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सोमवार, 5 जुलाई 2010

भोपाल मामले से कुछ सीख - सेवानिवृत्त न्यायधीश उच्चतम न्यायालय






इस सम्बंध में कोर्ट के निर्णय से ऐसा लगता है कि भारत अब भी विक्टोरियन साम्राज्यवादी, सामन्ती दौर में है, और जो सोशलिस्ट सपनों से बहुत दूर है।
उन वर्षों में जिन राजनैतिक दलों के हाथों में सत्ता थी, वे इस भारी अपराधिक लापरवाही के लिये दोषी है। इस घटना से सम्बंधित असाधारण बात तो यह है कि यूनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अधिकारी वारेन एंडरसन तो पिक्चर में लाया ही नहीं गया।
2 दिसम्बर 1984 को भोपाल में जो बड़े पैमाने पर हत्याकाण्ड हुआ वह एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कार्पाेरेशन की भारी गलती का परिणाम था। जिसने भारतीयों की जिन्दगियों को अश्वारोही क्रूर योद्धाओं के समान रौंदा। इसमें लगभग 20,000 लोगों की गैस हत्या हुई फिर भी 26 वर्षों की मुकदमें बाजी के बाद अपराधियों को केवल 2 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी गई। ऐसा तो केवल अफरातफरी वाले देश भारत ही में घटित हो सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति एवं श्वेत संसार तथा श्यामल भारतीय, प्रधानमंत्री, तालिबान एवं माओवादी नक्सलवाद पर कर्कश आवाजे उठाते हैं। मगर यह नहीं देखते कि इस जन संहार पर जो, भारत के एक पिछड़े इलाके में अमेरिकन ने किया, अदालती फैसला आने में 26 वर्ष लग गये।
चूँकि भारत एक डालर प्रभावित देश है, इसीलिये गैसजन संहार को एक मामूली अपराध जाना गया। लगता है कि भारत पर मैकाले की विक्टोरियन न्याय व्यवस्था अब भी लागू है। हमारी संसद और कार्यपालिका को उनके जीवन और उस नुकसान से लगता है कोई वास्ता ही नहीं है। न्यायपालिका का भी यही हाल है, वह भी अहम मामलों में तुरन्त फैसला देने के अपने मूल कर्तव्य के प्रति लापरवाह है। संसद को भला इतना समय कहां कि वह अपने नागरिकों के जीवन को सुरक्षित करने के कानून बनाये। वह तो कोलाहल में ही बहुत व्यस्त हैं। इस प्रकार के अपराध के लिये जो तफ़तीशी न्यायिक विलम्ब हुआ वह अक्षम्य है।
अगर कार्यपालिका के पास जरूरी आजादी, तत्परता एवं निष्ठा हो, अगर सही जज नियुक्त हो और सही प्रक्रिया में अपनाई जाये तो भारतीय न्यायालय भी सही न्याय करने में सक्षम होंगे।
विश्वास भंग हुआ
यह भी हुआ कि आम आदमी के लिये यह समाजवादी लोकतंत्र बराबर एक निराशा का कारण बना रहा। यह विरोधाभास समाप्त होना चाहिये। हमारे पास असीमित मानव संसाधन हैं, जिससे हम अपने राष्ट्रपिता की प्रतिज्ञा की पुर्नस्थापना कर सकते हैं, उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि हर आंख के आंसू को पोछा जाये। परन्तु भारतीय प्रभु सत्ता के इस विश्वास को भोपाल ने हास्यास्पद ढंग से भंग कर दिया गया। एक समय था जब हर वह गरीब आदमी जो भूखा और परेशान था और ब्रिटिश सामा्रज्य का विरोध कर रहा था, वह कांग्रेसी कहा जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब कांग्रेसी सत्ता में आये, फिर प्रत्येक भूखा लड़ाकू कम्युनिस्ट कहा गया। जब अनेक राज्यों में कम्युनिस्ट सत्ता में आये, और वहां बहुत से भूखे थे, वह भूखे गरीब नक्सलवादी कहे गये। क्या भारत का कुछ भविष्य भी है? हां जरूर है। शर्त यह है कि यहां के गौरवपूर्ण संविधान और अद्भुत सांस्कृति परम्पराओं में कार्ल मार्क्स एवँ महात्मा गाँधी के दष्टिकोण को शमिल करने की समझ पैदा की जाय। क्या हमारे पास इतना विचार-बोध हैं ? क्या न्यायाधीश ऐसी लालसा रखते हैं? भोपाल पर दिया निर्णय तो यही ज़ाहिर करता है कि भारत अब भी साम्राज्यवादी सामंती विकटोरियन युग मे है, और समाजवादी स्वप्नों से कोसों दूर है।
इस परिणाम की असाधारण बात यही है कि युनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अफ़सर वारेन एनडरसन को मामलो से बाहर रक्खा गया। यह तो इन्साफ का मज़ाक बनाया गया। मुख्य अपराधी को तो व्युह रचना से अलग हीं रक्खा गया। अब जो छोटों को अभियुक्त बनाया तो इससे यही प्रतीत हुआ कि उन लाखों का मज़ाक बना जिन लोगों को भुगतान पड़ा। अपराध क्षेत्र से शक्तिशालियों को मुक्त कर देने का अर्थ क़ानून को लंगड़ा कर देना। क्या एक अमेरिकी अपराधी की भारतीय कोर्ट के आर्डर के अर्न्तगत जांच नहींे की जा सकती ? इस प्रकार के भेद-भाव से न्याय हास्यास्पद बनता है। जब मूल अधिकारों का हनन हो तो जजों के कार्यक्षेत्र कें ऐसे केसों की सुनवाई निहित है, 26वर्ष बीत गये, इतने जज होते हुए भी सुप्रीम कोर्ट नें अब तक क्या किया ? तुरन्त सुनवाई हेतु भारत-सरकार भी कोर्ट तक नहीं गई ? अब क़ानून मंत्री कहते है कि जो दो वर्ष की सश्रम करावास की सज़ा दी गई है, उससे वह प्रसन्न नहीं है। इस 26 वर्ष की अवधि में भारतीय दण्ड विधान की धारा 300 से 304 में कोई संशोधन न प्रस्तावित किया गया न ही किया गया और न सख्त दण्ड का प्रावधान किया गया। यह बात भी संसद एवँ कार्यपालिका की अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही की द्योतक है। उन दिनों में जो भी राजनैतिक दल सत्ता में रहे वह भी इस अपराधिक चूक के लिये दोषी हैं। क्योंकि भारतीय मानव पर अपराधिक कृत्य हुआ और वे सोते रहे। भुक्त भोगियों को मुनासिब मुआवज़ा तक नहीं दिया गया। यूनियन कारबाइड द्वारा वित्त-पोषित एक बड़े अस्पताल का निर्माण भोपाल में जरूर करवाया गया, लेकिन यह भी गरीबों के लिये नहीं अमीरों के लिए था। यह समझने कि अस्पताल लशों पर बना फिर भी वंचितो की पहुँच वहाँ तक नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट बजाय इसके कि निचले कोर्ट से मुकदमा मंगा कर तुरन्त निर्णय देता, वह अपने ही भत्ते और सुविधायें बढ़ाने में तल्लीन रहा।
यू0एस0 के लिये वारेन एंनडरसन एक बन्द अध्याय है। इस अत्यंत शक्तिशाली परमाणु राष्ट्र की न्याय अध्याय करने की अलग सोच है। इस बात से भारतीय जन मानस में इतना साहस होना चाहिये कि वह ‘डालर-उपनिवेशवाद‘ का कड़ा विरोध करे। अमेरिकन विधि के शासन से मुक्त हैं ? जब बहुं राष्ट्रीय निगम अधिनायकों के दोष की बात आ जाए तब श्यामल भारत को श्वेत-न्याय से संतुष्ट होना ही हैं ? हालांकि वाशिंगटन हमेशा व्यापक मानवाधिकार घोषणा-पत्र के प्रति वफ़ादारी की क़समें खाता है, परन्तु पब परमाणु-सन्धि की बात आती है तो उसकी डंडी अपने हितों की तरफ़ झुका देता है। भारत में यह साहस भी नहीं होता कि वह धोके के विरोध में कोई आवाज़ उठाये। हमारे पास बहुराष्ट्रीय निगम है जिसका वैश्विक अधिकार क्षेत्र है। एंडरसन एक अमेरिकी है और यूनियन कारबाइड थी ?
इसके आज्ञापत्र एशियाई ईधन के लिए ही हैं, भारतीय न्याय व्यवस्था लगता है कि केवल नगर पालिकाओं एवँ पंचायतों के लिये ही है, इससे आगे नहीं।
-वी0आर0 कृष्णा अय्यर
सेवानिवृत्त न्यायाधीश
उच्चतम न्यायलय
हिन्दू से साभारअनुवादक: डॉक्टर एस.एम हैदर
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July 5 Hartal: Unprecedented Success

Date: 5 July 2010

The Left parties, the Communist Party of India, Communist Party of India (Marxist), the Revolutionary Socialist Party and the Forward Bloc have issued the following statement:

July 5 Hartal: Unprecedented Success

The all India hartal to protest against the steep increase in the prices of petroleum products has been an unprecedented success. Despite detention and arrests of thousands of protesters, there was a bandh like situation in all parts of the country with shops, business establishments, transport and educational institutions being closed. Left leaders, A.B. Bardhan, D Raja and Brinda Karat were arrested for picketing in Delhi. This has been the most widespread protest action in the country in recent years.

The Left parties congratulate the people and the tens of thousands of activists who have made the hartal a complete success. By this action the people have expressed their anger and strong opposition to the anti-people policies of inflicting successive burdens on the people through price hikes of petroleum products.

The Left parties in consultation with secular opposition parties will chalk out plans for further intensifying the movement against price rise to compel the government to reverse these harmful steps.


Sd/-

(A.B. Bardhan)

General Secretary, CPI

(Prakash Karat)

General Secretary, CPI(M)

(T.K. Chandrachoodan)

General Secretary, RSP

Debabrata Biswas

General Secretary, AIFB
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CPI INFORMATION ABOUT BANDH

According to the message received from different states, nationwide hartal is completely successful. It is unprecedented success in many states. In North East, Assam, Manipur, Arunachal Pradesh and other places it is total bandh. Several CPI cadres were arrested in the morning at Imphal. But all shops were closed. All transport stopped from 6 a.m. in the morning in Manipur.

Com. A.B. Bardhan, General Secretary, Coms. Sudhakar Reddy, D. Raja, Atul Kumar Anjan, Amarjeet Kaur CPI leaders, Brinda Karat of CPIM) were arrested along with 300 volunteers at ITO Centre after they successfully stopped the traffic for more than 90 minutes.

The Punjab bandh was total with all shops and traffic stopped.

In Jharkhand Com. Bhuvaneswar Mehta Ex M.P., Secretary CPI was arrested at Ranchi with thousands arrested all over Jharkhand. But bandh was total.

Police attacked CPI office and SP Office at Lucknow. There were clashes. CPI Secretary Dr. Girish was injured and number of CPI, CPI(M) leaders were lathicharged and arrested at CPI office, Kaisar Bagh, Lucknow. Lucknow and all other cities observed bandh. Uttarakhand observed successful bandh.

Large number of cadres of opposition parties were arrested all over Maharashtra from early hours but government could not prevent total bandh. Com. Prakash Reddy Mumbai City Secretary, Com. Tukaram Bhamse, Assistant Secretary state party, Narayan Ghagri Rambaheti were arrested.

West Bengal, Tripura, Kerala observed total and peaceful bandh on the call of the Left Parties. Even airport had a desert look at Kolkata. Rajasthan had a big bandh and Left Parties organised rallies at Jaipur and other cities. Gujarat, M.P. Karnataka observed bandh. Chhattisgarh observed bandh, Left and NDA organised separate rallies.

Jammu also observed bandh. Pondicherry several hundreds of CPI leaders and cares were arrested and bandh was successful.

Andhra Pradesh observed successful bandh. Chandrababu Naidu former C.M., Com. Narayana CPI State Secretary Com. B.V. Raghavulu CPI(M) State Secretary and others were arrested. Hyderabad and other cities were totally closed shops and rallies were organised. Large number of arrests were there.

There was bandh in Chennai, Tiruchrapalli, Coimbatore and other cities and towns in Tamilnadu. Himachal Pradesh, Haryana, Delhi and other places also observed bandh.

Peoples’ angry and unhappiness is reflected in the spontaneous response to the bandh.

Left Parties cadre took the challenge and worked hard, to make the bandh success.

The arrogant UPA Governemnt was given a big slap by the people for its anti-peoples policies.
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मज़दूरों का गीत

मिल कर क़दम बढ़ाएँ हम
जय, फिर होगी वाम की !

शोषित जनता जागी है
पीड़ित जनता बाग़ी है
आएँ, सड़कों पर आएँ,
क्या अब चिंता धाम की !

ना यह अवसर छोड़ेंगे
काल-चक्र को मोडेंगे
शक्लें बदलेंगे, साथी
मूक सुबह की, शाम की !

नारा अब यह घर-घर है
हर इंसान बराबर है
रोटी जन-जन खाएगा
अपने-अपने काम की !

झेलें गोली सीने से
लथपथ ख़ून-पसीने से
इज़्ज़त कभी घटेगी ना
‘मेहनतकश’ के नाम की !

- महेंद्र भटनागर
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उत्तर प्रदेश में बन्द की सफलता पर प्रदेश की जनता को वामपंथ की बधाई

लखनऊ 5 जुलाई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), फारवर्ड ब्लाक और इंडियन जस्टिस पार्टी के नेताओं ने आज महंगाई विरोधी हड़ताल को बसपा सरकार द्वारा दमन का निशाना बनाने की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में इन दलों के नेताओं क्रमशः डा. गिरीश, एस.पी.कश्यप, राम किशोर एवं काली चरन सोनकर ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब लखनऊ में राजनैतिक दलों के कार्यालयों पर आने जाने वालों को ही पुलिस ने सुबह से ही गिरफ्तार करना शुरू कर दिया और पार्टी दफ्तरों को सील कर दिया। वाम दलों के लखनऊ में अब तक पांच सौ से अधिक पार्टी कार्यकर्ता गिरफ्तार किये चुके हैं।
चारों दलों के नेताओं ने प्रदेश की समस्त जनता को हड़ताल को सफल बनाने के लिये बधाई दी है।
इन दलों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को चारों दलों के उपर्युक्त नेताओं के साथ उस समय भाकपा कार्यालय से बाहर आते ही गिरफ्तार कर लिया गया जब वे हड़ताल की अपील करने बाजारों की ओर जाना चाहते थे। प्रदर्शनकारियों एवं पुलिस के मध्य बारादरी के पास करीब आधा घंटे से संघर्ष चल रहा है जिसमें भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश जख्मी भी हो गये हैं।
वाम दलों ने प्रदेश सरकार की दमनकारी नीतियों की कड़े शब्दों में निन्दा की है और कहा है कि इस दमनचक्र से सिद्ध हो गया है कि बसपा सरकार महंगाई बढ़ाने वाली केन्द्र सरकार के पक्ष में खड़ी है।
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