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शुक्रवार, 29 मई 2015
at 10:53 am | 0 comments |
CPI General Secretary Com. Survaram Sudhakar Reddy's open letter to Mr Narendra Modi, Prime Minister
New Delhi
29th May 2015
To,
Shri Narendra Modi
Hon’ble Prime Minister
Government of India
New Delhi.
Dear Shri
Narendra Modiji,
I have read
with interest your letter addressed to ‘fellow citizens of the country’ on the
occasion of the completion of one year of your assumption to the post of Prime
Minister of the nation. You have explained the activities of your government
during the period. I felt that I should write to you regarding what we feel
about your achievements and their results.
I know you are
working hard visiting several countries to bring FDIs to India, though there is
a valid criticism that you have spent 53 days to tour 18 countries in the last
one year but have toured only 48 days in India. You may change the balance. But
your tours are business ones not political ones as our earlier Prime Ministers
did. Some of Prime Minister Jawaharlal Nehru’s interactions with Heads of
Nations at conferences like ‘Bandung’ and his inking of ‘Panchseel’ with Chou en
Lai are historic. However, your efforts to improve relations with our
neighbours and trade relations with Asian, Latin American countries should
yield positive results as the US and European countries are in crisis and
trying to throw their burden on developing countries like India.
But your claim
that your government is trying to improve the poorest on the principle of ‘Antyodaya’
is unfounded. Contrary, the Land Acquisition Ordinance is against the peasants
particularly the poor peasants. Labour reforms are against the workers who are
producing wealth by their sweat and blood. Your proposal to make it difficult for
workers to organise trade unions certainly is not in favour of the poor but
helps only the rich industrialists to exploit more.
I hereby give
you the list of a few poor Indians who benefited in your one year rule. The
following corporates added exorbitantly to their wealth this year.
Gautam Adani Rs 50,000 crore
Bharati Group
(Sunil Mittal) Rs 60,000 crore
HDFC Rs 1,00,000
crore
SUN Group Rs 1,00,000
crores
Tatas Rs 1,10,000
crores
The total
increase of corporate houses during this period is Rs 10 lakh crores. Those
benefited are Mahindras, ICICI, Infosys Wipro, HVL and HCL etc. (Source PTI).
The one-year has seen continuous rise in prices of all essential
commodities as the big business are free to manipulate prices through hoarding
and forward trading. Certainly this
is not a proud record in favour of people. Suicides of farmers are still
continuing, poverty is on increase, prices of food grains and all other essential
commodities have gone up. Atrocities on women, dalits and terror on minorities are
is on the increase. Among people who were surveyed, more than 60% are saying
that corruption has increased.
Your claim is that power brokers’ raj has been demolished.
But now the one-man rule has got reduced to the old style. Your party campaign
resembles the ‘India shining campaign’ of your party widely publicised before
its miserable defeat 11 years back.
The threat to abolish special status to north-eastern
states is against the federal principle on the pretext that the Finance
Commission has recommended 42% to states. But on the whole it is less by 1%
than it was earlier to states’ share (6% to 5%).
Also, banning of beef in some BJP ruled states is
interfering with the food habits of people. Muslims, Christians, Dalits,
Adivasis, OBCs, and some other caste people eat beef. Your minister wants all
of them to go to Pakistan if they want to eat beef. This gives an impression
that you do not have any control on their utterances, which are foolish and
insulting majority of our population.
Under your one-year rule, attacks on the minorities have
increased. In the national capital itself, there had been anti-Muslim violence
in Trilokpuri and ghastly attacks on churches and other Christian institutions.
Your calculated silence on vicious outbursts of leaders of
various outfits of Sangh Parivar is the main cause of their encouragement.
Please break your silence and explain your approach on the policy of your party
and Sangh Parivar. It is going to destroy the secular fabric of our
country.
Dear Shri Modiji,
I have quoted only a few examples. One year is certainly a
review time. Rethink about your policies, come out from the clutches of
corporates and stand with the poor and exploited people of our mother land.
Introspect with heart and soul. Decide whether you are with the exploiting
corporates or with the people of India.
With regards,
Yours Sincerely,
(Suravaram Sudhakar Reddy)
Former Member of Lok Sabha
General Secretary, CPI
शनिवार, 16 मई 2015
at 10:48 am | 0 comments |
डीजल, पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की भाकपा ने की निन्दा - सरकार से उत्पाद कर हटाने की मांग की
लखनऊ 16 मई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य सचिव मंडल ने एक महीने में तीसरी बार पेट्रोल और डीजल के दामों में हुई बेतहाशा वृद्धि को आम और गरीब जनता पर एक भारी बोझ बताया है। इन बढ़ोत्तरियों की निन्दा करते हुए भाकपा ने कहा कि इससे हाल ही के दिनों में बढ़ी मंहगाई और भी कुलांचे भरेगी और इससे जनता का जीवनयापन कठिन से कठिनतर हो जायेगा।
भाकपा ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल के दामों में इस दौरान कोई ऐसी बढ़ोतरी नहीं हुई है और न ही रूपये की कीमत में कोई विशेष गिरावट आई है जिससे एक माह में ही तीन बार बहुत ज्यादा कीमतों में इजाफे की जरूरत होती। फिर भी रिलायंस जैसी निजी पेट्रोलियम कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा एक माह के अन्दर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इतनी अधिक बढ़ोतरी की गई है।
यहां जारी एक बयान में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि जब पेट्रोल और डीजल की कीमतें घट रहीं थी तो सरकार ने उत्पाद कर लगा कर घटती हुई कीमतों का लाभ जनता को मिलने से वंचित कर दिया था लेकिन अब जब कीमतें बढ़ाई जा रही हैं तो उस बढ़े हुए उत्पाद कर वापस लेने की जरूरत है। भाकपा मांग करती है कि विगत माहों में पेट्रोलियम पदार्थों पर अतिरिक्त रूप से बढ़ाए गए उत्पाद करों को वापस ले और साथी ही इन बढ़ी हुई कीमतों को वापस लें।
भाकपा ने अपनी सभी जिला कमेटियों को निर्देशित किया है कि वे पेट्रोल डीजल के दामों में हुई इस बढ़ोतरी के खिलाफ और उत्पाद कर को घटाने के लिए सोमवार 18 मई को राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे।
गुरुवार, 14 मई 2015
at 5:12 pm | 0 comments |
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश तथा मौसम की मार से बरवाद किसानों को पर्याप्त मुआवजा न देने के खिलाफ भाकपा के देशव्यापी आन्दोलन को उत्तर प्रदेश में जबर्दस्त सफलता
लखनऊ 14 मई। भाकपा के राष्ट्रीय आह्वान पर केन्द्र सरकार द्वारा थोपे जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने और मौसम की मार से बरवाद हुए किसान और ग्रामीण मजदूरों को पर्याप्त राहत दिलाने की मांगों को लेकर आज उत्तर प्रदेश में भी भाकपा के लगभग 50 हजार कार्यकर्ता ने सड़कों पर उतर कर विभिन्न स्थानों पर रास्तों पर जाम लगाकर जनता के आक्रोश को आवाज दी। प्रेस बयान जारी किये जाने तक 60 से अधिक जिलों में भाकपा कार्यकर्ताओं के गिरफ्तार किये जाने के समाचार राज्य मुख्यालय को प्राप्त हो चुके हैं।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगभग 200 भाकपा कार्यकर्ता पार्टी के राज्य मुख्यालय कैसरबाग से जुलूस की शक्ल में सड़कों पर उतरे, जुलूस विशेश्वर नाथ रोड होते हुए विधान सभा मार्ग पर पहुंचा और जीपीओ पर रास्ता रोकने का सफल प्रयास किया। अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट के निर्देश पर पुलिस ने सभी भाकपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। भाकपा कार्यकर्ताओं का नेतृत्व भाकपा के राज्य नेता अरविन्द राज स्वरूप, श्रीमती आशा मिश्रा और सदरूद्दीन राना के साथ ही जिला मंत्री मो. खालिक तथा सह मंत्री डा. अशोक सेठ ने किया।
सुल्तानपुर में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश तथा जिला मंत्री शारदा पाण्डेय के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने अलीगंज बाजार में जाम लगाया। लगभग 2 घंटे के बाद पुलिस ने कार्यवाही करते हुए 500 भाकपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है जो अभी हिरासत में हैं।
मऊ में राज्य सह सचिव एवं पूर्व विधायक इम्तियाज अहमद तथा राज्य कार्यकारिणी सदस्य विनोद राय के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने नेशनल हाईवे पर जाम लगाया जबकि बुलन्दशहर में भाकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य अजय सिंह के नेतृत्व में भाकपा कार्यकर्ताओं ने बुगरासी में हाईवे पर जाम लगाया। फैजाबाद में भाकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य अतुल सिंह तथा जिला मंत्री अशोक तिवारी के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने कचेहरी गेट पर तथा रोडवेज चौराहे पर रास्ता जाम किया।
इसी तरह भाकपा कार्यकर्ताओं ने बहराईच में गोण्डा मार्ग पर, गोण्डा में लखनऊ रोड पर, बलरामपुर में गोण्डा रोड पर तथा उतरौला में, मुरादाबाद में नेशनल हाईवे पर, कानपुर नगर के बिल्हौर में जी. टी. रोड पर, कानपुर देहात में माती रोड पर, औरैया में तहसील के सामने, जालौन में कचेहरी पर, आजमगढ़ के लालगंज में आजमगढ़-वाराणसी मार्ग पर, झांसी में कचेहरी चौराहे पर तथा मऊरानीपुर तहसील के सामने, ललितपुर में कचेहरी के सामने, भदोही में तहसील के सामने, मथुरा में आगरा रोड पर, प्रतापगढ़ में कचेहरी पर, सोनभद्र के चोपन में, खलीलाबाद में नेशनल हाईवे पर, गाजीपुर में लंका चौराहे पर, वाराणसी में कचेहरी पर, इलाहाबाद में कचेहरी पर, फतेहपुर में खागा चौराहे पर, सीतापुर में कचेहरी पर, बरेली में जिलाधिकारी आवास के सामने, बाराबंकी में कचेहरी के सामने, बिजनौर के अफजलगढ़ में, ज्योतिर्बाफूलेनगर के मंडी धनौरा में, देवरिया में जिला मुख्यालय पर, मुजफ्फरनगर के जानसठ में, पीलीभीत में कचेहरी पर, हाथरस के मेंडू में, महाराजगंज में कचेहरी पर, बदायू में कचेहरी के सामने, अलीगढ़ में मथुरा रोड पर, बलिया में मेन रोड पर जाम लगाया।
मंगलवार, 12 मई 2015
at 10:56 am | 0 comments |
भाकपा का देशव्यापी आन्दोलन 14 मई को
लखनऊ 12 मई। केन्द्र सरकार द्वारा थोपे जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने और मौसम की मार से बरवाद हुए किसान और ग्रामीण मजदूरों को पर्याप्त राहत दिलाने की मांगों को लेकर के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 14 मई को पूरे देश में जुझारू आन्दोलन छेड़ रही है। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में पार्टी के कार्यकर्ता 14 मई को बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतर कर जिलों-जिलों में रास्ता रोकेंगे। इस आन्दोलन के लिए भाकपा का नारा है - ”खेत बचाओ, किसान बचाओ, कारपोरेट से देश बचाओ“।
गत दिन उत्तर प्रदेश में आन्दोलन की तैयारियों की समीक्षा करने के लिए पार्टी की मंत्रिपरिषद की बैठक यहां सम्पन्न हुई और पाया गया कि 1 मई से ही जिलों-जिलों में भाकपा कार्यकर्ता जन सम्पर्क अभियान चला रहे हैं और बड़े पैमाने पर पूरे प्रदेश में रास्ता रोकने की तैयारियों में जुटे हैं।
मंत्रिपरिषद ने अपने समस्त राज्य कार्यकारिणी सदस्यों को किसी न किसी जिले में आन्दोलन का नेतृत्व संभालने का निर्देश दिया है। राज्य सचिव डा. गिरीश सुल्तानपुर में आन्दोलन का नेतृत्व करेंगे जबकि सह सचिव अरविन्द राज स्वरूप और राज्य सचिव मंडल सदस्य आशा मिश्रा एवं सदरूद्दीन राना लखनऊ में, राज्य सह सचिव इम्तियाज अहमद मऊ में, मंत्रि परिषद सदस्य अतुल कुमार सिंह फैजाबाद में एवम् अजय सिंह बुलन्दशहर में आन्दोलन का नेतृत्व करेंगे।
भाकपा ने यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में जनता के व्यापक तबकों से अपील की है कि वह अधिक से अधिक संख्या में भाकपा के आन्दोलन में शामिल हो और सहयोग प्रदान करें।
शनिवार, 9 मई 2015
at 4:29 pm | 0 comments | फसिस्म, भाकपा, शमीम फैजी
एक प्रासंगिक वर्षगांठ
9 मई फासीवाद पर जीत की 70वीं वर्षगांठ है। इसे मनाये जाने की आवश्यकता है ना केवल असंख्य लोगों द्वारा किये गए सर्वोच्च बलिदानों, विशेषकर पूर्व सोवियत संघ की लाल सेना के कारण बल्कि इससे भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू दोनों मोर्चों पर सामाजिक आर्थिक विकास के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता के लिए भी। काफी विकसित अर्थव्यवस्थाएं 2008 में शुरू हुई आर्थिक मंदी के कारण आर्थिक संकट में फंस गयी हैं और अभी भी नव उदारवाद के संरक्षक इसे बड़ी मंदी का नाम दे रहे हैं और फासीवादी रूझानों के शासन तहत आ रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय वित्त पंूजी के आर्थिक हितों की सेवा करने वाली राजनीतिक शक्तियां इन देशों में सभी विभाजक मतांध नारों का सहारा ले रही हैं जिसमें आप्रवास के विरोध की पकड़ में रहने वाला नस्लवाद भी शामिल है। वैश्विक मंदी पंूजीवाद का नियमित संकट नही है बल्कि यह दुनिया में अपना राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व कायम करने के लिए वित्त पंूजी द्वारा चले जा रहे विशेष दांव के कारण है। वित्त पंूजी के इस संकट से निकलने में विफल रहने के कारण इसके बोझ को विकासशील देशों, विशेषकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और उनके लोगों पर डाल रही है। युद्ध और तनाव थोपे जा रहे हैं, ना केवल प्राकृतिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण बनाये रखने के लिए बल्कि युद्ध उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए, विशेषकर सेना और उद्योग गठजोड़ के लिए। दुनिया फासिवादी हमले के गंभीर खतरे का सामना कर रही है और वित्त पंूजी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए और अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
घरेलू स्तर पर भी कारपोरेट पंूजी, दक्षिणपंथी विचारधारा और फासीवादी रूझानों वाली सांप्रदायिकता के निकृष्तम रूप वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के कारण देश एक बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। सत्ता में आने का इसका इस महीने एक साल पूरा होने वाला है। इस छोटे से समय में ही यह सरकार आपना सामाजिक और आर्थिक चेहरा पूरी तरह बेनकाब करवा चुकी है। पिछली सरकार की तरह ही यह सरकार भी पूरी तरह से आर्थिक नव उदारवाद को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। जैसे कारपोरेट पंूजी ने उसे सत्ता में लाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाया तो मोदी सरकार भी बेशर्मी और नंगई से बचे हुए नव उदारवाद के एजेंडे को ‘‘सुधार प्रक्रिया‘‘ के नाम पर आगे बढ़ा रही है। इसमें प्रत्येक संभावित छूट की बारिश कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों पर की गई है और मजदूर वर्ग द्वारा लड़ कर हासिल किये गए अधिकारों को कुचलने के लिए एक के बाद एक कानून बनाये जा रहे हैं। यह स्पष्ट है कि “श्रम सुधार“ इसके लिए सरकार का अर्थ केवल पंूजीपतियों को मजबूत करके श्रमिकों के अधिकारों को बेदर्दी से खत्म करने और हायर एण्ड फायर की नीति को थोपने से है।
इसके साथ ही, इसने साफ कर दिया है कि उसमें जनता के जनवादी अधिकारों और जनवादी व्यवस्था के प्रति कोई सम्मान नही है।
संसदीय जनवाद को सोची समझी योजना के तहत अपमानित किया जा रहा है। सरकार अपना आर्थिक एजेंड़ा आगे बढ़ाने के लिए अध्यादेश राज की राह पकड़ रही है। इसके अलावा जनता को अधिकार प्रदान करने वाले कुछ कानून भी संशोधन की सूची में हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम और व्हिसिल ब्लोअर की सुरक्षा का कानून विशेषकर इस हिट लिस्ट में हैं। यह भ्रष्टाचार की सुरक्षा करने के लिए भी है।
जनता पर नए आर्थिक बोझ लादे जा रहे हैं। अनिवार्य वस्तुओं के दाम विशेषकर खाद्य वस्तुएं जिसमें अनाज और दालें शामिल हैं नई सरकार के तहत आसमान छू रहे हैं। सरकार को जनता की दुर्दशा की कम ही चिंता है। यह अच्छे दिन सब इनके अपने लोगों के हैं। इसे सुनियोजित तरीके से किया जा रहा जाति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण दोगुना कर रहा है। मोदी-अमित शाह की जोड़ी द्वारा किया जा रहा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण केवल राजनीतिक रणनीति के आधार पर ही नही है बल्कि इसे जनता का ध्यान उनकी वास्तविक सामाजिक आर्थिक समस्याओं से हटाने के लिए भी किया जा रहा है। एक प्रभुत्ववादी मनोदशा के मुखिया वाली सरकार देश को एक फासीवादी सत्ता को सुपूर्द करने के लिए इन सभी आर्थिक, सामाजिक और सांप्रदायिक हालात को पका रही है।
इन परिस्थितियों में एक अनेकों सर वाले राक्षस का कोई एक पहलू लेने का कोई उपयोग नही होगा। खतरे को संपूर्णता में देखा जाना चाहिए और उससे समग्रता में लड़ा जाना चाहिए। जब सांप्रदायिकता के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए एक संभावित एकता की कोशिश कर रहे हैं, हमें जनता को लामबंद करके वैकल्पिक नीतियों के लिए लड़ने के लिए सड़कों पर लाना होगा। इन दोनों को साथ लेकर ही सभी पंूजीवादी राजनीतिक दलों और बुनियादी रूप से उनके नव उदारवाद नीतियों के प्रति प्रतिबद्धता का विकल्प बनाने के लिए जनता को जागरूक बनाने की आवश्यकता है। एक वाम जनवादी विकल्प बनाने का यही रास्ता है जोकि फासीवादी कब्जे के खतरे को विफल करेगा।
(”मुक्ति संघर्ष“ का सम्पादकीय)
गुरुवार, 7 मई 2015
at 10:42 am | 0 comments |
सोंख और शामली की घटनाओं पर भाकपा ने राज्य सरकार की आलोचना की
लखनऊ 7 मई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है कि सोंख (मथुरा) और शामली में कानून-व्यवस्था के मामलों को हल न करने के कारण उन्होंने उग्र रूप ले लिया और यह घटनायें साम्प्रदायिकता का रूप लेते लेते बचीं। भाकपा ने इसके लिए राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि सोंख में गत एक सप्ताह से एक मामले को लेकर तनाव व्याप्त था और उसकी खबरें समाचार पत्रों में भी लगातार आ रहीं थीं। इसी तरह शामली में जमातियों पर हुए हमलों के बाद तनाव पैदा हो गया था। लेकिन स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार ने अपरिहार्य कदम नहीं उठाये। शामली में तो सपा के विधायक ही लोगों को भड़काने में अगुआ थे। सरकार, प्रशासन और शासक पार्टी की वजहों से इन स्थानों पर तनाव पैदा हुआ और उन्होंने आपसी मुठभेड़ों का रूप ले लिया। अगर समय रहते जरूरी प्रशासनिक कदम उठाये गये होते तो शायद यह वारदातें नहीं हो पातीं।
भाकपा ने इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है कि इन छोटी-छोटी वारदातों का लाभ साम्प्रदायिक शक्तियां और दूसरे निहित स्वार्थी तत्व बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिकता भड़काने को उठा सकते हैं जैसाकि उन्होंने लोक सभा चुनावों के पहले किया था। अतएव भाकपा राज्य सरकार से मांग करती है कि ऐसे मामलों में ठोस राजनैतिक पहल और प्रशासनिक कार्यवाही करने की आदत डाले वरना उत्तर प्रदेश की शान्ति और सौहार्द को ठेस पहुंच सकती है।
कार्यालय सचिव
शनिवार, 2 मई 2015
at 10:29 am | 0 comments |
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की 21वीं कांग्रेस (विशाखापट्नम) के उद्घाटन सत्र में 14 अप्रैल को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी का भाषण
सर्वप्रथम मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जिसकी 22वीं पार्टी कांग्रेस हाल ही में पुडुचेरी में हुई, की नवनिर्वाचित राष्ट्रीय परिषद की तरफ से आप सबका अभिनंदन करता हूं। मजदूर वर्ग के संघर्षों के गौरवपूर्ण इतिहास वाले, ऐतिहासिक बन्दरगाह शहर विशाखापट्नम में यहां आपकी कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को दिए गए आमंत्रण के लिए मैं आपकी पार्टी, हमारे देश में सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्यों को धन्यवाद करता हूं।
पटना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस के बाद से, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पिछले तीन सालों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति पर गंभीर विचार-विमर्श एवं गहन विश्लेषण से ताजा-ताजा आते हुए, मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की तरफ से इस तथ्य को रेखांकित करना चाहता हूं कि हमारे देश के हाल के राजनीतिक घटनाचक्र ने हमारे देश और जनता को दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी सांप्रदायिक एवं फूटपरस्त ताकतों के चंगुल से बचाने की जिम्मेदारी हमको सौंपी है। हमारी पार्टी कांग्रेस विश्व पूंजीवाद के गहरे संकट और हमारे देश में दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया के सत्ता में आ जाने की पृष्ठभूमि में हो रही है।
यह एक हकीकत है कि 2014 में हुए आम चुनावों के बाद भारत की संसद में कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम हो गया है। यद्यपि हम यह महसूस करते हैं कि यह एक गंभीर चुनावी विफलता है परंतु भारत की जनता ने कम्युनिस्टों को अस्वीकार नहीं किया है। इसके बजाय, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में पूरी तरह बदनाम तत्कालीन यूपीए-2 सरकार के विकल्प के संघर्ष में जनता ने उस समय उपलबध एक मात्र विकल्प अर्थात भाजपा और उसके गठगंधन एनडीए का विकल्प चुना इस उम्मीद के साथ कि एक बार जब वे सत्ता में आ जाएंगे तो हालात में बेहतरी की दिशा में बदलाव होगा।
उनकी उम्मीदों के साथ विश्वासघात हुआ और हमारे समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं सम्प्रभु गणतंत्र के सामने अभूतपूर्व चुनौतियों के साथ हालात जल्दी ही बदतर हो गए। इस समय हमारी देश की जनता विपत्ति, हताशा की स्थिति में है जो धीरे-धीरे आक्रोश में बदल रही है। जब दिल्ली विधानसभा का जनादेश हाल मे बनी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जबरदस्त तरीके से आया तो यह बात अच्छी तरह साबित हो गई। भाजपा विधानसभा में नगण्य से छोटे समूह में घटकर रह गई जबकि कांग्रेस पार्टी का पत्ता साफ हो गया। दिल्ली चुनाव ने साबित किया कियदि हम जनता में विश्वास जगा सकें तो भाजपा और उसकी दक्षिणपंथी राजनीति का प्रतिरोध किया जा सकता है और उसे हराया जा सकता है। वामपंथ को इसके सबक लेने की जरूरत है।
पुडुचेरी में कामरेड सी.के. चन्द्रप्पननगर में होने वाले समूचे विचार-विमर्श में और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 22वीं कांग्रेस के समापन दिवस पर आम सभा में जो बात गूंज रही थी वह थी और अधिक मजबूत वाम एकता और उसे मजबूत करने का आह्वान। मैं यह बात भी रिकॉर्ड पर रखना चाहताूं कि कामरेड प्रकाश करात समेत भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति ने न केवल हमारे डेलीगेटों को बल्कि हमारे शुभचिंतकों एवं वामपंथी आंदोलन के मित्रों को भी अनुप्राणित किया जिन्होंने बाद में हमारे पार्टी मुख्यालय को अपने संदेशों के जरिये इसका वामपंथी एकता, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय संकट की इस नाजुक घड़ी में सर्वाधिक आवश्क है, के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में स्वागत किया।
भूख, बेरोजगारी, अल्परोजगार, लोकतांत्रिक एवं मानव अधिकारों का दमन और पूंजीवाद द्वारा निर्मम शोषण- ये सब आज की कठोर एवं नग्न वास्तविकताएं हैं। पूंजीवाद गहरे संकट में है, विशेषकर अमरीका और यूरोप में। सुपर मुनाफों की इसकी ललक के साथ मुक्त बाजार का नजीता हजारों बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के दिवालियेपन के रूप में निकला, इसके फलस्वरूप बेरोजगारी और बढ़ी, महंगाई अधिक बढ़ी और साथ ही जनता की मुश्किलें-तकलीफें बढ़ी।
संकट के बावजूद, कारपोरेटों और अन्य धनी व्यक्तियों की धन-दौलत बढ़ती जा रही है और अमीर और गरीब के बीच का फासला असामान्य तरीके से बढ़ रहा है। संकट के बोझ को बेरहमी के साथ मेहनमकश लोगों, गरीबों और यहां तक कि वृद्ध आयु के पेंशनयाफ्ता लोगों के ऊपर डाला जा रहा है।
मजदूरों, किसानों और आम आदमी को जिंदा रहने और शालीन जिंदगी गुजराने के बुनियादी अधिकार तक से वंचित कर जनता की कीमत पर अमीर परस्त एजेंडे पर अमल किया जा रहा है। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पहले पूरे केंद्रीय बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक क्षेत्र की स्कीमों के बजट आवंटनों में अत्यंत अमानवीय बड़ी कटौती की घोषणा की गई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के तहत ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम को खत्म किया जा रहा है। इस प्रकार ग्रामीण भारती में गरीबों को जो न्यूनतम सरकारी मदद मिल रही थी उसे खत्म किया जा रहा है। सबसे बेरहम हमला किसानों पर संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल 2015 के रूप में किया गया; प्रधानमंत्री स्वयं अमीरों, कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों की तरफ से इस संशोधित बिल को पारित कराने के लिए अपनी पूरी ाकत के साथ लगे हुए हैं।
यही गंभीर हमला है कि जिसके विरूद्ध हमारी पार्टी कंाग्रेस ने 14 मई 2015 को पैशाचिक, किसान विरोधी, राष्ट्र विरोधी भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के विरूद्ध अखिल भारती विरोध दिवस मनाने का फैसला किया है। हमारी पार्टी कंाग्रेस ने आगामी अवधि में एकताबद्ध वामपंथ के झंडे के तले वर्ग संघर्ष छेड़ने का आह्वान किया है। हमारा विश्वास है कि यह दशक वर्ग संघर्षों का दशक होगा। मुझे पक्का विश्वास है कि आपकी पार्टी कांग्रेस वामपंथी एकता और संयुक्त संघषोें के संबंध में विचार करेगी। आइए, वर्तमान एनडीए सरकार ने जो चुनौतियां पेश की हैं, क्रांतिकारी पार्टियां होने के नाते उन्हें नाकाम करने के लिए हर संभव कोशिश करेें।
आइए, हम अपने आपको आश्वस्त करें कि हमने सब कुछ नहीं खो दिया है। अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट एवं वर्कर्स पार्टियों के परिवार का हिस्सा होने के नाते हमें यूरोप में महान संघषों के जरिये कम्युनिस्ट पार्टियों के पुनः प्रादुर्भाव के संकेतों पर गर्व होना चाहिए। जनता नव-साम्राज्यवादी ताकतों के एक धु्रवीय, तानाशाही भरे तरीकों को चुनौती े रही है। जहां कहीं भी वामंपथ में कुछ ताकत है जबरदस्त हड़तालें और प्रदर्शन हो रहे हैं। ग्रहस में हाल के चुनावों ने यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को एक झटका दिया है।
किफायतशारी के जिन कदमों ने मेहनतकश तबकों की जिंदगी में तबाही ढायी उनके विरूद्ध ग्रीस की जनता के दृढ़ संकल्प से निश्चय ही यूरोप के लोगों को यूरोपीय संघ द्वारा आम आदमी पर किये जाने वाले हमलों के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा मिलेगी। रूस, जापान और नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की ताकत में वृद्धि को संतोष के साथ नोट किया जाना चाहिए। लैटिन अमेरिका में वामपंथी एवं समाजवादी ताकतों की बढ़ती मजबूती और अमेरिका द्वारा यह स्वीकार करना कि क्यूबा के विरूद्ध उसकी पुरानी पड़ी नाकेबंदी एक विफलता थी- ये बातों क्यूबा और लैटिन अमेरिका की ऐहिासिक जीतें हैं। इसी प्रकार बसंत क्रांति अमेरिकी सरकार की उन कठपुतली सरकारों के विरूद्ध अरब के आम लोगों के आक्रोा की अभिव्यक्ति है जो भ्रष्टाचारी और तानाशाही किस्म की है, यद्यपि फिलहाल वह कमजोर पड़ गई है। यह एक ज्वालामुखी है जो कभी भी फिर से फूट सकता है। जनता के विभिन्न समुदायों के बीच गृहयुद्ध छेड़ने के लिए साम्राज्यवादी ताकतें अंध-उन्मादग्रस्त इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों की मदद कर रही है ताकि आम लोगों का ध्यान मुख्यधारा संघर्षों से डायवर्ट हो जाए। साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा आईएसआईएस आतंकवादियों को जबरदस्त तरीके से हथियाबंद किया गया जिसका नतीजा भयंकर खून-खराबे और हजारों मासूम लोगों की मौत के रूप में सामने आ रहा है।
हमारे देश में 28 करोड़ लोग घनघोर गरीबी के शिकार हैं और अत्यंत दयनीय हालत में जिंदगी गुजार रहे हैं जबकि 68। परिवार या कारपोरेट घराने हमारी राष्ट्रीय धन-दौलत के 25 प्रतिशत हिस्से को लूट रहे हैं। किसाल बदहाल है; विदर्भ, तेलंगाना, कर्नाटक एवं अन्य स्थानों पर कर्ज के जाल से बचने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार इन तथ्यों को स्वीकार करने से इंकार करती है।
एक तरफ, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार हमेशा की तरह बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री के कामकाज की शैली तानाशाह, गोपनीय एवं व्यक्तिवादी किस्म की है। दूसरी तरफ, हिन्दुत्ववादी ताकतें “घरवापसी” - जो धर्मांतरण की एक किस्म है- के नाम पर अल्पसंख्यक विरोधी आतंक अभियान छेड़ रही है। ईसाई चर्चों पर दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर हमले किए जा रहे हैं, उनमें तोड़-फोड़ की जा रही है। संघ परिवार के मार्ग दर्शन में सांस्कृतिक आतंकवाद पर आचरण किया जा रहा है। ऐतिहासिक पुस्तकों को जलाने का आह्वान, उनकी सनक के अनुसार उनका पुनर्लेखन, वैज्ञानिक मनोवृति, कलाकारों एवं लेखकों पर हमले जैसी घटनाएं अधिकाधिक शुरू की जा रही है। महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलनों के अन्य नेताओं की छवि को उनक स्थान पर गोडसेपंथ को लाने के लिए बिगाड़ा जा रहा है।
देश के प्रमुख मुद्दों से जनता का ध्यान डायवर्ट करने के लिए तनाव एवं भय मनोवृत्ति पैदा करने के लिए देश को धार्मिक लाइनों पर बांटने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं, असहिष्णुता एवं घृणा में वृद्धि हो रही है। हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दक्षिणपंथी ताकतों के विरूद्ध अनथक योद्ध एवं कामरेड गोविन्द पानसरे सांप्रदायिकता के विरूद्ध और वैज्ञानिक मनोवृत्ति के प्रसार के लिए अपने निरंतर संघर्ष में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पहले शहीद बन गए हैं।
परंतु जन विरोधी आर्थिक नीतियों और सांप्रदायिकता की गंदी चालों के विरूद्ध जनता आवाज बुलंद कर रही है। तमाम केंद्रीय टेªड यूनियन संगठनों द्वारा कोयला हड़ताल, बैंक हड़ताल, पोस्टल डिपार्टमेंट कर्मचारियों की हड़ताल, केंद्र सरकार के कर्मचारियों की प्रस्तावित हड़ताल, केंद्रीय टेªड यूनियनों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन, किसान संघर्ष- ये इसका हिस्सा है।
हमारे महान देश की एकता को बचाने के लिए धर्मनिरपेक्षता की हर कीमत पर रक्षा करनी होगी। लोकतंत्र की रक्षा की जानी है। अमीर और ताकतवर लोगों के हमले ने मेहनतकश लोगों के कठिन संघर्षों के बाद प्राप्त अधिकारों को छीन लिया है। इन अधिकारों को वापस हासिल करना है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।
हमारी पार्टी कांग्रेस ने रेखांकित किया है कि इस कठिन लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए हमें जनता का विश्वास हासिल करने की जरूरत है। हम जिस व्यापक वामपंथी लोकतांत्रिक एकता को हासिल करना चाहते हैं उसके लिए वामपंथी एकता पूर्व शर्त है। आइए, एकताबद्ध हों और जनता में विश्वास पैदा करे। आइए, अपने आधारों को मजबूत बनाएं। आइए, जनता के मुद्दों पर और उनसे फिर से जुड़ने के लिए वर्ग संघर्ष छेड़ें।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विश्वास है कि हमारा देश आज जिस मुश्किल स्थिति का सामना कर रहा है वामपंथ उस पर अवश्य पार पायेगा और एकताबद्ध होकर आत्मविश्वास एवं साहस के साथ आगे बढ़ेगा। वामपंथ ही अकेला है जो हमारे लेखकों, इतिहासकारों, कलाकारों, धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों, आदिवासी किसानों एवं मेहनतकश लोगों के तमाम हिस्सों की रक्षा कर सकता है जो बड़ी उम्मीद की नजरों से वामपंथी की तरफ देख रहे हैं।
प्रिय कामरेडों, पश्चिम बंगाल में भाकपा (मा) तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का सबसे बड़ा निशाना बन गई है जिसके फलस्वरूप अनेक हत्याएं, हमले, भाकपा (मा) दफ्तरों को जलाने की घटनाएं हो रही हैं। भाकपा (मा) और वामपंथ इस आतंक के विरूद्ध और नागरिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोकतंत्र के लिए इस संघर्ष में हम आपके साथ हैं। हम अपने समर्थन एवं एकजुटता का भरोसा दिलाते हैं। पश्चिम बंगाल में हमें भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों के विरूद्ध संघर्ष करना है। हमें पक्का विश्वास है कि इन संघर्ष में हमारी जीत होगी।
प्रिय कामरेडों, इन शब्दों के साथ मैं आपकी कांग्रेस की पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।
आप सबको लाल सलाम!
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिन्दाबाद!
वामपंथ की एकता जिन्दाबाद!
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