5 जुलाई को पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को बाजार के हवाले करने तथा महंगाई के खिलाफ वामपंथी दलों ने भारत बंद का नारा दिया था। इसी दिवस तमाम अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसमें शिरकत की। तमाम व्यापारिक संगठनों तथा किसानों, खेत मजदूरों, मजदूरों, विद्यार्थियों, नौजवानों, महिलाओं तथा वकीलों आदि के संगठनों ने भी इसे अपना समर्थन दिया। केन्द्र में सरकार चला रहे कांग्रेस नीत संप्रग-2 में शामिल राजनीतिक दल तथा उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही बसपा इसमें शामिल नहीं थे।
महंगाई जनता के लिए एक मुद्दा है। पिछले डेढ़ सालों में महंगाई इतनी ज्यादा बढ़ी है कि जनता के अधिसंख्यक तबके त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। बन्द का पूरे देश में अच्छा असर रहा और उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं था।
महंगाई बढ़ाने में केन्द्र सरकार दोषी है लेकिन इसमें बसपा सरकार भी दोषी है। विभिन्न योजनाओं में जो खाद्यान्न राज्य सरकार को आबंटित होता है, भ्रष्टाचार के कारण उसकी कालाबाजारी हो जाती है और वह लक्षित जनता तक नहीं पहुंचता। इस मध्य बसपा सरकार ने कई वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाकर उनकी कीमतें बढ़ा दीं। कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और खाद्यान्नों की अनैतिक और अवैधानिक जमाखोरी रोकने के लिए बसपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। विकास के लिए केन्द्र सरकार द्वारा धन न देने का उलाहना मुख्यमंत्री अक्सरहां करती रहती हैं लेकिन एक बार भी उन्होंने प्रदेश की आम जनता के लिए नियंत्रित मूल्य पर खाद्यान्न आबंटित किए जाने की मांग तक केन्द्र सरकार से नहीं की। उन्होंने कभी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करने की मांग केन्द्र सरकार से नहीं की। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी से जो वैट की अतिरिक्त राशि इन उत्पादों की कीमत में अपने आप शामिल हो गयी, उसे तो वे वापस ले ही सकती थीं जिससे बजट अनुमानों पर कोई असर नहीं होता। लेकिन उन्होंने न तो ऐसा किया और न ही करना चाहती हैं।
अलबत्ता बन्द के दिन जिस तरह का कहर बसपा सरकार ने बन्द को असफल करने के लिए बरपा, वह महंगाई बढ़ाने और पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि में संप्रग के साथ बसपा और मूलतः उसकी नेता मायावती की संलिप्तता की ओर इशारा है। बन्द को असफल करने के लिए 5 जुलाई को भाकपा सहित तमाम राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर भारी पुलिस बल अल सुबह ही पहुंच गया था और उसने इन कार्यालयों को वस्तुतः सील कर दिया था मानों इनके अन्दर बड़े-बड़े आतंकवादी छिपे हों। इन कार्यालयों की ओर आने वाले कार्यकर्ताओं को रास्ते में ही रोक कर गिरफ्तार कर लिया गया।
मंहगाई चूंकि एक फौरी मुद्दा है जिससे प्रदेश की अधिसंख्यक जनता परेशान है, बसपा ने भारत बन्द के अगले दिन 6 जुलाई को देशव्यापी प्रदर्शनों का नारा दिया था। बसपा के इन प्रदर्शनों के प्रति जनता में रंचमात्र उत्साह नहीं था। बसपा के प्रदर्शनों में जिला मुख्यालयों पर जितनी जनता जुटी उससे कहीं ज्यादा वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं की एक दिन पूर्व गिरफ्तारी हुई थी।
ये प्रदर्शन आम जनता के बसपा से हो रहे मोहभंग की ओर इशारा है। जनता के सरोकारों से सरोकार न रखना बसपा और उसकी सुप्रीमो मायावती को खासा महंगा साबित होगा।
- प्रदीप तिवारी
2 comments:
Nice.
बढ़िया
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