फ़ॉलोअर
शनिवार, 10 अप्रैल 2010
at 9:53 am | 0 comments | शकील सिद्दीकी
रोटी नहीं तो क्या शिक्षा का अधिकार तो है?
केन्द्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रभुत्व वाली सरकार को दुबारा बनने के बाद देश के शिक्षा परिदृश्य में लगातार कुछ नया घटित होता रहा है। कई बार परिदृश्य बहुत उत्तेजनापूर्ण होता नजर आया। शिक्षा के प्रति गहरी राजनैतिक संवेदनशीलता रखने वाली सरकारें तो पहले भी केन्द्र में सत्तासीन हुई है। उन्होंने प्रचलित शिक्षा को अपने तौर पर प्रभावित करने एवं उनमें खास तरह परिवर्तन भी किये, परन्तु वर्तमान सरकार शिक्षा के आधारभूत ढांचे में ही परिवर्तन की इच्छुक दिखाई दे रही हैै। हालांकि किसी भी पूंजीवादी धनाढ्य साधन सम्पन्न वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता देने वाली सरकार के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है। 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य एवम् मुफ्त करने के कानून से भी ऐसा ही आभास होता है। आजाद भारत के इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसकी चर्चा लम्बे काल तक होगी। एक पुराने, बहुलता में देखे गये स्वप्न को साकार करने की दिशा में यह ठोस कार्यवाही की तरह है। जिसे हम वर्ममान सरकार की तथा भारत की गरीब जनता की बड़ी उपलब्धि मान सकते हैं। अब कहने वाले तो कहेंगे ही कि रोटी पाने के अधिकार को अनिवार्य बनाये बिना अनिवार्य शिक्षा के लक्ष्य को किस सीमा तक प्राप्त किया जा सकेगा। आखिर बाल मजदूरी को समाप्त करने का कानून भी तो बना। उसका क्या हुआ? वह कितना प्रभावी हो पाया। करोड़ों बच्चे अब भी बाल श्रमिक के रूप में बारह से चौदह धंटों तक कठिन परिश्रम, कहीं-कहीं अमानवीय स्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। काम के दौरान उनके यौन शोषण की भयावहता का अलग किस्सा है। स्त्रियों पर होने वाली घरेलू हिंसा के विरूद्ध भी कानून बना है, घरों में और बाहर भी स्त्रियां हिंसा से कितना मुक्त हुई हैं?जिन लोगों ने उर्दू के अति चर्चित कथाकार सआदत हसन मन्टो की कहानी ”नया कानून“ पढ़ी है, वे सजह ही यह अनुमान लगा सकते हैं कि कानूनों से क्या कुछ बदलता है, कितना बदलता है। इससे यह अर्थ नहीं लेना चाहिये कि बदलाव में कानून अथवा कानूनों की कोई भूमिका ही नहीं होती। कानूनों का अपना महत्व होता है, वे सामाजिक-प्रशासनिक गड़बड़ियों, अन्यायपूर्ण कार्रवाइयों पर अंकुश भी लगाते हैं, वे बिगड़े हुए को सुधारते भी हैं। कहना केवल इतना है कि कानून साधन है, साध्य नहीं। परिवर्तन की, हालातों को सुधारने की समस्त शक्तियां एवं संभावनाएं उसमें अन्तर्निहित नहीं हैं। कानून कैसा है, यह एक स्थिति हो सकती है। अधिकांशतया कानून सकारात्मक परिणामों का लक्ष्य लेकर ही बनाये व लागू किये जाते हैं। शिक्षा को अनिवार्य एवं मुफ्त करने का कानून भी इसी नीयत व इरादे से बनाया गया लग सकता है। परन्तु जनता के बड़े हिस्सों को प्रभावित करने वाले किसी कानून की परिणामपरकता केवल इरादे की नेकी पर निर्भर नहीं करती। देखा यह जाता है कि इसके पीछे उपस्थित राजनैतिक इच्छाशक्ति कितनी सघन व आवेगमयी है तथा इस इच्छाशक्ति को प्रेरित करने वाली सामाजिक समझ कितनी यथार्थपरक है। सामाजिक यथार्थ को ठीक तरह समझे-जाने बिना कई बार अच्छे से अच्छे कानून भी भोतरे साबित होते हैं। कानूनों की असली परीक्षा होती है, उन्हें व्यवहार में लाने अथवा लागू करने की प्रक्रिया के दौरान। लागू करने वाले तंत्र में ही कानून लागू करने की इच्छा व नीयत न हो तो सरकारें घोषणा करती रहें, उनके ठेंगे से। जनता को सस्ता राशन देने, विधवा-वृद्धावस्था पेंशन, मनरेगा, गरीब छात्रों को वजीफा, गरीब लड़कियों की विवाह के लिए आर्थिक सहायता तथा दलितों एवं अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये बनाये गये बहुत सारे कानून किसके लिए बड़ी सहायता का साधन साबित हो रहे हैं, वह किसी से छिपा हुआ तथ्य नहीं है। बाधाओं के और भी स्तर हैं, यहां विस्तार में जाने का अवसर नहीं है, भ्रष्टाचार, कामचोरी, धार्मिक, जातीय तथा स्थानीय धारणाओं को नजरअन्दाज भी कर दें तो भी तंत्र की अक्षमता एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ सकती है, ऊपर से साधनों का अभाव और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, कारणवश सन्देह होता है कि अनिवार्य शिक्षा के कानून को लोकप्रियता हासिल करने की जल्दबाजी में बिना पर्याप्त सामाजिक, प्रशासनिक तैयारी के लागू किया गया है। इतने अच्छे, चिर प्रतीक्षित कानून के लिए जिस व्यापक सामाजिक जागरूकता तथा संवेदनशीलता को संभव करने की जरूरत थी, वह नहीं किया गया। राज्य सरकारों के दिलों को टटोलने तथा उन्हें पूरी तरह विश्वास में लेने, उनकी मंशा व इरादों को जानने की तरह प्रक्रिया भी नहीं अपनाई गयी। यदि सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों की कुल संख्या लगभग बाईस करोड़ है। जिनमें एक करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते। बहुत से गरीबी के कारण, बहुत से परिवार में शिक्षा की चेतना न होने के कारण। काफी बच्चे इस कारण भी स्कूल नहीं जाते कि उनके माता-पिता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके बच्चे पढ़ कर करेंगे क्या? बहुत से माता पिता बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं लेकिन सरकारों की कृपा से आस-पास कई मील तक स्कूल नहीं होते। ऐसे दलित व गरीब मुसलमान माता पिता भी होते हैं जो बच्चों को साक्षर बनाने की इच्छा के बावजूद स्कूल जाने से डरते या बचते हैं कि पता नहीं उनके बच्चों को स्कूल में दाखिला मिले या नहीं। कुछ इसलिए भी कि अध्यापक जी या अध्यापिका जी बच्चे से अपने घर का काम करवायेंगी।ये सारी बाधाएं थोड़े से प्रयासों से दूर की जा सकती हैं। सामाजिक संगठन एवम् जन संचार माध्यम शिक्षा के पक्ष में वातावरण बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। उन्हें दायित्व दिया जायेगा तो वो करेंगे भी लेकिन अगर सरकारें निर्धनता को दूर करने की दिशा में ठोस प्रयास नहीं करेगी यानी क्रान्तिकारी कदम नहीं उठायेंगी तो कोई कुछ कर ले, सबको शिक्षा के जरूरी लक्ष्य को प्राप्त कर पाना संभव नहीं होगा। साथ ही ‘अ’ से अनार और ‘ब’ से बन्दूक बताने वाली शिक्षा पद्धति को भी बदलना होगा।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...8 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The Central Secretariat of the Communist Party of India (CPI) has issued the following statement to the press: The Communist Party of India ...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
बलात्कार पीड़िता को एयर एंबुलेंस से इलाज के लिये दिल्ली भेजा जाये। नैतिकता का तकाजा है कि मुख्यमंत्रीजी स्तीफ़ा दें: भाकपा लखनऊ- 29 ज...
-
30 जून 2010वार्तालखनऊ। आजादी की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में मेरठ से शुरू हुए गदर की आंच धीरे-धीरे पूरे देश में पहुंची और आज के द...
-
प्रस्तावानाः राष्ट्रीय परिषद की पिछली बैठक (दिसम्बर, 2009, बंगलौर) के बाद राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक आर्थिक और राजनैतिक घटनाक...
-
पेट्रोल एवं डीजल पर वैट घटाने की भी मांग लखनऊ 1 जून। घरेलू बिजली दरों में बेपनाह बढ़ोतरी पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आक्रोश जाहिर करते ...
-
Claiming that anti- Congress and anti- BJP mood is prevailing in the country, CPI today said an alternative front of Left and regional p...
-
New Delhi, July 9 : Communist Party of India (CPI) leader D. Raja on Tuesday launched a scathing attack on the Bharatiya Janata Party (B...
-
गरीबों को प्राविधिक शिक्षा से बाहर कर उन्हें आज का एकलव्य बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश सरकार ने तैयार कर दिया है। विश्वगुरु बनाने के नारे ...
-
दूध, दालों के बढ़ते दाम से खाद्य वस्तुओं की महंगाई १७.70% पर नई दिल्ली: दूध, फलों एवं दालों की बढ़ती कीमतों से 27 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें