भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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गुरुवार, 30 जनवरी 2014

का० इन्द्रजीत गुप्त- बेदाग छवि, गाँधी जैसी सादगी एवं लोकतान्त्रिक द्रष्टिकोण

पिछले कुछ दिनों में एक हाल में ही प्रकट हुयी पार्टी के नेताओं की सादगी और उसकी उपलब्धियों पर मीडिया ने दर्शकों और श्रोताओं के आँख और कानों को अपने तोता रटंत गुणगान से पाट दिया है. लेकिन अपनी तटस्थता का दाबा करने वाले मीडिया ने कम्युनिस्टों की कुर्बानियों, बलिदानों और सादगी को कभी प्रसारित नहीं किया अपितु जहाँ मौका मिला उन पर कीचड़ ही उछाली. लेकिन आज राष्ट्रीय सहारा ने का. इन्द्रजीत गुप्त पर एक टिपण्णी प्रकाशित कर मीडिया धर्म को निभाया है. उसका यथावत पाठ नीचे दिया जारहा है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(सीपीआइ) के नेता इन्द्रजीत गुप्त सिर्फ १९७७-८० को छोड़ कर १९६० से जीवनपर्यन्त सांसद रहे.सबसे वरिष्ठ सांसद रहने के नाते वह तीन बार(१९९६, १९९८, १९९९) प्रोटेम स्पीकर बने और उन्होंने नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई.वह सीपीआइ के जनरल सेक्रेट्री रहे. वह आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के जनरल सेक्रेट्री (१९८०-१९९०) रहे. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस के अध्यक्ष(१९९८) रहे.और एच.डी. देवगोडा के मंत्रिमंडल में वह (१९९६-९८) गृहमंत्री रहे. उन्हें १९९२ में “आउटस्टैंडिंग पार्लियामेंतेरियां का सम्मान दिया गया. राष्ट्रपति के.आर. नारायण ने उन्हें श्रध्दांजलि देते हुए कहा था कि वह गांधीजी जैसी सादगी, लोकतान्त्रिक द्रष्टिकोण और मूल्यों के प्रति समर्पित व्यक्ति थे. ग्रहमंत्री बनने केबाद भी वह वेस्टर्न कोर्ट के दो कमरों के क्वार्टर में रहते रहे. वे टहलते हुये संसद चले जाते थे. गृहमंत्री बनने पर प्रोटोकाल के नाते उन्हें सरकारी गाड़ी से चलना पड़ा. फिर भी उन्होंने बहुत सी सुविधायें नहीं लीं थीं जो मंत्री होने के नाते उहें मिलती. यहाँ तक कि उन्होंने सुरक्षा गार्ड लेना स्वीकार नहीं किया. वह हमेशा लोगों को होने वाली असुविधाओं का पूरा ख्याल रखते थे. मंत्री रहते हुए भी एअरपोर्ट के टर्मिनल तक वायुसेवा की बस सही जाते थे न कि अपनी गाड़ी से. का. इन्द्रजीत गुप्त कज्न्म १८ मार्च १९१९ को कोलकता में हुआ था. उनके पिता सतीशचन्द्र गुप्त देश के अकाउंटेंट जनरल थे. इन्द्रजीत गुप्त के दादा बिहारीलाल गुप्त आईसीएस थे और बरोदा के दीवान थे.इन्द्रजीत गुप्त की पढ़ाई शिमला, दिल्ली के सेंट स्टीफेंस व किंग्स कालेज और केम्ब्रिज में हुई थी.इंग्लेंड में ही वह रजनीपाम दत्त के प्रभाव में आये और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली. १९३८ में कोलकता लौटने पर वह किसानों और मजदूरों के आन्दोलन से जुड़ गये. आजादी के बाद कम्युनिस्ट पार्टी पर तीन बार प्रतिबन्ध लगाया गया और इसके तहत अन्य वाम नेताओं के साथ इन्द्रजीत गुप्त को या तो भूमिगत होना पड़ा या गिरफ्तार. इन्द्रजीत गुप्त का देहान्त २० फरबरी २००१ को ८१ साल की उम्र में हुआ.

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