लखनऊ- 17 मई, 2022- भारत की कम्युनिस्ट पार्टी
( मार्क्सवादी ) के राज्य सचिव डा॰ हीरा लाल यादव एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के
राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने वाराणसी के श्रंगार गौरी दर्शन पूजन संबंधी विवाद के संबंध
में निम्न बयान जारी किया है।
@श्रंगार गौरी के दर्शन-पूजन सम्बन्धी मामले को सुनियोजित रूप से ज्ञानवापी
मस्जिद- मंदिर के विवाद में तब्दील किया गया।
@आरएसएस- भाजपा तथा अन्य हिन्दू
साम्प्रदायिक ताकतों और तत्वों एवं मीडिया ने इसे सनसनीखेज बनाया।
@एक स्थानीय अदालत ने उपासना स्थल
अधिनियम 1991 को नजरंदाज किया, उसकी
समीक्षा की जानी चाहिये।
@भाजपा के लिए चुनावी मुद्दा तैयार
करने की कोशिश है पूरा मामला।
वाराणसी में श्रंगारगौरी के दर्शन पूजन के अधिकार की मांग सम्बन्धी मामले को सुनियोजित तरीके से
ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर, के विवाद के रूप में बदल दिया गया है। इसके पीछे
आरएसएस- भाजपा विहिप व अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों और मीडिया का हाथ है। वाराणसी
में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद दोनों पास- पास मौजूद हैं। श्रंगार
गौरी का एक अत्यंत छोटा सा मंदिर मस्जिद के पास ही स्थित है। सन 1991 के पूर्व मस्जिद में नमाज और श्रंगार गौरी एवं विश्वनाथ मंदिर
में दर्शन पूजन का कार्य सुचारू रूप से हुआ करता था। किसी भी तरह का विवाद नहीं था
और न ही कोई वहां अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था थी। यहां तक कि मस्जिद परिसर में दिन
में बच्चे जिनमें अधिकांशतः हिन्दू बच्चे होते थे, खेला
करते थे और कई हिन्दुओं की दुकाने भी मस्जिद परिसर में थीं।
आरएसएस- भाजपा- विहिप
आदि द्वारा अयोध्या की बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद पर आंदोलन शुरू करने के
साथ ही काशी और मथुरा के विवाद को भी हवा देने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद और
विश्वनाथ मंदिर के आसपास पुलिस सुरक्षा की स्थायी व्यवस्था की गयी। ज्ञानवापी में
नमाज और विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन बेरोकटोक चलता रहा किन्तु श्रंगार गौरी के
नियमित दर्शन पूजन पर सुरक्षा की दृष्टि से रोक लगायी गयी और वर्ष में केवल एक दिन
चैत्र मास के चतुर्थी को श्रंगार गौरी के दर्शन पूजन की इजाजत दी जाती रही है।
राखी सिंह आदि पांच
महिलाओं जिनका किसी न किसी रूप में आरएसएस, विहिप एवं विश्व सनातन संघ से
सम्बन्ध है, ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन श्री रवि
कुमार दिवाकर की अदालत में 18 अगस्त 2021 को
याचिका दाखिल कर 1991 से पूर्व की भांति श्रंगार गौरी के नियमित दर्शन
पूजन के अधिकार की मांग की। 26 अप्रैल 2022 को
इस अदालत ने सर्वे करने का आदेश दिया। 6 मई
को सर्वे के दौरान वादी पक्ष की ओर से कई वकील सर्वे स्थल पर उपस्थित हुए और हर हर
महादेव के नारे लगाये। इसके जवाब में शुक्रवार को दिन की नमाज अदा करने आये
मुस्लिमों ने भी अल्लाहो अकबर के नारे लगाये। माहौल तनाव पूर्ण हो गया किन्तु
मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ लोगों ने अपने लोगों को समझाकर शांत किया।
वकील कमिश्नर अजय
कुमार मिश्र और वादी पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे करना चाहा तो
प्रतिवादी मस्जिद पक्ष के वकीलों ने विरोध किया और कहा कि सर्वे श्रंगार गौरी का
होना है न कि मस्जिद के अंदर। सर्वे रोका गया तथा मस्जिद
पक्ष के वकील ने वकील कमिश्नर पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उन्हें बदले जाने की
अर्जी अदालत में दाखिल की। 4 दिनों की बहस के बाद सिविल जज श्री रवि कुमार ने
वकील कमिश्नर को बदलने से इंकार कर दिया और वादी पक्ष की मर्जी के अनुसार मस्जिद
के अंदर कहीं भी सर्वे करने का आदेश दिया। सिविल जज ने बंद तालों को खोलकर या
तोड़कर तथा बाधा पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए स्थानीय जिलाधिकारी
और पुलिस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी दी।
इस बीच नारे बाजी
करने के आरोप में एक मुस्लिम युवक अब्दुल सलाम को तो गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया
किन्तु हर हर महादेव की नारेबाजी करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
यह प्रशासन द्वारा मुसलमानों के खिलाफ सख्ती तथा हिन्दुओं के प्रति नरम रूख का
संदेश देने का प्रयास था। मस्जिद के अंदर तीन दिनों तक लगातार सर्वे हुआ।
उल्लेखनीय है कि इसी बीच 13 व 14 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी वाराणसी
में मौजूद रहे। यह भी उल्लेखनीय है और संभवतः
पहली बार हुआ है कि 16 मई को लखनऊ पहुंच कर प्रधान मंत्री जी ने मंत्रियों की क्लास? ली।
15 मई को मस्जिद के अंदर वजू करने के स्थान पर एक
बेलनाकार आकृति जिसको नमाज पढ़ने वाले फव्वारा के नाम से जानते थे, को
वादी पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने शिवलिंग बताते हुए इसकी सुरक्षा और इसके आसपास
के क्षेत्र को सील करने की अर्जी सिविल जज की अदालत में दी और जज ने बिना
प्रतिवादी पक्ष को सुने आनन-फानन में हरिशंकर जैन की अर्जी को स्वीकार करते हुए
तथाकथित शिवलिंग की सुरक्षा करने और वहां के स्थान को सील कर प्रतिबंधित करने का
आदेश दे दिया। साथ ही नमाज को प्रतिबंधित कर नमाजियों की संख्या सीमित कर दी। सिविल
जज का यह आदेश उनकी अति सक्रियता और न्याय प्रक्रिया का मखौल उड़ाने जैसा है जिसकी समीक्षा
अपेक्षित है।
उल्लेखनीय है कि
वादी पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने विहिप की ओर से बाबरी मस्जिद के मामले में भी
सुप्रीमकोर्ट में बहस में हिस्सा लिया था। यह भी उल्लेखनीय है कि अदालत में सर्वे
रिपोर्ट पेश करने की तिथि 17 मई तय की गयी थी किन्तु बिना सर्वे रिपोर्ट देखे माननीय
न्यायाधीश द्वारा पहले ही वजू स्थल को सील करने का आदेश दिया गया। इस आदेश के बाद
नमाजियों के लिए वजू के लिए पानी की काफी दिक्कतें हो रही हैं। ज्ञानवापी मस्जिद
के अंदर सर्वे तथा वजूखाना को सील करने का आदेश स्पष्ट तौर पर उपासना स्थल विशेष
अधिनियम 1991 का उल्लंघन है। जिसके अन्तर्गत किसी भी उपासना
स्थल की 15 अगस्त 1947 के
पूर्व की स्थिति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता और ऐसी कोशिश करने वालों के खिलाफ
दंड का प्राविधान भी किया गया है।
लेकिन इस सबको ठेंगा दिखा कर मानो एक तैयार स्क्रिप्ट पर काम किया
जा रहा है।
इस पूरे दौर में
आरएसएस भाजपा के लोग जनता के बीच अफवाहे फैलाने और मुस्लिमों के खिलाफ प्रचार करने
में लगे रहे। ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है, मुस्लिम
लोग ज्ञानवापी में जाने से रोक रहे हैं और अब यहां भी मंदिर बनेगा आदि बातों का
प्रचार किया गया। मीडिया की भूमिका भी घोर पक्षपाती और हिन्दू मुस्लिम के बीच
विभाजन की रही। राखी सिंह बनाम उ0प्र0 सरकार के मामले को लगातार हिन्दू पक्ष और मुस्लिम
पक्ष के रूप में पेश किया गया। आरएसएस- भाजपा इस मुद्दे पर सनसनी फैलाकर हिन्दू- मुस्लिम
के बीच ध्रुवीकरण कराने की कोशिश में हैं।
इसी समय मथुरा की ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि के मामले को भी हिन्दू साम्प्रदायिक
ताकतों द्वारा गर्माया जा रहा है। भाजपा इसे 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक एजेण्डे के रूप में इस्तेमाल करना चाहती
है।
बाबरी मस्जिद के बाद
अब ज्ञानवापी मस्जिद के मामले को अदालत में ले जाने और स्थानीय अदालत के रवैये से
मुस्लिम जनता में घोर निराशा है। उन्हें लगता है कि संविधान, न्यायालय, सरकार
से न्याय मिलने की उम्मीद कम होती जा रही है। वाराणसी के मुस्लिम फिलहाल शांत हैं
किन्तु उनके अंदर काफी निराशा और आक्रोश भी है। इस बीच कुछ मुस्लिम उग्रवादी व
साम्प्रदायिक ताकतें भी उनके बीच सक्रिय हैं जो उन्हें हिन्दुओं से सीधे मुकाबले
के लिए सड़क पर उतरने के लिए उकसा रही हैं। हिन्दू पक्ष का एक तबका इसे जनता की ज्वलंत
समस्याओं से ध्यान बंटाने की कोशिश के रूप में देख रहा है, पर वह खामोश है। सत्ता समर्थक उकसावे की हर कोशिश में लगे हैं। मीडिया उनकी
खुल कर मदद कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में ऐसी परिस्थिति में सभी सेकुलर ताकतों को खुलकर
आरएसएस भाजपा विहिप आदि के इस एजेण्डे के खिलाफ तथा साथ ही योगी मोदी सरकार की
विफलताओं एवं जन समस्याओं जैसे महंगाई, बेरोजगारी, उत्पीड़न आदि को लेकर सड़क पर उतरना जरूरी हो गया है। वामपंथी दलों
के अलावा अन्य दलों में इस मुद्दे पर नरम रूख और हिचकिचाहट के भाव देखे जा रहे
हैं। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों को ही अपने स्तर से इस आंदोलन की शुरूआत करनी
चाहिए। अन्य लोकतान्त्रिक शक्तियों को इसमें साथ लाने के प्रयास जारी रखने चाहिए।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव डा॰ हीरा लाल यादव, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मा॰)
उत्तर प्रदेश