहर वहां भेज दिये जाते हैं, जहां किसी प्रकार का श्रम कानून लागू नहीं है। अगर नियमानुसार श्रम कानून लागू भी है तो उसके अनुपालन की बाध्यता नही है। वैज्ञानिक तकनीकी क्रान्ति के बाद मजदूर वर्ग की अपेक्षाएं थी कि उनके कार्यबोझ कम होंगे, उनके आराम तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वैज्ञानिक उपलब्धियां महाकाय कार्पोरेटियों की चेरी बनकर रह गयी। इसीलिए काम के घंटे कम करने का संघर्ष टेªड यूनियन आंदोलन के सामने प्राथमिक महत्व का है।सन् 1990 में 10 प्रतिशत कर्मचारी कानून सम्मत सामाजिक सुरक्षासुविधाओं के दायरे में आते थे। वह संख्या सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सन् 2000 में सात और 2005 में 5।66 प्रतिशत हो गयी। गैरसरकारी अनुमानों के मुताबिक आज 2010 में महज 5 प्रतिशत कर्मचारियों को कानूनी सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं प्राप्त है। इससे यह तथ्य सिद्ध होते हैं कि सन् 1990 के बाद के वर्षों में कोई तीन करोड़ मजदूर और कर्मचारी कानूनी सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर धकेल दिये गये।सामाजिक सुरक्षा संवैधानिक मानवधिकार है, जिसकी खुलेआम हत्या की जा रही है। पूंजीपति नियोजक और राज्य सत्ता के मेलजोल से सुविचारित अर्थनीति अख्तियार की गयी जिसके तहत उत्पादन प्रक्रिया में गैरकानूनी फेरबदल करके लोगों को रोजगार से निकाल बाहर किया जा रहा है। सन् 1991 में घोषित नई आर्थिक नीति स्थायी रोजगार को अस्थायी (टेम्पररी) और आकस्मिक (कैजुअल) बनाता और मजदूरों को टिकाऊ रोजगार तथा भरोसे की आय से वंचित करता है। यह गैरकानूनी प्रतिगामी कदम है जो इतिहास के चक्के को पीछे घुमाने पर अमादा है। औद्योगिक विवादअधिनियम की धारा 9ए एवं मजदूरपक्षी श्रम कानूनों को निष्क्रिय किया गया है। इस तरह काम का घंटा कम करने के साथ जीने लायक पारिश्रमिक और टिकाऊ रोजगार हासिल करने का संघर्ष मजदूर वर्ग के समक्ष दूसरी चुनौती आ खड़ी हुई है।हाल के दिनों में मंदी के नाम पर मजदूरों की छटनी बड़े पैमाने पर की गयी। मंदी, मुक्त बाजार व्यवस्था की देन है। इसका जिम्मेदार स्वयं पूंजीपति है मजदूर नहीं। जिस कृत्य का जिम्मेदार मजदूर नहीं उसकी मार मजदूर क्यों भुगते? मजदूरों के कंधे पर मंदी का हल बर्दाश्त-ए-काबिल नहीं है। इसीलिए रोजगार की सुरक्षा की तीसरी चुनौती मजदूर वर्ग के सामने दरपेश है।उपभोक्ता सामानों का दाम बढ़ाकर मुनाफा कमाना पूंजीपति वर्ग का अजमाया हुआ हथियार है। मजदूर वर्गीय संघर्षो से हासिल पारिश्रमिक वृद्धि को चीजों के दाम बढ़ाकर पूंजीपति वर्ग वापस छीन लेता है। महंगाई के मुद्दे पर आमजनों के हितों के साथ मजदूर वर्गीय हित अभिन्न रूप से जुड़ा है। मजदूर वर्ग के सामने यह महंगाई चौथी चुनौती है कि मजदूर वर्ग आम जनों के दुखों के साथ एक होकर वर्ग दुश्मनों की पहचान करे और उन्हें शिकस्त देने के लिए एकताबद्ध संघर्ष करे। सभी संकेत बताते हैं कि आनेवाले दिनों में देहात से शहर की ओर और पिछड़े इलाके से उन्नत क्षेत्र की तरफ जाने लायक रोजगार की तलाश में लोगों का पलायन और भी तेज होगा। इसके साथ ही उद्योग जगत में स्थायी रोजगार से अस्थायी और औपचारिक से अनौपचारिक उत्पादन पद्धति का प्रचलन भी बढ़ेगा। उत्पादन प्रक्रिया में ऐसे बदलाव की रफ्तार अधिकाधिक मुनाफा के निमित्त बढ़ाया जा रहा है। फलतः प्रवासी मजदूरों और अनौपचारिक श्रमजीवियों की बढ़ती तादाद को संविधान प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा मुकम्मिल कराने का संघर्ष टेªड यूनियन आंदोलन के समक्ष पांचवी चुनौती है।देश के हर क्षेत्र में कार्पोरेट गवर्नेस का बाजार गर्म है। खुदरा बाजार का कार्पोटीकरण यहां तक कि कृषि क्षेत्र को भी कार्पोरेट के हवाले किया जा रहा है। कार्पोरेट गवर्नेस जिस गति से मजबूत हो रहा है, हमारा लोकतंत्र उसी क्रम में कमजोर हो रहा है। लोकतंत्र और कार्पोरेट सहयात्री नहीं बन सकते। लोकशाही और पूंजीशाही मूल रूप में विपरीतार्थक और परस्पर विरोधी दिशा है।देश की संसद को दरकिनार कर अंतराष्ट्रीय समझौते किये जा रहे हैं। संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कृषि राज्यों के मामले हैं, किन्तु राज्य विधान सभाओं और पार्लियामेंट की पीठ पीछे विश्व व्यापार संघ के समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। सन् 1956 में संसद के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित औद्योगिक प्रस्ताव को नयी आर्थिक नीति की सरकारी घोषणा में खारिज कर दिया गया। मुक्त बाजार व्यवस्था को अपनाकर संविधान में वर्णित उदात्त समाजवादी आदर्शों की तिलांजलि दे दी गयी है। आत्मनिर्भर स्वावलंबी राष्ट्रीय अर्थतंत्र को साम्राज्यवादी वैश्वीकरण पर निर्भर बना दिया गया है। चंद व्यक्तियों के हाथों में पूंजी का संकेद्रण तेज गति से हो रहा है। विकास का लाभ देश के कुछेक व्यक्तियों तक सीमित है। देश का विशाल बहुमत विपन्न है। देश की संसद में करोड़पतियों ने बहुमत बना लिया है। इसलिए लोकतंत्र के क्षरण को रोकना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ करना मजदूर वर्ग के सामने निर्णायक चुनौती है। हमें आर-पार की लड़ाई लड़नी है। तो आइये 2010 के मई दिवस के अवसर पर इन चुनौतियों का सामना करने और आम आदमी के हक में खुशहाल भारत बनाने का सामूहिक संकल्प लें।
- सत्य नारायण ठाकुर
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पॉकेटमार बजट

यह बजट क्या है? एक छलावा है, ईमानदार की जेब काटकर बेईमानों के पॉकिट में पैसे डालने की कला है। इसीलिए तो उद्योग जगत ने इस कलाबाजी के लिए वाह-वाह कहा तो आम आदमी में त्राहिमाम मचा है।हरेक बजट का एक राजनीतिक दर्षन होता है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने उस दर्षन का संकेत अपने बजट भाषण के प्रारंभ में ही कर दिया कि बजट का फोकस सार्वजनिक क्षेत्र से हटकर निजी खिलाड़ियों (प्राइवेट एक्टर्स) की तरफ किया गया है और उसमें सरकार की भूमिका सहायक की होगी।असंगठित मजदूरों के लिए अर्जुन सेनगुप्ता कमीषन ने कम से कम 32 हजार करोड़ की सामाजिक सुरक्षा निधि की मांग की थी, किंतु इसके लिए बजट में मात्र एक हजार करोड़ के कोष का प्रावधान किया गया है। यह ऊंट के मुंह में जीरा समान है। बजट में सरकारी अस्पतालों, चिकित्सा एवं षिक्षा के पुराने बजटीय आबंटन पर भी कैंची चलायी गयी है। उपकरणों के बढ़े दामों के मद्देनजर पिछले वर्षों के बजट प्रावधानों के मुकाबले इस बजट में कम रकम आबंटित की गयी है। जीवनोपयोगी सामानों के बढ़ते दामों से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। महंगाई कम करने का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। उल्टा परोक्ष कर का भार बढ़ाकर जले पर नमक छिड़का गया है।मोटी आयवालों को टैक्स चुकाने में रियायतें दी गयी हैं, वहीं उससे कई गुना ज्यादा परोक्ष कर लगाया गया है, जिससे महंगाई बढ़ेगी ही। इससे भूखों और कुपोषणों की संख्या बढ़ना निष्चित है। कार्पोरेट सेक्टर को मंदी के नाम पर दिया गया प्रोत्साहन पैकेज बंद किया जाना चाहिए था, क्योंकि उसका दुरूपयोग मुनाफा लूटने में किया जा रहा है। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री ने अपील की थी कि मजदूरों की छंटनी नहीं की जाय? लॉक-आउट और ले-ऑफ रोके जायें, किंतु उद्योग जगत ने इस अपील की पूरी तरह उपेक्षा कर दी। फलतः रोजगार का भारी नुकसान जारी रहा। कार्पोरेट सेक्टर पर नये टैक्स लगाने के बजाय बजट में उन्हें रियायतें दी गयी है। अगर कल्याण योजनाओं के लिए पैसों की कमी है तो उद्योगपतियों पर टैक्स क्यों नहीं लगाये गये, जिन्होंने हाल के दिनों में मोटे मुनाफे कमाये हैं?आयात-निर्यात करनेवाले उद्योगपतियों को नयी रियायतें दी गयी हैं। उनके टैक्सों में नयी छूटें दी गयी है। आयात कर में कटौती की गयी है। विदेषी सामानों के आयात पर लगने वाली कस्टम डयूटी आधी कर दी गयी। फलतः विदेषी माल हमारे घरेलू बाजार में और भी धड़ल्ले से आयेंगे। इसका हमारे कल-कारखानों के उत्पादान पर विपरीत असर अवष्यंभावी है। यह अहसास किया जाना चाहिए कि आयात कर में कटौती करना न केवल विदेषी मालों को आमंत्रण देना है, बल्कि यह देष के अंदर बेरोजगारी का सीधा आयात करना है।जीडीपी बढ़ाकर दो अंकों में करने का लक्ष्य रखा गया है, किंतु जीडीपी का संबंध रोजगार बढ़ाने से नहीं जोड़ा गया है। इस प्रकार की जीडीपी बढ़ने से देष की संपदा कुछेक व्यक्तियों के हाथों में सिमटती जा रही है। यह भारतीय संविधान के उन निदेषक सिद्धातों के विपरीत है, जिसमें धन के कुछेक व्यक्तियों के हाथों में संकेन्द्रण की मनाही की गयी है। जीडीपी को आम जनता की खुषहाली के साथ जोड़ा जाना चाहिए। पूंजीपतियों की खुषहाली और आम आदमी की बदहाली भारतीय संविधान के समाजवादी लक्ष्यों का निषेध है।पेट्रोल-डीजल पर दाम बढ़ाना जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका डालना है। रेलमंत्री ममता बनर्जी एक तरफ रेल भाड़ा नहीं बढ़ाने की वाहवाही लूट रही है। तो क्या डीजल का दाम बढ़ने से मालभाड़ा नहीं बढ़ेगा? पेट्रोल-डीजल पर दाम बढ़ना परोक्ष कर है, जो सीधे जनता की जेब काटता है। यह महंगाई से पीड़ित जनता के घावों पर नमक छिड़कना है।इससे सभी महसूस करते हैं कि राष्ट्रीयकृत बैंकों की भूमिका के चलते विष्वमंदी और वित्तीय संकट का असर भारत में कम देखा गया। उम्मीद की जाती थी कि राष्ट्रीयकृत बैंकों की वित्तीय प्रणाली मजबूत की जायेगी। इस उम्मीद पर पानी फिर गया। बजट के मुताबिक बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकिंग प्रणाली के नये दरवाजे खोले गये हैं। यह अषुभ संकेत है। इससे हमारी वित्तीय व्यवस्था में विदेषियों का हस्तक्षेप बढ़ेगा।पूर्वी प्रदेषों में हरित कृषि क्रान्ति लाने के लिए चार हजार करोड़ रुपये के विषेष निवेष का षोर मचाया जा रहा है। देष की 65 प्रतिषत आबादी कृषि पर निर्भर है। इसके लिए यह आवंटन भी ऊंट के मुंह में जीरा का फोरन है। बिहार जैसे राज्य के लिए बाढ़ और सूखा महान आपदा है। इसके समाधान के लिए सम्यक स्थायी जल प्रबंधन की चिर जनाकांक्षा की उपेक्षा की गयी है। इसके बगैर इस क्षेत्र में हरित क्रांति की बात करना थोथा गाल बजाना है। सबसे खतरनाक खेल तो यह है कि कृषि में अमेरिकी कार्पोरेट के प्रवेष के बारे में एक समझौते के मसविदा पर पिछले महीने कैबिनेट ने हरी झंडी दी है। बजट में उन्नत तकनीकी भंडारण और वेस्टेज नियमन के लिये जो धनराषि आबंटन है, वह किसानों के लिये नहीं, प्रत्युत कार्पोरेटियों के लिये है। उसे वास्तविकता में कार्पोरेट सेक्टर ही हथियाएगा। हम आगे देखेंगे यह मसविदा क्या गुल खिलाता है।इसी तरह रेलमंत्री ममता बनर्जी ने पष्चिम बंगाल के आगामीविधानसभा चुनाव के मद्देनजर रेल बजट में चुनावी रंग फंेंट दिया है। वे अपने पिछले साल के रेलबजट का “दृष्य 2020” को भी अदृष्य कर गयीं। तेज रेलगाड़ियों के लायक ट्रैक निर्माण, समुचित सुरक्षा उपाय एवं अन्य अधिसंरचनात्मक (इंफ्राट्रक्चर) निवेष का प्रावधान नहीं किया गया है। रेल चलाने के लिए उन्होंने निजी क्षेत्र को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट- पार्टनषिप) बुलावा भेजा है और रेलवेबोर्ड को पानी बोतल का कारखाना, इको-फ्रेंडली पार्क बनाने, स्कूल-कालेज और अस्पताल चलाने के काम में लगा दिया है।अब समय आ गया है कि अलग रेल बजट बनाने की औपनिवेषिक परंपरा खत्म की जाय और रेल बजट को सामान्य बजट का हिस्सा बनाया जाय। जब विभागीय रूप में दूरसंचार, डाकतार, उड्डयन, परिवहन, तेल, जहाजरानी, पोट एंड डॉक आदि चल सकते हैं तो रेल क्यों नहीं?वित्त मंत्री प्रणव मुखजी ने आम आदमी का बजट बताकर एक बड़ा झूठ परोसा है। असल में यह बजट पूंजीपतियों को रिझाने के लिए परोसा गया है। अंतर्राष्ट्रीय सट्टेबाजों का अखबार ‘वालस्ट्रीट जर्नल’ वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के नाम पिछले हफ्ता एक खुला पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि “अब आपकी सरकार निडर होकर तथाकथित सामाजिक समावेषिक विकास जैसे वोट बटोरू उपायों से मुक्त होकर सब्सिडी का खात्मा, निवेष को बढ़ावा और आयात-निर्यात सुगम करने के लिए कराधान की बाधा समाप्त कर सकेगी।”प्रतावित बजट प्रावधानों से प्रकट है कि अमेरिकी पूंजीपतियों का प्रतिनिधि अखबार ‘वालस्ट्रीट जनल’ के सुझावों के अनुकूल बजट में बखूबी इंतजाम किये गये हैं। इस बजट में जनता की जेब काटकर पूंजीपतियों की तिजोरी भरी गयी है। यह जनता के लिए एक पॉकेटमार बजट है।
- सत्य नारायण ठाकुर
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World Dance Day: 29th April, २०१० - International Message by Julio Bocca (Argentina)

Dance is discipline, work, teaching, communication. With it we save on words that perhaps others would not understand and, instead, we establish a universal language familiar to everyone. It gives us pleasure, it makes us free and it comforts us from the impossibility we humans have to fly like birds, bringing us closer to heaven, to the sacred, to the infinite.
It is a sublime art, different each time, so much like making love that at the end of each performance it leaves our heart beating very hard and looking forward to the next time.
English translation by Marcia De La Garza (Original in Spanish)
History of World Dance Day – 29th April
In 1982 the Dance Committee of the ITI founded International Dance Day to be celebrated every year on the 29th April, anniversary of Jean-Georges Noverre (1727-1810), the creator of modern ballet. The intention of the «International Dance Day Message» is to celebrate Dance, to revel in the universality of this art form, to cross all political, cultural and ethnic barriers and bring people together with a common language - Dance.
Every year a message from an outstanding choreographer or dancer is circulated throughout the world. The personality is selected by the founding entity of the International Dance Day - the International Dance Committee of the ITI, which collaborates with World Dance Alliance, a Cooperating Member of the ITI.
Together with the World Dance Alliance, ITI and its Dance Committee are celebrating International Dance Day at UNESCO in Paris.




Circulated by:
Indian People’s Theatre Association (IPTA).
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