भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शनिवार, 29 नवंबर 2014

राजा महेन्द्र प्रताप के बहाने एएमयू को निशाना बनाने की कोशिशों की भाकपा ने निन्दा की

लखनऊ 30 नवम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा साम्प्रदायिक विभाजन की अपनी चिरपरिचित राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को निशाना बनाने और उसके लिए वैचारिक रूप से मार्क्सवादी राजा महेन्द्र प्रताप जैसे धर्मनिरपेक्ष क्रान्तिकारी को औजार बनाने की कड़े से कड़े शब्दों में निन्दा की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आज से पहले कभी भाजपा को राजा महेन्द्र प्रताप का जन्म दिवस मनाने की याद नहीं आई। ऐसे में जबकि भाजपा की केन्द्रीय सरकार अपने चुनाव अभियान के दौरान जनता से किये गये तमाम ढपोरशंखी वायदों को पूरा करने में पूरी तरह विफल रही है। अपनी विफलताओं की ओर से जनता का ध्यान हटाने के लिए वह साम्प्रदायिक विभाजन पैदा करने और देश के ऐसे महापुरूषों, जिनका भाजपा हमेशा विरोध करती रही, की विरासत को हथियाने की कोशिश में जुटी है।
भाकपा ने आरोप लगाया कि पहले भाजपा मुजफ्फरनगर और मेरठ में बहू-बेटी बचाओ आन्दोलन करके और उसके बाद कथित ‘लव जेहाद’ के नाम पर घनघोर साम्प्रदायिक राजनीति करती रही है। अब उसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को निशाना बनाया है। पहले वहां की लाईब्रेरी में छात्राओं को पढ़ने की सुविधा देने को भाजपा ने मुद्दा बनाने की कोशिश की और अब राजा महेन्द्र प्रताप का जन्म दिवस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में घुस कर मनाने की घिनौनी साजिश रची है।
भाजपा और संघ परिवार, जो गांधी की हत्या के लिए कुख्यात है, आज गांधी जी की पूजा पाठ का स्वांग रच रहे हैं। स्वामी विवेकानन्द, शहीदे आजम भगत सिंह, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल आदि सभी की विरासत को अपने आगोश में समेटने की असफल कोशिश भाजपा करती रही है परन्तु इन महापुरूषों के विचारों की आग को वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। अब ताजा उदाहरण राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की विरासत को हड़पने का है।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि राजा महेन्द्र प्रताप एक पूर्ण धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे जो आजादी की लड़ाई के लिए अपना परिवार, सम्पत्तियां सब कुछ त्याग दिये थे और उन्होंने अपने निर्वासन काल में भारत सरकार का गठन किया जिसके वे राष्ट्रपति बनाये गये थे। भारत को आजाद कराने के लक्ष्य से उन्होंने सोवियत संघ के महान क्रान्तिकारी लेनिन से विमर्श किया हिटलर से नहीं। आजादी के बाद जब वे अलीगढ़ के धर्म समाज कालेज में व्याख्यान देने गये और उन्होंने आजाद भारत में हिन्दू-मुसलमानों के बीच एकता का संदेश दिया तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोगों ने उन पर पथराव किया और जैसे-तैसे उन्हें बन्द गाड़ी में सुरक्षित निकाला गया। 1957 में संघ के नामित प्रत्याशी अटल बिहारी बाजपेई मथुरा से राजा महेन्द्र प्रताप के सामने चुनाव लड़ने पहुंच गये लेकिन जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया था। इस चुनाव में निर्दलीय राजा महेन्द्र प्रताप भारी मतों से विजयी हुए थे और अटल जी की जमानत तक जब्त हो गई थी। लेकिन आज वही भाजपा और संघ गिरोह खुद को राजा महेन्द्र प्रताप का अनन्य अनुयायी साबित करने पर जुटा है। भाजपा की यह कोशिशें कभी कामयाब नहीं होंगी।
भाकपा ने कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय विश्व प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान है और देश विदेश में उसकी बेहद प्रतिष्ठा है। उसको निशाना बनाया जाना बेहद निन्दनीय है। यह अभियान मोदी के उन दावों की भी हवा निकाल देता है जिसके तहत वे अपने को विकास का मसीहा साबित करने की कोशिश में लगे हैं।
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मंगलवार, 25 नवंबर 2014

सेज़ के नाम पर लूट

भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के दौर पर तमाम तरह लूट और घोटाले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। हाल में कैग की एक रिपोर्ट ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़)  के नाम पर चल रहे घोटालों का भंडाफोड़ किया है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) स्थापित करते समय बड़े-बड़े वायदे किये गये थे। दावा किया गया था कि विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) स्थापित करने से निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, देश में उत्पादन बढ़ेगा, रोजगार सृजित होगा और व्यापार संतुलन में मदद मिलेगी। इसी तर्क पर वहां लगने वाली औद्योगिक इकाईयों के लिए ढ़ेर सारी रियायतों की घोषणा की गई थी। विस्थापन और दूसरे स्थानों पर लगने वाले उद्योगों से भेदभाव के सवालों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) के तथाकथित संभावित लाभों का हवाला देकर दबा दिया गया था।
हाल में कैग की एक रिपोर्ट में इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) से क्या हासिल हुआ, इसका खुलासा हुआ है। कैग की रिपोर्ट बताती है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) गठित करने से रोजगार और निर्यात बढ़ाने में कोई मदद हासिल नहीं हुई है बल्कि कर रियायतों के कारण सरकारी खजाने को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से 2013 के मध्य 83,000 करोड़ रूपये का राजस्व विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) को दिये जाने वाली रियायतों की भेट चढ़ गया है। इसमें कई तरह के केन्द्रीय कर और स्टाम्प शुल्क शामिल नहीं हैं। यानी यह आंकडा कई गुना ज्यादा भी हो सकता है। कई ऐसी कंपनियों ने भी कर रियायतें हासिल कीं, जिन्होंने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) में आबंटित जमीन का इस्तेमाल अपनी स्वीकृत परियोजना के लिए नहीं किया और किसी और को वह जमीन दे दी।
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर आबंटित जमीन में से आधी जमीन का उपयोग अभी तक नहीं किया गया है जबकि आबंटन 8 साल पहले हुआ था। यह विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जमीन की जमाखोरी के अलावा और कुछ नहीं है। तमाम कंपनियों ने वास्तविक जरूरत से ज्यादा जमीन हड़प ली।
इसका एक अर्थ यह भी है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जो हुआ विस्थापन और कृषि योग्य जमीन में आई कमी आवश्यता से कहीं अधिक थी। संप्रग और राजग अब भी यह समीक्षा करने को नहीं तैयार है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जमीन और राजस्व की भेट देने के बदले आखिर देश को और उसकी जनता को मिला क्या है। निर्यात के मोर्चे पर आज भी स्थिति बदहाल है और व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
जमीन और राजस्व की यह लूट केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर ही नहीं की गई बल्कि और भी बहुत योजनाओं के तहत ऐसा किया गया। केवल उड़ीसा में खेती का रकबा 2005 से 2010 के मध्य 1,17,000 हेक्टेयर कम हो गया। यही कहानी पूरे देश में दोहराई गई है। उत्तर प्रदेश में लाखों हेक्टेयर जमीन एक्सप्रेस वे और उनके साथ विकसित किए जाने वाली टाउनशिप और इंडस्ट्रियल एरिया के नाम पर हड़प ली गई। इस बात का कोई आकलन नहीं किया गया कि ऐसे एक्सप्रेस वे स्थापित करने से क्या लाभ हासिल हो सकेगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) से संबंधित कैग की रिपोर्ट संसद के वर्तमान सत्र में पेश की जाने वाली है। इस पर उठने वाले स्वर दबा दिये जायेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि संसद इस रिपोर्ट में उठाये गये मुद्दों पर कोई विचार नहीं करेगी। अंततः जनता को ही सड़कों पर उतर कर सवाल खड़े करने होंगे।
. प्रदीप तिवारी
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सोमवार, 17 नवंबर 2014

केन्द्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ छह वामपंथी दलों का संयुक्त आन्दोलन आठ से चौदह दिसंबर तक

लखनऊ 17 नवम्बर। केन्द्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश के छह वामपंथी दल आगामी आठ से चौदह दिसंबर तक संयुक्त अभियान चलायेंगे। उपर्युक्त निर्णय यहां संपन्न छह वामदलों के प्रदेश स्तरीय नेताओं की बैठक में लिया गया। ज्ञात हो कि ये छहों दल राष्ट्रीय स्तर पर पहली नवंबर को ही इस आन्दोलन को प्रभावी बनाने का निर्णय ले चुके हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मा.), आल इण्डिया फारवर्ड ब्लाक, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) -लिबरेशन एवं सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इण्डिया (कम्युनिस्ट) के पदाधिकारियों की संपन्न बैठक में निर्णय लिया गया कि हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा उठाये गये जनविरोधी कदमों के विरुद्ध उत्तर प्रदेश भर में मिल कर अभियान चलाया जाये। लिये गये निर्णय के अनुसार वाम दल प्रदेश के सभी जनपदों में संयुक्त रूप से धरने, प्रदर्शन, सभायें एवं विचार गोष्ठियां आयोजित कर जनता को लामबन्द करेंगे। इससे पहले नवंबर माह के भीतर ही इन दलों की जनपद स्तर पर संयुक्त बैठकें की जायेंगी।
आठ से चौदह दिसंबर तक होने वाले इन आयोजनों में कमरतोड़ महंगाई, आवश्यक दवाओं के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना (मनरेगा) को नेस्तनाबूद करने एवं श्रम कानूनों को असरहीन बनाने के सरकारी कदम, बीमा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने, काले धन को वापस लाने में सरकार की हीला हवाली और भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के प्रयास जैसे मुद्दे शामिल होंगे। इसके अलावा संवैधानिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में आरएसएस के एजेंडे को लागू करने, तथाकथित लव जेहाद तथा सांप्रदायिक प्रचार के अन्य माध्यमों के जरिये सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों और अन्य दबे कुचले तबकों पर अत्याचार जैसे मुद्दे भी इसमें शामिल होंगे।
बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि अपने चुनाव अभियान में देश की मेहनतकश जनता से एक से बढ़ कर एक लुभावने वायदे करने वाली भाजपा की केन्द्र सरकार आज इन्हीं तबकों की कमर तोड़ने पर उतारू है। ग्रामीण गरीब और बेरोजगारों का सहारा बनी मनरेगा योजना को आबंटित धन में लगभग पचास प्रतिशत की कटौती कर चुकी है। योजना के लिये धन भेजने में पहले ही रुकावटें खड़ी कर दी गयीं हैं। हाल ही में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जो समझौते किये हैं उनसे दवाओं की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं के लिये पेट्रोल और डीजल के दामों में पर्याप्त गिरावट नहीं की गयी है। महंगाई सातवें आसमान पर है। सरकार श्रम कानूनों को असरहीन बनाने को कदम उठा चुकी है और अब भूमि अधिग्रहण कानून को ही बदलने की मंशा भी जता चुकी है। सौ दिन के भीतर काले धन को वापस लाकर जनता तक पहुँचाना तो दूर सरकार अब इस समस्या से मुंह चुरा रही है।
बीमा, रक्षा एवं रेलवे जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के क्षेत्रों में भी एफडीआई को बढ़ाने को कदम उठाये जा रहे हैं। इसी तरह महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों एवं अन्य कमजोर तबकों का उत्पीडन और उनकी लूट की दर में भी इजाफा हुआ है। अपने दीर्घकालिक संकीर्ण हितों को साधने की गरज से संघ परिवार सरकार के माध्यम से शिक्षण संस्थाओं, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं में घुस पैठ कर रहा है और अपने कट्टरपंथी सांप्रदायिक अभियान को हवा दे रहा है। इससे समूचे देश में सांप्रदायिक तनावों में वृद्धि हो रही है। कारपोरेटों एवं दक्षिण पंथी ताकतों के द्वारा आर्थिक नवउदारवादी नीतियों को लागू करने के जरिये जनता के ऊपर हमला लगातार बढ़ रहा है जिससे जनता की रोजी रोटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अतएव वामदलों ने जनहित में आन्दोलन में उतरने का निश्चय किया है।
एक अन्य प्रस्ताव में लखनऊ विश्वविद्यालय में आइसा की गोष्ठी में आयी ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन के ऊपर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा किये गये हमले की निन्दा की गई।
बैठक में भाकपा के डा. गिरीश व अरविन्द राज स्वरूप, माकपा के प्रेमनाथ राय, भाकपा (माले) - लिबरेशन के रमेश सिंह सेंगर व अरुण कुमार, एआईएफबी के शिव नारायण चौहान, डा. एस.पी. विश्वास व विजय पाल सिंह, एसयूसीआई-सी के जगन्नाथ वर्मा, सपन बनर्जी व जयप्रकाश मौर्य एवं आरएसपी के संतोष गुप्ता ने भाग लिया।
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बुधवार, 12 नवंबर 2014

राज्यपाल ने पुनः संवैधानिक मर्यादाओं का हनन किया- भाकपा

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाइक संवैधानिक पद पर आसीन होने के बाद भी आर.एस.एस. के एजेन्डे को ही आगे बढ़ाने में जुटे हैं. कल अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण के संबंध में दिया गया उनका बयान भी उनके इन्हीं प्रयासों की अगली कड़ी है. यहाँ का. अशोक मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न भाकपा राज्य कार्यकारिणी की बैठक में कल श्री नाइक के बयान कि “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच साल में राम मन्दिर मामले का हल निकालने का प्रयास करेंगे,” “कि देश के हर नागरिक के मन में मन्दिर निर्माण को लेकर सवाल उठ रहे हैं,” पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी. भाकपा की स्पष्ट राय है कि श्री नाइक का यह बयान न तो राज्यपाल जैसे पद की गरिमा के अनुकूल है न संविधान सम्मत. जब राम मन्दिर/बाबरी मस्जिद विवाद सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है तो कैसे एक संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति उसके बारे में टीका-टिपण्णी कर सकता है. यदि श्री नाइक को सक्रिय राजनीति और संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने की इतनी ही फ़िक्र है तो वे सक्रिय राजनीति करें राज्यपाल जैसे गरिमामय पद का परित्याग करें. वे राम मन्दिर के सवाल को हर नागरिक के मन में बता कर अपने एजेंडे को विस्तार देरहे हैं. भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने कहा कि पहले भी श्री नाइक संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत से दो घंटे तक चर्चा करने के कारण विवादों में घिर चुके हैं और वे यह भी बयान दे चुके हैं कि उन्होंने भाजपा की सदस्यता छोड़ी है, आर.एस.एस. की नहीं. उनकी यह स्वीकारोक्ति इन आरोपों को पुष्ट करती है कि वे संघ के एजेन्डे पर ही काम कर रहे हैं. राज्य कार्यकारिणी बैठक के अन्य फैसलों के बारे में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने बताया कि पार्टी ने प्रदेश में सभी वामपंथी दलों को एकजुट कर जनता के सवालों पर जन आन्दोलन खड़ा करने और आन्दोलन को मूर्त रूप देने को राज्य स्तर पर वामदलों की संयुक्त बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया. उन्होंने बताया कि केन्द्रीय स्तर पर इस तरह की मीटिंग पहले ही की जा चुकी है. इस बैठक में भाकपा, माकपा, आरएसपी, फार्बर्ड ब्लाक के अलावा भाकपा- माले एवं एसयूसीआइ-सी आदि पार्टियाँ भाग लेंगी. बैठक १७ नवंबर को सायं ३.०० बजे भाकपा के कैसरबाग स्थित कार्यालय पर होगी. इसके अलावा बैठक में शाखा सम्मेलनों और जिला सम्मेलनों के आयोजन की समीक्षा की गयी तथा २८ फरवरी से २ मार्च के बीच इलाहाबाद में होने जारहे २२ वें राज्य सम्मेलन की तैय्यारियों का भी जायजा लिया गया. डा.गिरीश, राज्य सचिव
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