गंभीर खाद्य असुरक्षा और आसमान छूती महंगाई के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि यूपीए-दो सरकार आज जनता की वास्तविक समस्याओं को हल करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, जिसका वायदा किया गया था, पर अमल करने के मामले में गंभीर नहीं है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के भूमंडलीय भूख सूचकांक में 84 देशों में भारत अत्यंत नीचे 65वें स्थान पर है। इससे देश में गंभीर खाद्य असुरक्षा का पता चलता है। प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता 1990 के वर्षों के बाद गिरती जा रही है। बाल कुपोषण एवं रक्ताल्पता की शिकार महिलाओं के संबंध में आंकड़े चिंताजनक हैं।खाद्य सामग्रियों में मुद्रा स्फीति की दर 16 प्रतिशत से लगातार ऊंची चल रही है। खाद्य अनुदान में अधिक आबंटन करने के बजाय संप्रग-दो सरकार ने इस अनुदान को 2009-10 के 56 हजार करोड़ रूपये से घटाकर 2010 में 55578 करोड़ रूपये कर दिया है।इस गंभीर स्थिति का तकाजा है कि सर्वसुलभ सार्वभौम सार्वजनिक वितरण प्रणाली को फिर से शुरू किया जाये। पर सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं। दूसरी तरफ सरकार केरल, जो खाद्यान्नों की कमी वाला राज्य है, जैसे राज्यों को स्वीकृत खाद्यान्न कोटे का आबंटन नहीं करती।इसके अलावा प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून में और भी बुनियादी दोष हैं। न्यायमूर्ति बाधवा की अध्यक्षता में बनी समिति ने इस संबंध में अपनी जो रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को दी, उसमें सरकार के सुझावों की कमियों-खामियों को उजागर किया गया है। सरकार के प्रस्तावित कानून से अन्त्योदया योजना के तहत जिन लोगों को दो रूपये प्रति किलो के भाव पर 35 किलो गेहूं/चावल हर महीने मिलता है, वह बंद हो जाएगा। प्रस्तावित कानून की यह विफलता यह है कि उसमें इस बात को स्वीकार नहीं किया गया है कि खाद्य सुरक्षा सर्वव्यापक, सार्वभौमिक (सभी नागरिकों के लिए होनी चाहिए)।अतः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद कीमतों पर अंकुश लगाने में सरकार की विफलता और खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए बाजार की ताकतों पर इसकी पूरी तरह निर्भरता की भर्त्सना करती है। वह अपनी इस मांग को दोहराती है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौम बनाया जाये (अर्थात इसका फायदा हरेक को मिले)। भोजन तक उनकी पहुंच से और आम लोगों की बुनियादी जरूरतों से जनता को वंचित करने के लिए वित्तीय कठिनाईयां कभी कोई तर्क नहीं हो सकती। प्रस्तावित खाद्य अधिकार कानून को फिर से इस तरह ड्राफ्ट किया जाना चाहिए कि उसमें खाद्यान्नों की उपलब्धता एवं पोषक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद आशा करती है कि नवगठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद जनता की परेशानियों के प्रति संवेदनशील होगी और उसके सरोकारों के प्रति तर्कसंगत रवैया अपनायेगी।पार्टी अपनी यूनिटों का आह्वान करती है कि वे महंगाई के खिलाफ और खाद्य सुरक्षा के लिए अपने अभियान को तेज करें। वह पार्टी इकाईयों का आह्वान करती है कि वे इन मुद्दों पर पहली जुलाई 2010 को नई दिल्ली में होने वाले वामपंथी पार्टियों के राष्ट्रीय सम्मेलन को सफल बनायें।
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