बैठक में महासचिव का. ए.बी.बर्धन ने राजनीतिक-संगठनात्मक रिपोर्ट, उप महासचिव का. एस. सुधाकर रेधी ने पार्टी संगठन तथा उसके कार्य-कलाप तथा सचिव का. डी. राजा ने राष्ट्रीय परिषद की पिछली बैठक के बाद की कार्य रिपोर्ट पेश की। महासचिव का. ए.बी.बर्धन ने आर्थिक संकट, संप्रग सरकार की जन-विरोधी आर्थिक नीति, महंगाई को नियंत्रित करने में उनकी विफलता तथा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के अंधाधुंध विनिवेश की उसकी नीति के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला।
उन्होंने देश के सामने विद्यमान अनेक राजनीतिक सवालों तथा सरकार की विदेश एवं घरेलू नीतियों पर भी रोशनी डाली। महासचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल की स्थिति, माओवादी हिंसा, उत्तर-पूर्व में विद्रोह की समस्याओं एवं वाम एकता को मजबूत करने की जरूरत आदि के बारे में भी बताया गया है।
राष्ट्रीय परिषद द्वारा अनेक प्रस्ताव पारित किए गए जिनमें से कुछ को नीचे दिया जा रहा है।
महंगाई
”आसमान छूती महंगाई, खासकर खाद्य पदार्थों की आसमान छूती कीमतों - जो हर सप्ताह 20 प्वाइंट की दर से बढ़ रही है, चावल की खुदरा कीमत 51 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जो पिछले 6 महीनों से निर्बाध रूप से जारी है - की वजह है खाद्यान्न व्यापार में सट्टेबाजी पर रोक लगाने में केन्द्र सरकार की पूर्ण विफलता और मांग-आपूर्ति के बेमेल होने की स्थिति में सरकार द्वारा वायदा कारोबार की इजाजत देना, खाद्य पदार्थों का बेरोकटोक निर्यात और मुख्य तौर से उदारीकरण की नीति एवं एक निर्बाध बाजार अर्थव्यवस्था की स्थापना। शर्मनाक बात यह है कि करीब बीस वर्षों के बाद देश ने चावल के आयात का सहारा लिया है।
खाद्य सुरक्षा नहीं रही, केरल जैसे कुछ राज्यों को छोड़कर अनेक राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली खत्म हो गयी है। यह चिन्ताजनक बात है कि देश फिर राष्ट्र की खाद्य संप्रभुता का भीतरघात करते हुए आज खाद्य के आयात पर निर्भरशील हो गया है।
सरकार के पास पूरी दृढ़ता से इस बदतर स्थिति का सामना करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। उसका यह तर्क कि विकास की उच्च दर हमेशा ऊंची कीमत से जुड़ी रहती है, एकदम अतर्कसंगत है। उसकी यह सफाई कि उच्च वसूली कीमत से यह स्थिति पैदा हुई, एकदम अस्वीकार्य है। इसके अतिरिक्त खाद्यान्न की बढ़ती कीमत इन वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट के अनुपात से काफी अधिक है।
फिर कृषि में गंभीर संकट, उत्पादन में गिरावट जो वर्षों से चली आ रही है, की वजह है सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र की घोर उपेक्षा, कृषि में निवेश में लगातार कमी, आसान कर्ज की अनुपलब्धता और सबसे बढ़कर सामाजिक आधारभूत ढांचे का अभाव।
इसलिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद कीमतों में असहनीय अभूतपूर्व वृद्धि एवं आम जनता के सामने उत्पन्न भयंकर मुसीबतों पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए केन्द्र सरकार से अपील करती है कि वह खाद्य पदार्थों की कीमत में अभूतपूर्व वृद्धि का समाधान करने एवं जनता की मुसीबतों को दूर करने के लिए अविलम्ब प्रभावी कदम उठाये।
आवश्यक वस्तु कानून को और अधिक कठोर बनाकर जमाखोरों एवं सट्टेबाजों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अपील करती है कि विवेकसम्मत कीमत पर जनता को आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आम लोगों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पुनस्र्थापित किया जाये एवं उसे सशक्त बनाया जाये। अल्पकालिक कदम उठाते हुए सरकार को अवश्य ही कृषि को पुनर्जीवंत बनाने एवं कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए, खाद्य एवं पदार्थों का निर्यात बन्द करना चाहिए, वायदा कारोबार बंद करना चाहिए, बेईमान खाद्यान्न व्यापारियों को आसान बैंक कर्ज देना बन्द करना चाहिए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाते हुए बिक्री कीमत बढ़ाने के कदम का विरोध करती है और उसे वापस लेने की मांग करती है।
खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों की बुनियादी मानवीय समस्या का समाधान करने में सरकार की लगातार अकर्मण्यता की निन्दा करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जनता से अपील करती है कि वह सभी संभव रूपों में कार्रवाई के लिए आगे बढ़े, व्याकतम एकता कायम करे,
अप्रितिरोध्य आंदोलन करे और सरकार को अपनी नीति में बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दे।
राष्ट्रीय परिषद महंगाई के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन तेज करने के वामपंथी पार्टियों के निर्णय का स्वागत करती है और वह समस्त पार्टी से आह्वान करती है कि वह हजारों-लाखों लोगों को लामबंद करके इस अभियान को पूरी तरह सफल बनाये और मार्च महीने में संसद मार्च को असाधारण रूप से सफल बनाये।
तेलंगाना
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद दोनों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के दूसरे हिस्सों में उत्पन्न भारी विक्षोभ पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करती है। इस स्थिति की पूरी जिम्मेवारी कांग्रेस की है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक अलग राज्य के रूप में तेलंगाना के निर्माण का समर्थन करती है। उसने मार्च 2008 में आयोजित हैदराबाद पार्टी कांग्रेस के अनुरूप यह निर्णय लिया है। अन्य प्रमुख पार्टियों ने भी तेलंगाना के निर्माण को स्वीकार किया है। संसद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता ने उसके निर्माण का आग्रह किया। उसके साथ ही उन्होंने जोरदार अपील की कि एक आम सहमति कायम करने तथा कार्यविधि एवं अन्य विवरण तैयार करने के लिए तुरन्त एक सर्वदलीय बैठक बुलायी जाये। उसके लिए व्यापक सलाह-मशविरे की प्रक्रिया की जरूरत है।
एक राज्य के विभाजन का तकाजा है कि उससे संबंधित सभी मसलों का समाधान किया जाना है, आम सहमति के लिए व्यापक प्रयास किया जाना है और आशंकाओं को दूर किया जाना है तथा उन लोगों को मनाया जाना है जो उससे मतभेद रखते हैं।
कांग्रेस नेतृत्व ने जिसने तेलंगाना के निर्माण का पूरा श्रेय स्वयं लेने और दूसरी पार्टियों पर भारी पड़ने का सपना संजो रखा था, पूरी प्रक्रिया को जल्दबाजी में पूरा करने का प्रयास किया। तेलंगाना की मांग पर काफी विलम्ब से प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी पर फटाफट मध्यरात्रि में उसकी घोषणा की गयी। यहां तक कि संप्रग के घटकों से भी परामर्श नहीं किया गया। राज्य के दोनों हिस्सों में कांग्रेस नेता अभी तेलंगाना के निर्माण के पक्ष में और विरोध में भावनाओं को भड़का रहे हैं। कुछ ऐसी पार्टियां भी ऐसा ही कर रही हैं।
कांग्रेस की जोड़तोड़ ने पूरे आंध्र राज्य को संकट में डाल दिया है। विधायकों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है। यहां तक कि मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया है और सरकार भी ठहराव में है। अब कांग्रेस नेतृत्व यह कहते हुए पैर पीछे खींच रहा है कि राज्य विधान सभा को अवश्य ही एक प्रस्ताव पास करना होगा। वह दोनों प्रतिद्वंद्वियों की भावनाएं भड़काने के बाद ऐसा कर रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मांग करती है कि कांग्रेस नेतृत्व को यह खेल बंद करना चाहिए। उसे अवश्य ही राज्य के दोनों हिस्सों में अपने पार्टी नेताओं को नियंत्रित और अनुशासित करना चाहिए। उसे अवश्य ही तेलंगाना राज्य के निर्माण के लिए निर्णय लेना चाहिए और विधान सभा में एक एकीकृत प्रस्ताव पेश करना चाहिए ताकि पूरे राज्य की जनता के बीच आम सहमति कायम हो सके तथा एक भाईचारे की भावना में राज्य का विभाजन हो सके।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग गठित करने के किसी कदम का विरोध करती है। यह केवल तेलंगाना पर निर्णय को स्थगित करने का ही एक कदम होगा और उस उलझन भरे दलदल से निकलने का एक प्रयास होगा जिसे स्वयं कांग्रेस ने ही निर्मित किया है। वह मुसीबत का पिटारा खोल देगा और सभी राज्यों में उन तत्वों को प्रोत्साहित करेगा जो राज्यों को दो, तीन या अधिक इकाइयों में बांटने के अभियान में लगे हुए हैं। यह महंगाई, खाद्य सुरक्षा, रोजगार के नुकसान, बेरोजगारी आदि जैसे प्रभावित करने वाले मुख्य मसलों पर संघर्ष करने से जनता के ध्यान को दूसरी ओर मोड़ने का ही काम करेगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद राज्य के दोनों हिस्सों की जनता के सभी तबकों से अपील करती है कि वे वर्तमान आन्दोलन एवं जवाबी आन्दोलन को बंद करे जो कटुता के बीज बो रहे हैं, सामान्य स्थिति बहाल करें तथा तेलंगाना के निर्माण के लिए एवं आंध्र प्रदेश के बाकी हिस्से के अलग राज्य के लिए संयत रूप से कार्य करे जो अब अपरिहार्य हो गया है।
कोपेनहेगन जलवायु शिखर सम्मेलन
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद कोपेनहेगन जलवायु शिखर सम्मेलन के विचार-विमर्श तथा परिणामों का विश्लेषण करने के बाद अमरीका और अन्य विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन में कमी करने के संबंध में किसी समझौते पर नहीं पहुंचने के लिए जिम्मेवार समझती है।
तथाकथित कोपेनहेगन समझौते ने धनी औद्योगिक देशों के लिए कोई बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है जैसी कि क्योटो करार (1997) में मांग की गयी थी जिसकी अभिपुष्टि करने में अमरीका लगातार इन्कार करता रहा है। अब उनका प्रयास केवल क्योटो करार को खत्म करना ही नहीं है बल्कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क तथा बाली कार्रवाई योजना (2007) का भीतरघात करना भी है।
हालांकि भारत ने चीन, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर कार्य किया पर अंततः वह ”अंतर्राष्ट्रीय सलाह-मशविरा एवं विश्लेषण“ के लिए सहमत हो गया। यह भारत की घोषित स्थिति में एक बदलाव है। इसे किसी कानूनी बाध्यकारी समझौते के अभाव एवं तकनीकी के स्थानांतरण पर किसी समझौते के अभाव की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। यह एक तरह से अमरीका को तुष्ट करने का जोड़-तोड़ है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद भारत सरकार को सावधान करती है कि वह विकासशील देशों की एकता को तोड़ने की अमरीका की दुरभिसंधि से चैकस रहें। वह सरकार से आग्रह करती है कि वह ‘बेसिक’ में हिस्सा लेते हुए जी-77 तथा जी-192 के देशों के साथ घनिष्ठ रूप से काम करे और विकसित देशों को अपनी ऐतिहासिक जिम्मेवारी को स्वीकार करने एवं क्योटो करार के अनुरूप काम करने के लिए मजबूर करें। विकासशील देशों की एकता अगले वर्ष मेक्सिको में होने वाली वार्ता के लिए आवश्यक है।
वनभूमि पर आदिवासी अधिकार कानून के कार्यान्वयन में भीतरघात के प्रयास का विरोध
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी अधिकार मान्यता कानून 2006 (2007 का कानून) की व्यवस्थाओं तथा उसके नियमों के तहत आदिवासियों और अन्य परंपरागत वनवासियों के कब्जे में वनभूमि के वितरण के लिए आदिवासी अधिकार कानून के कार्यान्वयन के लिए 31 दिसम्बर 2009 की तिथि निर्धारित करने के केन्द्र सरकार के कथित निर्णय पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है, हालांकि इस कानून ने उसके कार्यान्वयन के लिए कोई समय-सीमा नहीं लगायी है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद समझती है कि समय सीमा लगाने का निर्णय गैरकानूनी है और इस कानून का भीतरघात करने का सरकार का एक सुनियोजित प्रयास है जिसे एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कानून समझा गया है।
वास्तव में लाखों वनवासी, दोनों आदिवासी तथा अन्य गरीब लोग, अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक दावों का आवेदन भी नहीं दे सके हैं क्योंकि उनका आवास सुदूर जंगल में इलाकों में है और वे अधिकांशतः निरक्षर हैं तथा सूचना का अभाव है एवं आदिवासी आबादी वाले राज्यों के अनेक हिस्सों में माओवादी उग्रवाद एवं विद्रोह द्वारा भारी कठिनाइयां पैदा कर दी गयी हैं। ग्राम सभा तथा पंचायतें भी अभी तक भूमि अधिकार सर्टिफिकेट जारी करने के लिए सिफारिशें देने की औपचारिकताओं की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर सकी है। इस घड़ी में एक समय सीमा लगाकर कार्यान्वयन की प्रक्रिया को रोकने का प्रयास गैरकानूनी है और कानून के लाभ प्राप्तकर्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
इसलिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी केन्द्र तथा संबंधित राज्य सरकारों से अपील करती है कि वे आदिवासी अधिकार कानून के कार्यान्वयन की प्रक्रिया को खुला रखें जो ब्रिटिश शासन के समय से ही और उसके बाद शासक वर्गों द्वारा देश की आदिवासी जनता के साथ किये गये ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए बनाया गया था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आदिवासी संगठनों तथा आदिवासी जनों के बीच काम करने वाले एनजीओ से अपील करती है कि वे इस कानून का भीतरघात करने के केन्द्र सरकार के घृणित प्रयासों को नाकाम करने के लिए एक साथ आयें। इस कानून का राष्ट्र ने स्वागत किया था हालांकि निहित स्वार्थों के दबाव के कारण देरी से उसके नियम बनाये गये। अब किसी भी तरह की समय सीमा लगाये बिना उसके पूर्ण कार्यान्वन की इजाजत दी जानी चाहिए।
खाद्य सुरक्षा कानून
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद खाद्य सुरक्षा पर प्रस्ताववित कानून पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करती है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून में अनेक कमियां हैं जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली को केवल बीपीएल श्रेणी तक ही सीमित रखना, सबों के लिए खाद्य सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से वापस होने का केन्द्र का प्रयास और बीपीएल एवं एपीएल श्रेणियों के लिए मानदंड निर्धारित करने के राज्य सरकार के अधिकार को अस्वीकार करना।
योजना आयोग समेत सरकारी निकायों में गरीबी निर्धारण के मानदंड पर मतभेद है।
केन्द्र बीपीएल तथा एपीएल मानदंडों को निर्धारित करने के राज्यों के अधिकार को हड़पने क प्रयास कर रहा है। इसके अतिरिक्त अनेक राज्य सरकारें खाद्यान्न 2 रुपये प्रति किलो तथा 1 रु. प्रतिकिलो की दर से दे रही है। प्रस्तावित कानून कीमत बढ़ाकर 3 रुपये प्रतिकिलो कर देगा एवं खाद्यान्न की मात्रा 35 किलो से घटाकर 25 किलो कर देगा।
कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार समावेशी विकास की बात करती है। लेकिन वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बड़ी संख्या में गरीब लोगों को अलग कर रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद केन्द्र सरकार से आग्रह करती है कि वह खाद्य सुरक्षा के मसले पर विचार करने के लिए राज्य के खाद्य मंत्रियों की एक बैठक आयोजित करे और केरल की एलडीएफ सरकार की पहल को भी ध्यान में रखे जिसने इस मसले पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया।
वह यह मांग भी करती है कि प्रस्तावित कानून सभी राज्य सरकारों को भेजे जायें तथा उस पर बहस की जाये। सबों को खाद्य सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।
उत्तर-पूर्व के विद्रोही ग्रुपों से राजनीतिक वार्ता
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने मिलिटेंट ग्रुपों की कार्रवाइयों के चलते जो अलग राज्य तथा संप्रभुता की मांग कर रहे हैं, उत्तर पूर्वी क्षेत्र में उत्पन्न गंभीर स्थिति पर विचार किया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद भारत सरकार से आग्रह करती है कि वह मसले के समाधान के लिए बिना किसी पूर्व शर्त के उल्फा और अन्य मिलिटेंट और अन्य गु्रपों से राजनीतिक बातचीत शुरू करे। भारत सरकार और उत्तर-पूर्व के मिलिटेंट ग्रुपों के नेतृत्व द्वारा किसी भी बहाने पर राजनीतिक वार्ता की प्रक्रिया में विलंब नहीं किया जाना चाहिए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून को तुरन्त वापस करने की मांग करती है जिसका केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। इस मामले पर विचार करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त कुछ समितियों का भी यह विचार है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद राजनीतिक पार्टियों, बुद्धिजीवियों, लोकतांत्रिक संगठनों से यह अपील करती है कि वे देश के हित में इस मांग को स्वीकार करने के लिए भारत सरकार पर दबाव डालें।
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