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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
at 7:24 pm | 0 comments |
नये साल में वामदलों के नये अभियान का शुभारंभ : 8 जनवरी की हड़ताल का समर्थन
प्रकाशनार्थ-
मोदी- योगी
सरकार की लोकविरोधी नीतियों के खिलाफ वामदलों का अभियान पहली जनवरी से
8 जनवरी को
होने वाली मजदूरों किसानों की हड़ताल का समर्थन करेंगे उत्तर प्रदेश के वामदल
लखनऊ- 31 दिसंबर 2019, वामपंथी दलों के केंद्रीय आह्वान पर उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों ने मोदी
सरकार की मजदूर, खेतिहर मजदूर, किसान, आमजन और नौजवान विरोधी आर्थिक नीतियों और विभाजनकारी सामाजिक- राजनैतिक नीतियों
के खिलाफ उत्तर प्रदेश में नए वर्ष के पहले दिन 1 जनवरी से 7 जनवरी 2020 के बीच प्रदेश
व्यापी अभियान संगठित करने और 8 जनवरी को प्रस्तावित आम हड़ताल को समर्थन देने का निर्णय
लिया है।
संयुक्त बयान में वामदलों ने कहाकि मोदी सरकार की मुट्ठी
भर कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियो के कारण देश बरवादी के कगार पर आपहुंचा
है। बेरोजगारी 45 वर्षों के उच्चतम स्तर पर है जिससे नौजवान अभूतपूर्व संकट का सामना
कर रहे हैं। शैक्षिक बजट की कमी, शिक्षा के निजीकरण और व्यापारीकरण
तथा विद्यालयों को आरएसएस की प्रयोगशाला बना देने से छात्रों का दम घुट रहा है और वे
इसका प्रतिरोध कर रहे हैं। खोखली होचुकी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण आम और गरीब लोग इलाज
के अभाव में मौत के शिकार होरहे हैं।
आर्थिक मंदी ने अर्थव्यवस्था की नींव खोखली कर दीं हैं।
औद्योगिक और क्रषी उत्पादन गिर कर न्यूनतम स्तर पर आगया है। उपभोक्ता की जेब खाली है
और बिक्री घटी है। आयात बड़ा है और निर्यात घटा है। इस कारण बेरोजगारी और बड़ रही है।
रुपये की कीमत घटती ही जारही है। खाली खजाने को रिजर्व बैंक से उधारी लेकर भरा जारहा
है। महंगाई चरम पर है। प्याज डेढ़ सौ रुपये किलो तक पहुँच गयी, पेट्रोल 80 और डीजल 70 को छूरहा है। रसोई गैस की कीमतें भी काफी ऊंची होगयीं
हैं। भ्रष्टाचार ने पूर्व के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं।
खेती के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में किसानों को
मदद पहुँचाने के बजाय किसानों को कुछ खैरात देकर फुसलाया जाया जारहा है। इससे किसान
अभूतपूर्व संकट का शिकार हैं। खेतिहर मजदूर और भी अधिक बदहाल हैं। उद्योग और व्यापार
की कमर नोटबंदी और जीएसटी ने तोड़ रखी है और ग्रामीण जनों के सीजनल रोजगार के रास्ते
बन्द होचुके हैं।
वेश कीमती सरकारी क्षेत्र को बेचा जारहा है। रेल तक
प्रायवेट की जारही हैं। अंबानी, अदानी जैसे मुट्ठी भर लोगों को
मालामाल किया जारहा है। देश की पूंजी का बड़ा हिस्सा मुट्ठी भर पूँजीपतियों पर जाचुका
है और गरीब भयंकर गरीबी में नारकीय जीवन जी रहे हैं। जनता में भयंकर आक्रोश है। इससे
ध्यान बंटाने और लोगों को प्रताड़ित करने के उद्देश से तीन तलाक, कश्मीर, सीएए, एनपीआर और एनआरसी
जैसे लोकतन्त्र विरोधी कार्य निरंतर जारी हैं। संविधान को तहस नहस किया जारहा है। विरोध
करने पर लाठी, डंडे और गोलियां बरसाई जारही हैं। तमाम निर्दोषों
को संगीन धाराओं में जेल भेजा जारहा है।
केन्द्र की तबाहकारी नीतियों को यूपी सरकार और भी ताकत
से लागू कर रही है। कानून व्यवस्था तार- तार होचुकी है, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, युवाओं और छात्रों से दुश्मन जैसा वरताव किया जारहा है। भ्रष्टाचार चरम पर है और यूपी सरकार भय आतंक और तानाशाही
की पर्याय बन चुकी है। किसानों को गन्ने का बकाया नहीं मिल रहा, फसलों की उचित कीमत नहीं मिल रही है। मनरेगा की उपेक्षा और रोजगार योजनाओं
के अभाव में ग्रामीण मजदूर तवाह होरहे हैं। योगी सरकार दिखाबे के और बरगलाने वाले संकीर्ण
एजेंडों को चला रही है। असली मुद्दों से मुंह
चुरा रही है। लोग गुस्से में हैं और सड़कों पर उतर रहे हैं। उन्हें सरकारी मशीनरी के
बल पर रौंदा जारहा है। ठोक दो, मार दो,
बन्द कर दो, बदला लिया जायेगा, छोड़ा नहीं
जाएगा जैसे भयानक शब्द कोई और नहीं सूबे की सरकार का मुखिया बोल रहा है।
वामपंथी दल उत्तर प्रदेश में इन सवालों पर लगातार अपनी
पूरी ताकत से पुरजोर आवाज उठा रहे हैं। अब इन सभी सवालों पर 1 से 7 जनवरी के बीच गाँव, गली और नुक्कड़ तक अभियान चलाया जायेगा और देश के दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों
द्वारा आहूत्त और किसान- खेतिहर मजदूर संगठनों द्वारा समर्थित 8 जनवरी की हड़ताल को
समर्थन दिया जायेगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-
( मार्क्सवादी ) के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल यादव एवं भाकपा- माले- लिबरेशन के
राज्य सचिव का॰ सुधाकर यादव ने वामपंथी दलों की जिला कमेटियों का आह्वान किया है कि
वे 1 से 7 जनवरी के बीच सघन अभियान चलायें और 8 जनवरी की हड़ताल को पुरजोर समर्थन प्रदान
करें।
जारी द्वारा-
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा उत्तर प्रदेश
सोमवार, 30 दिसंबर 2019
at 6:14 pm | 0 comments |
UP- Left parties to stop atrocities on common masses
प्रकाशनार्थ-
उत्तर
प्रदेश में हिंसा और दमन को लेकर वामदलों ने
व्यापक
पैमाने पर ज्ञापन दिये
लखनऊ- 30 दिसंबर 2019, उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रायोजित हिंसा जिसमें अब तक 22 लोग मारे जाचुके
है, वाराणसी, लखनऊ तथा प्रदेश के अन्य भागों
में वामपंथी दलों, सिविल सोसायटी और आमजनता खास कर अल्पसंख्यकों
की गिरफ्तारी, कर्फ़्यूनुमा धारा 144 के साये में यूपी भर में
चल रहे दमन के राज के खिलाफ और सीएए एनपीआर और एनआरपी की वापसी की मांगों को लेकर भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी
), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- माले- लिबरेशन एवं अन्य
वामपंथी दलों द्वारा आज 30 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश भर में ब्लाक, तहसील और जिला स्तर पर ज्ञापन दिये गये। कई जगह संविधान की प्रस्तावना की
उद्देशिका का वाचन कर उसकी रक्षा का संकल्प लिया गया।
उत्तर प्रदेश के वामदलों के
इस आह्वान के समर्थन में दिल्ली में वामपंथी दलों ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया जिसे
वामदलों के शीर्ष नेताओं सहित तमाम प्रबुध्द लोगों ने संबोधित किया। कई अन्य राज्यों
में भी यूपी में सरकारी आतंक के खिलाफ वामदलों द्वारा इसी तरह के प्रतिरोध प्रदर्शन
किए गये। उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों ने उन सभी को इस एकजुटता प्रदर्शन के लिये धन्यवाद
दिया है।
यूपी में कर्फ़्यूनुमा 144 और
हिंसा के माहौल के चलते वामदलों ने केवल शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन देने की अपील की
थी, मगर यह कार्य बहुत ही व्यापक पैमाने पर हुआ। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण, न केवल जिला मुख्यालयों अपितु ब्लाक और तहसील स्तरों पर भी ज्ञापन दिये गये।
कई जगहों पर अधिकारियों ने वामपंथी कार्यकर्ताओं को धमकियाँ दीं तो कई अन्य जगह अधिकारियों
ने काले क़ानूनों के पक्ष में तर्क देकर स्वामिभक्ति का परिचय दिया। पर वामदल इन धमकियों
से डरने वाले नहीं हैं।
स्थानीय अधिकारियों
के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को दिये गये ज्ञापनों मांग की गयी है
कि विभाजनकारी, भय का पर्याय बने और और संविधान को तहस- नहस करने वाले नागरिकता संशोधन
कानून ( CAA ) को रद्द किया जाये। NPR
एवं NRC लागू करने की योजना निरस्त की जाये। CAA के पारित होने के बाद हुयी हिंसा की न्यायिक जांच कराई जाये। जांच में
पुलिस- प्रशासन की भूमिका भी शामिल की जाये। हानि की भरपाई के नाम पर की जारही
जबरिया और गैर कानूनी कार्यवाही को अविलंब रद्द किया जाये।
पुलिस प्रशासन द्वारा बदले
की भावना से की जारही गिरफ्तारियाँ बंद की जायें। छानबीन और पर्याप्त सबूत मिलने
के बाद ही गिरफ्तारी की जाये।
वाराणसी में 19 दिसंबर
2019 को राष्ट्रीय आह्वान के अंतर्गत शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे वामपंथी दलों और
सिविल सोसायटी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर लगाई गयी संगीन धाराओं को रद्द कर
उन्हें अविलंब बिना शर्त रिहा किया जाये।लखनऊ एवं प्रदेश के अन्य स्थानों पर
वामपंथी बुद्धिजीवियों, सिविल सोसायटी के लोगों और अन्य नागरिकों जिन्हें वैचारिक आधार पर
प्रताड़ना के उद्देश्य से गिरफ्तार किया गया है उन्हें बिना शर्त, तत्काल रिहा किया जाये। उन पर लगे मुकदमे वापस किए जायें। अन्य को फँसाने
की कारगुजारी रोकी जाये।
लोकतांत्रिक गतिविधियो को
कुचलने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदमों पर रोक लगाई जाये। पुलिस कार्यवाही में
म्रतको के परिवारीजनों को मुआबजा दिया जाये, संपत्तियों के नुकसान की भरपाई की
जाये। गिरफ्तारियों के नाम पर लोगों के आवासों, दुकानों और
अन्य संपत्तियों की तोड़फोड़ बंद कराई जाये।
कर्नाटक में
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य कार्यालय में आगजनी की त्वरित जांच कराकर
दोषियों को गिरफ्तार किया जाये। मणिपुर में भाकपा के राज्य सचिव एल॰ सोतीन कुमार
की जमानत के बाद पुनः गिरफ्तारी निंदनीय है। उन्हें तत्काल रिहा किया जाये।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के
राज्य सचिव डा॰ गिरीश, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी) के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल
एवं भाकपा माले – लिबरेशन के राज्य सचिव का॰ सुधाकर यादव ने उत्तर प्रदेश के सभी वामपंथी
कार्यकर्ताओं को इस दमघोंटू माहौल में अवाम की आवाज उठाने के लिये बधाई दी है। उन्होने
कहाकि आगामी दिनों में आंदोलन को और व्यापक बनाया जायेगा।
वामपंथी नेताओं ने सूबे में
धारा 144 हटाने की अपील की ताकि लोकतान्त्रिक आंदोलन को कुचलने के लिये उसका दुरुपयोग
न हो।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
at 1:47 pm | 0 comments |
CPI Demands action against communal officers.
प्रकाशनार्थ-
संघ की भाषा बोल रहे अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की जाये
हिसा की घटनाओं की न्यायिक जांच हो: भाकपा
लखनऊ- 28 दिसंबर 2019- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के
राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर संघ और भाजपा
के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाते हुये इस पर गहरी चिन्ता जताई है।
एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहाकि उत्तर
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही समूची शासकीय मशीनरी को संघ की वैमनस्यपूर्ण
विचारधारा के अनुसार ढाला गया जिसका परिणाम सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान
देखने को मिला। राजनैतिक दलों के कार्यालयों और नेताओं के आवासों पर पहुँचने वाली पुलिस
आंदोलन को सरकार विरोधी/ देशद्रोह की कार्यवाही बताती रही और संगीन दफाओं में गिरफ्तार
करने की धमकियाँ देती रही। जहां कोई हाथ लगा उस पर न केवल संगीन धाराएँ लगाईं गईं अपितु
उनके साथ मारपीट तक की गयी।
इसके अलाबा कई आला अधिकारी सीएए और एनआरसी के पक्ष में
जनता को समझाते दिखे। अल्पसंख्यकों पर दबाव बना कर काले कानून के पक्ष में पर्चे बंटवाये
जारहे हैं। बुलंदशहर में अल्पसंख्यकों द्वारा नुकसान की भरपाई भी दबाव में की गयी मालूम
देती है और अब सरकार इसका स्तेमाल अवैध तरीके से नुकसान की भरपाई की वसूली को जायज
ठहराने के लिए स्तेमाल कर रही है।
मेरठ में एसपी सिटी और एडीएम द्वारा अल्पसंख्यकों को
पाकिस्तान चले जाने की धमकी का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस के आला अधिकारी और भाजपा
के प्रवक्ता उनके बचाव में जुट गये हैं। पूरी प्रशासनिक मशीनरी और संवैधानिक संस्थाओं
को आरएसएस की प्रदूषित और संविधान विरोधी विचारधारा में लपेटा जारहा है।
पुलिस के इस आपत्तिजनक स्वरूप के सामने आने के बाद लोकतान्त्रिक
शक्तियों का यह आरोप सच होगया कि तोडफोड और
हिंसा की अनेक कार्यवाहियाँ पुलिसजनों ने अंजाम दीं।
भाकपा मांग करती है कि आपत्तिजनक बयान देने वाले अधिकारियों
को सरकार माकूल सजा दे और हिंसा की न्यायिक जांच कराई जाये। भाकपा उच्च और सर्वोच्च
न्यायालय से अपील करती है कि इन मामलों का संज्ञान लेकर उचित कदम उठायें।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
गुरुवार, 26 दिसंबर 2019
at 1:27 pm | 0 comments |
Statement of Left Parties of UP
प्रकाशनार्थ-
न्यायालय
द्वारा सजा तय करने से पहले आर्थिक दंड गैर कानूनी
उत्तर प्रदेश
सरकार ने न्यायालय के अधिकार भी हड़पे: सर्वोच्च न्यायालय ले संज्ञान
अविवेकी गिरफ्तारियाँ
रोकें, हिंसा की हो न्यायिक जांच
वामदलों ने
CAA, NPR और NRC को बताया भय का पर्याय:
रद्द करने की मांग की
लखनऊ- 26 दिसंबर 2019, वामपंथी दलों- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी ( मार्क्सवादी ) एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- माले के राज्य नेत्रत्व ने नागरिकता
कानून और नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ आंदोलन के दौरान भड़की हिसा के बाद उत्तर प्रदेश
सरकार और पुलिस द्वारा की जारही बहशियाना कार्यवाहियों, कर्नाटक
में भाकपा कार्यालय के जलाए जाने और मणिपुर में भाकपा के राज्य सचिव को जमानत पर छूट
जाने के बावजूद पुनः गिरफ्तार करने की कार्यवाहियों की कड़े शब्दों में भर्त्सना की
है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में वाम नेताओं ने कहाकि 19
दिसंबर को हुयी हिंसा जिसमें पुलिस कार्यवाही से अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की
मौत होचुकी है और कई अभी भी अस्पतालों में जिन्दगी- मौत से जूझ रहे हैं, के बाद पुलिस का तांडव सातवें आसमान पर है। वामदल आंदोलनकारियों के बीच घुसे
अवाञ्च्छनीय तत्वों द्वारा की गयी हिंसा को पूरी तरह अनुचित मानते हैं, लेकिन इसके बाद पुलिस की अविवेकी कार्यवाही को कदापि उचित नहीं माना जासकता।
आंदोलन पर तमाम पाबंदियों के बावजूद जब जगह जगह लोग
सड़कों पर उतर आये तो शहर शहर पुलिस प्रशासन बौखला गया और गरीबों, खोमचे वालों, व्यापारियों और राहगीरों पर बहशियाना कार्यवाही
पर उतर गया। फलतः डेढ़ दर्जन से अधिक लोग मारे गये, अनेक घायल
हुये और गरीबों के झौंपड़े, रहंड़ी- ठेले वालों और मकान दुकानों
सहित सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होगया। हिंसा आगजनी की उच्चस्तरीय जांच कराने के
बजाय योगी सरकार आम लोगों को निशाना बना रही है। अविवेकपूर्ण गिरफ्तारियों के अलाबा
दंगाइयो से नुकसान की भरपाई का तुगलकी फरमान जारी किया गया है। इसकी जद में तमाम निर्दोष
भी आरहे हैं।
सवाल यह है कि दोष साबित होने से पहले लोगों को आर्थिक
दंड देना गैर कानूनी तो है ही न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है। एक ओर भाजपा की कर्नाटक
सरकार ने पुलिस कार्यवाही में म्रतको को रुपये 10 लाख देने की घोषणा को न्यायालय के
निर्णय तक स्थगित कर दिया है वहीं योगी सरकार ने न्यायालय के अधिकार भी अपने हाथों
में समेट लिए हैं और भरपाई के नाम पर औरंगज़ेव का जज़िया कानून थोपा जारहा है। उच्च और
सर्वोच्च न्यायालय को इसका स्वयं संज्ञान लेना चाहिये।
उधर दूसरे राज्यों में भी भाजपा और संघ हिंसक और फासीवादी
हरकतें कर रहे हैं। कर्नाटक में आधी रात को भाकपा कार्यालय में घुस कर संघियों ने पेट्रोल
छिड़क कर आग लगादी जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं के कई दोपहिया वाहन जल गये। मणिपुर में
भाकपा के राज्य सचिव एल॰ सोतीन कुमार को जमानत पर रिहा होने के बाद पुनः गिरफ्तार कर
लिया गया। वामपंथी दल इन कारगुजारियों की कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं।
वामपंथी दलों ने मांग की कि 19 दिसंबर और उसके बाद की
घटनाओं की न्यायिक जांच कराई जाये, नागरिकों को घ्रणा, राजनीति और अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए अविवेकी तरीके से गिरफ्तार
करना बंद किया जाये, नुकसान की भरपाई के नाम पर तमाम लोगों से
वसूली की गैरकानूनी कार्यवाही को रोका जाये, वाराणसी में गिरफ्तार
वामदलों के कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा किया जाये तथा राजनैतिक गतिविधियों को भय
फैला कर बाधित करना बन्द किया जाये।
वामदलों ने उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय से अपील की कि
वे स्वतः संज्ञान लेकर नुकसान की भरपाई के नाम पर लोगों को प्रताड़ित करने की राज्य
सरकार की अवैध कार्यवाही पर रोक लगाएँ।
वामदलों ने भय के पर्याय बने सीएए, एनपीआर और एनआरसी को रद्द कराने सहित उपरोक्त मांगों को लेकर 30 दिसंबर को
ब्लाक, तहसील और जिला केन्द्रों पर शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन
देने का निश्चय किया है। 1 से 7 जनवरी 2020 को आर्थिक सवालों
को जोड़ कर जन संपर्क अभियान चलाया जायेगा और 8 जनवरी को होने वाली श्रमिक वर्ग की हड़ताल
को समर्थन प्रदान किया जायेगा।
यह बयान भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, माकपा के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल यादव एवं सीपीआई- एमएल के राज्य सचिव का॰
सुधाकर यादव ने जारी किया है।
जारी द्वारा-
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
बुधवार, 25 दिसंबर 2019
at 2:40 pm | 0 comments |
Atrocities in UP: Left Parties will submit memorendum to authaurities for Governer
प्रकाशनार्थ-
उत्तर प्रदेश
में चल रहे दमन चक्र के खिलाफ वामदल 30 दिसंबर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपेंगे
लखनऊ- 25 दिसंबर 2019, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी (मार्क्सवादी) एवं भाकपा, माले- लिबरेशन के राज्य के पदाधिकारियों की एक आपात्कालीन बैठक वाराणसी
में संपन्न हुयी। बैठक में उत्तर प्रदेश और देश के मौजूदा हालातों पर गंभीरता से
चर्चा हुयी और तदनुसार भविष्य की कार्यवाहियों का निर्धारण किया गया।
बैठक में नोट किया गया कि नागरिकता कानून और
नागरिकता रजिस्टर पर प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री आज भी भ्रामक बयानबाजी कर रहे
हैं। वे विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि वे दोनों सवालों पर वोट
बैंक की राजनीति कर रहे हैं। पड़ौसी देशों में धार्मिक ही नहीं वैचारिक, नस्लीय और अन्य कई तरह का उत्पीड़न होता है उन आधारों पर भी लोग विस्थापित
होते हैं। पर केन्द्र सरकार ने धर्म को आधार बना कर अन्य वजहों से विस्थापित लोगों
को नागरिकता पाने से वंचित कर दिया। ऐसा एक समुदाय विशेष को संदेश देने के लिये
किया गया ताकि बदले हालातों में भी वह भाजपा का वोट बैंक बना रहे है। उनकी इस
स्वार्थपूर्ण राजनीति को अब सब समझ गये हैं और निहित स्वार्थों के लिये संविधान और
लोकतन्त्र से छेड़छाड़ करने की कार्यवाहियों का सब विरोध कर रहे हैं।
इसी तरह आसाम में पक्ष विशेष को प्रताड़ित कर दूसरों
को खुश कर अपना वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से भाजपा सरकार ने एनआरसी लागू किया
लेकिन 20 में 12 लाख हिन्दू नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह गये। एनआरसी देश के किसी
भी कोने में लागू किया जाये, आसाम जैसे ही नतीजे आयेंगे।
क्योंकि रोजगार, खेती और व्यापार के लिये असंख्य लोग एक से
दूसरी जगह जाकर बसते रहे हैं और उनके पास वहाँ का वाशिंदा होने के सबूत किसी के
पास नहीं हैं। यद्यपि देश भर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुये प्रबल विरोध के
चलते प्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री ने स्वर बदले हैं मगर उन्होने इन्हें रद्द करने
की अभी तक घोषणा नहीं की है। इसके विपरीत वे इन सवालों पर विपक्ष के ऊपर लोगों को
गुमराह करने का आरोप लगा कर विशुध्द राजनीति कर रहे हैं।
वामपंथी दलों की इस बैठक में इस बात पर गहरी चिन्ता
व्यक्त की गयी कि वामपंथी दलों के आह्वान पर 19 दिसंबर को सीएए के खिलाफ देश भर
में हुये आंदोलन के बाद जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं उन्होने उत्पीड़न की
सारी सीमाएं लांघ दी हैं। उत्तर प्रदेश में तो स्थिति बहुत ही भयावह बनी हुयी है।
वाराणसी में प्रशासन ने वामदलों के 56 कार्यकर्ताओं को संगीन दफाएँ लगा कर जेल भेज
दिया। वामदलों के नेताओं को भी फँसाने की कोशिश की जारही है। जनसंगठनों के नेताओं
से वेवजह पूछताछ की जारही है। लखनऊ में
सिविल सोसायटी के लोगों को न केवल गिरफ्तार किया गया है अपितु उन्हें हिरासत में
बुरी तरह पीटा भी गया। प्रदेश में जहां भी आंदोलन में बड़े पैमाने पर लोग उतरे उन
पर गोलियां बरसाई गईं जिससे प्रदेश भर में दर्जनों लोगों की जानें चली गईं।
मुस्लिम अल्पसंख्यकों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की जारही हैं और उन पर संगीन
धाराएं लगाई जारही हैं। सरकार के पास इस बात का कोई जबाव नहीं कि उसकी कर्फ़्यू
जैसी पाबंदियों और लोकतान्त्रिक गतिविधियों पर आलोकतांत्रिक रोक लगाने के बाद कैसे
हिंसा होगयी। अब बौखलाई सरकार हर तरह से लोकतान्त्रिक आवाज को दबा रही है। शारीरिक
और मानसिक उत्पीड़न की वारदातों ने इमरजेंसी के दमन को पीछे छोड़ दिया है।
वामदलों ने देश भर की लोकतान्त्रिक ताकतों से अपील
की कि वे उत्तर प्रदेश में चल रहे इस दमनचक्र के खिलाफ राष्ट्र भर में आवाज उठा कर
एकजुटता का इजहार करें।
वामदलों ने निर्णय लिया कि 30 दिसंबर को इस दमन
चक्र के खिलाफ और वामपंथी कार्यकर्ताओं सहित सभी निर्दोष गिरफ्तार लोगों की बिना
शर्त रिहाई के लिये राज्यपाल के नाम संबोधित ज्ञापन जिला, तहसील तथा ब्लाक के अधिकारियों को सौंपें। चूंकि प्रशासन ने समस्त जगह
धारा 144 लगाई हुयी है और अनेक जगह अशांत वातावरण भी है,
अतएव शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन ही दिये जायें।
वामदलों ने 8 जनवरी को महंगाई, बेरोजगारी, खेतिहर और औद्योगिक श्रमिकों के
अधिकारों के हनन, आर्थिक मंदी से निपटने में सरकार की असफलता
तथा व्यापक भ्रष्टाचार जैसे सवालों पर होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल को समर्थन
देने का निर्णय लिया है।
हड़ताल के मुद्दों और सीएए और एनआरसी पर सरकार की
स्वार्थपूर्ण व संविधान विरोधी नीति को उजागर करने को 1 से 7 जनवरी तक जनसंपर्क
अभियान चलाने का निर्णय भी वामदलों ने लिया है।
वामदलों की इस बैठक में भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, सहसचिव का॰ अरविंदराज स्वरूप, भाकपा(मा॰) के राज्य सचिव
डा॰ हीरालाल यादव एवं भाकपा- माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव के अतिरिक्त कई प्रमुख
नेता उपस्थित थे।
जारी द्वारा
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019
at 7:02 pm | 0 comments |
Left Parties statement on Police atrocities on agitator
प्रकाशनार्थ
नागरिकता कानून के खिलाफ आंदोलन को कुचलने की उत्तर प्रदेश और केन्द्र
सरकार की दमनकारी कार्यवाहियों की वामपंथी दलों ने निंदा की।
गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा करने की मांग
की वामदलों ने ।
जनता से की शांति और सौहार्द बनाये रखने की अपील।
सरकार फौरन राजनैतिक दलों और आंदोलनकारियों से संवाद
कायम करे।
राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय से संज्ञान लेकर सामान्य स्थिति कायम
करने हेतु पहलकदमी की अपील की।
लखनऊ- 20 दिसंबर
2019, वामपंथी दलों ने नागरिकता संशोधन कानून ( CAA ) एवं राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर ( NRC ) के खिलाफ
कल हुये आंदोलन के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार के घोर तानाशाहीपूर्ण और दमनकारी रवैये
की कठोर शब्दों में निन्दा की है।
यहां जारी
एक संयुक्त बयान में वामपंथी दलों ने कहा कि वामपंथी दलों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ
शान्तिपूर्ण और लोकतान्त्रिक ढंग से राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था जिसको
तमाम जनवादी शक्तियों ने समर्थन प्रदान किया था।
लेकिन उत्तर
प्रदेश सरकार ने घोर तानाशाही का परिचय देते हुये आंदोलन को कुचलने की हर संभव कोशिश
की। लोकतन्त्र में विपक्षी दल जनता के आक्रोश को सेफ़्टी वाल्व की तरह निष्प्रभावी करने
का काम करते हैं, लेकिन राज्य सरकार ने विरोधी दलों को निशाना बनाते हुये आंदोलन को कुचलने
के लिये सारी शासकीय मशीनरी मैदान में उतार दी। सारे प्रदेश में दफा 144 लगा दीगई।
प्रदेश भर में राजनैतिक दलों के नेताओं को CrPC की धारा 149 के
तहत नोटिस देकर पाबंद किया गया और उनको देशद्रोह के तहत बंद करने की धमकियाँ दी गईं।
राजनैतिक दलों के कार्यालयों पर पुलिस ने बार बार छापेमारी की। लखनऊ में भाकपा के कार्यालय
में बिना इजाजत के पुलिस राज्य सचिव के आवास में घुस गयी और बाथरूम तक जापहुंची। नेत्रत्वकारी
साथियों के वहां न मिलने पर पुलिस देशद्रोह में बंद करने की धमकियाँ देकर चली गयी।
प्रशासन और सरकार ने इन्टरनेट सेवाएँ समाप्त करके जिम्मेदार राजनैतिक दलों और अवाम
के बीच आवश्यक संवाद खत्म कर दिया है।
सीएए और एनआरसी
के खिलाफ जनता में भारी गुस्सा था और राजनैतिक दलों के नेताओं के खिलाफ कार्यवाही की
खबरों से जनता में आक्रोश पनपता रहा। पुलिस राजनैतिक दलों की घेरेबंदी करती रही और
राजधानी लखनऊ में पुलिस की घेरेबंदी को तोड़ कर हजारों हजार लोग परिवर्तन चौक पर एकत्रित
होगये। जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही नेत्रत्वविहीन भीड़ को हटाने में पुलिस नाकामयाब
रही तब संदिग्ध किस्म के लोगों ने व्यापक संख्या में उपस्थित पुलिस के समक्ष तोडफोड, पथराव और आगजनी की। तब भीड़ भी
वहाँ से चली गयी। एक युवक गंभीर रूप से घायल होगया और उसकी दुर्भाग्यपूर्ण मौत होगयी।
प्रदेश के
अनेक जिलों में वामपंथी और अन्य दलों के कार्यकर्ताओं को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते
हुये गिरफ्तार किया गया। वाराणसी में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे वामदलों
के 67 नेताओं और कार्यकर्ताओं को संगीन दफाओं में जेल भेज दिया गया। लखनऊ में 32 लोग
जिनमें अधिकतर युवा हैं को भी संगीन दफाओं में गिरफ्तार किया गया है। राजनैतिक और नागरिक
समाज के लोगों को गिरफ्तार किया जारहा है। मुख्यमंत्री अब भी लोगों को परिणाम भुगतने
की धमकियाँ देरहे हैं। इससे जनता का आक्रोश निरंतर बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश के तमाम
जिलों में आज भी पुलिस और आंदोलनकारी आमने सामने हैं। पुलिस की कार्यवाही और गोलीबारी
से कानपुर सहित तमाम जगह लोग घायल हुये हैं। पुलिस के साथ सरकार समर्थक तत्व भी दमन
की कार्यवाहियों में लिप्त हैं। समूचे आंदोलन को सांप्रदायिक स्वरूप देने की साजिशें
सरकार और संघ की ओर से चल रही हैं।
भाजपा और उसकी
सरकारों की निहितस्वार्थपूर्ण और घ्रणित राजनीति
के चलते देश और प्रदेश बड़े संकट में फंस गया है, जिसको तत्काल संभालना जरूरी होगया है।
वामपंथी दलों
ने तमाम लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की है। वामदलों ने उत्तर प्रदेश सरकार से
कहा कि वह दमन का रास्ता छोड़े और आंदोलनकारियों एवं राजनैतिक दलों से संवाद कायम करें।
वामदलों ने
वाराणसी, लखनऊ और
अन्य जगह गिरफ्तार वामपंथी एवं लोकतान्त्रिक ढंग से प्रदर्शन करने वालों को तत्काल
रिहा करने की मांग की है।
वामदलों ने
महामहिम राष्ट्रपति एवं सर्वोच्च न्यायालय से इन संगीन हालातों में स्वतः संज्ञान लेकर
गतिरोध समाप्त कर शांति स्थापित करने को आवश्यक कदम उठाने की अपील की है।
यह बयान भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) के राज्य सचिव का॰ हीरालाल यादव, भाकपा माले- लिबरेशन के राज्य सचिव का॰ सुधाकर यादव, लोकतान्त्रिक जनता दल( यू ) के प्रदेश अध्यक्ष जुबेर अहमद, भाकपा के राज्य सहसचिव का॰ अरविंद राज स्वरूप, का॰ फूलचंद
यादव, माकपा के का॰ प्रेमनाथ राय एवं का॰ दीनानाथ यादव, माले के का॰ रमेश सिंह सेंगर ने जारी किया है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
सोमवार, 16 दिसंबर 2019
at 6:05 pm | 0 comments |
CPI, U.P. on CAA
CAA, NRC और और आंदोलनकारी छात्रों- नागरिकों पर दमनचक्र
के खिलाफ 19 दिसंबर को सड़कों पर उतरेंगे वामपंथी दल: भाकपा लखनऊ-
16 दिसंबर 2019, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने आसाम, जामिया और
एएमयू और अन्य कई जगह नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ नागरिक और छात्र आंदोलनकारियों
पर पुलिस अत्याचारों की कड़े से कड़े शब्दों में निन्दा की है और इस दमन के लिये सीधे
तौर पर भाजपा और उसकी सरकारों को जिम्मेदार ठहराया है। भाकपा ने आसाम के चार म्रतक
आंदोलनकारियों के प्रति श्रध्दांजलि देते हुये घायल छात्रों के प्रति सहानुभूति प्रकट
की है। भाकपा ने घायल छात्रों और नागरिकों की चिकित्सा सरकारी खर्च से दिये जाने की
मांग की है।
भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि संविधान और
लोकतन्त्र विरोधी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के हर राज्य में और दो दर्जन
से अधिक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों
जिनमें बीएचयू भी शामिल है में छात्र आंदोलन कर रहे हैं और मोदी शाह योगी की पुलिस
उन पर जो जुल्म ढारही है उससे अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार पीछे रह गये हैं। लड़कियों
तक को पुरुष पुलिस धुन रही है। इसके विरोध में दिल्ली से लेकर देश के चप्पे चप्पे पर
जन समुदाय सड़कों पर उतर रहा है। पिछले साढ़े पाँच सालों में अंजाम दिये गये विभाजनकारी
कारनामों और महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे जनविरोधी कामों
से जनता के मनों में संग्रहीत आक्रोश आज एक बड़े आंदोलन का रूप ले रहा है।
सामाजिक विभाजन और संकीर्ण राजनेतिक उद्देश्यों से पास
कराये गये इस कानून के बाद भड़के आंदोलन में आज़ादी के आंदोलन सरीखी एकता कायम हुयी है।
मोदी- शाह और भाजपा की सरकारें इससे बौखलाई हुयी हैं और दमन के बल पर आंदोलन को कुचलना
चाहती हैं।
डा॰ गिरीश ने कहाकि छात्रों एवं नागरिकों पर चलाये जारहे
इस दमन चक्र को वामपंथी दलों ने गंभीरता से लिया है। वामपंथी दलों ने नागरिकता संशोधन
कानून, सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर एवं छात्रों और नागरिकों
पर अत्याचार के खिलाफ 19 दिसंबर को सारे देश और उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करने
का निश्चय किया है।
भाकपा ने सभी वामपंथी पार्टियों, समूहों व सभी लोकतान्त्रिक शक्तियों और शख्सियतों से आंदोलन में शामिल होने
की अपील की है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
बुधवार, 4 दिसंबर 2019
at 1:49 pm | 0 comments |
On Ayodhya
अयोध्या-
सर्वोच्च
न्यायालय ने फैसला सुनाया है, समाधान अभी बाकी है
सर्वोच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ द्वारा राम जन्मभूमि-
बाबरी मस्जिद विवाद पर 9 नवंबर 2019 को एकमत से दिये गये फैसले के पक्ष और विपक्ष
में जब देश भर में बहस छिड़ी हुयी है, भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के एक उच्च स्तरीय
प्रतिनिधिमंडल ने 28 नवंबर को फैजाबाद/ अयोध्या पहुंच कर फैसले के बाद वहां विवाद से
जुड़े पक्षों, प्रबुध्द जनों और आमजनों से उनके सोच और हालात
की जानकारी ली।
अपने एक दिवसीय दौरे में भाकपा प्रतिनिधिमंडल ने
तमाम लोगों से भेंट की। उनमें कोर्ट में श्री राम जन्म भूमि के प्रमुख पक्षकार और निर्मोही
अखाड़ा के महंत दिनेन्द्र दास, बाबरी मस्जिद के पक्षकार श्री
इकबाल अंसारी, सूरज कुंज मन्दिर के महन्त श्री जुगल किशोर
शास्त्री एवं दैनिक जनमोर्चा के स्थानीय संपादक श्री क्रष्ण प्रताप सिंह आदि
प्रमुख थे। प्रतिनिधिमंडल की भेंट बाबरी मस्जिद के एक और पक्षकार हाजी महबूब से भी
होनी थी पर तय समय पर उनके अन्यत्र व्यस्त होजाने के कारण यह भेंट नहीं होसकी।
देश भर के राम जन्मभूमि आंदोलन के समर्थक सर्वोच
न्यायालय के इस फैसले से गदगद हैं और इसे हिंदूराज स्थापित करने की दिशा में एक
मास्टर स्ट्रोक मान कर चल रहे हैं। वहीं अन्य असंख्य हैं जो इस फैसले को तथ्यों, सबूतों और कानून के शासन के ऊपर आस्था और विश्वास की विजय मान रहे हैं। उनका
आरोप है कि जिन हिंसक अपराधियों ने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा
दिया और जिन्होने 1949 में ढांचे के भीतर मूर्तियाँ घुसाईं, को
सर्वोच्च न्यायालय ने पुरुष्क्रत किया है। इस निर्णय ने हमारे संविधान में विहित
देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे की अवधारणा की अवहेलना की है।
देश भर में चल रहे इस विचार मंथन से अन्यमनस्क
अयोध्या यद्यपि ‘न खुशी न गम’
के स्थायी भाव में मस्त जान पड़ती है लेकिन गहराई में जाने पर पता चलता है कि ऊपर
से शांत तालाब की तलहटी में भारी हलचल मौजूद है। वह इस मुद्दे पर देश भर के
सरोकारों से कम, अपने अंदर के सरोकारों से ज्यादा जूझती नजर
आती है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के तीन सप्ताह बीत
जाने के बाद भी भारी बेरीकेडिंग और तैनात पुलिस बलों से आच्छादित अयोध्या में
श्रध्दालुओं के आवागमन में कोई कमी नहीं आयी अपितु एक महन्त जी के अनुसार यह 1985 –
90 की तुलना में कई गुना बढ़ी है। मन्दिर आंदोलन ने अयोध्या को काशी और मथुरा की
तरह आस्थावानों की प्रमुख पसन्द बना दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद
श्रध्दालुओं की आमद में और इजाफा हुआ है और आम दुकानदार और पंडे- पुजारी इससे बेहद
खुश हैं। वहीं एक चायखाना चलाने वाली महिला
की प्रातिक्रिया थी कि जिन लोगों के कारण अयोध्या को बार बार पाबंदियां और कर्फ़्यू
झेलने पड़ते हैं और गरीबों की रोजी- रोटी पर बन आती है, वे अब भी चुप बैठने वाले नहीं हैं। वह गरीब महिला अब भी मौजूद भारी
वैरीकेडिंग पर भी सवाल उठाती है।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमात ए इस्लामी जैसे
संगठन जहां सर्वोच्च न्यायालय में रिव्यू याचिका दायर करने की घोषणा कर चुके हैं और
जमीयत उलमा –ए- हिन्द ने तो अब रिव्यू याचिका दायर भी कर दी है। पर बाबरी मस्जिद
के मुद्दई हाजी इकबाल अंसारी मीडिया के समक्ष दो टूक कहते हैं ‘ मुद्दा खत्म होगया, पिटीशन से मतभेद पैदा होंगे।‘ उन्हीं के आवास पर मीडियाकर्मियों द्वारा भाकपा प्रतिनिधिमंडल से इस
मुद्दे पर पूछे जाने पर भाकपा प्रतिनिधिमंडल ने जब स्पष्ट कहाकि रिट पिटीशन में
जाना किसी का भी संवैधानिक अधिकार है तो उन्होने इसका विरोध भी नहीं किया। वे एक
सीधे सादे इन्सान जान पड़े।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाबरी मस्जिद पक्ष को 5
एकड़ जमीन देने के मामले पर भी भिन्न भिन्न रायें दिखीं। कुछ हैं जो जमीन लेने के
पक्ष में नहीं हैं। कई अन्य सुझाव हवा में तैर रहे हैं। पर इकबाल अंसारी साहब ने मुहिम
छेड़ दी है कि उनके घर के सामने स्थित जमीन सरकार दे और उस पर महिलाओं के लिये एक
कौमी एकता अस्पताल खोला जाये। ज्ञात हो कि राम की इस नगरी में महिलाओं के लिये न
तो कोई सरकारी अस्पताल है और न ही किसी अस्पताल में महिला चिकित्सक की तैनाती है।
ऐसे में महिलाओं को इलाज और प्रसव के लिये या तो नगर से बाहर जाना होता है या फिर
महंगे और लुटेरे किस्म के निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है।
ऐसे में इकबाल अंसारी की इस मुहिम को बल मिल सकता
है। भाकपा की स्थानीय इकाई महिला चिकित्सालय के निर्माण और सरकारी अस्पतालों में
महिला चिकित्सक की तैनाती के लिये निरंतर आंदोलन चला रही है। यह आश्चर्यजनक ही है
कि जो सरकार अयोध्या में विशाल मूर्तियों के निर्माण और दीपोत्सवों पर जनता की
गाड़ी कमाई का अरबों रुपये फूँक रही है वह महिलाओं की चिकित्सा के सवाल से बेशर्मी
से मुंह मोड़े हुये है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार सरकार द्वारा
गठित किये जाने वाले ट्रस्ट पर आधिपत्य जमाने और उसमें जगह पाने लिये विभिन्न
पक्षों में चल रही प्रतिस्पर्धा के बीच निर्मोही अखाड़े के महन्त श्री दिनेन्द्र
दास ने बहुत सध कर अपनी प्रतिक्रिया दी। कहा कि निर्मोही अखाड़े ने तो सबसे पहले
मुकदमा लड़ा। अखाड़े ने मुकदमे के लिये जमीन तक बेच दी। वे बताते हैं कि अखाडा परिषद
के निर्णय के बाद इसके पंचों से प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा है। विश्व
हिन्दू परिषद द्वारा मन्दिर निर्माण के लिये एकत्रित धन, मन्दिर के उसके माडल और तराशे पत्थरों को सरकार को सौंपने के सवाल पर वे
कहते हैं कि रामजी का पैसा है, विहिप को स्वयं देदेना
चाहिये। अगर नहीं तो सरकार निर्णय लेगी। मन्दिर निर्माण का प्रश्न राजनीति से अलग
रहना चाहिये। यह पूछे जाने पर कि निर्णय हुआ है समाधान नहीं हुआ, वे कहते हैं कि 95 प्रतिशत ठीक होचुका है।
बैरीकेडिंग के चलते भाकपा प्रतिनिधिमंडल सूरज कुंज
मन्दिर नहीं पहुंच सका। लेकिन उसके महन्त जुगल किशोर शास्त्री ने सदाशयता का परिचय
दिया और वे प्रतिनिधिमंडल से मिलने मुख्य सड़क तक चल कर आगये। वहीं एक महिला द्वारा
संचालित छोटे से चाय खाने पर उनसे बेवाक चर्चा हुयी।
वे धारा प्रवाह बोलने लगे- ‘हिन्दू बंटा हुआ है, उसमें दलित वर्ग अलग है जो इन
झमेलों से परेशानी महसूस करता है, पर वो बोल नहीं सकता, वो कमजोर हैं, विश्व हिन्दू परिषद का माहौल पहले से
कम हुआ है, आस्था संविधान सम्मत नहीं है, राष्ट्रवाद संकीर्ण सोच है, महंतों में निजी हितों
की लड़ाई है, नेपाल में विकास हुआ है,
असल लड़ाई हक- हकूक की है, कम्युनिस्ट उसीको लड़ते हैं, वे किसी संकीर्णता में नहीं।‘
वे बिना रुके बोलते जाते हैं- ‘ मुसलमानों के साथ न्याय नहीं होता, हमेशा मुसलमानों
को दबाने का प्रयास किया जाता है, मुसलमानों पर जुल्म आगे भी
बढ़ेगा, इसका प्रतिकार करना चाहिए,
निर्णय का विरोध होना चाहिये, यह विरोध संविधान सम्मत है, हम कम्युनिस्टों को पसंद करते हैं,’ आदि।
स्थानीय समाचार पत्र जनमोर्चा कार्यालय में अपने
कार्य में मशगूल संपादक क्रष्ण प्रताप सिंह से चर्चा हुयी तो लगा कि वे महन्त जुगल
किशोर शास्त्री की बात को ही आगे बढ़ा रहे हैं। वे कहते हैं- ‘ स्वीकार कर लेना चाहिये कि हिन्दू राष्ट्र बन चुका है, फैसला आया तो तमाम हिन्दू खुश थे, मामला केवल
मंदिर- मस्जिद का नहीं था, सवाल मुसलमान की हैसियत दोयम
दर्जे की बनाने का है, यह आगे भी चलेगा, प्रधानमंत्री ने झारखंड में भाषण दिया कि 60 साल पुराना विवाद हमने 6 माह
में निपटा दिया, यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना है, इससे लंबी लड़ाई लड़नी ही होगी, जितनी ज्यादा लड़ाई हम
लड़ लेंगे हमारी संतानों को उतनी ही कम लड़नी पड़ेगी,’ आदि।
मंदिर निर्माण की आगे की तस्वीर के बारे में वे
इतना ही कहते हैं- ‘ हिन्दू धर्म के ठेकेदारों में लड़ाई
होगी, ट्रस्ट गठन का मामला कोर्ट में जा सकता है।‘
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी तमाम झगड़े
टंटों में उलझी है अयोध्या।
भाकपा के इस प्रतिनिधिमंडल में इन पक्तियों के लेखक
के अतिरिक्त भाकपा फैजाबाद के जिला सचिव का॰ रामतीरथ पाठक, राज्य काउंसिल के सदस्य का॰ अशोक तिवारी, उत्तर
प्रदेश नौजवान सभा के अध्यक्ष का॰ विनय पाठक, भाकपा अयोध्या
के वरिष्ठ नेता का॰ संपूर्णानन्द बाजपेयी, नगर सचिव का॰ ब्रजेन्द्र
श्रीवास्तव, वरिष्ठ भाकपा नेता का॰ सूर्यकांत पाण्डेय एवं
खेत मजदूर यूनियन के वरिष्ठ नेता का॰ अखिलेश चतुर्वेदी शामिल थे।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव दिनांक- 4 दिसंबर 2019
भाकपा, उत्तर प्रदेश
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
at 6:23 pm | 0 comments |
CPI on Price rise and atrocity on women
प्रकाशनार्थ-
मोबायल नेटवर्क, रसोई गैस और आम महंगाई तथा महिला हिंसा
के खिलाफ
प्रदेश भर में प्रतिरोध जतायेगी भाकपा
लखनऊ- 2 दिसंबर 2019, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने मोबायल नेटवर्क कंपनियों द्वारा मोबायल फोन का बिल 42
प्रतिशत तक महंगा करने, गैर सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेन्डर की
कीमतों में रुपये 13. 50 की व्रद्धि और वाराणसी सहित 6 एयरपोर्ट के निजीकरण के फैसलों
की कड़े शब्दों में निन्दा की है।
भाकपा ने हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक के साथ बर्बरता
और हत्या की भी कठोरतम शब्दों में निन्दा की। महिला हिंसा की वारदातों में अचानक बढ़ोत्तरी
पर भी भाकपा ने गहरी चिन्ता जताई है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश
ने कहाकि टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया करों को अदा करने का निर्देश सर्वोच्च न्यायालय
ने कंपनियों को दिया था। सरकार ने उनके असमर्थता प्रकट करने पर उन्हें राहत प्रदान
करने का आश्वासन दिया था। लेकिन दोनों ने मिल कर सारा भार उपभोक्ताओं पर लाद दिया है।
प्याज की आसमान छूती कीमतों, अन्य चीजों की महंगाई और आर्थिक मंदी की मार से जनता पहले ही लहूलुहान है।
इस पर गैस और मोबायल नेटवर्क की महंगाई से जनता की तकलीफ़ें और बढ़ जाएंगी। आज मोबायल
गरीब लोगों की अहम जरूरत बन गया है। इसी तरह निजीकरण की मार भी जनता पर पढ़ रही है।
निजी बैंकों और कंपनियों को लाभ पहुँचाने को वाहन स्वामियों पर फास्ट टेग लागू किया
जारहा है और एयरपोर्ट्स को लेने वाली निजी कंपनियाँ जनता पर भार शिफ्ट कर रही हैं।
भाकपा इस सब पर कड़ा विरोध जताती रही है। भाकपा ने उत्तर
प्रदेश में अपनी जिला इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे प्याज और दूसरी वस्तुओं की
महंगाई, आये दिन पेट्रोल डीजल की कीमतों में
होने वाली व्रद्धि, मोबायल नेटवर्क और गैस की कीमतों में व्रद्धि, निजीकरण, महिला हिंसा और बिगड़ती कानून व्यवस्था और वाहन
चालकों पर फास्ट टेग थोपने तथा अन्य ज्वलंत सवालों पर एक साथ अथवा अलग अलग दिन प्रतिरोध
जताएं और ज्ञापन दें।
भाकपा की स्पष्ट राय है कि इन सवालों पर तत्काल और निरंतर
आंदोलन की जरूरत है तभी विभाजनकारी और जनविरोधी सरकारों के पैरों में बेड़ियाँ डाली
जा सकती हैं।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
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