भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

घर वापसी के आईने में- सरकार और उसके निर्णय : डा॰ गिरीश




आखिर प्रवासी मजदूरों, छात्रों और जहां तहां फंसे तीर्थ यात्रियों की घर वापसी का फैसला सरकार द्वारा ले लिया गया जिसका बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा था। दिग्भ्रमित शासन ने जो कदम अब उठाया है वह 40 दिन पहले उठाया जाना चाहिये था। पर यह सरकार आपरेशन पहले करती है एनेस्थिया बाद में देती है। इससे मरीज का जो हाल होना है, आसानी से समझा जा सकता है। नोटबंदी सहित सरकार के इसी तरह के कई फैसले अवाम के लिये बेहद पीड़ा दायक रहे हैं, ये आज सभी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि यह बात आज पहली बार कही जारही है। ऐसे लोगों की कमी न थी जो पहले ही दिन से बिना तैयारी के किये गये लाक डाउन की आलोचना कर रहे थे। खासतौर से इसलिये कि अचानक और पूर्व तैयारी के लिये गये इस तुगलकी निर्णय ने करोड़ों- करोड़ मेहनतकशों, उनके परिवार और रिशतेदारों, लाखों प्रवासी छात्रों और असंख्य पर्यटकों/ श्रध्दालुओं को पलक झपकते ही जीवन के सबसे बड़े संकट में डाल दिया था।
कोई शायद ही भूला हो कि चीन के बुहान से उद्भूत कोविड- 19 ने जनवरी के अंत तक यूरोप अमेरिका और अन्य अनेक देशों में दस्तक दे दी थी। भारत में भी यह फरबरी के शुरू में ही प्रकट हो चुका था। लेकिन यह भी कोई शायद ही भूला हो कि जिस वक्त कोरोना भारत में अपने कदम बड़ा रहा था, भारत के मगरूर शासक श्री ट्रंप की मेहमाननवाजी में जुटे थे जो खुद अपने देश की जनता को कोरोना के हाथों मरता छोड़ भारत में घूम रहे थे। कोरोना से निपटने की तैयारी करने के वक्त हमारे शासक मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार  को अपदस्थ करने में जुटे थे। अल्पसंख्यकों से सीएए- एनपीआर- एनआरसी विरोधी आंदोलन का बदला चुकाने को दिल्ली के दंगों में हाथ आज़मा रहे थे।
यह तब भी मालूम था और आज भी कि कोविड- 2019 का आयात हवा- पानी से नहीं अपितु विदेशों से लौट रहे कुलीन वर्ग के माध्यम से हो रहा है। लेकिन तब यह सरकार क्यों नहीं चेती और क्यों विदेशों से लौट रहे संप्रभुओं को क्वारंटाइन नहीं किया, यह आज कोई अबूझ पहेली नहीं है। लोग व्योम मार्ग से आते रहे, लाये जाते रहे है और मामूली खाना- पूरी करके घरों को भेजे जाते रहे। इनमें से अधिकतर उद्योगपति, व्यापारी, डाक्टर्स, इंजीनियर्स और अधिकारी थे। अगले ही दिन से ही ये महानुभाव अपने कार्यस्थलों पर सक्रिय होगये और बड़े पैमाने पर वायरस को इन्हीं ने फैलाया। याद करिये कि लाक डाउन लागू होने के प्रारंभ के तीन दिनों तक तबलीगी जमात कोई मुद्दा नहीं था। सोची समझी रणनीति के तहत यह मुद्दा तब उछाला गया जब खुली जेलों में बंद प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर आए।
फरवरी के प्रारंभ में जिस तरह से विदेशों में फंसे कुलीनों को घर पहुंचाने की तत्परता दिखाई गयी, ऐसी ही तत्परता इस मामले में भी दिखाई गयी होती तो मजदूरों कर्मचारियों, छात्रों, पर्यटकों और जहां तहां फंसे अन्य लोगों की यह दर्दनाक दशा न होती। स्पेशल ट्रेन चला कर बसों के द्वारा अथवा अन्य साधनों से उन्हें फरबरी के मध्य तक घरों को भेजा जा सकता था। हम बार बार कहते आए हैं कि उन्हें उनके घर पहुंचने पर क्वारंटाइन किया जा सकता था। इससे प्रवास में फंसे करोड़ों प्रवासी अंडमान जेल जैसे काले पानी की सजा से बच जाते। उनके परिवारी भी उस यातना से बच जाते जो उन्होने संकट की इस घड़ी में अपनों के बिना और अर्थभाव में झेली है।
बंबई, हैदराबाद, सूरत, चेन्नई, दिल्ली, नोएडा, बनारस, हरिद्वार और देश के कोने कोने में फंसे प्रवासीजन भूख, भय, उपेक्षा, यातना और कैद की जिन्दगी जीने को अभिशप्त थे। जब भी वे यातनाओं की जंजीरों को तोड़ कर सड़कों पर उतरे उन्हें लाठियों से पीटा गया, खदेड़ा गया और जेलों में डाल दिया गया। उसके बावजूद उनमें से अनेक- स्त्री, बच्चे, बुजुर्ग पैदल, साइकिल, रिक्शों से हजारों किलो मीटर की दूरी पार कर घरों को निकल लिये। उनमें से अनेक ने भूख, प्यास और बीमारी के चलते घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। असंख्य थे जिन्हें राज्यों की सीमाओं पर रोक दिया गया। अथवा जहां पुलिस के हत्थे चड़े, बीच मार्ग में क्वारंटाइन कर दिया गया। लग ही नहीं रहा था कि वे इसी देश के वही मजदूर हैं जो इस देश के लिये दौलत पैदा करते हैं और उनकी दुर्गति बनाने वाली सरकार वही है जिसे बनाने को उन्होने भी मतदान किया है।
इस बीच हरिद्वार से गुजराती पर्यटकों, वाराणसी से दक्षिण भारतीय पर्यटकों और कोटा से छात्रों को घर पहुंचाने की खबरें गरीब और साधारण प्रवासियों को उनकी बेबसी की याद दिलाती रहीं। अनेक थे जो अलग अलग कारणो से प्रवास में फंसे थे। झारखंड से आयी एक बारात पूरे एक माह तक अलीगढ़ जनपद के एक गाँव में फंसी रही। कोई नहीं समझ पारहा था कि जिस तालाबंदी की घोषणा 22 फरबरी को की गयी, उसकी पूर्व सूचना एक माह पूर्व क्यों नहीं दे दी गयी।
यदि लोगों को सप्ताह भर पहले आगाह किया गया होता और अतिरिक्त रेल गाडियाँ चला दी गईं होतीं तो निश्चय ही लोग सकुशल घरों तक पहुँच गये होते। हमें मालूम है कि बंगला देश और कई अन्य देशों ने ऐसा ही किया था। अगर ऐसा हुआ होता तो पहले ही घर पहुँच कर ग्रामीण मजदूर फसल कटाई करके जीवनयापन हेतु कुछ कमाई तो कर ही सकते थे बार बार बदल रहे मौसम से फसलों की हानि को उसकी कटाई कम कर सकते थे। आज वे जब घर पहुंचेंगे उन्हें लंबे समय तक बेरोजगारी और भूख के दंश को झेलना पड़ेगा।
बेहद देर से लिया गया यह फैसला प्रवासियों के उस आक्रोश का परिणाम है जो अनेक रूपों में प्रकट होरहा था। उन्हें वापस लाने के लिये तमाम सांसदों, विधायकों और अन्य जन प्रतिनिधियों पर उनके क्षेत्र की जनता का दबाव लगातार बढ़ रहा था। थाली, ताली और आतिशबाजियों के माध्यम से रचा कुहासा जीवन की बढ़ती कठिनाइयों से छंटने लगा था। कोरोना फैलाने की जमातियों के ऊपर मढ़ी गयी तोहमत भी कालक्रम से धूमिल होने लगी थी।
इतना ही नहीं बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूर और छात्र सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने लगे थे। विपक्षी दल खास कर वामपंथी दल प्रवासियों को उनके घरों को पहुंचाने के लिये लगातार मुखरित होरहे थे। अतएव जनाक्रोश से बचने को कई मुख्यमंत्री अपने यहाँ के प्रवासियों को वापस लाने की योजना बनाने में जुट गये थे। सतह के नीचे ही सही शासक दल में दो फाड़ नजर आने लगे थे।
अब इन्हें घरों तक पहुंचाने/ लाने की कठिन चुनौती दरपेश है। उन्हें मानवीय हालातों में क्वारंटाइन में रखे जाने की चुनौती है। उनके इलाज और उनके परिवारों के भरण- पोषण की चुनौती है। उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती है। कोविड 2019 का वायरस आया है और चला जायेगा, पर भूख, अभाव और बेकारी का यह वायरस लंबे समय तक हमें चुनौती देता रहेगा। हम देख रहे हैं कि शासन और शासक वर्ग की नीतियाँ और कारगुजारियाँ लगातार बेनकाव होरही हैं। अतएव हमें एक न्यायसंगत सामाजिक- आर्थिक प्रणाली के निर्माण पर ज़ोर देना होगा। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस- मई दिवस पर हमें एक विश्वसनीय और सर्वग्राही आर्थिक- सामाजिक प्रणाली को विकसित करने के संकल्प को द्रढ़ करना होगा।
दिनांक- 30- 4 2020


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बुधवार, 29 अप्रैल 2020

भाकपा राज्य सचिव ने मुख्यमंत्री जी एवं डीजीपी को लिखा पत्र तो दर्ज हुयी एफ़आईआर


पांच दिन पूर्व जनपद- कुशीनगर में यह शर्मनाक कांड हुआ था। स्थानीय सत्तासीनों के प्रभाव के चलते रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी थी। फलतः आज पूर्वान्ह यह पत्र लिखा गया था और ईमेल द्वारा भेजा गया था। भाकपा जनपद कुशीनगर के सचिव का॰ मोहन गौड ने अभी सायंकाल सूचना दी कि आज अपरान्ह एफ़आईआर दर्ज कर ली गयी। उन्होने एफ़आईआर की कापी भी वाट्स एप पर भेजी है।
मुख्यमंत्री जी एवं डीजीपी महोदय को बहुत बहुत धन्यवाद इस विश्वास के साथ कि शीघ्र ही नामजदों की गिरफ्तारी होगी और पीड़ितों को न्याय मिलेगा।

 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल
22, केसर बाग, लखनऊ- 226001

दिनांक- 29 अप्रेल 2020

सेवामें
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
लखनऊ- 226001

विषय- जनपद- कुशीनगर के पटहेरवा थानान्तर्गत बाडू चौराहे स्थित जोया एंटरप्राइजेज़ ग्राहक सेवा केन्द्र पर हमले, तोडफोड, मारपीट और लूटपाट के संबंध में।
( By- email )

महोदय,
आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि कोरोना काल असामाजिक तत्वों के लिये अपराधों को अंजाम देने का अवसर बन गया है। उनमें से कई हैं जो शासक दल अथवा उससे जुड़े किसी संगठन की आड़ में अपराधों में लिप्त हैं और सत्ता दल के प्रभाव से आवश्यक कानूनी कार्यवाहियों से बचे हुये हैं।
संप्रति मामला जनपद- कुशीनगर के पटहेरवा थाने के अंतर्गत बाड़ू चौराहे का है। यहाँ उत्तर प्रदेश किसान सभा के जिला मंत्री और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की जिला काउंसिल के सदस्य कामरेड समसुद्दीन अंसारी जोया इंटरप्राइजेज़ नाम से ग्राहक सेवा केंद्र चलाते हैं। अपने कम्युनिस्ट विचारों और नैतिक आचरण के चलते वे हमेशा स्थानीय भगवाधारियों के निशाने पर रहते हैं।
गत 24 अप्रेल को 30- 35 की संख्या में नामजद स्थानीय भगवधारियों ने जो अपने को हिन्दू युवा वाहिनी के पदाधिकारी बताते हैं, ने जोया इंटरप्राइजेज़ पर हमला बोल दिया। उन्होने सेवा केन्द्र में घुसकर तोडफोड की, कंप्यूटर आदि उपकरण तोड़ डाले, वहां रखी धनराशि हड़प ली और कामरेड समसुद्दीन और उनके बेटे इस्तखार अंसारी पर जानलेवा हमला किया जिसमें वे घायल होगये।
इस संबंध में समसुद्दीन अंसारी ने तत्काल पुलिस को सूचना दी और थाना- पटहेरवा जाकर लिखित शिकायत की। लेकिन उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। उसके बाद समसुद्दीन ने पुलिस अधीक्षक, कुशीनगर सहित तमाम उच्चाधिकारियों से फोन पर वार्ता कर और वाट्स एप मेसेज भेज कर कार्यवाही की मांग की लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही तो दूर उनकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की गयी है। उलटे उन पर दबाव बनाया जारहा है कि वे तहरीर से नामजद लोगों के नाम हटा दें और घटना का विवरण बदल दें।
कोरोना संकट के समय जब सेवा केन्द्र गरीब और आम जनता की वाकई सेवा कर रहे हैं ऐसे में उन पर हमला देशद्रोह की श्रेणी में आता है। लेकिन घटना को अंजाम देने वालों पर कार्यवाही से स्थानीय पुलिस इसलिए बच रही है कि नामजद लोग सत्तासीन समूह से संबंधित हैं। इससे न्याय के सिध्दांत का गला तो दब ही रहा है सत्ता प्रतिष्ठान की निरपेक्षता भी कठघरे में खड़ी होरही है।
अतएव आपसे अनुरोध है कि उपर्युक्त के संबंध में शीघ्र समुचित कार्यवाही के आदेश पारित करें।
शीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा के साथ।

भवदीय

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर प्रदेश
प्रतिलिपि-

1-  महानिदेशक, उत्तर प्रदेश पुलिस, लखनऊ।
2-  वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जनपद- कुशीनगर।


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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

मौसम की मार से पीड़ित किसानो को तत्काल राहत दे सरकार: भाकपा




लखनऊ- 27 अप्रेल 2020, उत्तर प्रदेश के अधिकतम भागों में कल और उससे पहले कई बार हुयी बारिश, आंधी, ओलों और बिजली गिरने से हुयी फसल और जनहानि पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मण्डल ने राज्य सरकार से त्वरित समुचित कदम उठाने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव मण्डल ने कहा कि प्राक्रतिक प्रकोपों से गेहूं व जायद की फसलों और आम आदि फलों का भारी नुकसान हुआ है। बिजली गिरने से कई जानें गयी हैं और अन्य अनेक घायल हुये हैं। बिजली के खंभे गिर जाने से विद्युत सप्लाई बाधित होने से फसल की मड़ाई का काम बाधित हुआ है।
भाकपा मुख्यमंत्री के संज्ञान में यह भी लाना चाहती है कि किसानों से खरीद केन्द्रों पर बारिश से भीगा गेहूं नहीं खरीदा जारहा है। फलतः किसानों को कम दामों पर बाज़ार में गेहूं बेचना पड़ रहा है। खरीद केन्द्रों से साथ के साथ भुगतान भी बहुत कम किसानों को मिल पारहा है। खरीद केन्द्र पर गेहूं लाने के लिये प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। लाकड़ाउन की कठिनाइयाँ झेल रहे किसान को ऊपर से ये सारी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ रही हैं।
भाकपा सरकार से मांग करती है कि फसल हानि की जहां जितनी हानि, वहीं उतना भुगतान के आधार पर भरपाई की जाये, भीग चुके गेहूं की अलग खरीद के आदेश दिये जायें तथा खरीद का हाथ के हाथ भुगतान की व्यवस्था की जाये ताकि किसान प्रायवेट क्रेताओं के हाथों लुटने से बच सकें। साथ ही किसान- कर्ज 1 प्रतिशत की दर पर करने, पूर्व से चल रहे बकायों को स्थगित रखने और किसान अनुग्रह राशि रु॰ 12,000 सालाना करने की जरूरत है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सक्रिय होगी।
बिजली गिरने से म्रतकों और घायलों को आर्थिक सहायता और बिजली के सभी जीर्ण शीर्ण खंभों को बदले जाने की मांग भी भाकपा ने की है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश


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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

Help to Labour in Mainpuri


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल
22, कैसर बाग, लखनऊ- 226001
दिनांक- 21 अप्रेल 2020  
विषय- जनपद- मैनपुरी में लाकडाउन में फंसे झारखंड के 6 मजदूरों को तत्काल सहायता पहुंचाये जाने के संबन्ध में।
By- e-mail
सेवामें
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
लखनऊ- 226001
आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि मैनपुरी में सैंट थॉमस स्कूल, सिविल लाइन के सामने रह रहे राजेन्द्र चिक बराइक आदि 6 मजदूर लगभग एक माह से लाकडाउन में फंसे हैं। लाकडाउन की इस लंबी अवधि में अब उनके पास जीवनयापन का कोई साधन नहीं बचा और वे भूखे मरने के कगार पर हैं।
इनमें से एक श्री राजेन्द्र चिक बराइक का मो॰ नंबर- 9027504736 है।
इन सभी को अविलंब राहत सामग्री आदि पहुंचाने की आवश्यकता है
आपसे अनुरोध है कि तत्काल राहत प्रदान कराने का कष्ट करें।
सधन्यवाद।
भवदीय
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
प्रतिलिपि-
जिलाधिकारी, जनपद- मैनपुरी।
जिला सचिव, भाकपा, जनपद मैनपुरी।

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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल
22, कैसर बाग, लखनऊ- 226001
दिनांक- 21 अप्रेल 2020  
विषय- जनपद- मैनपुरी में लाकडाउन में फंसे झारखंड के 6 मजदूरों को तत्काल सहायता पहुंचाये जाने के संबन्ध में।
By- e-mail
सेवामें
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
लखनऊ- 226001
आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि मैनपुरी में सैंट थॉमस स्कूल, सिविल लाइन के सामने रह रहे राजेन्द्र चिक बराइक आदि 6 मजदूर लगभग एक माह से लाकडाउन में फंसे हैं। लाकडाउन की इस लंबी अवधि में अब उनके पास जीवनयापन का कोई साधन नहीं बचा और वे भूखे मरने के कगार पर हैं।
इनमें से एक श्री राजेन्द्र चिक बराइक का मो॰ नंबर- 9027504736 है।
इन सभी को अविलंब राहत सामग्री आदि पहुंचाने की आवश्यकता है
आपसे अनुरोध है कि तत्काल राहत प्रदान कराने का कष्ट करें।
सधन्यवाद।
भवदीय
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
प्रतिलिपि-
जिलाधिकारी, जनपद- मैनपुरी।
जिला सचिव, भाकपा, जनपद मैनपुरी।

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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

Help to Labours in Gautam Budhd Nagar U.P.


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल
22, क़ैसर बाग, लखनऊ- 226001
दिनांक- 20 अप्रेल 2020  
विषय- जनपद- गौतम बुध्द नगर में फंसे झारखंड के मजदूरों को भोजन आदि उपलब्ध कराने के संबन्ध में।
Urgent- By- email
सेवामें,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
लखनऊ- 226001
महोदय,
झारखंड राज्य के 6 मजदूर नोएडा सेक्टर-8 के अंतर्गत- जामा मस्जिद निकट टीपटाप होटल, में फंसे हैं। लगभग एक माह के इस लाक डाउन में उनके पास की धनराशि पूरी तरह खत्म होगयी है और वे भुखमरी के कगार पर हैं। किसी अधिकारी अथवा सामाजिक संगठन से उनका संपर्क नहीं हो पारहा है।
उनमें से एक श्री इकराम का मो॰ नंबर- 8377085772 है।
आपसे अनुरोध है कि उपर्युक्त मजदूरों तक भोजन सामग्री और अन्य सहायता तत्काल पहुंचाने की व्यवस्था की जाये।
सधन्यवाद।
भवदीय
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश।
प्रतिलिपि- जिलाधिकारी, गौतम बुध्द नगर ( उत्तर प्रदेश )

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शनिवार, 18 अप्रैल 2020

Press Note of Left Parties



कोरोना से पैदा हुये हालातों पर उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों का बयान

 लखनऊ- 18 अप्रेल 2020, कोरोना वायरस की महामारी को पराजित करने के लिये लाकडाउन से भी ज्यादा जरूरी है कि बड़े पैमाने पर जांच कराई जाये, संक्रमित पाये गये  लोगों का समुचित इलाज कराया जाये और उन्हे दरम्याने इलाज शेष जनमानस से अलग थलग रखा जाये। परन्तु खेद की बात है कि उत्तर प्रदेश में इस प्रक्रिया को ठीक से अंजाम नहीं दिया जारहा। यहाँ तक कि कोरोना से जूझ रहे योद्धाओं- डाक्टर, नर्स, पेरामेडिकल स्टाफ आदि के पास जरूरी उपकरण- पीपीई किट आदि उपलब्ध नहीं हैं।
इस महामारी को पराजित करने को हम सब अपने स्तर से जीजान से जुटे हैं, पर उत्तर प्रदेश सरकार इस लड़ाई को साझा लड़ाई बनाने को तैयार नहीं है। इस नाजुक दौर में भी सांप्रदायिक नफरत की मुहिम चलाई जारही है। लोकतान्त्रिक तौर तरीकों पर कुठाराघात करते हुये आलोचना और असहमति को तानाशाही तरीकों से कुचलने की कोशिश की जारही है। सामाजिक एकता, जनता का सहयोग और विश्वास हासिल करने की जगह उत्तर प्रदेश सरकार केवल जनता को भयभीत कर, दंडित कर और धमकियाँ देकर इस लड़ाई को लड़ना चाहती है। शासन- प्रशासन के जरिये भाजपा और संघ परिवार की गतिविधियों को जारी रखते हुये विपक्ष की गतिविधियों को पंगु बनाए रखना चाहती है।
अतएव वामदल मांग करते हैं कि जनता की आजीविका और जीवनयापन के उपादानों की भरपाई प्राथमिकता के आधार पर की जाये-
सभी को बीमा संरक्षण की व्यवस्था की जाये।
सभी को कम से कम 35 किलो राशन और अन्य जरूरी चीजें निशुल्क तत्काल उपलब्ध कराया जाये। जिनके पास राशंकार्ड नहीं हैं उन्हें भी राशन दिया जाये। ऐसे गरीबों की कुछ क्षेत्रों में सूचियाँ बनाई गयी हैं किन्तु उन्हें राशन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया। तुरंत कराया जाये।
सभी गरीबों, पंजीक्रत, अपंजीक्रत दिहाड़ी मजदूरों, खेत मजदूरों, मनरेगा मजदूरों आदि के खाते में कम से कम 5,000 रुपये तत्काल ट्रांसफर किए जायें। मनरेगा का भुगतान कराया जाये और काम को चालू कराया जाये।
संगठित- असंगठित सभी क्षेत्र के मजदूरों की नौकरियों और वेतन की सुरक्षा कीजिये।
गेहूं की सरकारी खरीद देर से शुरू किए जाने के कारण बहुत से किसानों को समर्थन मूल्य से कम कीमतें मिली हैं। अभी भी सरकारी क्रय केन्द्र समुचित रूप से काम नहीं कर रहे हैं। लाकडाउन में अवाम की क्रय क्षमता के घटने के कारण किसानों को फल- सब्जियाँ सस्ती बेचनी पड़ रही हैं। किसानों के सभी उत्पादों को समुचित मूल्यों पर खरीदे जाने की व्यवस्था करें।
प्राक्रतिक और कोरोना की आपदाओं को देखते हुये किसान सम्मान निधि रु॰ 12 हजार वार्षिक की जाये, किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट बड़ाई जाये, ब्याज दर 1 प्रतिशत की जाये  और किसानों के सभी प्रकार के कर्जों की वसूली 1 साल के लिये स्थगित की जाये।
छोटे व्यापारियों, लघु उद्यमियों और फुटकर व्यापार करने वालों का जीवन बचाने को राहत की घोषणा कीजिये।
दूसरे प्रदेशों व जनपदों में फंसे उत्तर प्रदेश के मजदूरों और उत्तर प्रदेश में फंसे अन्य प्रदेशों के मजदूरों को सरकारी खर्चे पर उनके घरों को जल्द से जल्द पहुंचाया जाये। वहां उन्हें कोरोंटाइन में रखा जा सकता है।
वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख के लिये विशेष रक्षा दल  गठित कीजिये।
बिजली , फोन, गृह कर और जल कर के बिल फिलहाल स्थगित रखे जायें।
सभी राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों के साथ परामर्श हेतु राज्य स्तरीय बैठक बुलाई जाये।
जिलों के स्तर पर राजनैतिक दलों के नुमाइंदों के साथ प्रशासन के अधिकारी समन्वय बनायेँ।
सरकार, प्रशासन, भाजपा और मीडिया द्वारा कोरोना को मुस्लिमों से जोड़ कर चलाई जारही मुहिम फौरन बन्द की जाये। मुहिम चलाने वालों के विरूध्द कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाये। या फिर किसको कहाँ से संक्रमण लगा, इसकी  व्यापक जानकारी सार्वजनिक की जाये।
डा॰ गिरीश, सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश।  
हीरालाल यादव, सचिव, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी), उत्तर प्रदेश।
सुधाकर यादव, सचिव, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-माले- लिबरेशन, उत्तर प्रदेश।  
अभिनव कुशवाहा, महासचिव, फारबर्ड ब्लाक, उत्तर प्रदेश ।

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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

CPI CONDEMNED ATTACK ON DOCTORS


प्रकाशनार्थ-

भाकपा ने कोरोना योध्दाओं पर हमले की कड़े शब्दों में निन्दा की
विषम परिस्थितियों में भी सांप्रदायिक खेल खतरनाक: भाकपा

लखनऊ- 16 अप्रेल 2020, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने मुरादाबाद में चिकित्सकों की टीम पर हुये हमले की निन्दा की है। भाकपा ने एटा जनपद में कोरोना के प्रति जागरूक करने गयी आशा कर्मी की दबंगों द्वारा पिटाई की भी निन्दा की है। साथ ही सत्ता प्रतिष्ठान, उसके स्तंभों और मीडिया के कतिपय हिस्सों द्वारा कोरोना के  इस त्रासद काल में भी निरंतर सांप्रदायिक विष- वमन की भी कठोर शब्दों में निन्दा की है।
एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव मण्डल ने कहा कि कोरोना से जान जोखिम में डाल कर जूझ रहे चिकित्सकों और कर्मियों पर हमला सर्वथा निंदनीय है। इससे कोरोना के विरूध्द लड़ाई कमजोर होती है। और यदि हमला मुस्लिमों द्वारा किया जाता है तो सांप्रदायिक शक्तियों को इस भयावह समय में भी सांप्रदायिकता का खेल खेलने का मौका मिल जाता है। हमला कोई मुट्ठी भर समूह करता है और वे पूरे मुस्लिम समाज पर टूट पड़ते हैं। अपनी इस घ्रणित मुहिम में वे समस्त सेक्युलर ताकतों को भी लपेट लेते हैं।
भाकपा ने एटा की कोतवाली देहात के गांव भदों में दबंग तत्वों द्वारा आशाकर्मी संतोषी देवी की जमकर पिटाई कर दी। उनका आई कार्ड और अभिलेख भी दबंगों ने छीन लिये। आशाकर्मी वहां कोरोना के प्रति जागरूकता पैदा करने गयी थी। पर एक महिला कोरोना योध्दा पर हमले की यह घटना बड़ी खबर इसलिये नहीं बन सकी कि हमलाबर मुस्लिम नहीं थे। मुख्यमंत्री द्वारा उन पर एनएसए लगाने की घोषणा तो दूर अभी तक सामान्य कार्यवाही की भी खबर नहीं है। यह सत्ता प्रतिष्ठान के दोहरे चरित्र का सीधा खेल है।
भाकपा ने आरोप लगाया कि जब सारा देश जब कोरोना से जूझ रहा है और बड़ी संख्या में गरीब- गुरबे भूखे प्यासे रह कर नारकीय जीवन जी रहे हैं, वहीं सत्ता प्रतिष्ठान, उसके अंध समर्थक और मीडिया के विषाक्त हिस्से आज भी सांप्रदयिक खेल खेल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और सर्वोच्च न्यायालय की हिदायतों के बावजूद कोरोना को लेकर समुदाय विशेष को लगातार निशाना बनाया जारहा है। नेतागण तो सांप्रदायिकता के बल पर सत्तासीन हुये हैं और वे आगे भी इसी हथियार को सत्ता प्राप्ति का कारगर साधन समझ रहे हैं। पर उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भी उन्हीं की भाषा बोल रहे हैं। संक्रमित जमातियों की  संख्या हर रोज बतायी जाती है, अन्य लोग कौन हैं कहां संक्रमित हुये नहीं बताया जाता। प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी तटस्थता बनाए रखनी चाहिये।
नाम पूछ कर लोगों को पीटा जाना, सब्जी- फल विक्रेताओं को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाना और बांद्रा की घटना को भी जबर्दस्ती मुस्लिम समाज के ऊपर थोपने की घटनायें उतनी ही निंदनीय हैं जितनी मुरादाबाद में चिकित्सकों पर हमले। ये हमले हमारे मानसिक स्वास्थ्य जो स्वस्थ लोकतन्त्र का स्तंभ है, के लिये बेहद घातक हैं।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा,   उत्तर प्रदेश

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रविवार, 12 अप्रैल 2020

CPI Programms


प्रकाशनार्थ-

जलियाँवाला बाग दिवस और अंबेडकर जयंतियों का आयोजन करेगी भाकपा


लखनऊ- 12 अप्रेल 2020- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश मे कल 13 अप्रेल को जलियांवाले बाग के शहीदों को नमन करेगी और 14 अप्रेल को डा॰ भीमराव अंबेडकर जन्म दिवस को “ सभी को भोजन, सभी तक इलाज” दिवस के रूप में आयोजित करेगी। सोशल डिस्टेन्शिंग का पालन कराते हुये भाकपा कार्यकर्ता और समर्थक 14 अप्रेल को परिवारीजनों, पड़ोसियों और निकट मित्रों के साथ इस कार्यक्रम को अंजाम देंगे।
वे डा॰ अंबेडकर के छवि चित्र पर माल्यार्पण करेंगे, लोकतान्त्रिक भारत के संविधान के निर्माण में उनकी अग्रणी भूमिका और अस्प्रश्यता के विरूध्द उनके संघर्षो आदि पर चर्चा करेंगे तथा कोरोना काल में हर व्यक्ति तक रोटी और हरेक तक इलाज पहुंचाने की मांग करेंगे।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहा कि डा॰ अंबेडकर के छवि चित्र आमतौर पर भाकपा के कार्यालयों में उपलब्ध रहते हैं जहां तक इस समय कार्यकर्ता साथी पहुँच नहीं पारहे। यदि चित्र उपलब्ध न होसके तो गूगल सर्च से मोबायल पर उनके चित्र को निकाल कर पुष्पार्पण किया जा सकता है। जो जहां है वहीं इसका आयोजन करना है, दूरी तय करके कहीं नहीं जाना है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश



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CPI, UP letter to CM, UP and CM, Maharashtra


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल

22, कैसर बाग, लखनऊ- 226001

दिनांक- 12 अप्रेल, 2020

विषय- मुंबई में फंसे उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के मजदूरों को तत्काल राहत पहुंचाने के संबंध में।
Urgent- By e- mail

सेवामें,
श्री योगी आदित्यनाथ जी,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
लखनऊ- 226001
महोदय आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के 10 सिलाई मजदूर एकता नगर, कांदिवली वेस्ट, मुंबई, पिन कोड- 400067 में लाक डाउन के बाद से फंसे हुये हैं। ये लोग यहीं काम कर रहे थे। 21 मार्च से काम बंद होगया और उनके पास जो कुछ जमा पूंजी थी वो खत्म होगयी। अब उनके सामने भरण पोषण की विकराल समस्या पैदा होगायी है।
उनका विवरण इस प्रकार है-
1-  अबरार अंसारी, महाराजगंज, मो॰ नं- 9315232656
2-  दुर्गेश साहनी,  ,,  ,,  ,,
3-  महमूद अंसारी, ,,  ,,   ,,
4-  ताज मोहम्मद, कुशीनगर
5-  दीदार अंसारी,  ,,  ,, ,,
6-  तालीम अंसारी, ,,  ,,  ,,
7-  इशहाक,       जौनपुर
8-  मोहम्मद इडरीशी, ,, ,,
9-  सलीम अंसारी, इलाहाबाद
10- अब्दुल मजीद, बहराइच
इन लोगों ने फोन पर सूचना दी है कि यदि उन्हें तत्काल राहत सामाग्री उपलब्ध नहीं कराई गयी तो निश्चय ही उनकी जिंदगियाँ खतरे में पड़ जायेँगी।
अतएव आपसे अनुरोध है कि उपर्युक्त के संबंध में तत्काल महाराष्ट्र प्रशासन से संपर्क कर इन मजदूरों का जीवन बचाने का कष्ट करें।
आभारी हूंगा। सधन्यवाद
भवदीय
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
प्रतिलिपि- मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

Politics during Covid-19 in India




कोरोना काल की राजनीति

डा॰ गिरीश

जब सारा देश एकजुटता के साथ अभूतपूर्व कोरोना संकट से जूझ रहा है और संपूर्ण विपक्ष  पूरी तरह सरकार के प्रयासों का समर्थन कर रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी, उसकी केन्द्र और राज्यों की सरकारें और समूचा संघ समूह आज भी अपनी तुच्छ और संकीर्ण राजनीति को आगे बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
भाजपा और संघ की दलीय हितों में संलिप्त रहने की कारगुजारियों का ही परिणाम था कि भारत में कोरोना के खिलाफ जंग लगभग एक माह लेट शुरू हुयी। जनवरी के प्रारंभ में ही जब पहले कोरोना ग्रसित की पहचान हुयी, केरल सरकार ने उसे अंकुश में रखने की जो फुलप्रूफ व्यवस्था की उसकी सर्वत्र प्रशंसा होरही है। लेकिन केन्द्र सरकार और भाजपा की  राज्य सरकारों ने फरबरी के अंत तक कोई नोटिस नहीं लिया।
इस पूरे दौर में वे सीएए, एनपीआर एवं एनआरसी के विरोध में चल रहे  आंदोलनों को सांप्रदायिक करार देने में जुटे रहे। दर्जनों की जान लेने वाले और अरबों- खरबों की संपत्ति को विनष्ट करने वाले सरकार संरक्षित दिल्ली के दंगे भी इसी दौर में हुये। मध्य प्रदेश की पूर्ण बहुमत वाली सरकार को षडयंत्रपूर्वक अपदस्थ करने का खेल भी इसी दरम्यान खेला गया। कोरोना की संभावित भयावहता पर फोकस करने के बजाय संपूर्ण सरकारी तंत्र और मीडिया चीन, पाकिस्तान और मुसलमान पर ही अरण्यरोदन करता रहा।
लोगों की आस्था के दोहन की गरज से सारा फोकस राम मंदिर निर्माण की तैयारियों पर केन्द्रित था। जब देश को कोरोना से जूझने के लिये तैयार करने की जरूरत थी, तब हमारी केन्द्र सरकार और कई राज्य सरकारें, सपरिवार निजी यात्रा पर भारत भ्रमण को आये अमेरिकी राष्ट्रपति के भव्य और बेहद खर्चीले स्वागत की तैयारियों में जुटी थीं। यूरोप और अमेरिका में भी जब कोरोना पूरी तरह फैल चुका था, श्री ट्रंप ने अमेरिकी नागरिकों की रक्षा से ज्यादा निजी यात्रा को प्राथमिकता दी। परिणाम सामने है।
जनवरी और फरबरी में ही कोरोना ने चीन, यूरोप, अमेरिका आदि अनेक देशों को बुरी तरह चपेट में ले लिया था, तब उच्च और उच्च मध्यम वर्ग के तमाम लोग धड़ाधड़ इन देशों से लौट रहे थे। इन वर्गों के लिये पलक- पांबड़े बिछाने वाली सरकार ने एयरपोर्ट पर मामूली जांच के बाद उन्हें घरों को जाने दिया। ये ही लोग भारत में कोरोना के प्रथम आयातक और विस्तारक बने। चिकित्सा और बचाव संबंधी तमाम सामग्री का निर्यात भी 19 मार्च तक जारी रहा।
सरकार को होश तब आया जब कोरोना भारत में फैलने लगा। अपनी लोकप्रियता और छवि निर्माण के लिये हर क्षण प्रयत्नशील रहने वाले प्रधान मंत्री श्री मोदी ने 22 मार्च को 14 घंटे के लाक डाउन और और शाम को थाली- ताली पीटने का आह्वान कर डाला। निशाना कोरोना से जूझ रहे उन स्वास्थ्यकर्मियों के कंधे पर रख कर साधा गया जिन्हें आज तक सुरक्षा किटें नहीं मिल सकी हैं और उसकी मांग करने पर उन्हें बर्खास्तगी जैसे दंडों को झेलना पड़ रहा है।
यह ध्रुव सत्य है कि कोरोना अथवा किसी भी महामारी और बीमारी का निदान विज्ञान के द्वारा ही संभव है, उन मंदिर, मस्जिद, चर्च से नहीं जिन पर आज ताले लटके हुये हैं। लेकिन शोषक वर्ग खास कर धर्म, पाखंड और टोने- टोटकों के बल पर वोट बटोरने वाली जमातों को वैज्ञानिक सोच से बहुत डर लगता है। सभी जानते हैं कि श्री दाभोलकर, गोविन्द पंसारे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याओं के पीछे इन्हीं विज्ञान विरोधी कट्टरपंथियों का हाथ रहा है।
भारत में साँप के काटने पर लोग आज भी थाली बजाते हैं। आज भी पशुओं में बीमारी फैलने पर तंत ( तंत्र ) कर खप्पड़ निकालते हैं और थाली ढोल मंजीरा पीटते हैं। तमाम ओझा, फकीर और मौलवी- मुल्ले कथित भूत्त- प्रेत बाधा का निवारण और कई बीमारियों का इलाज भी झाड फूक और थाली लोटा बजा कर करते हैं। प्रधानमंत्री ने आम जन को इसी तंत्र मंत्र में उलझा कर विज्ञान की वरीयता को निगीर्ण करने की चेष्टा की। अति उत्साही उनके अनुयायियों ने उसमें आतिशबाज़ी का तड़का भी लगा दिया। वैज्ञानिक द्रष्टिकोण रखने वाले लोगों ने स्वास्थ्यकर्मियों को सैल्यूट कर उनके प्रति क्रतज्ञता का इजहार किया।
प्रधानमंत्री जी का रात आठ बजे टीवी पर प्रकट होना और आधी रात से लागू होने वाले उनके फैसले देश के लिये संकट का पर्याय बन चुके हैं। नोटबंदी और जीएसटी से मिले घाव अभी देश भुला नहीं पाया था कि अचानक प्रधानमंत्री टीवी पर पुनः प्रकट हुये और 25 मार्च से 3 सप्ताह के लिये लाक डाउन की घोषणा कर दी। अधिकतर ट्रेनें, बसें और एयर लाइंस पहले ही बंद किए जाचुके थे। अचानक और बिना तैयारी के उठाये इस कदम से सभी अवाक रह गये।
कल- कारखाने, व्यापार- दुकान बन्द होजाने से करोड़ों मजदूर सड़क पर आगये। रोज कमा कर खाने वाले और गरीबों के घर में तो अगले दिन चूल्हा जलाने को राशन तेल भी नहीं था। बदहवाश लोग बाज़ारों की ओर दौड़े। अधिकांश बाजार बंद हो चुके थे। जो दुकानें खुली थीं उन्होने भीड़ बढ़ती देख मनमानी कीमत बसूली। गंभीर बीमारियों से पीड़ितों के पास पर्याप्त दवा तक नहीं थी।
अनेकों सेवायोजकों ने मजदूरों को काम पर से हठा दिया। मकान मालिकों ने उन्हें घरों से निकाल दिया। धनाढ्य लोगों के कहने पर दिल्ली पुलिस ने उनकी झौंपड़ियों को उजाड़ दिया और उन्हें दिल्ली की सीमाओं के बाहर छोड़ दिया। सरकार की इस अदूरदर्शिता ने करोड़ों लोगों को सड़क पर ला दिया। बहु प्रचारित सोशल डिस्टेन्सिंग तार तार होगयी और विस्थापन को मजबूर मजदूर और अन्य गरीबों ने पहाड़ जैसी पीड़ा झेलते हुये जन्मभूमि का रुख किया। भूख- प्यास और थकान से तीन दर्जन लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। सरकार की कड़ी आलोचना हुयी। तब भाजपा और उसकी सरकार हानि की भरपाई के रास्ते तलाशने में जुट गयी।
सीएए विरोधी आंदोलन और बाद में हुये दिल्ली के दंगों के चलते दिल्ली में धारा 144 लागू थी। सारे देश में राजनैतिक दलों के कार्यक्रमों के आयोजन की इजाजत दी नहीं जा रही थी। तमाम वामपंथी जनवादी दलों एवं संगठनों ने कोरोना की भयावहता को भाँप कर अपने अनेकों कार्यक्रम रद्द कर दिये थे। पर ये केन्द्र सरकार थी जो विपक्ष के आगाह करने के बावजूद संसद को चलाती रही। भाजपा के लिये राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले धर्मध्वजधारी समूह अपने कार्यक्रमों को अंजाम देते रहे।
दफा 144 के बावज़ूद दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज में जमात चलती रही। लाक डाउन लागू होने के बाद भी जमातियों को हटाने और गंतव्य तक पहुंचाने को कदम उठाए नहीं गये। जब जमाती बीमार पड़ने लगे तब भी सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। आखिर क्यों?
फिर क्या था, सरकार और मीडिया को आखिर वह नायाब शैतान मिल ही गया जिस के ऊपर कोरोना के विस्तार की सारी ज़िम्मेदारी डाल कर वह सरकार की मुजरिमाना नाकामियों पर पर्दा डाल सकते थे। सरकार, उसके मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, भाजपा और संघ के प्रवक्ता, भाजपा की मीडिया सेल और सारा गोदी मीडिया जनता के कोरोना विरोधी संघर्ष को सांप्रदायिक बनाने में जुट गये। स्वाष्थ्य मंत्रालय के मना करने के बावजूद भी यह आज तक उसी रफ्तार से जारी है।
दूसरे धर्मों के ठेकेदार भी उन दिनों वही सब कर रहे थे जो जमात कर रही थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ जी सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ाते हुये अयोध्या में अगली कार सेवा का आगाज कर रहे थे। कोरोना की विभीषिका की फिक्र से कोसों दूर वे पूरे दो दिनों तक अयोध्या में थे। इससे पहले वे मथुरा में वे लठामार होली का आनंद ले रहे थे।
इस बीच कई बार भाजपा के जन प्रतिनिधियों के बयानों और कारगुजारियों से भाजपा का जन विरोधी, गरीब विरोधी, फासिस्ट चेहरा उजागर हुआ। एक विधायक लाक डाउन में पुलिस की मार खारहे लोगों को गोली से उड़ाने का आदेश देते दिखे तो एक अन्य विधायक तब्लीगियों को कोरोना जेहादी बता रहे थे। यूपी के बलरामपुर की भाजपा जिलाध्यक्ष ने खुलेआम पिस्तौल से फायरिंग कर कानून की धज्जियां बिखेरीं।
मोदीजी 3 अप्रेल को फिर टीवी पर नमूदार हुये। उन्होने एक बार फिर 5 अप्रेल को रात 9 बजे घर की बत्तियाँ बंद कर 9 मिनट तक घर के दरवाजे या बालकनी में रोशनी करने का आह्वान किया। किसी की समझ में नहीं आया कि इस नए टोने से कोरोना पर क्या असर पड़ेगा? प्रबुध्द जनों ने खोज निकाला कि 40 वर्ष पूर्व 5 अप्रेल को विगत जनसंघ के शूरमाओं ने नई पार्टी- भाजपा बनाने का निर्णय लिया था, जिसकी घोषणा 6 अप्रेल को की गयी थी। यह लाक डाउन में भी पार्टी के स्थापना दिवस को भव्य तरीके से मनाने की जुगत थी।
यूं तो कार्यक्रम को स्वैच्छिक बताया गया लेकिन केन्द्र और राज्यों की कई सरकारें इसकी  कामयाबी के लिये पसीना बहाती दिखीं। संगठन और मीडिया तो और भी आगे थे। ठीक 9 बजे सायरन भी बजाए गए। जागरूक लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि कोरोना की आड़ में यह एक राजनीतिक कार्यक्रम है। अतएव वैज्ञानिक सोच के लोगों, तार्किक लोगों, पोंगा पंथ विरोधी लोगों और सामाजिक न्याय की ताकतों ने इससे दूरी बनाए रखी।
लेकिन 5 अप्रेल की रात को जो सामने आया वह केवल वह नहीं था जिसकी भावुक अपील श्री मोदी जी ने की थी। मोदी जी ने स्ट्रीट लाइट्स जलाये रखने को कहा था, पर अति उत्साही प्यादों ने अनेक जगह वह भी बुझा दी। गांवों में अनेक जगह ट्रांसफार्मर से ही बिजली उड़ा दी गयी। दीपक, मोमबत्तियाँ, टार्च जलीं यहाँ तक तो ठीक था। पर जय श्रीराम एवं मोदी जिंदाबाद के नारे लगे और सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां बिखेरते हुये कैंडिल मार्च निकाले गये।
और इस सबसे ऊपर वह था जिसकी गम के इस माहौल में कल्पना नहीं की जा सकती। कोरोना प्रभावित कई दर्जन लोगों की मौतें होचुकी थीं। अपने घरों की राह पकड़े भूख प्यास से मरे लोगों की संख्या भी तीन दर्जन हो चुकी थी। पर 9 बजते ही बेशुमार पटाखों की आवाजों से आसमान गूंज उठा। आतिशबाज़ी का यह क्रम 20 से 25 मिनट तक जारी रहा। सोशल मीडिया के माध्यम से मिनटों में पता लग गया कि यह आतिशबाज़ी पूरे देश में की जारही थी। मध्यवर्ग का अट्टहास तो देखते ही बनता था। वे गरीब भी पीछे नहीं थे जिनके घरों में मुश्किल से चूल्हे जल पारहे थे। वे युवा भी थे जो अपनी नौकरियाँ गंवा बैठे थे। लाशों पर ऐसा उत्सव पहले कभी देखा सुना नहीं गया।
सवाल उठता है कि जब सारे देश में लाक डाउन था इतनी बारूद लोगों तक कैसे पहुंची? क्या लोगों के घरों में आतिशबाज़ी की इस विशाल सामग्री का जखीरा जमा था? दीवाली पर शहरों की सुरक्षित जगहों पर आतिशबाज़ी के बाज़ार सजते हैं, पर अब तो बाज़ार ही बंद थे।  छान बीन से नतीजा निकला कि आम लोगों तक दीपक और पटाखे पहुंचाये गये थे। संघ समूह का खुला एजेंडा रोशनी करना- कराना था, पर छुपा एजेंडा था बड़े पैमाने पर आतिशबाज़ी कराकर जनता पर मोदी जी के कथित प्रभाव का प्रदर्शन कराना। गणेश जी को दूध पिलाने जैसा यह जनता की विवेकशक्ति को परखने का एक और हथकंडा था।
लेकिन इसकी पहुँच में सरकारी अधिकारी और अर्ध सैनिक बल भी थे। तमाम पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों ने ड्यूटी छोड़ घरों पर सपरिवार रोशनी करने की तस्वीरें सगर्व सार्वजनिक कीं।
एक जाने माने हिन्दी कवि श्री कुमार विश्वास ने इस पूरे कथानक पर अपनी गहन पीड़ा व्यक्त करते हुये इसे “विपदा का प्रहसन” करार दिया। पर जिन लोगों ने फासीवाद का इतिहास पड़ा है वे जानते हैं कि फासीवादी शक्तियाँ अपनी भावुक अपीलों से जनता को छलती रहीं हैं।
किसी मुद्दे पर विपक्ष के मुंह खोलते ही उस पर राजनीति का आरोप जड़ने वाली भाजपा आज भी अपनी परंपरागत राजनीति धड़ल्ले से चला रही है। सत्ता और मीडिया के बल पर झूठ और दुष्प्रचार की सारी सीमाएं लांघ रही है। पूरे देश में एक साथ लाइटें बंद करने से ग्रिड पर संकट मंडराने लगा था। ग्रिड के अधिकारियों ने इस स्थिति से निपटने को वाकायदा तैयारियां कीं और अधिकारी कर्मचारियों को मुस्तैद रहने के लिखित निर्देश जारी किये। विपक्ष ने जब आवाज उठायी तो सरकार सकपकाई। फ्रिज, एसी आदि चालू रखने की अपीलें की गईं। भले ही वो विपक्ष पर आरोप लगाये कि वह अफवाह फैला रहा है, पर इससे यह खुलासा तो हो ही गया कि अति उत्साह में मोदीजी ने ग्रिड को संकट में डाल दिया था।
कोरोना के विरूध्द इस जंग में विज्ञान की प्रभुता और धर्मों का खोखलापन उजागर होगया है। धीरे धीरे धर्मों के नाम पर समाज को बांटने की साज़िशों की कलई खुलती जारही है। भाजपा और संघ इससे परेशान हैं। वे कोरोना के विरूध्द जनता के संयुक्त संघर्ष को अकेले मोदी जी का संघर्ष बताने में जुटे हैं। विपक्ष की गतिविधियों को पिंजड़े में बंद कर अपने एजेंडे पर वे पूर्ववत कार्य कर रहे हैं।






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