यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि उपर्युक्त गांवों के किसानों की इस बेहद उपजाऊ जमीन को आवासीय प्रयोजन हेतु अधिग्रहण किये जाने की खबर से वहां के किसानों में बेहद आक्रोश व्याप्त है और वे करो-मरो की लड़ाई पर अमादा हैं। किसानों के हितों को मौजूदा सरकार को ध्यान में रखना चाहिये।
डा. गिरीश ने कहा है कि उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ ने भी 2 नवम्बर को दिये गये एक फैसले में टिप्पणी की है कि शहरों के विकास की अंधी दौड़ अन्न पैदा करने वाली किसानों की जमीन निगल रही है। उसके भयानक परिणाम हो सकते हैं। अदालत ने कहा कि किसान की कुल जमा रोजी-रोटी का सहारा सिर्फ जमीन और उसकी खेती-बाड़ी है। विकास के नाम पर सरकार मिट्टी के मोल उनकी जमीन को हासिल कर लेती है और तत्पश्चात् किसी योजना और जानकारी के अभाव में मुआविजे का पैसा खत्म हो जाने के बाद किसान और उसका पूरा परिवार आर्थिक विपन्नता का शिकार हो जाता है। यह स्थिति उसके बच्चों को गलत कृत्यों की ओर ढकेल सकती है।
डा. गिरीश ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी के आलोक में भी राज्य सरकार को अपने इस फैसले को तत्काल रद्द कर देना चाहिये।
ज्ञातव्य हो कि इस इंटीग्रेटेड टाउनशिप का निर्माण लखनऊ के एक जाने-माने बसपा नेता द्वारा किया जा रहा है और इसके अधिग्रहण की धारा 4 के अधीन पहली सूचना एक साल पहले बसपा सरकार के जमाने में जारी की गयी थी। भाकपा ने तब इसका विरोध किया था और बसपा सरकार ने इस मामले को ठंड़े बस्ते में डाल दिया था। लेकिन अब सपा सरकार ने उसे अंतिम रूप से अधिगृहीत करने का फरमान जारी कर दिया है जो यह बताने के लिए काफी है कि किसानों की जमीनों को छीनने के सवाल पर बसपा और सपा में कोई अंतर नहीं है।