यह वर्कशाॅप जनवरी 2008 में हैदराबाद में ही आयोजित “21वीं सदी में समाजवाद“ विषय पर किए गए सेमिनार की ही अगली कड़ी थी। सेमिनर में तय किया गया था कि इस विषय पर अधिक गहराई से अलग-अलग हिस्सों में विचार किया जाए। इसलिए वर्तमान वर्कशाॅप का मुख्य विषय क्षेत्र दर्शन था।
भागीदारी और विषय क्षेत्र
वर्कशाॅप में सारे देश के लगभग 35 बढ़े हुए बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। इनमें आंध्र प्रदेश से भी कइयों ने हिस्सा लिया। कई कारणों से वर्कशाॅप की तारीखें बदलनी पड़ीं। इसके अलावा, तेलंगाना आंदोलन को लेकर राज्य अनिश्चितता की स्थिति बनी रही। इन सबके बावजूद पर्याप्त संख्या में लोग पहुंचे और काफी दिलचस्पी से बहसों में भाग लिया। आंध्र प्रदेश के अलावा हरियाणा से सबसे अधिक भागीदारों ने हिस्सा लिया, उनकी संख्या सात थी। उनके अलावा तमिलनाडु महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली से भी वर्कशाॅप में हिस्सेदारी हुई।
वर्कशाप में गहन विचार के लिए निम्नलिखित विषय क्षेत्र बांटे गए- आधार पेपर; माक्र्सवाद और समाजवाद की समस्याएं: इतिहास की सीखें; जनतंत्र और समाजवाद; भविष्य की चुनौतियां; माक्र्सवाद और दर्शन; पर्यावरण एवं विकास; माक्र्सवाद तथा भारतीय समाज; खुली बहस; समापन सत्र।
वर्कशाप में कुल मिलाकर 19 (उन्नीस) पेपर प्रस्तुत किए गए। इन पेपरों के विषय इस प्रकार थे -परिवर्तनशील विश्व तथा माक्र्सवाद; वैज्ञानिक-तकनीकी क्रांति; क्वांटम विश्व; इलेक्ट्रानिक्स और दर्शन में संकट; समाजवाद के संघर्ष की पुनः सक्रियता; 21वीं सदी के समाजवाद में जनवाद; भारत में वामपंथी आंदोलन के समक्ष माक्र्सवाद संबधी चुनौतियां; उत्तरआधुनिक समाज में श्रम, वर्ग और वर्ग संघर्ष संबंधी समस्याएं; माक्र्सवादी दर्शन में विकास और विकृतियां; संसदीय प्रणाली के उपयोग के संबंध में माक्र्स और एंगेल्स; ‘नए विश्व की ओर रास्ता,; पर्यावरण और विकास का द्वंद्व; पर्यावरण संकट के संबंध में भविष्यवादी रूख; रासायनिक तत्वतालिका एवं द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के नियम; माक्र्सवाद और पहचान की राजनीति; माक्र्सवादी सिद्धांत के विकास संबंधी कुछ प्रश्न; पर्यावरण, विज्ञान और विकास; इत्यादि।
जिन विद्वानों के पेपर प्रस्तुत किए गए उनमें प्रमुख थे - अनिल राजिमवाले, एम. विजय कुमार, प्रो. एस.जी. कुलकर्णी, सी.आर. बक्शी, डा. रामेश्वर दास, डा. राकेश शर्मा, डा. पी.सी. झा, देव पेरिन्बल, डा. जे.के. गुप्ता, शैलेन्द्र, टीकाराम शर्मा, प्रो. युगल रायुल, डा. आर.जे. स्वामी, डा. ईश्वर सिंह दोस्त, डा. बी.के. कांगो तथा अन्य।
उद्घाटन तथा “आधार पेपर“
वर्कशाॅप का उद्घाटन सी.आर. फाउंडेशन एन.आर.आर.आर. सेंटर के डायरेक्टर सी. राघवाचारी ने किया। आगंतुकों का स्वागत करते हुए उन्होंने विषय वस्तु का परिचय दिया। उन्होंने इस ओर ध्यान आकर्षित किया कि यह आयोजन पिछले सेमिनार की अगली कड़ी है। इस अवसर पर इनके साथ अनिल राजिमवाले, ए. विजय कुमार, प्रो. एस.जी. कुलकर्णी, बी. विजयलक्ष्मी और वी.आर. कारूमान्ची भी उपस्थित थें
आधार पेपर
वर्कशाॅप में बहस के लिए आधार पेपर अनिल राजिमवाले ने प्रस्तुत किया जिसका विषय था “वर्तमान विश्व में माक्र्सवाद“। इसमें आज के बदलते विश्व के संदर्भ में माक्र्सवाद के सम्मुख उपस्थित सम्भावानाओं, चुनौतियों एवं समस्याओं पर विचार किया गया। इस पेपर में जो प्रश्न उठाए गए और उन पर चर्चा की गई, वे इस प्रकार थे - समाजवाद संबंधी सैद्धांतिक समस्याएं, समाजवाद का दर्शन, द्वितीय विश्व युद्धोत्तर परिस्थिति का विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन द्वारा मूल्यांकन, समाजवाद और ऐतिहासिक भौतिकवाद की समस्याएं, जनतंत्र और समाजवाद, मजदूर वर्ग संबंधी अवधारणा, आधुनिक समाज की बदलती संरचना, संचार/सूचना क्रांति और चेतना का निर्माण, आलोचनात्मक सिद्धांत, आधुनिक राज्य का चरित्र, माक्र्सवाद और उत्तरआधुनिकता, इत्यादि।
अनिल राजिमवाले ने आधार पेपर प्रस्तुत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि माक्र्सवादी सिद्धांत और दर्शन को आज के तेजी से बदलते विश्व के अनुरूप विकसित होना पड़ेगा; इसके लिए इन परिवर्तनों का अध्ययन और आत्मसातीकरण आवश्यक है। साथ ही जब कभी साम्राज्यवाद द्वारा माक्र्सवाद पर आक्रमण हो तो इसका उचित सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक उत्तर भी देना होगा।
आधार पेपर पर वर्कशाॅप में काफी गहराई और व्यापकता से विचार किया गया। चर्चा के दौरान कई बातें जोड़ी गइ और सिद्धांत एवं दर्शन के विषय में बड़ी दिलचस्प बहस हुई।
विभिन्न पेपर एवं बहस
वर्कशाॅप के विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता करने वालों के नाम हैं - प्रो. एस.जी. कुलकर्णी, वी.आर. कारूमान्ची, प्रो. जे.के. गुप्ता, डा. बी.के. कांगो, डा. मुखदेव शर्मा और अनिल राजिमवाले।
विभिन्न पेपरों के गिर्द विद्धानों के बीच काफी दिलचस्प और गंभीर बहस छिड़ी। दिलचस्प इतनी अधिक थी कि भाग लेने वालों ने बार-बार समय बढ़ाने का अनुरोध किया; वे देर रात तक भी बैठने को तैयार थे। समय बीतने का पता ही नहीं चला। प्रत्येक भाग लेने वाले ने कई बार बहस में हिस्सा लिया।
चर्चा के दौरान कई प्रकार के मुद्दे सामने आए। बहस में इस बात पर जोर दिया गया कि हम एक तेजी से बदलते विश्व मे रह रहे हैं। इसके फलस्वरूप समाज, बाजार, उत्पादक शक्तियां, चेतना इत्यादि सब कुछ बदल रहे हैं। वे सिर्फ सिद्धांत के प्रश्न नहीं हैं बल्कि व्यावहारिक प्रश्न भी हैं। उदाहरण के लिए मजदूर वर्ग और समाज का ढांचा बदल रहा है, जैसा कि आधार पेपर में कहा गया है। साथ ही आम इलेक्ट्रानिक मीडिया की चेतना निर्माण में भूमिका बढ़ती जा रही है। इसलिए क्रांतिकारी और जनवादी शक्तियों को जनता के बीच नए तरीके से काम करना पड़ेगा।
औजारों, समाज और मानवों में इन परिर्वतनों तथा प्रकृति एवं समाज के
अध्ययन के नए तरीकों के प्रयोग से नई सच्चाइयां और तथ्य सामने आ रहे हैं, नई खोजें की जा रही है; इनके फलस्वरूप नए दार्शनिक पैदा हो रहे हैं।
माक्र्सवाद अपरिवर्तनीय सूत्रों और प्रस्थानपनाओं का जमावड़ा नहीं है। माक्र्सवाद धर्म नहीं हैं जो शाश्वत जड़सूत्रों में विश्वास करता है; वह एक विज्ञान है। इसलिए माक्र्सवादी सिद्धांत और दर्शन का निरंतर विकास होते रहना चािहए। उन्हें नई वैज्ञानिक खोजों तथा तकनीकी एवं सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिवर्तनों के अनुरूप स्वयं को ढालना होगा। माक्र्सवाद सबसे आगे बढ़ी हुई विकसित विचार प्रणाली है। माक्र्स, एंगेल्स और लेनिन सबसे विकसित विचारक थे। वे औद्योगिक युग के क्षितिज तक देख सकते थे। इसलिए माक्र्स और माक्र्सवाद इतने प्रभावशाली बन पाए।
यही कारण हे कि माक्र्सवाद साम्राज्यवाद के आक्रमण का सामना कर पाया है। आर्थिक संकट के बारे में माक्र्स की भविष्यवाणियां सही साबित हुई है। जनता आज भी पूंजीवाद के विकल्प के लिए संघर्ष कर रही है।
लेकिन साथ ही, माक्र्सवाद एक जगह ठहरा हुआ और बिना बदलाव के नहीं रह सकता है। उसे आज के परिवर्तनशील युग से सीख लेते हुए आवश्यक नतीजे निकालने होंगे और उन्हें आत्मसात करना होगा, तभी उसका विकास हो पाएगा। जैसे औद्योगिक युग का अध्ययन माक्र्स ने किया था वेैसे ही इलेक्ट्रानिक युग, आधुनिक प्राकृतिक विज्ञानों, इलेक्ट्रानिक्स, जेनेटिक्स, क्वांटम विज्ञान इत्यादि का
अध्ययन करके सिद्धांत एवं दर्शन को उच्चतर स्तर पर ले जाना होगा। इन घटनाओं तथा उत्तर-औद्योगिक एवं उत्तर-आधुनिकता संबंधी चर्चाओं ने पदार्थ एवं चेतना, कर्ता एवं वस्तु, कारण-प्रभाव, उत्पादन के साधनों, सूचनातंत्र, इत्यादि के संबंध में नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
माक्र्सवादी दर्शन को इन्हें हल करना होगा। माक्र्सवाद को आलोचनात्मक सिद्धांत को नई मंजिलों में पहुंचाना होगा। इस संदर्भ में द्वंद्ववाद की पद्धति का महत्व पहले से कहीं अधिक हो उठता है, खासकर इलेक्ट्रानिक युग के संदर्भ में। आज की घटनाओं के अध्ययन में इस पद्धति की अधिक आवश्यकता है। तभी माक्र्सवाद विश्व को बेहतर समझ सकता है और बेहतर तरीके से बदल सकता है।
पर्यावरण का संकट एक गंभीर चिंता का विषय है। पर्यावरण का प्रदूषण इस हद तक हो चुका है कि अब स्वयं मौसम पर ही उसका असर पड़ने लगा है जिससे सारा विश्व प्रभावित होने लगा है। ऐसी स्थिति में विकास की नई रणनीति का सवाल पैदा हो गया है। विकास और पर्यावरण का द्वंद्व तेज हो गया है।
कई अन्य दार्शनिक एवं व्यावहारिक प्रश्न भी उठाए गए। बहस के दौरान कई अन्य प्रश्न और विषय उठाए गए- बदलते सामाजिक संदर्भ में पहचान का प्रश्न, समाज के नए तबके, साम्राज्यवादी, साम्प्रदायिक एवं नवउदारवादी आक्रमण के सामने माक्र्सवाद की रक्षा का प्रश्न; उत्तर-आधुनिकता एंव अन्य रूझानों से टकराव, अन्य रूझानों के सकारात्मक पहलुओं से सीखने का प्रश्न; वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सूचना क्रांति का अध्ययन, इत्यादि।
खुली बहस और समापन सत्र
वर्कशाप के अंतिम दिन बचे पेपर प्रस्तुत किए गए। साथ ही समूचे वर्कशाप के संबंध में खुली एवं विस्तृत बहस की गई। वैसे हर पेपर की प्रस्तुति के बाद बहस होती रही। इसके बाद समापन सत्र हुआ।
इस सत्र में सी.आर. फाउंडेशन/एन.आर.आर.आर. सेंटर के अध्यक्ष एस. सुधाकर रेड्डी, पूर्व एम.पी. उपस्थित थे। वर्कशाप के भागीदारों ने माक्र्सवाद के सद्धिांत और व्यवहार से संबंधित कई सवाल उठाते हुए वर्कशाप के लिए अधिक समय की मांग की। इनमें बहस के लिए और भी ज्यादा समय की आवश्यकता थी। इनका सुझाव था कि अगला वर्कशाप कम से कम पांच दिनों का होना चाहिए।
वर्कशाप की विशेषता यह रही कि इसमें सभी ने काफी उत्साह और लगन से हिस्सा लिया।
सुधाकर रेड्डी ने वर्कशाप के आयोजकों एंव भागीदारों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि बहस एक निरन्तर प्रक्रिया है और किसी वर्कशाप या सेमिनार में किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की अपनी कुछ विशेषताएं और समस्याएं है जिसका अध्ययन जरूरी है, जैसे जाति। धार्मिक समस्या भी गंभीर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कम्युनिस्ट बनने के लिए अनीश्वरवादी होना जरूरी नहीं है।
सुधारक रेड्डी ने कहा कि बहस सिर्फ कम्युनिस्टों या भाकपा के सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। इसमें
अधिक व्यापक माक्र्सवादी तबकों तथा गैर-माक्र्सवादी बुद्धिजीवियों और लोगों को भी बड़ी संख्या में शामिल किया जाना चािहए। उन्होंने बताया कि फाउंडेशन और सेंटर की ओर से हर वर्ष ऐसी चर्चाओं का आयोजन किया जाएगा। यह आंदोलन में एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।
अनिल राजिमवाले ने वर्कशाप के पेपरों और बहसों की समीक्षा प्रस्तुत की।
सी. राघवाचारी ने अंतिम सत्र की अध्यक्षता की। इस अवसर पर एम. विजय कुमार, कारूमान्ची तथा प्रो. कुलकर्णी भी उपस्थित थे।
एम. विजय कुमार और अनिल राजिमवाले वर्कशाप के आयोजक/संगठनकर्ता थे। विजय कुमार के अथक परिश्रम के कारण इसका सफल आयोजन किया जा सका।
अनिल राजिमवाले ने वर्कशाप के संयोजककर्ता का कार्य संभाला। प्रो. एस.जी. कुलकर्णी, अनिल राजिमवाले और विजन कुमार ने वर्कशाप के विषयों, सत्रों, पेपर प्रस्तुतकर्ता, अध्यक्षों इत्यादि का चयन किया।
अनुकूल वातावरण में चर्चा
वर्कशाप का आयोजन अत्यंत ही अनुकूल वातावरण में किया गया। सी.आर. फाउंडेशन, एन.आर.आर.आर. सेंटर का परिसर अत्यंत ही शांत और सुंदर एवं ऐसी चर्चा के आयोजन के अनुकूल था। विद्धानों ने बड़े शांत-सुरम्य एवं नैसर्गिक वातावरण में विचार-विमर्श एवं विचारों को आदान-प्रदान किया। रहने का इंतजाम बड़े ही सीधे-सादे लेकिन अनौपचारिक तरीके से किया गया।
अधिकतर भागीदार छोटे हाॅलों में साथ रहे; कुछ के लिए परिवारों सहित कमरों का भी इंतजाम किया गया। वातावरण घरेलू और भोजन सादा किन्तु स्वादिष्ट तथा स्वास्थ्यकर था।
इस संदर्भ में सी.आर. फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे ‘ओल्ड एज होम’ अर्थात् वृद्ध लोगों के लिए निवास भवन का उल्लेख आवश्यक है। वे सौ से भी अधिक वृद्धों के लिए निवास होस्टल चला रहे हैं। इसके स्टाफ और प्रशासन ने खाने-पीने, रहने, दैनिक रूटीन इत्यादि का बड़ा ही सुचारू, सुंदर एवं अनुशासित इंतजाम किया। कहीं भी कोई समस्या पैदा नहीं हुई। पुस्तकालय से भी काफी सहायता मिली। वर्कशाप में भाग लेने वालों के लिए यह एक स्मरणीय घटना रहेगी। एम. विजय कुमार विशेष धन्यवाद के पात्र है।
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