बस एक फिक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
जहां अवाम के खिलाफ साजिशें हो शान से
जहां पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहां पे लफ़्ज-ए-अमन एक खौफनाक राज हो
जहां कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो
वहां न चुप रहेंगे हम
कहेंगे, हां, कहेंगे हम
हमारा हक! हमारा हक! हमें जवाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
यकीन आँख मूंद कर किया था जिन पर जान कर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्हीं सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियां
वही हमारे थाल में परस रहे हैं गोलियां
जो इनका भेद खोल दे
हरेक बाल बोल दे
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
वतन के नाम पर खुशी से जो हुए हैं बे-वतन
उन्हीं की आह बे-असर, उन्हीं की लाख बे-कफन
लहू पसीना बेचकर जो पेट तक न भर सके
करें तो क्या करें भले न जी सकें, न मर सकें
सियाह जिंदगी के नाम
उनकी हर सुबह ओ शाम
उनके आसमां को सुर्ख आफताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए।
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
होशियार! कह रहा लहू के रंग का निशान
ऐ किसान होशियार! होशियार नौजवान!
होशियार! दुश्मनों की दाल अब गले नहीं
सफेदपोश रहजनों की चाल अब चले नहीं
जो इनका सर मरोड़ दे
गुरूर इनका तोड़ दे
वह सरफरोश आरजू वही जवाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल, सोच और सोच कर सवाल कर
किधर गये वो वायदे? सुखों के ख्वाब क्या हुए?
तुझे था जिनका इन्तजार वो जवाब क्या हुए?
तू झूठी बात पर न और एकबार कर
कि तुझको सांस-सांस का सही हिसाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए!
इंकलाब जिन्दाबाद!
जिन्दाबाद इंकलाब!
-शलभ श्रीराम सिंह
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