भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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Communist Party of India, U.P. State Council

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बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

लाठीचार्ज की निंदा

योगीजी ने लाठीतंत्र में बदल दिया है लोकतंत्र को

भाकपा ने आंगनबाडीयों पर लाठी चार्ज की निंदा की


लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने राजधानी लखनऊ में गत दो दिनों में आंगनबाडी कार्यकर्ताओं पर किये गए लाठीचार्ज की कड़े  शब्दों में निन्दा की है.
एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि पिछले कई सालों से अपनी बाजिव मांगों को लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री आंदोलनरत हैं और विगत सालों में अनेक बार वे लखनऊ में भी धरने- प्रदर्शन करती रही हैं. लेकिन यह पहला अवसर है जब 48 घंटों में उन पर कई कई बार लाठीचार्ज हुआ और पुलिस ने इस कार्यवाही में सारी मर्यादायें लांघ दीं.
डा. गिरीश ने कहा कि योगी सरकार के अल्पकालिक कार्यकाल में काम मांग रहे लोगों पर तो बार बार लाठी चार्ज किया गया है, मेरठ में हाईकोर्ट बेच की मांग कर रहे अधिवक्ताओं पर भी भयानक तरीके से लाठीचार्ज किया गया. श्री योगी ने लोकतंत्र को लाठीतंत्र में बदल दिया है.
भाकपा ने सरकार से कहा कि वह रोजी रोटी की मांग कर रहे समाज के अभावग्रस्त तबकों के प्रति अपने रवैय्ये में परिवर्तन करे और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को नसीहत दे कि वे भारतीयों से भारतीय जैसा व्यवहार करें, शत्रुओं जैसा नहीं. भाकपा ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की है.
डा. गिरीश
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सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

Some views on Octobar Revolution

 


अक्तूबर क्रांति और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता

डा. गिरीश


कुछ प्रगतिशील और अतिवादी वाम- बुध्दिजीवी कहते हैं कि सोवियत संघ इसलिये बिखर गया कि समाजवादी क्रांति को एक ऐसे देश में निष्पन्न किया गया जो औद्योगिक रुप से पिछड़ा था. यह जारशाही रुस में क्रांतिकारी शक्तियों का स्वाभाविक निष्पाद नहीं था. अपितु लेनिन और उनकी पार्टी ने अनिच्छुक लोगों पर इसे थोप दिया था.
लेकिन यह सच नहीं है. लेनिन ने अपनी पुस्तक इम्पीरियलिज्म में कई नतीजे निकाले थे. उनके अनुसार औद्योगिक रुप से विकसित प्रत्येक देश में व्यापार, औद्योगिक पूंजी और बैंकें एकाधिकारवादी वित्तीय पूंजी में विलीन होजाते हैं जिन्हें उस राज्य की सत्ता का पूरा सहयोग हासिल रहता है. इस एकाधिकारवादी पूंजी के असमान विकास के चलते कोलौनीज के बंदरवांट के लिये विश्व युध्द अवश्यंभावी है. युध्द से उत्पन्न हालात भी क्रांति के लिये आधार तैयार करते हैं. पहले और दूसरे दोनों विश्व युध्दों ने क्रांति का रास्ता खोला. प्रथम विश्वयुध्द के बाद यदि रुस में समाजवादी क्रांति संभव हुयी तो दूसरे के बाद भारत सहित तमाम देश आजाद हुये.
लेनिन ने कहाकि समाजवादी क्रांति वहीं होगी जहां साम्राज्यवाद की चेन की कड़ियां सबसे कमजोर होंगी. जारशाही रुस साम्राज्यवादी शृंखला की सबसे कमजोर कड़ी है. उन्होने कहाकि एक देश में समाजवादी क्रांति का सफल होना संभव है क्योंकि वहाँ समाजवाद के निर्माण के लिये साम्राज्यवादी देशों के आपसी टकरावों को स्तेमाल किया जासकता है. अंतत: रूस में 1917 में क्रांति निष्पन्न हुयी.
तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुये सोवियत संघ में समाजवाद के निर्माण का काम चल ही रहा था कि तीस के दशक में साम्राज्यवादी देशों ने उपनिवेशों के बंटवारे के लिये दूसरा विश्वयुध्द छेड़ दिया. निश्चय ही साम्राज्यवादी देशों के फासिस्टी खीमे को साम्राज्यवादी देशों का गैर फासिस्टी खीमा नहीं हरा सकता था. यह सोवियत संघ और उसकी लाल सेना ही थी जिसने हिटलर और उसके फासीवाद के खतरनाक इरादों को ध्वस्त कर दिया. यदि उस समय फासिज्म विजयी हुआ होता तो भारत की आजादी कम से कम 15 अगस्त 1947 की तिथि पर तो नहीं ही हुयी होती.
यह जल्द इसलिये संभव हुआ क्योंकि दूसरे विश्व युध्द के अंत ने विश्व में राजनैतिक शक्तियों के संतुलन को पूरी तरह बदल दिया था. फासीवाद ध्वस्त होचुका था. साम्राज्यवाद कमजोर हो गया था. सोवियत संघ सामरिक दृष्टि से मजबूत देश के रुप में उभरा था जिसका नैतिक बल दूसरे देशों से ऊंचा था. परिणामस्वरुप एक दशक के भीतर सारे औपनिवेशिक देशों ने आजादी हासिल कर ली. भारत उनमें सबसे पहला था जहाँ का राष्ट्रीय आंदोलन उन्नत मंज़िलें हासिल कर चुका था. सोवियत संघ की मदद से नव स्वतंत्र देशों ने अपनी आर्थिक आजादी की राह तलाशना शुरु कर दी.
ब्रिटिश- अमेरिकी सैनिक प्रतिरोध के बावजूद 1949 में चीन में समाजवादी क्रांति की जीत हुयी. 1950 में चीन और कोरियाई सेनाओं के संयुक्त प्रयासों से कोरिया में अमेरिका की हार हुयी. 1962 में सोवियत संघ की मदद से क्यूबा की क्रांति विजयी हुयी. 1974 में वियतनाम में अमेरिका की सबसे शर्मनाक पराजय हुयी. उसके बाद चिली में वोट के माध्यम से कम्युनिस्टों और सोशलिस्टों की सरकार बनी जिसे अमेरिकी साम्राज्यवाद ने सैनिक प्रतिक्रांति के जरिये कुचल दिया. यह वह दौर था जब पांचों महाद्वीपों के देशों में लाल परचम एक ताकत था. 1960 तक अपने निर्णायक हथियारों के बल पर सोवियत संघ साम्राज्यवादियों के बरावर की ताकत बन चुका था.
पर 1960 के बाद साम्राज्यवाद ने अपनी वित्तीय पूंजी के आधुनिकीकरण और उसके भूमंडलीकरण के लिये सचेतन कदम उठाये. वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति ने पूंजीवाद को उत्पादन के हर क्षेत्र में नयी उचाइयां हासिल करने में मदद की. लेनिन ने जिस साम्राज्यवाद की व्याख्या की थी वह नया चरित्र ग्रहण कर रहा था. इजारेदार राष्ट्रीय- राजकीय पूंजी वित्तीय पूंजी का भूमंडलीय ग्रिड बन गयी. लेकिन दुनियां के कम्युनिस्ट इन बदलावों से अनभिज्ञ थे और उन्होने मार्क्सवाद की किताबें तब खोलीं जब 1990 में सोवियत रूस का पतन होगया. वे लेनिन की इसी प्रस्थापना पर अटके रहे कि “साम्राज्यवाद पूंजीवाद के विकास की अंतिम स्टेज है. पूंजीवादी विश्व का एकमात्र भविष्य सामाजिक विघटन और समाजवाद में उसकी परिणति है.”
1960 से 80 के बीच बढत हासिल कर चुके विश्व पूंजीवाद ने मजदूरवर्ग पर हमले तेज कर दिये. सोवियत संघ को उसने हथियारों की होड़ में फंसने को मजबूर किया जिसे सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था झेल नहीं पायी. आक्रामक कदम उठाते हुये साम्राज्यवादियों ने विकासशील देशों के राष्ट्रीय पूंजीपतिवर्ग को भूमंडलीकरण, निजीकरण और उदारीकरण की राह पर चलने को बाध्य किया. सोवियत संघ इस भूमंडलीय वित्तीय पूंजी की चुनौती का मुकाबला करने को आर्थिक और राजनीतिक रणनीति बनाने में असफल रहा. इससे समूचा विश्व परिदृश्य ही बदल गया. विजेता की हैसियत में विश्व साम्राज्यवाद ने हुंकार भरी कि “मार्क्सवाद मर चुका है और पूंजीवाद का कोई विकल्प नहीं है.”
आज अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी इतनी शक्तिशाली होगयी है कि कुछ कल्याणकारी कार्यों के बल पर अपने शोषण को आसानी से छिपा रही है. इस तरह वह अभावग्रस्तों के क्रांतिकारी आंदोलनों की धार को कमजोरकर रही है. मोदी सरकार द्वारा चलायी गयी उज्ज्वला योजना, गरीबों के घरों में शौचालयों का निर्माण और अब मुफ्त बिजली कनेक्शन इसके ताजा उदाहरण हैं.
90 के दशक में विकासशील देशों द्वारा साम्राज्यवादी नीतियों के सामने घुटने टेक देने के बाद यूरोप में पूंजीवाद ने छलांग भरी. पर इसमें रोजगार की दर शून्य थी. इससे दुनियां का वातावरण बिगड़ा और विश्व बैंक के कर्जों का भार बढने लगा. अतएव हमें पुन: मार्क्सवाद की तह में जाना पड़ा. मार्क्स गत शताब्दी के महानतम बुध्दिजीवी घोषित किये गये.
साढे तीन दशक के घटनाक्रमों ने यह जाहिर कर दिया कि सारी बुराइयां कारपोरेट जगत के कुछ महारथियों के सिंडीकेट द्वारा पैदा की जारही हैं जिसका प्रबंधन अमेरिकी नियंत्रण वाली विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोश जैसी संस्थाओं के हाथ में है. भारत में चंद कारपोरेट घरानों की पूंजी में अप्रत्याशित इजाफा और गरीबी की सीमा के नीचे चले जारहे लोगों का अनुपात विस्मयकारी है.
इस व्यवस्था पर पहला विश्वव्यापी हमला 1999 में सियेटल में विश्व के लोगों ने बोला और तबसे प्रतिरोध की ताकतें निरंतर संगठित होती जारही हैं.
एकध्रुवीय विश्व की स्थिति का लाभ उठाते हुये अमेरिकी साम्राज्यवाद ने संयुक्त राष्ट्र संघ को समाप्त करने की ठानी. बढते भूमंडलीय तापमान, जैविक युध्द, बारुदी सुरंगें और खतरनाक हथियार हठाने तथा नस्लवाद जैसे सवालों पर उसने हाथ खींच लिये. उसने अंतरिक्ष में नाभिकीय हथियार स्थापित कर हर प्रकार के हमलों से सुरक्षित शक्ति बन जाने की की कोशिश की. इस एक ध्रुवीय विश्व के मंसूबे को बनाये रखने को अमेरिकी साम्राज्यवाद ने मुस्लिम पुनरुत्थानवादियों के साथ खुला खेल खेला. उसने इस्लामिक आतंकवाद को लोकतांत्रिक पार्टियों, ताकतों और राष्ट्रों को कमजोर करने और अपने हथियारों को कानूनी/ गैर कानूनी तरीके से बेचने को स्तेमाल किया. मुस्लिम पुनरुत्थानवाद का भयदोहन कर भारत में जड़ जमा रही हिंदुत्व की ताकतों को भी उसने समर्थन प्रदान किया. लेकिन 11 सितंबर 2001 को अमेरिकी आर्थिक प्रतिष्ठान पर हुये हमले ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को अपनी कुछ रणनीतियों में परिवर्तन करने को बाध्य किया. स्टार वार उड़नछू होगया. आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लामबंदी के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की जरूरत महसूस की जाने लगी.
विश्व को एक ध्रुवीय बनाये रखने को अमेरिका ने साम्राज्यवाद के लिये चुनौती बने राष्ट्रों और नेताओं को समाप्त करने और साम्राज्यवादपरस्त टापुओं को मजबूत करने की नीति अपनाई. ईराक और लीबिया में सीधे सैनिक हस्तक्षेप के जरिये तख्ता पलट कराया. पाकिस्तान की सीमा में घुस कर ओसामा बिन लादेन का एनकाउंटर किया. अफगानिस्तान की बरवादी तक युध्द थोपे रखा. यूक्रेन और सीरिया में हस्तक्षेप किया लेकिन आतंकवाद के वाहक पुनरुत्थानवादी संगठनों और उनके पोषक देशों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. उसने वेनेज्वेला आदि दक्षिण अमेरिकी देशों और उत्तर कोरिया के खिलाफ अघोषित युध्द छेड़ा हुआ है. लेकिन उत्तर कोरिया अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिये खुली चुनौती बना हुआ है, और अब ट्रंप ने उससे वार्ता की पेशकश की है.
अक्तूबर क्रांति हमें याद दिलाती है कि हम अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार संघर्षों की रूपरेखा तैयार करें. पडौसी देशोंसे हमारा टकराव न्यूनतम होना चाहिये. चीन से परंपरागत और कृत्रिम टकरावों को कम करना चाहिये. अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल की शांति और लोकतंत्र को मजबूत करने वाली ताकतों के साथ समन्वय स्थापित करना चाहिये. अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध में तीसरी दुनियां के देशों की एकता के लिये हमें निरंतर आवाज उठानी चाहिये.
हमें धार्मिक पुनरुत्थानवाद के हर ब्रांड के विरुध्द निर्मम संघर्ष करना होग. नस्लीय अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ सदैव आवाज उठानी चाहिये. जन गण के बीच समरसता और सुदृढ लोकतंत्र ही भारतीय क्रांति को आगे बढाने में सहायक होसकते है.
आज जमीनों का पुनर्वितरण फिर से राष्ट्रीय एजेंडा बन चुका है. पूंजीवाद साम्राज्यवाद के साथ मिल कर भारतीय ग्राम्य जीवन के परंपरागत ताने बाने को नष्ट कर रहा है. विकास के नाम पर बेतहाशा भूमि अधिग्रहण, उसके लिये कानूनों में बदलाव, बेरोजगारी और ग्रामीण क्षेत्रों से अधिकाधिक श्रम शक्तियों का खदेड़े जाना विश्व बैंक द्वारा निर्देशित परियोजनाओं का मूल आधार बन चुका है. भूमि सुधार और सामूहिक खेती से ग्रामीण जीवन में नयी जान फूंकी जा सकती है.
सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने और उसे और भी मजबूत बनाने के संघर्ष को हमें धार देनी होगी. हमें यह ध्यान में रखना चाहिये पूंजीवाद में मजदूरों के श्रम का अतिरिक्त अधिशेष पूंजीवाद को मजबूती देता है और उसके समाप्त होने से समाजवाद का निर्माण होता है. अतएव हमें मेहनतकशों चाहे वे मजदूर, दस्तकार अथवा किसान हों उनके श्रम का संपूर्ण फल दिलाने को संघर्ष चलाना होगा. इन संघर्षों को फासीवादी शक्तियों के विरुध्द संघर्ष से जोड़ना होगा.
अक्तूबर क्रांति की 100वीं वर्षगांठ पर हमें वाम और कम्युनिस्ट एकता के लिये त्वरित कदम उठाने को प्रतिबध्द होना होगा.
( जौनपुर, उत्तर प्रदेश में 8 अक्तूबर को अक्तूबर क्रांति की 100 वीं वर्षगांठ पर हुयी विचार गोष्ठी में दिये गये भाषण पर आधारित )


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बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

भाजपा का भ्रष्टाचार उजागर करने और महंगाई, बेरोजगारी जैसे सवालों पर भाकपा ने समूचे उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन किया



लखनऊ-  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी के आह्वान पर उत्तर प्रदेश में आज भाकपा ने सभी जिला मुख्यालयों पर धरने और प्रदर्शनों का आयोजन किया और राष्ट्रपति और राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारियों के माध्यम से प्रेषित किये. इससे पहले प्रदेश में तीन सप्ताह तक लगातार जन अभियान  चलाया गया.
उपर्युक्त के संबंध में जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि यह आन्दोलन केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्य सरकारों द्वारा किये जारहे घपले- घोटालों और भ्रष्टाचार, पनामा दस्तावेजों के खुलासे, निरंतर बढ़ रही महंगाई, नोटबन्दी और जीएसटी के लागू होने से उद्योग व्यापार और कृषि पर आये संकट, बैंकों में जमा जनता के धन से पूंजीपतियों को दिए कर्ज को बट्टे खाते में डालने से बैंकिंग व्यवस्था के समक्ष खड़े हुए संकट, बढ़ती बेरोजगारी और उजड़ती खेती जैसे सवालों को बहस के केंद्र में लाने और सरकारों को कार्यवाही के लिये मजबूर किये जाने के उद्देश्य से किया गया था.
प्रदर्शनों के दरम्यान भाकपा ने इस सवाल को शिद्दत से उठाया कि केंद्र सरकार के कार्यकाल के चालीस माह पूरे होते होते भाजपा नेताओं और उसकी सरकारों के भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक कर उघडती जारही हैं. भ्रष्टाचार का यह राक्षस आज सर चढ़ कर बोल रहा है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बेटे की संपत्ति में हुयी अनाप शनाप वृध्दि ने भाजपा के कथित सदाचार की चूलें हिला दी हैं. एक ओर भाजपा के दर्जन भर मंत्री संवैधानिक मर्यादाओं को लांघ कर इस गैर सरकारी व्यक्ति के भ्रष्टाचार को दबाने में जुट गए हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के कई शीर्षस्थ नेताओं ने खुलकर इसके काले कारनामों और नीतियों का मुखर विरोध शुरू कर दिया है. भाकपा ने कहा कि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जारही है और विकास दर में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की जारही है. सरकार  बताये कि दो हजार और  पांच सौ के नोट कहाँ गायब होगये?
संगीन आरोपों और असंख्य से घिरा भाजपा का नेत्रत्व बौखला कर एक ओर विपक्षी दलों के खिलाफ अनर्गल बयानवाजी कर रहा है वहीं जनता को फुसलाने को खुद प्रधानमंत्री और भाजपा के मुख्यमंत्रीगण धर्म का बेजा स्तेमाल कर रहे हैं. मंदिरों में पूजा का ढोंग किया जारहा है और राम- रहीमों ( साधुओं ) की टोलियों को भाजपा का कवच बताया जारहा है. बात बात पर आरएसएस की तारीफों के पुल बांधे जारहे हैं. भाकपा ने सवाल खडा किया कि यदि आरएसएस ही सब कुछ कर रहा है तो उसे खुद ही एक राजनैतिक पार्टी के रूप में सामने आना चाहिये भाजपा नामक ढोंग को समाप्त कर देना चाहिये.
भाकपा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में खनन नीति से बेकारी बढी है. त्योहारों के इस सीजन तक में मजदूरों को काम नहीं मिल रहा. बिजली के दाम असहनीय स्थिति तक बढ़ा दिए गए हैं. सरकारी विभागों और पुलिस में भ्रष्टाचार सारी सीमाएं लांघ चुका है. इलाज के अभाव में बूढ़े बच्चे सभी दम तोड़ रहे हैं, क़ानून व्यवस्था का बुरा हाल है. सरकार के दावों के विपरीत कई दंगे होचुके हैं.
आज दिए गए ज्ञापनों में मांग की गयी है कि केंद्र सरकार विदेशों में जमा काले धन संबंधी पनामा दस्तावेजों में दर्ज नामों का खुलासा करे, काले धन को वापस ला जनता से किये गए वायदों को पूरा करे, बैंकों द्वारा बट्टेखाते में डाल दिए गए पूंजीपतियों पर बकाया धन को सख्ती से बसूल करे, पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में और कमी लाई जाए, महंगाई को नीचे लाया जाए, नोटबन्दी और जीएसटी जैसे कदमों से उद्योग व्यापार और कृषि पर आये संकट को दूर करने को कारगर कदम उठाये जाएँ, रोजगार दिए जाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट दोगुना कर मुफ्त इलाज और पढाई मुहैय्या कराई जाए, किसानों के सभी प्रकार के कर्जे माफ़ किये जाएँ और उनकी आमदनी दोगुना करने के वायदे को पूरा किया जाए, बिजली के दामों में घटोत्तरी की जाए, छुट्टा जानवरों से किसानों की फसलों और नागरिकों के जीवन की रक्षा की जाए तथा उत्तर प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित किया जाए आदि.
जनपद जालों के उरई मुख्यालय पर कल ही एक शानदार प्रदर्शन किया गया था. आज इस समाचार के जारी किये जाने तक कानपुर शहर, आगरा, शामली, संत कबीर नगर, लखनऊ, जौनपुर, हाथरस, मथुरा, अलीगढ़, मेरठ, बदायूं, शाहजहांपुर, फिरोजाबाद, इलाहाबाद, गोरखपुर, मऊ, आज़मगढ़, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, मैनपुरी, झांसी, चित्रकूट, वाराणसी, सोनभद्र, बछरावां, फैजाबाद, प्रतापगढ़, बलिया, कुशीनगर, मुरादाबाद, मुज़फ्फर नगर तथा गाजीपुर जनपद से प्रदर्शन कर ज्ञापन दिए जाने के समाचार प्राप्त होचुके हैं.


डा. गिरीश 

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बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

Mass Contact programme of CPI

महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अत्याचार को लेकर उत्तर प्रदेश में भाकपा का जन अभियान जारी


11 अक्तूबर को जिला केंद्रों पर प्रदर्शन की तैयारी


लखनऊ- 4 अक्तूबर 2017, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आह्वान पर पनामा दस्तावेजों का खुलासा करो, एनपीए की वसूली करो, भाजपा की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा किये जारहे भ्रष्टाचार पर रोक लगाओ, महंगाई पर रोक लगाओ, नोटबंदी, जीएसटी, निजीकरण के कुफलों जैसे- बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, किसान मजदूर व व्यापरियों को बर्वादी से बचाने को कारगर कदम उठाओ, किसानों को विपन्नता की स्थिति से बचाओ, आवारा पशुओं से किसानों की फसलों और नागरिकों के जान माल की रक्षा करो, उत्तर प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति में सुधार लाओ आदि सवालों पर भाकपा का प्रांतव्यापी जन अभियान लगातार जारी है.
ज्ञातव्य हो कि भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उपर्युक्त अभियान को सारे देश में 15 सितंबर से 15 अक्तूबर तक चलाने का आह्वान किया था लेकिन उत्तर प्रदेश में खरीफ और रबी की फसलों के काम में किसानों की व्यस्तता, कई महत्वपूर्ण त्योहारों में आम लोगों की भागीदारी और ए. आई. एस. एफ. तथा अ. भा. नौजवान सभा के लोंगमार्च के सितंबर के प्रथम सप्ताह में यहाँ से गुजरने जैसे मामलों के चलते भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने इस अभियान को उत्तर प्रदेश में 24 सितंबर से 10 अक्तूबर तक जनता से संवाद के रूप में चलाने और 11 अक्तूबर को जिला मुख्यालयों पर धरने/ प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपे जाने का निर्णय लिया.
लेकिन यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जौनपुर आदि कई जिलों ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा लिये गये निर्णयों की सूचना मिलने के बाद अभियान को 15 सितंबर से ही प्रारंभ कर दिया था और अब तक जौनपुर जनपद की हर तहसील में कई कई सभायें आयोजित की जाचुकी हैं. यहां इसी अभियान के अंग के रुप में 8 अक्तूबर को सभी वामपंथी दलों के साथ मिल कर “अक्तूबर क्रांति एवं भारत का स्वतंत्रता संग्राम” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया जारहा है.
अभियान का श्रीगणेश जनपद मेरठ के मवाना में किसानों के विशाल सम्मेलन के साथ होगया था जिसमें भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश, उत्तर प्रदेश किसान सभा के सचिव राजेंद्र यादव- पूर्व विधायक, सहसचिव अजय सिंह, भाकपा नेता शरीफ अहमद, प्रोफेसर इशान जैन, जितेंद्र कुमार आदि नेताओं ने संवोधित किया था. जनपद झांसी में अभियान की शुरुआत जिला मुख्यालय पर किसानों, बीडी मजदूरों और आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों की एक सभा के साथ हुयी जिसे राज्य सह्सचिव अरविंदराज स्वरुप एवं उत्तर प्रदेश महिला फेडरेशन की सचिव प्रोफ. निशा राठौर ने संवोधित किया.
इसी बीच वाराणसी में छात्रा के साथ दुर्व्यवहार के बाद वहाँ छात्राओं और छात्रों का एक बड़ा आंदोलन फूट पड़ा और भाकपा के सहयोग एआईएसएफ एवं नौजवान सभा के कार्यकर्ताओं ने खागा, आज़मगढ, बदायूं, उरई, इलाहाबाद, चित्रकूट, मथुरा आदि कई स्थानों पर वाराणसी के छात्र- छात्राओं के समर्थन में धरने प्रदर्शन किये गये.
जनपद हाथरस में भाकपा ने 1 से 10 अक्तूबर तक “जन संवाद”  कार्यक्रम छेड़ा हुआ है जिसकी शुरुआत पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कराई.
इस अवसर पर डा. गिरीश ने कहाकि आज मोदी के 40 और योगी के 4 महीनों में अर्थ व्यवस्था धरातल पर आगयी है, बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं और ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार से जनता त्राहि त्राहि कर उठी है. कुशासन के चलते किसान, कामगार और नौजवान बेहद परेशानहाल हैं. हालात इतने खराब हैं कि भाजपा के अंदर से भी इस सबके खिलाफ आवाज उठने लगी है.
डा. गिरीश ने कहाकि भाकपा ने इस सबको लेकर देशव्यापी अभियान चला रखा है. उन्होने कहाकि पनामा सहित विदेशों और देश में छुपाया सारा काला धन जब्त कर लिया जाये तो देश भर के किसानों- कामगारों का सारा कर्जा माफ किया जासकता है. बैंकों के पूंजीपतियों पर बकाया जिस धन को बट्टेखाते में डाल दिया गया है उसे यदि वसूल लिया जाये तो हर जरूरतमंद सीनियर सिटीजन को आजीवन रुपये 10 हजार मासिक पेंशन दी जासकती है. पर भाजपा और उसकी सरकारें बड़े पूंजीपतियों को मुनाफा पहुंचाने और जनता की कमर तोड़ने में जुटी हैं.
हम मांग कर रहे हैं कि कच्चे तेल की गिरती कीमतों को देखते हुये पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें आधी की जायें पर यह सरकार उन्हें हद के बाहर लेजारही है. दबाव बड़्ने पर अब मात्र दो रुपये की कमी की गयी है जबकि रसोई गैस की कीमतों में बड़ी वृध्दि कर दी गयी है. हम शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट दो गुना करने की मांग कर रहे हैं ताकि सभी को दवाई और पढाई मुफ्त मिल सके. किसानों को पैदावार के उचित दाम दिये जाने और छुट्टा पशुओं पर रोक लगाने की भी हम मांग कर रहे हैं. चहुंतरफा भ्रष्टाचार से आजिज जनता को कैसे इससे निजात दिलाई जाये आज यह एक बड़ा सवाल बन गया है.
 डा. गिरीश ने कहाकि आज जनता में आक्रोश इस हद तक है कि वह इस सरकार से फौरन पिंड छुड़ाना चाहती है और विकल्प के लिये टकटकी लगा देख रही है. भाकपा और दूसरी वामपंथी ताकतों को एक वैकल्पिक नीति का विकल्प पेश करने को गंभीरता से काम करना होगा. जन संवाद कार्यक्रम जारी है और 11 अक्तूबर के प्रदर्शन की तैयारी चल रही है.
भाकपा राज्य मुख्यालय को बरेली, बुलंदशहर, शाहजहांपुर, अमरोहा, गाज़ियाबाद, मथुरा, आगरा, कानपुर, जालौन, झांसी, इलाहाबाद, चित्रकूट, भदोही, फैज़ाबाद, मऊ, गाज़ीपुर, बाराबंकी, बलिया, सुल्तानपुर, प्रतापगढ, फरुखाबाद, कासगंज, बदायूं, बहराइच, कुशीनगर, आदि जनपदों से जन अभियान के जारी रहने और लगभग सभी जनपदों में 11 अक्तूबर के प्रदर्शन की तैयारी की खबरें मिल रही हैं.

डा. गिरीश

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