भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

लो क सं घ र्ष !: आल इण्डिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का इतिहास: महेश राठी भाग 7


ए0आई0एस0एफ0 का अठारहवाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का अठारहवाँ सम्मेलन दिल्ली में 21-23 दिसम्बर 1969 को सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में देशभर से 350 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्घाटन प्रो0 हीरेन मुखर्जी ने किया। सम्मेलन में शिक्षा एवं परीक्षा में सुधार, प्रबन्धन में छात्रों की भागीदारी, छात्र संघांे के गठन की अनिवार्यता, रोजगार या बेकारी भत्ता और 18 वर्ष की आयु में मताधिकार के सवालों पर एक माँग पत्र भी तैयार किया गया। 1969 में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी और आन्दोलन हुए। इसी दौर में भा0क0पा0, वामपंथ और इंदिरा कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार वी0वी0 गिरी देश के राष्ट्रपति चुने गए। 14 बैंकांे का राष्ट्रीयकरण किया गया और राजाआंे का प्रीवी पर्स भी इसी समय खत्म कर दिया गया। जिसका ए0आई0एस0एफ0 ने भारी स्वागत किया।
इसी समय देश की कई समस्याओं को लेकर भी राजनैतिक बहस का दौर शुरू हुआ। देश में व्याप्त विसंगतियांे, असमानताआंे और आर्थिक सामाजिक समस्याओं के
समाधान के लिए एक सामाजिक-आर्थिक रूपान्तरण की आवश्यकता थी जिसके लिए छात्र-युवा संगठनों में भी वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर एक जबरदस्त बहस छिड़ी हुई थी। इन हालात में ए0आई0एस0एफ0-ए0आई0वाई0एफ0 के सामने भी यह महत्वपूर्ण सवाल था कि क्या उन्हंे वैज्ञानिक समाजवाद को अपने लक्ष्यों में शामिल करना चाहिए। इन्हीं सवालों पर बात करने के लिए जून 1969 को दिल्ली में दोनों संगठनांे की कैडर मीटिंग हुई। लम्बी बहस और चर्चा के बाद तय हुआ कि ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 को अपनी एक वैचारिक दिशा निर्धारित करते हुए वैज्ञानिक समाजवाद के लक्ष्यांे की ओर जाने के लिए छात्रों और युवाओं को वैचाारिक रूप से शिक्षित करना होगा। छात्रों और नौजवानों की एक अन्य कैडर मीटिंग जून 1971 में दिल्ली में हुई जिसमें सांगठनिक ढ़ाँचे और उसके कार्यों को लेकर चर्चा हुई।
भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में विघटन के कारण माक्र्सवादी विचारधारा को कई तरह के वैचारिक भटकावों से होकर गुजरना पड़ा। सी0पी0एम0 के उदय के साथ ही देश का परिचय माओवाद जैसे माक्र्सवादी भटकाव से हुआ। आज बेशक सी0पी0एम0 अपने आप को माओवाद की मुखर आलोचक और प्रमुख शत्रु सिद्ध करने की कोशिश करे परन्तु वास्तविकता यह है कि सी0पी0एम0 का निर्माण माओवादी दर्शन के आधार पर ही हुआ है। यह माओवाद ही है जिसने माक्र्सवाद के मूल सिद्धान्त द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की गलत एवं विध्वसंक परिभाषा दुनिया के सामने पेश की जिसके कारण पूरी दुनिया और विशेषकर तीसरी दुनिया के कम्युनिस्ट आन्दोलन को बिखराव का सामना करना पड़ा। देश में अतिवामपंथी नक्सलवाद भी इसी माकपाई संकीर्णता की देन रहा। इसी संकीर्णतावादी अतिक्रान्तिकारी दुस्साहस ने देश के छात्रों और नौजवानांे में एक राजनैतिक विभ्रम का प्रसार किया जिसका परिणाम पार्टी की टूट के बाद जन संगठनों के विघटन में भी दिखाई दिया। 1970 में एस0एफ0आई0 का निर्माण इसी संकीर्णता का परिणाम था।
वैचारिक प्रश्नांे प बहस की इस प्रक्रिया में एक ओर छात्र-युवा कैडर मीटिंग 20-22 मई को हैदराबाद में हुई। इन कैडर मीटिंगों में वैज्ञानिक समाजवाद, माक्र्सवाद, लेनिनवाद और अन्ततोगत्वा राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति की संकल्पना को छात्र नौजवान संगठनों के संविधान में शामिल किए जाने का निर्णय हुआ। इन सवालांे पर औपचारिक फैसला ए0आई0एस0एफ0 के 19वें सम्मेलन में लिया गया।
19वाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का 19वाँ सम्मेलन 14-17 जनवरी 1974 को कोचीन में संपन्न हुआ। यह सम्मेलन अपने महत्वपूर्ण संवैधानिक बदलावांे के कारण एक विशिष्ट आयोजन था। इस सम्मेलन के पूर्व एवं पश्चात् का समय देश और संगठन के लिए महत्वपूर्ण एवं प्रभावकारी घटनाओं और आंदोलनांे का समय था। जहाँ ए0आई0एस0एफ0 ने छात्रांे के जनवादी अधिकारांे के लिए और बेरोजगारी के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलनांे में सक्रिय और निर्णायक भूमिका अदा की, तो वहीं वाम, प्रगतिशील और जनवादी ताकतों के साथ मिलकर महँगाई, काला बाजारी और जमाखोरी के खिलाफ भी ए0आई0एस0एफ0 ने आंदोलनों में भाग लिया। यही वह समय भी था जब देश में जयप्रकाश नारायण का पार्टी विहीन जनवाद और सम्पूर्ण क्रान्ति का आन्दोलन सर उठा रहा था। दक्षिणपंथी और फासीवादी शक्तियांे के कन्धों पर खड़ा यह आन्दोलन भ्रष्टाचार, महँगाई और बेकारी जैसे मुद्दों को लुभावने नारों में बदलकर आगे बढ़ा। इस आन्दोलन के खतरों को उजागर करने के लिए ए0आई0एस0एफ0 ने एक कंवेंशन का आयोजन 26-27 अप्रैल 1974 को पटना में किया। जिसमें कुछ सहयोगी जनवादी प्रगतिशील संगठनांे के साथ 2000 छात्रों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा पटना में आयोजित जे0पी0 आन्दोलन विरोधी रैली में लाखों की संख्या में लोगांे ने भाग लिया जिसमें बड़ी संख्या में छात्र और नौजवान भी शामिल थे। आखिरकार यह आन्दोलन जे0पी0 और इंदिरा गांधी दोनांे के लिए अपने अपने वर्चस्व की लड़ाई में बदल गया। इंदिरा गांधी ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए देश में जून 1975 में आपात्तकाल की घोषणा कर दी। शुरुआत में आपातकाल का उपयोग दक्षिणपंथी, आर0एस0एस0 और जनसंघ जैसी ताकतों पर लगाम लगाने के लिए किया गया परन्तु बाद में यह जनवादी, प्रगतिशील और वामपंथी ताकतांे के भी दमन का औजार बन गया। ऐसी स्थिति में ए0आई0एस0एफ0 ने आपातकालीन दमन का पुरजोर विरोध किया। ए0आई0एस0एफ0 ने मेडिकल छात्रांे और जूनियर डाॅक्टरांे को लामबद्ध करने का महत्वपूर्ण काम किया। जिनका 26 अक्टूबर 1974 को अमृतसर में सम्मेलन करते हुए आॅल इण्डिया मेडिकोज फेडरेशन की स्थापना की गई।
आपातकाल के बाद का समय
इंदिरा गांधी को आपातकाल के दमन की सजा 1977 के चुनाव नतीजों में मिल गई। इंदिरा गांधी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। जनसंघ और अन्य कई दलांे और गुटांे के घालमेल से बनी जनता पार्टी सत्ता में आई परन्तु जल्दी ही जनता पार्टी की वास्तविकता और विफलता लोगांे के सामने आ गई। जनता पार्टी लोगांे की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई, लोगांे में पार्टी के खिलाफ भारी असंतोष व्याप्त हो चुका था। अन्ततोगत्वा जनता पार्टी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और उसमें टूट हो गई। इसी जनता पार्टी की टूट से भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई।
जनता पार्टी की जन विरोधी नीतियांे और संघीय ढ़ाँचे पर हमले की उसकी दक्षिणपंथी योजनाआंे के खिलाफ ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने देशव्यापी जुझारु आंदोलन चलाया। कई अवस्थाओं में चलते इस आंदोलन में कंवेंशन, हस्ताक्षर अभियान, घेराव और गिरफ्तारी हर एक तरीके से ए0आई0एस0एफ0 ने जनता पार्टी सरकार की दक्षिणपंथी नीतियों का विरोध किया। ए0आई0एस0एफ0 ने साम्राज्यवाद के खिलाफ और हिंद महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करने के लिए भी इस बीच कई आंदोलन चलाए और क्यूबा में होने वाले छात्र-युवा महोत्सव की तैयारी के सिलसिले में भी देश भर में भारत-सोवियत युवा उत्सवांे का आयोजन किया गया।
बीसवाँ सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का बीसवाँ सम्मेलन 7-9 फरवरी 1979 को पंजाब के
लुधियाना में सम्पन्न हुआ। जनता पार्टी के दो वर्षों के विफल शासन के बाद ही देश में फिर से इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) की वापसी हो गई। इंदिरा गांधी राजनैतिक स्थायित्व का नारा देकर वापस सत्ता में आई थीं। मगर नतीजे इसके विपरीत जान पड़ रहे थे साम्प्रदायिक, अलगाववादी और विभाजक शक्तियाँ दिन प्रतिदिन मजबूत हो रही थीं। आर0एस0एस0, जमायत जैसी साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ ही खालिस्तान जैसी अलगाववादी शक्तियाँ देश की एकता अखण्डता के लिए लगातार गंभीर चुनौती बन रही थीं। ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने जनवादी अधिकारों के लिए और बेरोजगारी के खिलाफ 21-22 जुलाई 1979 से देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत की। ‘‘काम दो या जेल दो‘‘ नारे के तहत चला यह जुझारु आंदोलन छात्र एवं युवा संघर्षांे की ऐतिहासिक मिसाल है। इस आंदोलन में भाग लेते हुए हजारांे छात्र नौजवान गिरफ्तार किए गए जिनको लम्बे समय तक जेलांे में गुजारना पड़ा।
इसी दौरान ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने एक गौरवशाली परम्परा की शुरुआत की। 23 मई 1979 से शहीदे आज़म भगत सिंह, उनके साथियों राजगुरू और सुखदेव की शहादत को याद करते हुए हर साल 23 मार्च को शहीदी सप्ताह और शहीदी पखवाड़ा मनाने की शुरुआत ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 द्वारा हुई। इस बीच ए0आई0एस0एफ0 ने कई जनवादी, धर्मनिरपेक्ष छात्र-युवा संगठनों से मिलकर धर्मनिरपेक्ष छात्र सम्मेलन, राष्ट्रीय एकता के लिए और मास्को ओलम्पिक के सर्मथन में सम्मेलनों का आयोजन किया। साथ ही 1981-82 के दौरान केरल, बंगाल, यू0पी0, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा, मणिपुर और तमिलनाडु आदि में छात्र और नौजवानों की विभिन्न माँगों के समर्थन में धरना, प्रदर्शन, घेराव, रैली और जत्थों का आयोजन किया। इस दौर में ए0आई0एस0एफ0-ए0आई0वाई0एफ0 का ‘‘काम या जेल‘‘ छात्र-नौजवान आंदोलन की एक ऐतिहासिक उपलब्धि ही कहा जाएगा। हिन्द महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करने की माँग को लेकर अगस्त 1981 को तिरूअनन्तपुरम में किया गया सम्मेलन भी संगठन का एक उल्लेखनीय आयोजन था।

क्रमश:
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आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का प्लेटिनम जुबली समारोह शुरू

लखनऊ 12 अगस्त। भारत के प्रथम अखिल भारतीय संगठन - आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर प्लेटिनम जुबली समारोह आज यहां ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में शुरू हो गया। देश के कोने-कोने से आये एआईएसएफ के प्रतिनिधियों तथा देश के तमाम हिस्सों से आये एआईएसएफ के पुराने कार्यकर्ताओं से खचाखच भरे गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में प्लेटिनम जुबली समारोह का औपचारिक उद्घाटन करते हुए एआईएसएफ की उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व महासचिव रहे न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा ने एआईएसएफ की गौरवशाली परम्पराओं, संघर्षों और उपलब्धियों को याद करते हुए छात्रों की वर्तमान पीढ़ी का आह्वान किया कि वे दोहरी शिक्षा नीति, शिक्षा के बाजारीकरण, गरीबों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने वाली शिक्षा नीतियों तथा काले साहबों को पैदा करनी वाली शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ एआईएसएफ के झण्डे़ के नीचे एकताबद्ध होकर सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा सुधारों के लिए संघर्ष को तेज करें और आने वाले वक्त के लिए नागरिकों और राजनीतिज्ञों की ऐसी क्रान्तिकारी पीढ़ी तैयार करें जो देश को सही दिशा में ले जा सके। न्यायमूर्ति रज़ा ने 1953 के अपने छात्र जीवन को याद करते हुए कहा कि उस दौर में लखनऊ में एक महान छात्र आन्दोलन ने जन्म लिया था जिससे भयभीत तत्कालीन सरकार के निर्देशों पर स्थानीय पुलिस ने पुरानी नजीराबाद रोड़ पर डा. गयेन्द्र की हत्या कर दी थी।
न्यायमूर्ति रज़ा ने कहा कि इस समय हम एक अशान्त दौर से गुजर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद अंतिम सांसें ले रहा है। वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद दम तोड़ रहा है। इस वक्त एआईएसएफ की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जिसे वर्तमान पीढ़ी को निभाना ही होगा। न्यायमूर्ति रज़ा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे वर्तमान आन्दोलन के चेहरों एवं मंतव्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को नेतृत्व देने को कहा।
स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने अपने स्वागत भाषण में सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौर से लेकर आज तक उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक अवदानों एवं योगदानों का स्मरण करते हुए कहा कि वर्तमान दौर में हम हर क्षेत्र में भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को अपनी चपेट में ले लिया है। आम आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए या तो कर्ज ले रहा है, या गहने-जेवर, बर्तन और सम्पत्ति बेच रहा है अन्यथा उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित हो जा रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य पर भी खतरा पैदा कर दिया जिसके हम मूक दर्शक बने नहीं रह सकते। उन्होंने आह्वान किया कि छात्रों की वर्तमान पीढ़ी को डा. अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो“ को अमल में लाते हुए शिक्षा को हासिल करने के संघर्ष को खड़ा करना होगा। (स्वागत भाषण की प्रतिलिपि संलग्न है)।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने एआईएसएफ के गौरवशाली अवदानों तथा सत्तर के दशक के मध्य में एआईएसएफ के संविधान में किये गये संशोधनों का जिक्र करते हुए कहा कि एआईएसएफ लगातार वैज्ञानिक समाजवाद के लिए संघर्षरत रहा है परन्तु आज जब देश की नीतियां प्रतिगामी दिशा में चल रहीं हैं, छात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से फैसलाकुन संघर्षों को संगठित करने का आह्वान किया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ की पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में एटक की सचिव अमरजीत कौर ने देश के असंख्य मजदूरों की ओर से समारोह को बधाई देते हुए कहा कि 1936 में इसी ऐतिहासिक हाल में सम्पन्न होने वाले स्थापना सम्मेलन से कहीं बहुत पहले से छात्रों ने पहलकदमी लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने उसके पहले के तमाम आजादी के संघर्षों के छात्रों में अवदान को याद करते हुए कहा कि देश में स्वाधीनता संग्राम का कोई युग रहा हो अथवा सुधारों का कोई आन्दोलन रहा हो, उसे गति तभी मिली जब छात्रों ने उसमें हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ आन्दोलन तभी शुरू हुआ जब एक छात्र ने चुनौती दी कि वह अपनी बहन को सती नहीं होने देगा, विधवा विवाह को तभी गति मिली जब एक छात्र ने एक विधवा से विवाह करने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि लिंग समानता तथा महिला सशक्तीकरण के आन्दोलन को गति भी छात्रों ने ही उन्हें एआईएसएफ की महासचिव बनाकर दिया। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी का आवाह्न किया कि वे अपने घोषित नारों - ”शान्ति, प्रगति, वैज्ञानिक समाजवाद को बदले बिना परिवर्तित वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपने काम करने के तरीकों को बदलें, अधिक से अधिक छात्रों को एआईएसएफ की ओर आकर्षित करें और जुझारू संघर्षों के जरिए छात्र आन्दोलन को गति तथा देश की राजनीति को देशा दें।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने देश के करोड़ों किसानों की ओर से समारोह का अभिनन्दन करते हुए अपने संस्मरणों के जरिये नई पीढ़ी को संघर्षों के लिए प्रेरित किया।
समारोह के औपचारिक उद्घाटन के पहले छेदी लाल धर्मशाला में एक चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया तथा झंडोत्तोलन प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरसिम्हा रेड्डी ने किया।
समारोह में ”लोक संघर्ष“ पत्रिका के एआईएसएफ पर केन्द्रित अंक का विमोचन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया।
समारोह के दूसरे सत्र में एआईएसएफ की विभिन्न पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश की विभिन्न हिस्सों से आये तमाम राजनीतिज्ञों, न्यायविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षकों, वकीलों, शिक्षाशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कलाकारों, साहित्यकारों तथा मजदूर नेताओं आदि का अभिनन्दन किया गया।
सायंकाल सांस्कृतिक समारोह आयोजित होगा जिसकी शुरूआत लखनऊ इप्टा के कलाकार ”किस्सा एक लाश का“ नाटक प्रस्तुत कर करेंगे। तत्पश्चात् विभिन्न राज्यों से आये छात्र अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे।
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लो क सं घ र्ष !: आल इण्डिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का इतिहास: महेश राठी भाग 6


चीनी आक्रमण के प्रतिफल स्वरूप लोगांे के बीच में कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति एक गलत संदेश गया। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक समाजवादी व्यवस्था थी और चीन के इस आक्रमण ने समाजवादी विचारधारा पर ही सवालिया निशान लगा दिया। चीनी कम्युनिस्ट नेतृत्व के इस निर्णय ने भारत की कम्युनिस्ट, प्रगतिशील एवं जनवादी ताकतांे के बीच एक स्पष्ट विभाजन की रेखा खींच दी थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी ऐसी शक्तियों ने विभाजक गतिविधयाँ तेज कर दीं। जिसके परिणाम स्वरूप 1964 में पार्टी में विभाजन हो गया और एक नई पार्टी भा00पा0एम0 का उदय हुआ। इस विभाजन ने 0आई0एस0एफ0 को भी एक गंभीर संकट में धकेल दिया।
वास्तव में यह चीनी संकट देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन के लिए दोहरा संकट लेकर आया। एक कम्युनिस्ट आन्दोलन में विभाजन और दूसरे आर0एस0एस0 जैसे देश की दक्षिणपंथी और फासीवादी ताकतों को कम्युनिस्ट, प्रगतिशील और जनवादी आन्दोलन पर हमले का सुनहरा मौका मिल गया था। 0आई0एस0एफ0 की नियमित गतिविधियों के लिए एक झटका था। विभाजक शक्तियों ने संगठन की सभी परम्पराओं, नियमों और विचारधारात्मक परम्पराओं को ताक पर रख कर सामानान्तर संगठन खड़ा करने का काम किया। उन्होनंे प्रत्येक स्तर पर सामानान्तर संगठन बनाने अपना साहित्य छापने, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ छापने का काम प्रारम्भ कर दिया। 0आई0एस0एफ0 को भारी नुकसान हो रहा था और यह नुकसान 0 बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और केरल में कहीं अधिक था, हालाँकि यह नुकसान लगभग सभी राज्यांे में हो रहा था।
आर0एस0एस0 और जनसंघ ने इस मौके का देश भर में कम्युनिस्ट विरोधी माहौल बनाने में भरपूर लाभ उठाया। परन्तु 0आई0एस0एफ0 और भा00पा0 द्वारा चीनी आक्रमण की स्पष्ट निन्दा किए जाने से स्थिति काफी हद तक सँभली और साथ ही देश की अन्य प्रगतिशील ताकतों ने भी इस समय काफी सहायता की। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भारत पर चीनी आक्रमण की आलोचना की गई और देश के
प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू के दक्षिणपंथी छलावांे में नही फँसने के कारण भी स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ। भा00पा0 से अलग होकर सी0पी0एम0 बनाने वाले पार्टी विभाजकांे ने छात्र आंदोलन सहित सभी जनांदोलनों में फूट की नींव रख दी थी। 1970 में 0आई0एस0एफ0 से टूटकर जाने वालों ने एस0एफ0आई0 नामक छात्र संगठन का गठन किया।
0आई0एस0एफ0 का पुनर्गठन 1964-66
0आई0एस0एफ0 के पुनर्गठन का निर्णय किया गया और 1964 में केरल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश और चंडीगढ़ में राज्य सम्मेलनों का आयोजन किया गया। कई राज्यों में राज्य इकाइयों का गठन किया गया। हिंद महासागर में अमेरिकी नौसेना के प्रवेश के खिलाफ बिहार स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने यू0एस0आई0एस0 पर प्रदर्शन किया। चीनी आक्रमण के अस्थाई प्रभाव के बाद यूथ स्टूडेन्ट्स आन्दोलन में फिर उभार दिखने लगा। 1965 में एक यूथ स्टूडेन्ट्स कैडर मीटिंग का आयोजन दिल्ली में किया गया। इस बैठक में आसाम, बंगाल, बिहार, उडीसा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, केरल और दिल्ली में सम्पन्न राज्य सम्मेलनांे का विशेष उल्लेख किया गया। जब साठ के दशक में छात्र-नौजवान आन्दोलन में एक उभार दिखने लगा था उसी समय 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई, जिसके कारण अंध राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी ताकतों को भारत-सोवियत संघ की दोस्ती के खिलाफ प्रचार का मौका मिल गया। परन्तु कामयाब ताशकंद संधि ने इस अभियान को विफल कर दिया। भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध के समय 0आई0एस0एफ0 ने देश की रक्षा के लिए छात्रों और नौजवानों को आगे आने का आवाह्न किया। यह ऐसा समय था जिसमें विघटनकारी शक्तियाँ काफी सक्रिय हो र्गइं और भाषाई विघटनकारी शक्तियों ने हिन्दी और गैर हिन्दी लोगों के बीच तनाव पैदा करके भाषाई आधार पर दंगे भड़काने का काम किया।
पूरे देश में आर्थिक स्थितियाँ बद से बदतर हो रही थीं। सरकार ने आम जनता पर ढेरों कर लाद दिए थे। भारत ने इसी समय पी0एल0 480 समझौते के तहत अमेरिका से गेहूँ आयात किया। चैथी पंचवर्षीय योजना स्थगित कर दी गई। विश्व बैंक के दबाव में रुपये का अवमूल्यन किया गया। देश पर कर्ज 1300 करोड़ रुपए की बड़ी रकम तक पहँुच गया। बड़े पूँजीपतियों और एकाधिकारियों को बड़ी छूट दी गई जिससे उन्होनें खुले तौर पर आमजन के हितांे पर कुठाराघात कराने शुरू कर दिए। आम आवश्यकता की वस्तुओं के दामो में भारी बढ़ोŸारी हुई जिससे आम आदमी का जीना दूभर हो गया। सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। छात्र और नौजवान बड़ी संख्या में सरकारी नीतियों के खिलाफ सड़कांे पर उतर रहे थे। सरकार के खिलाफ इस गुस्से की अभिव्यक्ति आम चुनावों में भी दिखाई पड़ रही थी। 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को 17 में से 9 राज्यांे में करारी हार का मुँह देखना पड़ा। इसके अलावा देश में छात्रांे और नौजवानांे ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों की अगुवाई की, इसमें बंगाल में 1965 का आंदोलन और बिहार का अगस्त आन्दोलन प्रमुख थे जिसमें सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण कई छात्रों ने अपनी जानों की कुर्बानी दी।
संयुक्त सम्मेलन
0आई0एस0एफ0 और 0आई0वाई0एफ0 ने 29 दिसम्बर 1965 से 3 जनवरी 1966 को पांडेचेरी में संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन ने भारत-पाक ताशकन्द समझौते का समर्थन करते हुए उसमें सोवियत संघ की भूमिका की भी सराहना की। इसी सम्मेलन में दोनों संगठनांे ने अपने आपको एक दूसरे से संबद्ध घोषित किया। जून 1966 में सरकार ने विश्व बैंक के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया जिससे पूरे देश में सरकार के खिलाफ आंदोलनांे की बाढ़ सी गई। 1966 में पूरे समय देश भर में आंदोलन चलते रहे सितम्बर 1966 में भा00पा0 ने संसद मार्च का नारा दिया जिसमें 0आई0एस0एफ0 ने बढ़-चढ़कर बड़ी तादाद में शिरकत की। सितम्बर-अक्टूबर 1966 में पूरे उत्तर प्रदेश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गए। जिसमें सैंकड़ांे छात्र नौजवान घायल हुए, दर्जनों शहीद हुए और 6000 के लगभग लोगों को जेल जाना पड़ा। कानपुर में एक कालेज प्रधानाचार्य की हत्या हो गई। हत्या के आरोप में कुछ छात्रों को जेल जाना पड़ा। स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने इसके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी। जिसके कारण छात्रांे का दमन शुरू हो गया और दो दिन तक कानपुर में गोलीबारी हुई। यू0पी0 के गर्वनर ने कहा कि यदि 0आई0एस0एफ0 अपना आंदोलन वापस नहीं लेता है तो इसी तरह दमन और गोलीबारी जारी रहेगी। प्रतिक्रिया स्वरूप यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया। 15 अक्टूबर 1966 को पूरे देश में प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया गया।
छात्रों की विभिन्न माँगांे के लिए 4 नवम्बर 1966 को एक व्यापक आधार वाली संयुक्त स्टूडेन्ट्स कमेटी का गठन किया। विभिन्न छात्र समस्याओं और माँगांे को लेकर कमेटी ने 18 नवम्बर 1966 को दिल्ली मार्च का निर्णय किया। सरकार ने इसे एक धमकी की तरह समझकर इस छात्र आंदोलन को कुचलने के उपाय शुरू किए। दिल्ली और आसपास के छात्र नेताओं को रातो-रात गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली आने के रास्ते बन्द कर दिए गए, दिल्ली की सीमाओं पर भी अवरोध खड़े किए गए। हजारों छात्रों को दिल्ली पहुँचने के रास्ते में ही पकड़ लिया गया। इसी कड़ी में पूरे बिहार में भी विरोध की आग भड़क उठी जो नवम्बर 1966 से जनवरी 1967 तक अभूतपूर्व ऊँचाई पर थी। विभिन्न राज्यों में भी राज्य स्तरीय छात्र एक्शन कमेटी का गठन किया गया। जिसने 8 दिसम्बर 1966 को माँग दिवस के रूप में मनाया। समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में पुलिस ने छात्रांे पर जबरदस्त ज्यादतियाँ कीं। पटना और उसके आसपास के इलाकों में भी बड़ी संख्या में छात्रांे की गिरफ्तारियाँ हुईं।
1967 के चुनाव और उसके बाद का समय
1967 में सम्पन्न चैथे आम चुनाव में आजादी के बाद कांग्रेस को पहली बार हार का मुँह देखना पड़ा। बहुमत राज्यांे में कांग्रेस की हार हुई, 17 में से 9 राज्यों में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। बहुमत राज्यांे में विपक्षी सरकारांे का गठन हुआ, केरल और 0 बंगाल में वामपंथी सरकार का गठन हुआ। देश में बदलते इन हालातों के बीच सरकारी नीतियों के खिलाफ लगातार आन्दोलनांे का दौर जारी रहा। इसी बीच 17 नवम्बर 1969 को 0आई0एस0एफ0 और 0आई0वाई0एफ0 ने संयुक्त रूप से बेरोजगारी के खिलाफ अखिल भारतीय संसद मार्च का आवाह्न किया, जिसमें हजारों छात्रों और नौजवानों ने भागीदारी की। इसीके साथ लाखों हस्ताक्षरों के साथ छात्र और नौजवानों द्वारा तैयार एक माँग पत्र भी संसद को दिया गया। असल में यह बेरोजगारी के खिलाफ छात्र-युवा आंदोलन की तीसरी अवस्था थी, इससे पहले दिसम्बर 1968 में छात्र युवाओं ने दिल्ली में एक कंवेंशन आयोजित किया था और देश भर में बेरोजगारी के सवाल पर जत्थे निकाले गए थे।
क्रमश:

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