यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि 30 अगस्त 2012 को भी राज्य सरकार ने कांट्रेक्ट फार्मिंग को लागू करने का मंशा जाहिर किया था लेकिन भाकपा और तमाम दलों के द्वारा विरोध जताने पर सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे। एक बार फिर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रति मुख्यमंत्री का प्रेम उमड़ा है और कृषि के विकास के नाम पर उन्होंने इनको खेती में प्रवेश देने की मंशा जतायी है।
भाकपा का आरोप है कि सपा और उसकी राज्य सरकार एफडीआई के सवाल पर तो अपनी दोहरी नीतियों का परिचय पहले ही दे चुकी है, अब खेती में भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भागीदारी को आगे बढ़ा कर उसने साबित कर दिया है कि वह केंद्र सरकार की जनविरोधी आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों को ही प्रदेश में आगे बढ़ा रही है।
डा. गिरीश ने साफ कहा कि कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिये विशालकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियां छोटे और मंझोले किसानों को खेती से ही बाहर खदेड़ देंगी। इससे भूमिहीनों और बेरोजगारों की संख्या में भारी इजाफा होगा। साथ ही मंडी समितियां भी लडखडा कर रह जायेंगी। जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों को बेहद महंगा और पर्यावरण के प्रतिकूल बताते हुए भाकपा ने कहा कि सरकार के इस कदम से मोनसेंटो और कारगिल जैसी विदेशी कम्पनियां ही भारी लाभ उठाएंगी।