फ़ॉलोअर
गुरुवार, 31 दिसंबर 2015
at 3:47 pm | 0 comments |
भाकपा की 90 वीं सालगिरह: साम्यवाद ही क्यों? विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित
भाकपा की 90वीं वर्षगांठ- साम्यवाद ही क्यों? विषय पर गोष्ठी आयोजित
हाथरस- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 90 गौरवशाली साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह जनपद- हाथरस के कस्बा- मेंडू में आयोजित किया गया. गीत और संगीत के कार्यक्रमों के अतिरिक्त वहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया. गोष्ठी का विषय था- साम्यवाद ही क्यों?
गोष्ठी को संबोधित करते हुये भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने और आजाद भारत में एक समानता, भाईचारे पर आधारित और सभी प्रकार के शोषण से मुक्त साम्यवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से भाकपा का गठन देश के उन क्रांतिकरियों ने किया था जो रुस की समाजवादी क्रांति से प्रेरित थे तथा मजदूरों- किसानों को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे.
भाकपा की स्थापना से पहले और उसके बाद मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के विचारों से प्रेरित इन क्रांतिकारियों ने कदम ब कदम अनेक कदम उठाये जिनके चलते देश को आज़ाद कराने में भारी मदद मिली. लेकिन साम्यवादी समाज की रचना का काम आज भी शेष है. सबका साथ और सबका विकास की बात करने वाले आज के शासक अल्पसंख्यक समुदाय को कदम कदम पर हानि पहुंचा रहे हैं और गरीब तथा आम आदमी की कीमत पर कार्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचा रहे हैं.
डा. गिरीश ने कहा कि आजादी के बाद शासक पूंजीपति वर्ग की पार्टियों – कांग्रेस, भाजपा, क्षेत्रीय और जातिवादी दलों ने मेहनतकशों को लुभावने नारे दे कर और उन्हें जाति, क्षेत्र और सांप्रदायिक आधारों पर बांट कर समाजवाद और साम्यवाद के लक्ष्य को भारी हानि पहुंचाई है. वहीं पार्टी में विभाजन करने वालों ने भी इस पावन उद्देश्य को कम हानि नहीं पहुंचाई. महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि आज विभाजन करने वाली पार्टियां उसी नीति और कार्यनीति पर चल रहे हैं जिनकी कि आलोचना करके उन्होने अलग पार्टियां बनायीं थीं.
उन्होने कहा कि आजादी के बाद के इन 67 सालों में जनता ने हर पूंजीवादी दल की सत्ता का स्वाद चख लिया है. आज इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस पूरे कालखंड में किसान कामगार और अन्य मेहनतकश तवाह हुये हैं तथा पूंजीपति, माफिया और राजनेता मालामाल हुये हैं. हमें इन लुटे पिटे तबकों की चेतना को जगाना होगा. इसके लिये भारी मेहनत करनी होगी. लोगों को बताना होगा कि अब उन्हें पूंजीवादी दलों के मायाजाल से बाहर आना होगा. हमें अब सत्ता में पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा और संकल्प लेना होगा कि हम भाकपा की 100 वीं वर्षगांठ तक सत्ता शिखर तक अवश्य पहुंचेंगे.
इसके लिये भाकपा को अपने संगठन की चूलें तो कसनी ही होगी तमाम संकीर्णताओं के प्रति वैचारिक विमर्श चलाते हुये वामपंथी एकता को भी मजबूत करना होगा. वामपंथ को मजबूत बना कर ही वाम जनवादी एकता का रास्ता हमवार होता है. बिना वामपंथ को मजबूत किये जनवादी एकता की बात बेमानी साबित होगी.
भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. गफ्फार अब्बास ने कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा का खेल अब नहीं चलने दिया जायेगा. हम मेहनतकश 100 में नब्बे हैं जिनका हित केवल साम्य्वाद में ही संभव है. समाजवाद और फिर साम्यवाद ही हम सब को सम्रध्द और खुशहाल बना सकता है.
गोष्ठी में डी.एस. छोंकर, बाबूसिंह थंबार, चरनसिंह बघेल, जगदीश आर्य, सत्यपाल रावल, द्रुगपाल सिंह, नूर मुहम्मद, आर. डी. आर्य, नैपाल सिंह( बी. डी. सी.), संजय खान, पप्पेंद्र कुमार, राजाराम कुशवाहा, आबिद अहमद एवं महेंद्र सिंह ने भी विचार व्यक्त किये.
डा. गिरीशभा
»» read more
सोमवार, 28 दिसंबर 2015
at 3:31 pm | 0 comments |
जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुखों के चुनावों चल रही धींगामुश्ती को रोका जाये : भाकपा
लखनऊ- 28 दिसंबर- 2015 : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रि परिषद ने प्रदेश में जिला पंचायत और ब्लाक पंचायत के अध्यक्ष/ प्रमुखों के होने जारहे चुनावों में चल रही धींगामुश्ती, छीन-झपट और बल प्रयोग पर कडी आपत्ति जताते हुये इसे लोकतंत्र के लिये बहुत ही घातक बताया है. भाकपा ने इन कारगुजारियों पर अंकुश लगाने तथा ‘फ्री एंड फेयर’ चुनाव कराये जाने की मांग की है.
उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल एवं मुख्य निर्वाचन अधिकारी को लिखे गये पत्र में भाकपा के राज्य साचिव डा. गिरीश ने कहा है कि हाल ही में प्रदेश की जनता द्वारा जिला पंचायत एवं ब्लाक समितियों के सदस्यों का निर्वाचन इस मकसद से किया है कि वे अपने निकायों का ऐसा मुखिया चुनेंगे जो सच्चाई और ईमानदारी के साथ विकास कार्यों को अंजाम देगा. लेकिन इनके निर्वाचित होते ही इनकी खरीद फरोक्त के लिये बोली लगना शुरु होगयी और धन बल बाहुबल और सत्ता बल के जरिये इनको अपने कब्जे में करने की होड लग गयी. वैसे तो प्रदेश की तीनों प्रमुख पार्टियां- सपा, भाजपा और बसपा इस अनैतिक और लोकतंत्र विरोधी कारगुजारी में लिप्त हैं, लेकिन सत्ता में होने के नाते सपा इस काम में औरों से आगे है. सपा प्रवक्ता ने तो बयान दिया है कि अध्यक्ष पद के प्रत्याशी तय करने में उनकी ‘ताकत और दबंगई’ का ध्यान रखा गया है.
अपने पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि इन दोनों निकायों में विकास के लिये भारी धनराशि आबंटित होकर आती है. माफियातत्त्व इस धनराशि को हडप कर जाना चाहते हैं. अतएव वे सक्षम राजनैतिक दलों के प्रत्याशी बन कर चुनाव लड रहे हैं. राज नेता और राजनैतिक दल भी इस लूट खसोट के भागीदार बनना चाहते हैं. इससे जनता के धन के नेताओं की झोली में जाने का रास्ता तो खुला ही है लोकतंत्र और पंचायती राज सिस्टम भी गहरे संकट में है. इसको बचाने का प्रयास फौरन किया जाना चाहिये.
डा. गिरीश ने दोनों संवैधानिक शख्सियतों से इस मामले में तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग की है.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
»» read more
सोमवार, 14 दिसंबर 2015
at 10:18 pm | 0 comments | आस्था., गंगा आरती, धर्म, नरेंद्र मोदी, शिंजो आबे
गंगा आरती में नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे.
गत दिनों एक हिदी दैनिक में प्रकाशित इतिहासकार श्री रामचंद्र गुहा के एक लेख का उपसंहार कुछ इस प्रकार हुआ है – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि “बहुलता और सहिष्णुता का माहौल सतत आर्थिक विकास के लिये अनिवार्य है.” ऐसा नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी इस बात से सहमत हैं. वह एक साथ आर्थिक आधुनिकतावादी और सांस्कृतिक प्रतिक्रियावादी, दोनों बने रहना चाहते हैं. यह दो घोडौं की सवारी है, जिनमें से एक आगे जा रहा है और दूसरा पीछे.
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की यात्रा का संपूर्ण सार उपर्युक्त शब्दों पूरी तरह अभिव्यक्त है. इस यात्रा के मौके पर मोदी ने जापान के साथ जहाँ कई आर्थिक समझौते किये वहीं अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी जाकर शिंजो अबे के साथ पूरे एक घंटे तक गंगा आरती में भाग लिया. दोनों की तन्मयता देखते ही बनती थी.
यहाँ दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा किये गये आर्थिक/ व्यापारिक समझौतों पर कोई टिप्पणी करना व्यर्थ है. आर्थिक नव उदारवाद और कार्पोरेट हितों के लिये समर्पित भारत सरकार के मुखिया से यह सब अपेक्षित ही है. लेकिन दोनों जनतंत्रों के मुखियाओं का गंगा आरती में पूरा का पूरा एक घंटे बिताना और एक अनापेक्षित तन्मयता का प्रदर्शन करना कई सवाल खडे करता है.
धर्म और आस्था एक बिल्कुल निजी मामला है. किसी भी उच्च पदासीन व्यक्ति अथवा जनसाधारण को अपने धर्म और उसके प्रति उसकी आस्था को पाबंद नहीं किया जा सकता. लेकिन धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देशों के दो दो राष्ट्राध्यक्ष यदि गंगा आरती जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेंगे तो उनके इस कृत्य की नुक्ताचीनी अवश्य ही होगी.
श्री मोदी का लक्ष्य स्पष्ट है. वे आर्थिक नव उदारवाद के एजेंडे पर सरपट दौड्ते हुये भी हिंदुत्व के अपने एजेंडे से हठना नहीं चाहते, यही वजह है वे दादरी जैसी घृणित घटनाओं पर मौन साधे रहे, असहिष्णुता के सवाल पर भी खामोश बने रहे, योग जैसी लोकप्रिय विधा को उन्होने हिंदुत्व की चाशनी में लपेट कर पेश करने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी, आये दिन अपनी पार्टी के नेताओं के विवादास्पद बयानों पर उन्होंने कभी लगाम नहीं लगाई और अब गंगा आरती में भाग लेकर अपनी धर्मपरायण और हिंदूपंथी छवि को पेश करने में कामयाब रहे. आरती के समय जिस तन्मयता का प्रदर्शन उन्होंने किया यदि ऐसी ही तन्मयता उन्होने गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के दौरान दिखाई होती तो बडे खून खराबे को रोका जा सकता था.
शीर्षस्थ पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा किसी धार्मिक क्रिया में भाग लेने का प्रभाव तुरत फुरत होता है. आज ही हरिद्वार की गन्गा समिति ने 9 स्थानों पर आरती करने का और उसे भव्यता प्रदान करने का फैसला किया है. कल वारणसी में भी यही कहानी दोहराई जा सकती है. मोदी हो या शिंजे, कोई भी शासक यही चाहता भी है. धार्मिक कट्टरता बडे और लोग उसी में उलझ कर अपने रोजी रोटी के सवालों को तरजीह न दें, शासक वर्ग ऐसा ही चाहता है.
इस आरती को भव्यता प्रदान करने, इसमें दोनों नेताओं की भागीदारी की व्यवस्थायें करने में जो भारी राजस्व का अपव्यय हुआ उससे वाराणसी जनपद के समस्त सरकारी अस्पतालों की एक सप्ताह की दवा खरीदी जा सकती थी. सुरक्षा इंतजामों या यात्रा पर हुये व्यय को जोड दिया जाये तो इस धनराशि से एक माह की दवायें वाराणसी के अस्पतालों को दी जा सकती थीं. पर मोदी को तो अपने हिंदुत्त्व के एजेंडे को जिंदा रखने और अपने वोट बैंक को साधे रखने की फिक्र है. इसके लिये वे लोकतांत्रिक परंपराओं को तहस नहस करने से भी नहीं चूक रहे.
दास व्यवस्था, सामंती समाज तथा पूंजीवादी व्यवस्था सभी में बहुमत पर अल्पमत का शासन रहता है. समस्त संसाधनों पर अल्पमत समाज का कब्जा रहता है और बहुमत समाज उनके हितों की प्रतिपूर्ति का औजार बन कर रह जाता है. और इस तरह वह घोर अभावों में कष्टमय जीवन बिताने को मजबूर होता है. यह अभाव और कष्ट बहुमत समाज में अल्पमत समाज के प्रति आक्रोश और विद्रोह को जन्म देता है. शासक वर्ग इस आक्रोश और विद्रोह की ज्वाला को शांत करने को तमाम हथकंडे अपनाता है. धर्म और आस्था उनमें सबसे कारगर औजार हैं. मोदी और शिंजे दोनों शासक वर्ग के चतुर सिपहसालार हैं. अतएव एक ओर वे दोनों आर्थिक आधुनिकतावाद का अनुशरण कर रहे हैं, वहीं सांस्कृतिक कट्टरता को भी परवान चढाना चाहते हैं. वाराणसी में गंगा आरती में उनकी भागीदारी इसी उद्देश्य के लिये है.
डा. गिरीश.
»» read more
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...8 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The Central Secretariat of the Communist Party of India (CPI) has issued the following statement to the press: The Communist Party of India ...
-
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (यूनेस्को), पेरिस अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस की 50वीं वर्षगाँठ - 27 मार्च, 2012 - पर जॉन मायकोविच अभिनेता व ...
-
लखनऊ 12 दिसम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का 21वाँ राज्य सम्मेलन 16 से 18 दिसम्बर 2011 को अलीगढ़ के हबीब गार्डन में सम्पन्न होगा, जिसमें पूर...
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी ने आगामी लोकसभा चुनावों में आरएसएस एवं उसके द्वारा नियंत्रित भाजपा को हराने को वामपंथी,...
-
लखनऊ 17 सितम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य मंत्रिपरिषद की एक आपात्कालीन बैठक राज्य सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। ...
-
National Executive (24th May 2011) adopted the following norms for the allotment of MP Lad funds by CPI Members of Parliament Earlier Memb...
-
इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (यूनेस्को),पेरिस विश्व रंगमंच दिवस संदेश : 27 मार्च, 2011 मानवता की सेवा में रंगमंच जेसिका ए. काहवा ...
-
समानुपातिक चुनाव प्रणाली और बुनियादी चुनाव सुधार लागू कराने को वामपंथी लोकतान्त्रिक दल अभियान तेज करेंगे। वाम कन्वेन्शन संपन्न लखनऊ- 20...
-
उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब से मौतों पर भाकपा ने रोष जताया निर्वाचन आयोग से कड़ी से कड़ी कार्यवाही की मांग की लखनऊ- 13 मार्च , 2019- ...
-
प्रकाशनार्थ ( लखनऊ से दिनांक- 7 अगस्त 2019 को जारी )-- जम्मू एवं कश्मीर पर वामपंथी पार्टियों का संयुक्त बयान जम्मू एवं कश्मीर क...