खून फिर खून है, खून जम जाएगा
तुमने जिस खून को मकतल में दबाना चाहा
आज वह कूचा-ओ-बाज़ार में आ निकला है
कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्थर बन कर
खून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से
सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती
जिस्म मिट जाने से इन्सान नहीं मिट जाते हैं
धडकनें रुकने से अरमान नहीं मिट जाते हैं
साँस थमने से एलान नहीं मर मर जाते हैं
होंठ जम जाने से फरमान नहीं मर जाते हैं
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
खून अपना हो या पराया हो