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गुरुवार, 18 मई 2017
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Two months of Yogi Government in U.P.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आज दो माह पूरे कर लिये हैं. खुद योगी जी ने दोमाह में सब कुछ ठीक करने के दाबे किये थे. अब वे इसके लिये एक वर्ष का समय मांग रहे हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि वे इन बिगड़े हालातों के लिये विपक्ष पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं. सभी को उम्मीद थी कि नई सरकार आने के बाद प्रदेश के हालात सुधरेंगे, पर इसके ठीक विपरीत वे बद से बदतर होते जा रहे हैं.
सामान्यतौर पर यह कानून व्यवस्था की समस्या दिखाई देती है. पर गहराई से देखने पर सब कुछ सुनियोजित सा लगता है. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के वास्ते बूचड़ खाना बना दिया गया था और बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के जानमाल को हानि पहुंचाई गयी थी. पर अब सारे उत्तर प्रदेश को बूचड़ खाना बनाया जारहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो मानो अब भी जल रहा है.
उत्तर प्रदेश की आधी आबादी- दलितों, महिलाओं अल्पसंख्यकों और व्यापारियों का बड़ा भाग आज युध्द जैसे हालातों का सामना कर रहा है. उन सबको क्या पता था कि जिनको वोट देकर वे सत्ता सौंपने जारहे हैं वो ही उनके खून के प्यासे बन जायेंगे. जो कल तक हाथ जोड़ कर वोट की गुहार लगा रहे थे, वे ही आज हथियार लेकर हमले कर रहे हैं. पुलिस प्रशासन को अर्दब में लेकर उन्हीं के खिलाफ कार्यवाही करबा रहे हैं. रोजी रोटी छीन रहे हैं, उकसाबे की कार्यवाहियां कर रहे हैं, मार रहे हैं और प्रतिरोध की हर आवाज को हर तरह से कुचल रहे हैं.
सत्ता में आते ही योगी सरकार ने मीटबंदी का तुगलकी फरमान जारी कर दिया. लाखों लोग बेरोजगार होगये. यह अल्पसंख्यकों के एक खास तबके पर आर्थिक हमला था, लेकिन इसकी चपेट में पशुपालक किसान, पशु व्यापारी, टैनरी और साबुन जैसे उद्योग भी आये हैं. सरकार ने आदेश पारित कर उन्हें निशाना बनाया तो सरकार समर्थकों ने उन पर शारीरिक हमले किये. कथित गोरक्षकों ने उनकी दुकानों, खोखों में तोड़ फोड़ की, आग लगायी और पशु ले जाते व्यापारियों- किसानों पर कातिलाना हमले किये. कई को जेल के सींखचों के पीछे पहुंचा दिया गया.
इसी तरह योगी सरकार ने खनन पर रोक लगा दी. खनन के काले कारोबार में सरकार और सत्ता पक्ष से जुड़े लोग अरबों- खरबों कमाते रहे हैं. भाजपा सरकार इस समूचे काले धंधे को अपने अधीन कर लेना चाहती है. पर इसका नतीजा यह निकला कि बालू, बजरी और गिट्टी- मिट्टी के अभाव में उत्तर प्रदेश का समूचा निर्माण उद्योग ठप होकर रह गया और इस कार्य में लगे लगभग एक करोड़ मजदूर, ठेकेदार और व्यापारी बेरोजगार होगये. एंटी रोमियो अभियान चलाकर युवाओं को निशाना बनाया गया और पुलिस- प्रशासन के अलाबा बजरंग दल ने युवक- युवतियों की ठुकाई की. युवाओं में एक अजीब सा भय व्याप्त है.
सहारनपुर, शामली, संभल और मेरठ में आजकल जो कुछ घट रहा है वह बेहद गंभीर है. पहले भाजपा ने वहां दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच फूट के बीज बोने की कोशिश की. सहारनपुर के सड़क दूधली गांव में वर्षों पहले विवाद के चलते डा. भीमराव अंबेडकर जयंती के कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गयी थी. लेकिन भाजपा के सांसद, विधायकों और स्थानीय नेताओं ने वहां अंबेडकर शोभायात्रा का आयोजन किया. स्थानीय अंबेडकरवादियों ने इस आयोजन से दूरी बना कर रखी. अनुमति न होने के बावजूद सैकड़ो की तादाद में भाजपाई वहां पहुंचे और जानबूझ कर अल्पसंख्यक आबादी से जुलूस निकालने की कोशिश की. पुलिस ने इस अवैध यात्रा को रोकने की कोशिश की तो बौखलाये भाजपाइयों ने अल्पसंखकों की दुकानों- मकानों पर हमले वोले और गाड़ियों को रुकवा कर मुसलमानों को मारा- पीटा. इतना ही नहीं सांसद राघव लखनपाल के नेत्रत्व में भाजपाइयों ने सहारनपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आवास पर हमला बोल दिया, वहां तोड़ फोड़ की, सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिये . एसएसपी का परिवार और बच्चे दहशत में आगये. वहां भी पुलिस की मौजूदगी में अल्पसंख्यकों को मारा- पीटा गया.
घटना के तूल पकड़ने के बावजूद राज्य सरकार ने कानून हाथ में लेने वाले सांसद और उनकी मंडली के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. उलटे एसएसपी का तबादला कर दिया गया.
इसके एक दिन पहले शामली के थाना भवन में बाइक से ट्रक टकरा जाने को लेकर अल्पसंख्यकों पर हमला बोला गया. कई अल्पसंख्यकों ने थाने में घुस कर जान बचाई.
अब भाजपा के निशाने पर दलित आगये हैं क्योंकि वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ भाजपा के हाथ की कठपुतली नहीं बने. सहारनपुर, बिजनौर और शामली जनपदों का यह धुर पश्चिमी- उत्तरी क्षेत्र एक ओर जहां सांप्रदायिक रुप से संवेदंशील है वहीं दलितों और गैर दलितों के लोगों के बीच वहां लगातार टकराव चलते रहते हैं. सामंती उत्पीड़न का मुकाबला करने को यहाँ के दलितों ने बिजनौर के कामरेड ब्रह्मानंद के नेत्रत्व में 60- 70 के दशक में 'चमार यूनियन' नामक संगठन का गठन भी किया था. गत लोक सभा और विधान सभा चुनावों में यहां अधिकतर सीटों पर भाजपा से दबंग और सामंती लोग विजयी हुये हैं और दबंग जातियों के हौसले सातवें आसमान पर हैं.
5 मई को ठाकुर बिरादरी के लोगों ने समूचे प्रदेश में बड़े पैमाने पर महाराणा प्रताप जयंतियों का आयोजन किया. देवबंद क्षेत्र के बढ़ाकलां शब्बीरपुर गांव में भी प्रताप जयंती का आयोजन किया गया. इस गांव के दलित 14 अप्रेल को रैदास मंदिर में डा. अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे. ठाकुरों ने इसका विरोध किया था. तभी से दलितों और ठाकुरों के बीच तनाव चल रहा था. इस तनाव के बीच जब बिना अनुमति के राणाप्रताप शोभायात्रा निकाली गयी. जब यह यात्रा दलितों की आबादी में पहुंची तो डी. जे. की आवाज को लेकर विवाद हो गया. दोनों तरफ से पथराव शुरु होगया. आस पास के गांवों के दबंग लोग हथियार बंद हो कर आगये. इस बीच ठाकुर बिरादरी के एक युवक की मौत होगयी.
चर्चा है कि उसकी मौत सिर में पत्थर लगने से हुयी जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी मौत दम घुटने से हुयी. बौखलाये दबंगों ने शब्बीरपुर के दलितों पर हमला बोल दिया. पचास से ज्यादा मकान और दुकानें फूंक दी गयीं. दर्जंनों लोग घायल हुये. पुलिस कर्मियों के वाहन आदि भी जला दिये गये. पुलिस ने दोनों तरफ के लोगों को बराबर का दोषी मानते हुये लगभग डेढ़ दर्जन लोगों को जेल भेज दिया. भयभीत दलित गांव से पलायन कर गये. पुलिस- प्रशासन ने विपक्षी दलों के गांव में घुसने पर पाबंदी लगा रखी है.
हालातों का जायजा लेने को पुलिस महानिदेशक और प्रमुख सचिव- ग्रह सहारनपुर पहुंचे, मगर उन्होने घटना स्थल पर पहुंचने से परहेज बरता. इससे दलितों अल्पसंख्यकों का सरकार पर से विश्वास डिगा है.
9 मई को भीम आर्मी एकता मिशन नामक संगठन ने शब्बीरपुर कांड को लेकर रैदास छात्रावास में बैठक बुलाई जिसे पुलिस ने रोक दिया. तब दलित स्थानीय गांधी पार्क में एकत्रित हुये मगर पुलिस ने वहां से भी उन्हे खदेड़ दिया. गुस्साये दलितों ने सहारनपुर नगर को आने वाले तमाम मार्गों पर जाम लगा दिया और पुलिस से मुठभेड़ें कीं. यह हिंदूवादी जातिवादी उत्पीड़न के खिलाफ दलितों का स्वाभाविक प्रस्फोट था. अब सरकार दलितों के खून की प्यासी बन गयी है और 24 लोगों को संगीन दफाओं में गिरफ्तार किया गया है. भीम सेना के पदाधिकारियों की गिरफ्तारी की कोशिश जारी है. दबंगों ने प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि उसने दलितों के खिलाफ कठोर कार्यवाही न की तो वे खुद हथियारबंद कार्यवाही करेंगे.
इससे पहले बुलंदशहर जनपद के पहासू थानांतर्गत एक गांव में एक हिंदू युवती के मुस्लिम युवक के साथ चले जाने पर बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी के लोगों ने गांव पर धाबा बोल दिया और एक अधेड़ मुस्लिम को पीट पीट कर मार डाला.
संभल जिले के गुन्नौर थानांतर्गत नदरौली गांव में एक विवाहिता के मुस्लिम युवक के साथ चले जाने पर गांव के मुस्लिमों के ऊपर हमला बोल दिया. उनके मकान जला डाले गये, औरतों के साथ बदसलूकी की गयी और बच्चों तक को निशाना बनाया गया. यह सब कुछ पुलिस की मौजूदगी में हुआ. शासन- प्रशासन पर से लोगों का विश्वास पूरी तरह हठ गया है और इस गांव के लोग आसपास के शहरों को पलायन कर गये हैं.
संभल जिला भी बहुत ही संवेदनशील है. यहाँ अप्रेल में भी सांप्रदायिक मुठ्भेड़ हुयी थी. अब यहाँ भी दलित और सामंती टकराव उभर रहा है. दलितों के उत्पीड़न और उनके बाल काटने को स्थानीय नाइयों पर सवर्णों द्वारा लगायी गयी पाबंदी के विरोध में वाल्मीकि समाज के लोगो ने हिंदू देवताओं की मूर्तियों का रामगंगा नदी में विसर्जन किया. बजरंग दल ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन दलितों ने उन्हें खदेड़ दिया. दलितों ने चेतावनी दी है कि यदि उनके साथ भेदभाव न रोका गया तो वे धर्म परिवर्तन करेंगे और अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करेंगे.
अलीगढ़ के गांधीपार्क क्षेत्र में कल्लू बघेल नामक व्यक्ति द्वारा अपनी बीमार भेंस बेचने पर कथित गौरक्षकों ने न केवल उसे पीटा बल्कि छह लोगों को जेल भिजवा दिया. भाजपाइयों के इशारों पर नाच रही पुलिस ने कल्लू बघेल को पीटने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की.
यू. पी. में दलितों को अपमानित करने के उद्देश्य से जगह जगह अंबेडकर प्रतिमायें तोड़ी जारही हैं. दलित इस पर प्रतिरोध दर्ज करा रहे हैं. जहाँ दलितों और सामंती तत्वों के बीच भूमि विवाद चल रहे हैं वहां उन जमीनों को दलितों से हड़पने की कोशिशें की जारही हैं. जगह जगह सांप्रदायिक वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है. बजरंग दल, हिंदू युवा वाहिनी, प्रताप सेना जैसे संगठन निर्भीक होकर आपराधिक और सांप्रदायिक घटनाओं को अंजाम देरहे हैं.
प्रेम प्रसंग के मामलों में पहले भी उत्पीड़न की बारदातें होती थीं लेकिन इन दो माहों में परिवारीजनों द्वारा कानून हाथ में लेकर कई युगलों को मौत के घाट उतार दिया. बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. राजधानी लखनऊ तक में ऐसी दर्जन भर घटनायें होचुकी हैं. अब आईएएस अधिकारी के वीआईपी गेस्ट हाउस में हुये कत्ल ने सरकार की अकर्मण्यता की कलई खोल कर रख दी है. मथुरा में सर्राफा व्यापारियों की लूट के उद्देश्य से की गयी हत्याओं के अलावा कत्ल, लूट और लूट के साथ हत्या की तमाम बारदातें निर्बाध रुप से जारी हैं.
अकेले ब्रज क्षेत्र में कल तक 104 लूट और 76 हत्याओं की घटनायें अंजाम दी जाचुकी हैं. आगरा में 21 लूट, 13 हत्या, फीरोजाबाद में 11 लूट 6 हत्यायें, कासगंज में 10 लूट, 11 हत्यायें, मैनपुरी में 14 लूट, 8 हत्यायें, मथुरा में 17 लूट और 9 हत्यायें, एटा में 8 लूट और 10 हत्यायें, अलीगढ़ में 12 लूट, 10 हत्यायें जबकि हाथरस में 10 लूट और 9 हत्यायें होचुकी हैं. अन्य अपराधों के आंकड़े भी कम नहीं हैं. समूचे उत्तर प्रदेश के आंकड़ों का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. यही वजह है कि मुख्यमंत्रीजी अपराधों के आंकड़े देने से कतरा रहे हैं.
इसके अलाबा इस अवधि में अल्पसंख्यकों के आस्थास्थलों पर 220 हमले हुये हैं जबकि 180 छोटी- बड़ी सांप्रदायिक वारदातों को अंजाम दिया जा चुका है.
जगह जगह भाजपा के नेता पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तक पर हमले कर रहे हैं. योगीजी की कथित चेतावनियों का उन पर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है.
जिस कानून व्यवस्था की बदहाली के नाम पर पिछली सरकार को मतदाताओं ने 'गुड बाय' कह दिया था योगी सरकार उससे भी बुरी साबित हो रही है. अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिये सांप्रदायिक तत्वों और दबंगों को खुली छूट दिये हुये हैं. अपनी इन बदनीयत कारगुजारियों से ध्यान हठाने को भाजपा, आरएसएस और स्वयं योगी आदित्य नाथ सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को हवा दे रहे हैं. पर शासन में रहते हुये उनकी यह कारगुजारी उनके इरादों को परवान चढ़ाने में सहायक होगी या आपात्काल की तरह उनकी पराजय का कारण बनेगी, अभी देखना बाकी है.
डा. गिरीश
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