फ़ॉलोअर
गुरुवार, 12 अगस्त 2010
at 8:11 pm | 0 comments | शचीन्द्रनाथ बख्शी
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष - “क्रांतिकारी और रेलवे गार्ड”
काकोरी षड्यंत्र केस अपने समय का सबसे बड़ा क्रांतिकारी मुकदमा था। इस मुकदमें में बीस देशभक्तों को सजा मिली थी। रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी तथा अशफाकउल्ला खां को फांसी दे दी गयी और वे शहीद हो गये। शचीन्द्रनाथ सान्याल और मुझे आजन्म काले पानी की सजा मिली। मन्मथनाथ गुप्त को चौदह साल, राजकुमार सिन्हा, रामकृष्ण खत्री, जोगेश चटर्जी आदि को दस-दस साल शेष को सात-सात और पांच-पांच साल की सजायें दी गयीं। अपील में कुछ लोगों की सजायें बढ़ायी भी गयी थीं।
इस षडयंत्र केस का ‘काकोरी केस’ के नाम से महशहूर होने का आधारभूत कारण यह था कि हरदोई-लखनऊ के दरम्यान जिस स्टेशन के पास पैसेन्जर टेªन को रोककर रेलवे का खजाना लूटा गया था, उस स्टेशन का नाम काकोरी था।
9 अगस्त, 1925 के दिन 8 डाउन पैसेन्जर टेªन गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के चार्ज में थी। टेªन डकैती से संबंधित सरकारी गवाहों में जिसने सर्वाधिक समय तथा क्रांतिकारियों को देखा था, वह था गार्ड जगन्नाथ प्रसाद। वह डकैती शुरू होने के वक्त से लगातार पैंतीस मिनट तक देखता रहा। शेष गवाहों में से किसी ने भी हमें दो-चार सेकेण्ड से ज्यादा नहीं देखा।
वस्तुतः घटना इस प्रकार थी -
सन् 1925 तक उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी संगठन मजबूत हो गया था और संगठन में तेजी भी आ गयी थी। जुलाई के अंत में हमें खबर मिली कि जर्मनी से पिस्तौलों का चालान आ रहा है। कलकत्ता बन्दरगाह पहुंचने से पहले ही नकद रुपया देकर उसे प्राप्त करना था। एतदर्थ काफी रुपयों की आवश्यकता पड़ी और पार्टी के सामने डकैती के अलावा कोई अन्य चारा नहीं था। केवल अकेले अशफाकउल्ला खां ने इस योजना का विरोध किया और आखिर तक करते रहे। उनका कहना था कि हमारा दल अभी इतना मजबूत नहीं है कि हम ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दे सकें। लेकिन कोई यह चेतावनी सुनने के मूड में नहीं था।
नतीजा यह हुआ कि डकैती का काम शुरू करने का भार रामप्रसाद ने मेरे ऊपर डाला। मैंने रामप्रसाद को बताया कि अशफाक और राजेन्द्र लाहिड़ी को साथ लेकर मैं सेकेण्ड क्लास की जंजीर खींचकर ट्रेन रोक दूंगा तथा उतरकर गार्ड को पकड़ लूंगा। रामप्रसाद ने इस सुझाव को पसंद किया और बताया कि वह बचे हुए छह साथियों को लेकर तीसरे दर्जे में बैठेंगे और टेªन रुकने पर हम लोगों से आ मिलेंगे।
जब मैंने काकोरी स्टेशन पर लखनऊ के लिए तीन सेकेण्ड क्लास के टिकट खरीदने के लिए नोट बढ़ाया, तब असिस्टेंट स्टेशन मास्टर घूमकर मेरे चेहरे को गौर से देखने लगा। उसे महान आश्चर्य हुआ कि इस-छोटे से स्टेशन से तीन सेकेण्ड क्लास के टिकट खरीदने वाला यह व्यक्ति कौन है। मेरे हाथ में रूमाल था और मैं आनायास दूसरी ओर मुंह फेरकर रूमाल से मुंह पोछने लगा।
पैसेन्जर टेªन आयी। हम तीनों सेकेण्ड क्लास का एक खाली डिब्बा देखकर बैठ गये। गाड़ी चल दी। इतने में एक मुसाफिर डिब्बे में आकर मेरे पास बैठ गया। मैं फौरन घूमकर जंगले के बाहर देखने लगा। सामने के बर्थ पर अशफाक और राजेन्द्र बैठे थे। डिब्बे में बिजली की रोशनी हो रही थी। जब टेªन डिस्टेण्ट सिग्नल के पास पहुंच गयी, मैंने अपने साथियों की तरफ मुखातिब होकर पूछा- जेवरों का बक्सा कहां रह गया है?
अशफाक ने तुरन्त जवाब दिया- ओ हो, वह तो काकोरी में ही छूट गया है। इतने में मैंने अपने पास लटकती हुई जंजीर खींच दी।
गाड़ी रुक गयी। हम तीेनों उतर पड़े तथा काकोरी की ओर चल पड़े। तीन-चार डिब्बों को पार करने पर गार्ड साहब मिले, जो हमारी तरफ आ रहे थे। उन्होंने पूछा- जंजीर किसने खींची?
मैंने चलते-चलते बताया कि मैंने खींची है। गार्ड मेरे साथ हो लिया और उसने मुझे रुकने को कहा। उत्तर में मैंने बताया- काकोरी में हमारा जेवरों का बक्सा छूट गया, हम उसे लेने जा रहे हैं।
इतने में हम लोग गार्ड के डिब्बे तक पहुंचकर रुक गये। तब तक हमारे अन्य साथी भी वहां पहुंच गये थे। हमनें पिस्तौल के फायर के साथ मुसाफिरों को आगाह किया कि कोई मुसाफिर न उतरे, क्योंकि हम सरकारी खजाना लूट रहे हैं।
इतने में मेरी निगाह गार्ड साहब पर पड़ी, जो मेरे बगल में ही खड़े थे और इंजन की तरफ नीली बत्ती दिखा रहे थे। मैंने उनकी पसली में पिस्तौल की नली लगा दी और एक हाथ से उनकी बत्ती छीन ली। बत्ती को जमीन पर पटकते हुए एक ठोकर मारकर मैंने गार्ड से कहा- गोली मार दूंगा। नीली बत्ती क्यों दिखा रहा था?
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद ने हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाकर कहा-हुजूर! मेरी जान बख्श दीजिए।
तब तक लोहे का सन्दूक गार्ड के डिब्बे से ढकेलकर नीचे गिरा दिया गया और उसे तोड़ा जाने लगा। मैं डिब्बे के पायदान का सहारा लेकर गार्ड की ओर पिस्तौल ताने खड़ा रहा।
मेरे ऐसे पंाच मिनट तक खड़ा रहने के बाद रामप्रसाद ने एकाएक मेरा हाथ पकड़कर अंधेरे में खींच लिया और कहा- कर क्या रहे हो? सारी रोशनी तुम्हारे चेहरे पर पड़ रही है और गार्ड तुमको पहचान रहा है, जबकि और सब साथी अंधेरे में हैं।
मैं तब गार्ड के डिब्बे में चढ़ गया और बत्तियां बुझाने की कोशिश करने लगा, किन्तु स्विच मुझे ढूंढ़ने पर भी नहीं मिला। तब मैंने पिस्तौल के कुन्दे से सारे बल्ब फोड़ डाले और नीचे उतर आया।
रामप्रसाद की यह बात- गार्ड आपको पहचान रहा है- मेरे मन में चुभ गयी।
लोहे का संदूक बड़ी मुश्किल से टूटा। यह अशफाकउल्ला खां की ताकत की करामात थी।
इन कामों में करीब 35 मिनट लग गये। जब चलने की तैयारी हुई, तब मैंने रामप्रसाद से कहा - सूबेदार साहब, आप लोग बढ़े। सौ-सवा गज जाकर रुक जाइएगा और सीटी बजाइएगा। मैं आ जाऊंगा। तब तक जरा गार्ड से निपट लूं।
सभी साथी चले गये। मैं अकेला गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के पास खड़ा था। सामने टेªन खड़ी थी। सारी फिजा शान्त औ निःस्तब्ध। मैं दो-तीन मिनट चुप खड़ा रहा। हमारे सब साथी अंधेरे में ओझल हो गये थे। जब मैंने खामोशी को भंग कर शन्त स्वर में अंग्रेजी में कहा- वेल गार्ड साहब, डेड मैन कैन नॉट स्पीक। जिसका मतलब था- मुर्दा आदमी बोल नहीं सकता। मैंने गार्ड से यह भी कहा- आपने मुझे बिजली की रोशनी में बहुत देर तक देखा है और पहचाना भी है। पुलिस कार्यवाही में आप मुझे पहचानेंगे। इसलिए आपको क्यों न खत्म कर दूं, ताकि पहचानने का झगड़ा ही खतम हो जाए। मैं यह सब बातें धीरे-धीरे बहुत शान्ति से बोलता रहा। गार्ड साहब अपने सामने मौत का नजारा देखकर हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे और बोले हुजूर! मैं आपको कतई नहीं पहचानता हूं, मुझे मत मारिए।
मैंने कहा- सिर्फ एक कारतूस का खर्च है और सब संकट खत्म हो जाएगा।
गार्ड साहब बड़ी आजिजी से बोले- मैं आपको कैसे समझाऊं कि मैं आपको कभी नहीं पहचानूंगा।
मैने पूछा- पुलिस के जोर देने पर भी नहीं?
उन्होनंे कहा- कभी भी नहीं।
मैंने फिर पूछा- यह आपकी प्रतिज्ञा है?
उन्होंने जोर देकर कहा- जी हुजूर, यह मेरी प्रतिज्ञा है और अटल प्रतिज्ञा है।
मैंने कुछ सोचा और पूछा कि वह ईश्वर को मानते हैं कि नहीं?
उनके हामी भरने पर और ‘जी हां’ कहने पर मैंने कहा- इस वक्त मेरे और आपके बीच जो कुछ बात हुई, उसका साक्षी आपका ईश्वर है। आपने ईश्वर को साक्षी करके यह प्रतिज्ञा की है कि आप मुझकों नहीं पहचानेंगे।
इस घटना के एक साल छह महीने बाद मैं बिहार प्रान्त के भागलपुर शहर में गिरफ्तार हुआ। इस बीच में मेरे बहुत से साथी गिरफ्तार हो गये थे। लखनऊ में काकोरी षड्यंत्र का मुकदमा चल रहा था, जिसमें मुखबिरों के बयानों से बहुत से भेद खुल चुके थे। इकबाली मुलजिम बनवारीलाल बता चुका था कि टेªन डकैती में सेकेण्ड क्लास में अशफाकउल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी और मैं थे। रेलवे का डाक्टर चंद्रपाल गुप्ता, जो हमारे डिब्बे में आ गया था, राजेन्द्र लाहिड़ी और अशफाक की शिनाख्त कर चुका था। एक मैं ही बाकी बचा था।
पहचान की कार्यवाही के लिए जेल के अहाते में मजिस्ट्रेट के सामने 5 या 6 कैदियों के साथ मुझकों खड़ा किया गया।
और कई गवाहों के गुजरने के बाद जगन्नाथ प्रसाद मेरे सामने आये। उनके आते ही मैंने उन्हें पहचान लिया। जब वह मेरे सामने से गुजरे तब उनकी आंखों में भी पहचानने की झलक-सी देखी, लेकिन वह मुझे न पहचानने का अभिनय करते हुए आगे बढ़ गये। दो चक्कर लगाने के बाद उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा- इनमें तो नहीं है। मजिस्ट्रेट ने फिर से गौर करने कोे कहा। उसने और दो चक्कर मेरे सामने लगाये। इस बार भी मैंने उनकी आंखों में पहचानने की झलक देखी, लेकिन उन्होंने मेरे बगल वाले व्यक्ति का हाथ पकड़ा। फिर गार्ड साहब बाहर भेज दिये गये।
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के चले जाने के साथ-साथ मेरे मानसपटल पर चलचित्र की भांति 9 अगस्त, 1925 की सारी घटनाएं रह-रहकर उभरने लगीं।
काकोरी सप्लिमेण्टरी षड्यंत्र केस में अशफाक को फांसी दे दी गयी और मुझको उम्रकैद की सजा मिली। जमाना गुजर गया। यू.पी. की सेंट्रल जेलों में बहुत-सी लड़ाइयां लड़ने के बाद और बहुत सारी भूख-हड़ताल करने के बाद मैं रिहा हुआ। मेरे सह साथी भी रिहा हुए।
सन् 1938 की बात है। मैं लखनऊ लौटने के लिए रायबरेली स्टेशन पर बैठा था। प्लेटफार्म पर पंजाब मेल का इंतजार करते हुए एक बेंच पर बैठकर मैं अखबार पढ़ रहा था।
इतने में एक रेलवे अफसर मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। उसके सफेद सूट को मैं देख रहा था। मेरा नाम पुकार कर नमस्ते करने पर जब मैंने सिर उठाया, तब देखा कि वही चिरपरिचित गार्ड जगन्नाथ प्रसाद खड़े हैं।14 वर्ष बीत जाने पर भी मैंने उन्हें फौरन पहचान लिया। मैंने हंसकर कहा - हैलो गार्ड साहब, आप मुझे भूले नहीं हैं।
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद ने उस पुराने लहजे में उत्तर दिया- नहीं हुजूर, इस जिंदगी में मैं आपको कभी भूल नहीं सकता।
- शचीन्द्रनाथ बख्शी
क्रंातिकारी शचीन्द्रनाथ बख्शी की पुस्तक - ”वतन पे मरने वालों का...” से साभार (ग्लोबल हारमनी पब्लिशर्स, नई दिल्ली)
इस षडयंत्र केस का ‘काकोरी केस’ के नाम से महशहूर होने का आधारभूत कारण यह था कि हरदोई-लखनऊ के दरम्यान जिस स्टेशन के पास पैसेन्जर टेªन को रोककर रेलवे का खजाना लूटा गया था, उस स्टेशन का नाम काकोरी था।
9 अगस्त, 1925 के दिन 8 डाउन पैसेन्जर टेªन गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के चार्ज में थी। टेªन डकैती से संबंधित सरकारी गवाहों में जिसने सर्वाधिक समय तथा क्रांतिकारियों को देखा था, वह था गार्ड जगन्नाथ प्रसाद। वह डकैती शुरू होने के वक्त से लगातार पैंतीस मिनट तक देखता रहा। शेष गवाहों में से किसी ने भी हमें दो-चार सेकेण्ड से ज्यादा नहीं देखा।
वस्तुतः घटना इस प्रकार थी -
सन् 1925 तक उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी संगठन मजबूत हो गया था और संगठन में तेजी भी आ गयी थी। जुलाई के अंत में हमें खबर मिली कि जर्मनी से पिस्तौलों का चालान आ रहा है। कलकत्ता बन्दरगाह पहुंचने से पहले ही नकद रुपया देकर उसे प्राप्त करना था। एतदर्थ काफी रुपयों की आवश्यकता पड़ी और पार्टी के सामने डकैती के अलावा कोई अन्य चारा नहीं था। केवल अकेले अशफाकउल्ला खां ने इस योजना का विरोध किया और आखिर तक करते रहे। उनका कहना था कि हमारा दल अभी इतना मजबूत नहीं है कि हम ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दे सकें। लेकिन कोई यह चेतावनी सुनने के मूड में नहीं था।
नतीजा यह हुआ कि डकैती का काम शुरू करने का भार रामप्रसाद ने मेरे ऊपर डाला। मैंने रामप्रसाद को बताया कि अशफाक और राजेन्द्र लाहिड़ी को साथ लेकर मैं सेकेण्ड क्लास की जंजीर खींचकर ट्रेन रोक दूंगा तथा उतरकर गार्ड को पकड़ लूंगा। रामप्रसाद ने इस सुझाव को पसंद किया और बताया कि वह बचे हुए छह साथियों को लेकर तीसरे दर्जे में बैठेंगे और टेªन रुकने पर हम लोगों से आ मिलेंगे।
जब मैंने काकोरी स्टेशन पर लखनऊ के लिए तीन सेकेण्ड क्लास के टिकट खरीदने के लिए नोट बढ़ाया, तब असिस्टेंट स्टेशन मास्टर घूमकर मेरे चेहरे को गौर से देखने लगा। उसे महान आश्चर्य हुआ कि इस-छोटे से स्टेशन से तीन सेकेण्ड क्लास के टिकट खरीदने वाला यह व्यक्ति कौन है। मेरे हाथ में रूमाल था और मैं आनायास दूसरी ओर मुंह फेरकर रूमाल से मुंह पोछने लगा।
पैसेन्जर टेªन आयी। हम तीनों सेकेण्ड क्लास का एक खाली डिब्बा देखकर बैठ गये। गाड़ी चल दी। इतने में एक मुसाफिर डिब्बे में आकर मेरे पास बैठ गया। मैं फौरन घूमकर जंगले के बाहर देखने लगा। सामने के बर्थ पर अशफाक और राजेन्द्र बैठे थे। डिब्बे में बिजली की रोशनी हो रही थी। जब टेªन डिस्टेण्ट सिग्नल के पास पहुंच गयी, मैंने अपने साथियों की तरफ मुखातिब होकर पूछा- जेवरों का बक्सा कहां रह गया है?
अशफाक ने तुरन्त जवाब दिया- ओ हो, वह तो काकोरी में ही छूट गया है। इतने में मैंने अपने पास लटकती हुई जंजीर खींच दी।
गाड़ी रुक गयी। हम तीेनों उतर पड़े तथा काकोरी की ओर चल पड़े। तीन-चार डिब्बों को पार करने पर गार्ड साहब मिले, जो हमारी तरफ आ रहे थे। उन्होंने पूछा- जंजीर किसने खींची?
मैंने चलते-चलते बताया कि मैंने खींची है। गार्ड मेरे साथ हो लिया और उसने मुझे रुकने को कहा। उत्तर में मैंने बताया- काकोरी में हमारा जेवरों का बक्सा छूट गया, हम उसे लेने जा रहे हैं।
इतने में हम लोग गार्ड के डिब्बे तक पहुंचकर रुक गये। तब तक हमारे अन्य साथी भी वहां पहुंच गये थे। हमनें पिस्तौल के फायर के साथ मुसाफिरों को आगाह किया कि कोई मुसाफिर न उतरे, क्योंकि हम सरकारी खजाना लूट रहे हैं।
इतने में मेरी निगाह गार्ड साहब पर पड़ी, जो मेरे बगल में ही खड़े थे और इंजन की तरफ नीली बत्ती दिखा रहे थे। मैंने उनकी पसली में पिस्तौल की नली लगा दी और एक हाथ से उनकी बत्ती छीन ली। बत्ती को जमीन पर पटकते हुए एक ठोकर मारकर मैंने गार्ड से कहा- गोली मार दूंगा। नीली बत्ती क्यों दिखा रहा था?
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद ने हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाकर कहा-हुजूर! मेरी जान बख्श दीजिए।
तब तक लोहे का सन्दूक गार्ड के डिब्बे से ढकेलकर नीचे गिरा दिया गया और उसे तोड़ा जाने लगा। मैं डिब्बे के पायदान का सहारा लेकर गार्ड की ओर पिस्तौल ताने खड़ा रहा।
मेरे ऐसे पंाच मिनट तक खड़ा रहने के बाद रामप्रसाद ने एकाएक मेरा हाथ पकड़कर अंधेरे में खींच लिया और कहा- कर क्या रहे हो? सारी रोशनी तुम्हारे चेहरे पर पड़ रही है और गार्ड तुमको पहचान रहा है, जबकि और सब साथी अंधेरे में हैं।
मैं तब गार्ड के डिब्बे में चढ़ गया और बत्तियां बुझाने की कोशिश करने लगा, किन्तु स्विच मुझे ढूंढ़ने पर भी नहीं मिला। तब मैंने पिस्तौल के कुन्दे से सारे बल्ब फोड़ डाले और नीचे उतर आया।
रामप्रसाद की यह बात- गार्ड आपको पहचान रहा है- मेरे मन में चुभ गयी।
लोहे का संदूक बड़ी मुश्किल से टूटा। यह अशफाकउल्ला खां की ताकत की करामात थी।
इन कामों में करीब 35 मिनट लग गये। जब चलने की तैयारी हुई, तब मैंने रामप्रसाद से कहा - सूबेदार साहब, आप लोग बढ़े। सौ-सवा गज जाकर रुक जाइएगा और सीटी बजाइएगा। मैं आ जाऊंगा। तब तक जरा गार्ड से निपट लूं।
सभी साथी चले गये। मैं अकेला गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के पास खड़ा था। सामने टेªन खड़ी थी। सारी फिजा शान्त औ निःस्तब्ध। मैं दो-तीन मिनट चुप खड़ा रहा। हमारे सब साथी अंधेरे में ओझल हो गये थे। जब मैंने खामोशी को भंग कर शन्त स्वर में अंग्रेजी में कहा- वेल गार्ड साहब, डेड मैन कैन नॉट स्पीक। जिसका मतलब था- मुर्दा आदमी बोल नहीं सकता। मैंने गार्ड से यह भी कहा- आपने मुझे बिजली की रोशनी में बहुत देर तक देखा है और पहचाना भी है। पुलिस कार्यवाही में आप मुझे पहचानेंगे। इसलिए आपको क्यों न खत्म कर दूं, ताकि पहचानने का झगड़ा ही खतम हो जाए। मैं यह सब बातें धीरे-धीरे बहुत शान्ति से बोलता रहा। गार्ड साहब अपने सामने मौत का नजारा देखकर हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे और बोले हुजूर! मैं आपको कतई नहीं पहचानता हूं, मुझे मत मारिए।
मैंने कहा- सिर्फ एक कारतूस का खर्च है और सब संकट खत्म हो जाएगा।
गार्ड साहब बड़ी आजिजी से बोले- मैं आपको कैसे समझाऊं कि मैं आपको कभी नहीं पहचानूंगा।
मैने पूछा- पुलिस के जोर देने पर भी नहीं?
उन्होनंे कहा- कभी भी नहीं।
मैंने फिर पूछा- यह आपकी प्रतिज्ञा है?
उन्होंने जोर देकर कहा- जी हुजूर, यह मेरी प्रतिज्ञा है और अटल प्रतिज्ञा है।
मैंने कुछ सोचा और पूछा कि वह ईश्वर को मानते हैं कि नहीं?
उनके हामी भरने पर और ‘जी हां’ कहने पर मैंने कहा- इस वक्त मेरे और आपके बीच जो कुछ बात हुई, उसका साक्षी आपका ईश्वर है। आपने ईश्वर को साक्षी करके यह प्रतिज्ञा की है कि आप मुझकों नहीं पहचानेंगे।
इस घटना के एक साल छह महीने बाद मैं बिहार प्रान्त के भागलपुर शहर में गिरफ्तार हुआ। इस बीच में मेरे बहुत से साथी गिरफ्तार हो गये थे। लखनऊ में काकोरी षड्यंत्र का मुकदमा चल रहा था, जिसमें मुखबिरों के बयानों से बहुत से भेद खुल चुके थे। इकबाली मुलजिम बनवारीलाल बता चुका था कि टेªन डकैती में सेकेण्ड क्लास में अशफाकउल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी और मैं थे। रेलवे का डाक्टर चंद्रपाल गुप्ता, जो हमारे डिब्बे में आ गया था, राजेन्द्र लाहिड़ी और अशफाक की शिनाख्त कर चुका था। एक मैं ही बाकी बचा था।
पहचान की कार्यवाही के लिए जेल के अहाते में मजिस्ट्रेट के सामने 5 या 6 कैदियों के साथ मुझकों खड़ा किया गया।
और कई गवाहों के गुजरने के बाद जगन्नाथ प्रसाद मेरे सामने आये। उनके आते ही मैंने उन्हें पहचान लिया। जब वह मेरे सामने से गुजरे तब उनकी आंखों में भी पहचानने की झलक-सी देखी, लेकिन वह मुझे न पहचानने का अभिनय करते हुए आगे बढ़ गये। दो चक्कर लगाने के बाद उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा- इनमें तो नहीं है। मजिस्ट्रेट ने फिर से गौर करने कोे कहा। उसने और दो चक्कर मेरे सामने लगाये। इस बार भी मैंने उनकी आंखों में पहचानने की झलक देखी, लेकिन उन्होंने मेरे बगल वाले व्यक्ति का हाथ पकड़ा। फिर गार्ड साहब बाहर भेज दिये गये।
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद के चले जाने के साथ-साथ मेरे मानसपटल पर चलचित्र की भांति 9 अगस्त, 1925 की सारी घटनाएं रह-रहकर उभरने लगीं।
काकोरी सप्लिमेण्टरी षड्यंत्र केस में अशफाक को फांसी दे दी गयी और मुझको उम्रकैद की सजा मिली। जमाना गुजर गया। यू.पी. की सेंट्रल जेलों में बहुत-सी लड़ाइयां लड़ने के बाद और बहुत सारी भूख-हड़ताल करने के बाद मैं रिहा हुआ। मेरे सह साथी भी रिहा हुए।
सन् 1938 की बात है। मैं लखनऊ लौटने के लिए रायबरेली स्टेशन पर बैठा था। प्लेटफार्म पर पंजाब मेल का इंतजार करते हुए एक बेंच पर बैठकर मैं अखबार पढ़ रहा था।
इतने में एक रेलवे अफसर मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। उसके सफेद सूट को मैं देख रहा था। मेरा नाम पुकार कर नमस्ते करने पर जब मैंने सिर उठाया, तब देखा कि वही चिरपरिचित गार्ड जगन्नाथ प्रसाद खड़े हैं।14 वर्ष बीत जाने पर भी मैंने उन्हें फौरन पहचान लिया। मैंने हंसकर कहा - हैलो गार्ड साहब, आप मुझे भूले नहीं हैं।
गार्ड जगन्नाथ प्रसाद ने उस पुराने लहजे में उत्तर दिया- नहीं हुजूर, इस जिंदगी में मैं आपको कभी भूल नहीं सकता।
- शचीन्द्रनाथ बख्शी
क्रंातिकारी शचीन्द्रनाथ बख्शी की पुस्तक - ”वतन पे मरने वालों का...” से साभार (ग्लोबल हारमनी पब्लिशर्स, नई दिल्ली)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The question of food security is being hotly discussed among wide circles of people. A series of national and international conferences, sem...
-
HUNDRED YEARS OF INTERNATIONAL WOMEN'S DAY (8TH MARCH) A.B. Bardhan Eighth March, 2010 marks the centenary of the International Women...
-
Something akin to that has indeed occurred in the last few days. Sensex figure has plunged precipitately shedding more than a couple of ...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
अयोध्या- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है , समाधान अभी बाकी है सर्वोच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ द्वारा राम जन्मभूमि- बाबरी मस्...
-
( 5 फरबरी 2019 को जिला मुख्यालयों पर होने वाले आंदोलन के पर्चे का प्रारूप ) झूठी नाकारा और झांसेबाज़ सरकार को जगाने को 5 फरबरी 2019 को...
-
(कामरेड अर्धेन्दु भूषण बर्धन) हाल के दिनों में भारत में माओवादी काफी चर्चा में रहें हैं। लालगढ़ और झारखंड की सीमा से लगे पश्चिमी बंगाल के मिद...
-
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा बल SSF के गठन को जनतंत्र ...
-
लखनऊ- 13 अगस्त- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कमेटी ने गोरखपुर की ह्रदय विदारक घटना जिसमें कि अब तक 60 से अधिक बच्चों...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें