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शनिवार, 12 जून 2010
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पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव परिणाम - वामपंथ के लिए आत्म निरीक्षण का समय
जैसे कि आशा थी कोलकाता नगर निगम और राज्य के अन्य नगर निकायों के चुनावों के परिणामों को संचार माध्यमों के वामपंथ विरोधी तबके ने शासक वाम मोर्चा के लिए कयामत आने की घोषणा के लिए इस्तेमाल किया। निःसन्देह, इन चुनावों में वामपंथ को भारी हार का सामना करना पड़ा। पर चुनाव परिणाम का तथ्य यह भी है कि एक वर्ष पहले लोकसभा चुनाव में मिली बदतरीन हार में उसके वोटों में जो गिरावट देखने में आयी वह सिलसिला काफी हद तक रूक गया है। वोटों और वाम मोर्चा द्वारा जीते गये वार्डों, दोनों की प्रतिशत के लिहाज से शासक गठबंधन कम से कम चार प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने में सफल रहा।जीतने वाली सीटों की संख्या के लिहाज से वामपंथ को जबर्दस्त झटका लगा। पांच वर्ष पहले उसने 54 नगर पालिकाओं में जीत हासिल की थी, इस बार उसे केवल 18 नगर पालिकायें ही मिल पायीं। संभव है अन्य की मदद से वह एक दर्जन नगर पालिकाओं में बेहतर स्थिति में आ जाये। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी प्रचार कर रही थीं कि वह वामपंथ समेत सबका सूपड़ा साफ कर अधिकांश स्थानीय निकायों को अपने कब्जे में ले लेंगी पर उन्हें केवल एक तिहाई पर ही संतोष करना पड़ा। उन्हें 27 नगर निकायों में ही बहुमत मिल पाया। कांग्रेस ने 2005 में 13 नगर पालिकाओं पर कब्जा किया था, इस बार उसे उससे बहुत कम केवल सात नगर पालिकाओं में ही बहुमत मिला। 30 से भी अधिक नगर पालिकाओं का चुनाव परिणाम त्रिशंकु रहा है, उनमें आधी से अधिक में वाममोर्चा एकल सबसे बड़ी पार्टी है।जहां तक कोलकाता नगर निगम की बात है, वाममोर्चा ने 2005 में इसे तृणमूल कांग्रेस से ही छीना था जिसे अब पांच वर्ष बाद फिर से बहुमत मिल गया है। वामपंथ के लिए यह स्तब्धकारी है कि तृणमूल ने 141 वार्डों में से 95 वार्डों में जीत हासिल की। वामपंथ की सीटें 2005 के चुनाव के मुकाबले 40 कम होकर मात्र 33 पर आ गयी। वाममोर्चा के एक घटक के रूप में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 2005 में चार स्थानों पर जीत हासिल हुई थी; इसे बात भी उसे पांच स्थान मिले। दो अन्य क्षेत्रों में वह थोड़े से वोटों से हार गयी; पिछली बार की तुलना में उसके वोट प्रशित में वृद्धि हुई।एक अन्य फैक्टर को नोट करने की जरूरत है। इस चुनाव में जो निर्वाचक मतदाता शामिल थे, वह राज्य के कुल मतदाताओं का केवल 17 प्रतिशत हैं। जिन क्षेत्रों में चुनाव हुआ वह अधिकांशतः शहरी क्षेत्र हैं जहां वामपंथ का बहुत अधिक सुदृढ़ आधार कभी नहीं रहा।इसके बावजूद, यह चुनाव परिणाम समूचे वामपंथ के लिए चिंता की बात है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि वामपंथ के पेशेवर निदंक वामपंथ की इस परेशानी को एक कम्युनिस्ट विरोधी अभियान छेड़ने के लिए इस्तेमाल करेंगे। कुछ ने तो इसे सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के देशों की समाजवादी सरकारों के विघटन की समानांतर घटना की संज्ञा दे डाली है। इन्हीं ताकतों ने सोवियत संघ के धराशायी होने के बाद ”इतिहास के अंत“ की उद्घोषणा कर डाली थी। पर पूंजीवाद के हमेशा बढ़ते आर्थिक संकट ने कयामत के इन भविष्यवक्ताओं को व्यवहारतः गलत साबित कर दिया है। मानवता के लिए समाजवाद आज भी एकमात्र विकल्प है।इसी प्रकार एक ऐसा चुनाव जिसमें राज्य के निर्वाचकों में से महज 16 प्रतिशत ही शामिल थे, वह उस वामपंथ के मार्ग का अंत नहीं हो सकते जिसने राज्य की जनता का तीन दशकों से भी अधिक समय तक लगातार विश्वास हासिल किया और एक तरह से एक रिकार्ड ही कायम किया है। पर वह कोई तसल्ली की बात नहीं, वामपंथ को वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करना होगा।इसमें कोई शक नहीं कि शासक पार्टियों को को जिस तरह इन्क्म्बेन्सी फैक्टर (सत्तासीन पार्टी होने के कारक) का सामना करना पड़ता है, वामपंथ को भी करना पड़ा। पर वामपंथ की शिकस्त का वह एक अकेला कारण नहीं हो सकता। प्रारंभिक रिपोर्टों से यह बिलकुल स्पष्ट था कि हमारे आधारों का क्षरण हुआ है। अल्पसंख्यकों जैसे हमारे परम्परागत समर्थन हमारे विरूद्ध हो गये हैं। इसी प्रकार शहरी गरीब लोगों ने भी हमारे विरूद्ध मतदान किया। निस्संदेह अल्पसंख्यक अभी भी यकीन करते हैं कि जहां तक धर्मनिरपेक्षता के लिए प्रतिबद्धता की बात है, कोई भी कम्युनिस्टों के सामने कहीं नहीं टिकता, पर लगता है कि इतना ही काफी नहीं है। अल्पसंख्यक भी, खासकर उनकी नयी पीढ़ी, आर्थिक एवं कल्याण योजनाओं में हिस्सेदारी चाहती है। कम्युनिस्टों को न केवल अल्पसंख्यकों की सच्ची मांगों के लिए आवाज उठानी होगी बल्कि उनकी शिकायतों-समस्याओं के समाधान के लिए यथासंभव ठोस कदम भी उठाने होंगे।इसी प्रकार एक पूंजीवादी संघीय देश में जिन राज्यों में कम्युनिस्ट सत्ता में हैं, वहां मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों को वर्ग संघर्ष से कभी नहीं रोका जाना चाहिए। सीमित तौर पर सत्ता को बनाये रखने के मुकाबले वर्ग हितों और वर्ग संघर्ष को हमेशा तरजीह दी जानी चाहिए।वाम मोर्चा के घटकों को इन एवं इन जैसे अन्य मुद्दों के आधार पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिये, अलग-अलग पार्टी में भी और सामूहिक रूप में भी।
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