भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

भाकपा ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पर संघ का एजेंडा आगे बढ़ाने का आरोप जड़ा.

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नायक से सवाल किया है कि क्या वे राजभवन में बैठ कर संघ के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहे हैं. श्री नायक की इस स्वीकारोक्ति के बाद ‘कि मैंने भाजपा से स्तीफा दिया है संघ से नहीं, कि अभी भी मैं अपने को संघ का स्वयंसेवक मानता हूं क्योंकि संघ से स्तीफा देने जैसी कोई बाध्यता नहीं है, ‘कि मैं ३५ साल से आर.एस.एस. का प्रचारक रहा हूँ,’ और राज्यपाल की तीन माह की कारगुजारियों को लेकर यह प्रश्न खड़ा होगया है कि वे राजभवन में बैठ कर भारतीय संविधान का अनुपालन कर रहे हैं या संघ के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. भाकपा श्री नायक से स्थिति स्पष्ट करने की मांग करती है. डा.गिरीश ने कहा कि जिस संघ के श्री नायक स्वयंसेवक हैं, उसमें स्वयंसेवकों को शपथ दिलाई जाती है कि वे जहां भी रहें संघ के एजेंडे को ही आगे बढ़ायेंगे. तो उन पर संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लगे आरोपों का इस महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को स्पष्टीकरण करना चाहिये. लेकिन श्री नायक स्थिति स्पष्ट करने के बजाय मामले का घालमेल करने में जुटे हैं. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि जब श्री नायक ने संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत को उनके शीर्ष परामर्श मंडल के साथ राजभवन बुला कर उनसे दो घंटे मंत्रणा की और उन्हें रात्रिभोज दिया था तब भी भाकपा ने सबसे पहले उनके इस कदम पर आपत्ति जताई थी और तर्क दिया था कि संघ जैसे अतिवादी और सांप्रदायिक संगठन के मुखिया के साथ राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा मंत्रणा करना संविधान की मर्यादाओं के विरुध्द है. भाकपा ने इस मंत्रणा के मुद्दों का खुलासा करने की मांग भी की थी. लेकिन कई दिनों बाद श्री नायक ने गोलमटोल जबाब दिया कि श्री भागवत उनके मित्र हैं और राजभवन सबके लिये खुला है. अब राज्यपाल ने अपने तीन माह के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड जारी कर फिर से राज्यपाल के पद की मर्यादाओं का उल्लंघन किया है. लगता है एक स्वयंसेवक ने अपने शीर्ष नेतृत्व को अपने कार्य की प्रगति रिपोर्ट प्रेषित की है. लेकिन उनकी यह कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिये घातक हैं. राष्ट्रपति महोदय को इसका संज्ञान लेना चाहिये, डा.गिरीश ने मांग की है. डा.गिरीश
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गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014

महंगाई को नीचे लाने को केन्द्र और प्रदेश की सरकार को बाध्य करने हेतु भाकपा ने किया राज्य भर में प्रदर्शन

लखनऊ 16 अक्टूबर। अपने चुनाव अभियान में भाजपा ने सत्ता में आते ही महंगाई को समाप्त करने के लम्बे चौड़े वायदे किये थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद लगभग पांच महीनों में भी सरकार ने महंगाई को नीचे लाने को कोई ठोस प्रयास नहीं किये। उलटे सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने रेल किराये और माल भाड़े में भारी वृद्धि की, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में लगभग 19 फीसदी की कमी आने के बावजूद डीजल के दाम बढ़ाये जाते रहे, तथा जमाखोरों और काला बाजारियों को खुली छूट दे दी गई। यही कारण है कि आज भी महंगाई लोगों के सामने बड़ी समस्या बनी हुयी है। यही वजह है कि आज भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने महंगाई को कारगर रूप से नीचे लाने को सरकार को बाध्य करने को आज देश भर में धरने एवं प्रदर्शनों का आयोजन किया।
चूंकि उत्तर प्रदेश में सरकार ने हाल ही में बिजली के दामों में बड़ी वृद्धि कर और जरूरत की कई चीजों पर वैट की दरें बढ़ा कर महंगाई बढ़ाने का रास्ता खोला है, अतएव उत्तर प्रदेश में भाकपा ने प्रदेश सरकार के इन कदमों को भी आज के आन्दोलन की जद में रखा। उत्तर प्रदेश में सूखा और बाढ़ की तबाही से किसान-कामगारों को राहत दिलाने की मांग भी केंद्र और राज्य सरकार से की गई। आन्दोलन का आह्वान भाकपा की राष्ट्रीय परिषद् ने किया था तथा पार्टी की राज्य काउन्सिल ने इस आह्वान की परिपुष्टि की थी। इससे पूर्व 14 जुलाई को भी भाकपा ने उत्तर प्रदेश में बडे पैमाने पर सडकों पर उतर कर महंगाई के खिलाफ धरने प्रदर्शन किये थे।
उपर्युक्त जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा. गिरीश ने बताया कि जिलों-जिलों में प्रदर्शनों के उपरान्त दो अलग-अलग ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे गये। पहला ज्ञापन राष्ट्रपति तो दूसरा राज्यपाल को संबोधित था।
राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में केन्द्र सरकार को महंगाई को नीचे लाने हेतु जरूरी निर्देश दिए जाने की मांग की गयी। इस हेतु जरूरी वस्तुओं की जमाखोरी और उनके वादा कारोबार पर रोक लगाने, हर परिवार को हर माह 35 किलो खाद्यान्न 2 रूपये प्रति किलो की दर से मुहैय्या कराने, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट को देखते हुये पेट्रोल, डीजल एवं गैस की कीमतों में उल्लेखनीय कमी किये जाने तथा रेल किराया और माल भाड़े में कमी लाने जैसी मांगें की गयीं हैं।
राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन में बिजली की बढ़ी दरों को वापस लेने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने, पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट कम करने तथा सूखा और बाढ़ से प्रभावित किसानों-कामगारों के हित में ठोस कदम उठाने हेतु राज्य सरकार को निर्देश दिये जाने की मांग की गयी है।
भाकपा राज्य सचिव ने दावा किया कि आज प्रदेश भर में हर जिले में बड़ी संख्या में आक्रोशित जनता भाकपा के बैनर तले सडकों पर उतरी। एक अनुमान के अनुसार लगभग 20,000 से भी अधिक लोगों ने इन प्रदर्शनों में भाग लिया, जिनमें महिलाओं एवं युवाओं की संख्या उल्लेखनीय थी।
राजधानी लखनऊ में भाकपा कार्यालय, कैसरबाग से एक जुलूस निकाला गया जो जिलाधिकारी कार्यालय पर पहुँच कर सभा में तब्दील हो गया। सभा को भाकपा राज्य सचिव मंडल की सदस्या आशा मिश्रा, जिला सहसचिव परमानंद, राज्य काउन्सिल सदस्य कान्ति मिश्रा के अलावा अशोक सेठ, राजपाल यादव, अकरम, बबिता सिंह, रामचंदर, शिव प्रकाश तिवारी एवं महेंद्र रावत आदि ने संबोधित किया। ज्ञापन नगर मजिस्ट्रेट को सौंपा गया।
बलिया में भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य एवं जिला सचिव दीनानाथ सिंह, राज्य काउन्सिल सदस्य ओम प्रकाश कुंवर एवं विद्याधर पांडे के नेतृत्व में जिलाधिकारी कार्यालय पर जुझारू प्रदर्शन कर आमसभा की. ज्ञापन भी सौंपा गया।
कानपुर देहात में  भाकपा के सैकड़ों कार्यकर्ता माती स्थिति जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष धरने पर जम गये और महंगाई के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। आम सभा के बाद ज्ञापन भी सौंपा गया. सभा को राज्य कार्यकारिणी के सदस्य राजेन्द्र दत्त शुक्ल, जिला सचिव जगरूप सिंह, मोतीलाल, रंजीत सिंह सेंगर, कुसुम, रामावतार, गुरुप्रसाद सचान एवं कैप्टन आर. एस. यादव ने संबोधित किया।
मथुरा में बड़ी तादाद में भाकपा कार्यकर्ताओं ने तहसील मोड़ से लेकर कलक्ट्रेट तक विशाल जुलूस निकाला जो कलेक्ट्रेट परिसर में पहुँच आम सभा में तब्दील हो गया। सभा को भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य गफ्फार अब्बास एडवोकेट, जिला सचिव  बाबू लाल, सह सचिव अब्दुल हमीद, अनवार फारुकी. आदि ने संबोधित किया। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलायें शामिल थीं जिनमें रामकटोरी, प्रेम कुमारी, साबो, दुलारी एवं प्रेमवती शामिल थीं। जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया।
ललितपुर में भाकपा कार्यकर्ताओं ने कलक्ट्रेट प्रांगण में धरना/प्रदर्शन आयोजित किया। उपस्थित जन समूह जिसमें बड़ी संख्या में नौजवान शामिल थे, को भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य शिरोमणि राजपूत, जमील अहमद एडवोकेट, मोटी सिंह, किशुन लाल, राजेन्द्र सिंह एवं लालता सिंह ने संबोधित किया। ज्ञापन उपजिलाधिकारी  को सौंपा गया।
हाथरस में भाकपा जिला काउन्सिल के तत्वावधान में उप जिलाधिकारी सदर के कार्यालय के समक्ष धरना दिया और आम सभा की, वहां ज्ञापन लेने को उप जिलाधिकारी के मौजूद न होने पर पार्टी कार्यकर्ता आक्रोशित हो गये और प्रशासनिक तानाशाही के विरुद्ध भीषण नारेबाजी की और ज्ञापन उप जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष चिपका दिये गये। सभा को राज्य काउन्सिल सदस्य बाबू सिंह थंबार, सहसचिव चरण सिंह बघेल, रामजी लाल तोमर, सत्य पाल रावल, द्रुग पाल सिंह, लालता प्रसाद, ओमप्रकाश, जान मोहम्मद आदि ने संबोधित किया।
जौनपुर में भाकपा एवं जनसंगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट के सामने धरना देकर आमसभा की। सभा को राज्य कार्य कारिणी के सदस्य जय प्रकाश सिंह, के.आर. गुप्ता, सुबाष गौतम, सुभाष पटेल, सत्य नारायन पटेल, जगन्नाथ शास्त्री आदि ने संबोधित किया और प्रशासनिक अधिकारी को ज्ञापन सौंपा।
बदायूं में भाकपा एवं जनसंगठनों के कई सौ कार्यकर्ताओं ने शहर के प्रमुख मार्गों पर जुलूस निकाला। कलेक्ट्रेट से शुरू हुआ यह जुलूस कलेक्ट्रेट पर लौट कर आम सभा में तब्दील हो गया। सभा को पार्टी के जिला सचिव रघुराज सिंह के अलावा मुन्ना लाल, प्रेम पाल सिंह, राम प्रकाश, पूर्व प्रधान विमला कुमारी एवं कान्ति देवी ने संबोधित किया। ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा गया। प्रदर्शन में महिलाओं, बुद्धिजीवियों और नौजवानों की संख्या अधिक थी।
कानपूर महानगर में राम आसरे पार्क में एक धरने तथा सभा का आयोजन किया गया। सभा को ओम प्रकाश आनंद, राम प्रसाद कनौजिया, राजेन्द्र तिवारी, बी. के. अवस्थी, रघुवीर सिंह, प्रीतिपाल सिंह, हामिद हसन, श्रीमती संतोष सिंह, मुन्नी एवं शिवपति आदि ने संबोधित किया। नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया।
बुलंदशहर जनपद में भाकपा ने स्याना के मुख्य बाजारों में प्रदर्शन किया और उपजिलाधिकारी कार्यालय पर सभा की। सभा की अध्यक्षता बाबा सागर सिंह ने की तथा राज्य कार्यकारिणी सदस्य अजय सिंह, मुरारी सिंह, श्रीमती दिनेश लोधी, संजय गिरी, अशोक गिरी आदि ने संवोधित किया। तहसीलदार को ज्ञापन दिया गया।
जनपद जालौन के उरई मुख्यालय पर भाकपा द्वारा एक विशाल धरने का आयोजन किया गया। वहीं पर एक सभा भी आयोजित की गयी। सभा को राज्य कार्यकारिणी सदस्य कैलाश पाठक, जिला सचिव सुधीर अवस्थी, विजय पाल सिंह, प्रभु दयाल पाल, विनय पाठक, राजेन्द्र सिंह जादों, गीता चौधरी, रक्षा अवस्थी आदि ने संबोधित किया।
आजमगढ़ जनपद में भाकपा के दलालघाट स्थित जिला कार्यालय से एक विशाल जुलूस निकाला जो कलेक्ट्रेट पर पहुँच कर सभा में तब्दील हो गया। सभा को राज्य कार्यकारिणी के सदस्य एवं जिला सचिव हामिद अली, किसान सभा के राज्य अध्यक्ष इम्तियाज़ बेग, हर मंदिर पांडे, राम सूरत यादव, दुर्बली राम, रामाज्ञा यादव, अचरज राय, जय प्रकाश राय, त्रिलोकी नाथ, जितेंद हरि पांडे आदि ने संबोधित किया। सभा की अध्यक्षता श्री कांत सिंह ने की। उपजिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपे गये।
मैनपुरी में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन कर आम सभा की गयी तथा जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। सभा को पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य व जिला सचिव रामधन, हाकिम सिंह यादव, ताले सिंह यादव,राधे श्याम मिश्रा, रोहिताश कुमार भारद्वाज, सुरेश यादव, ओम वती, निर्मला, रेशमा, चुन्नी देवी आदि ने संवोधित किया। सभा की अध्यक्षता वीरेन्द्र चौहान, कृष्ण कांत दीक्षित एवं मुन्नी देवी के अध्यक्ष मंडल ने की। संचालन राधे श्याम यादव ने किया।
सुल्तानपुर में भाकपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया और आम सभा की। भाकपा जिला सचिव शारदा पाण्डेय की अध्यक्षता में संपन्न सभा को मो. नईम, रोशन लाल प्रधान, श्री पाल पासी, जिया लाल, रामदेव, लल्लू शाही, गंगाराम, मालती शर्मा, कौशल्या देवी आदि ने संबोधित किया। धरने में महिलाओं की बराबर की भागीदारी थी।
फतेहपुर में भाकपा ने जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन कर आम सभा की जिसमें कई सौ लोग शामिल थे। जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपे गये। सभा को भाकपा जिला सचिव राम सजीवन सिंह, राज्य काउन्सिल सदस्य फूल चंद पाल, रामचंदर, राम प्रकाश आदि ने संबोधित किया।
समाचार प्रेषित किये जाने तक अन्य जिलों से भी धरने-प्रदर्शन के आयोजन के समाचार प्राप्त हो रहे हैं।
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बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

राज्यपाल द्वारा आर.एस.एस.के पदाधिकारियों को रात्रिभोज देना अत्यन्त आपत्तिजनक - भाकपा

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आर.एस.एस. के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत एवं उनके साथ अन्य वरिष्ठ प्रचारकों को राज्यपाल श्री राम नायक द्वारा विगत रात्रि दिये गये भोज और उनके साथ की गयी विशेष मन्त्रणा पर घनघोर आपत्ति व्यक्त की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि श्री राम नायक की जो भी प्रष्ठभूमि रही हो, पर अब वे एक संवैधानिक पद पर आसीन हैं. भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है और आर.एस.एस. एक अतिवादी सांप्रदायिक संगठन है. अतएव संघ के कार्यकारी मंडल के पदाधिकारियों को एक संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा रात्रिभोज देना और उनसे मंत्रणा करना देश के हितों के विपरीत है. बयान में कहा गया है कि समाचार पत्रों के अनुसार संघ के प्रमुख पदाधिकारियों तथा राज्यपाल महोदय के बीच दो घंटों तक विभिन्न राजनैतिक मुद्दों पर चर्चा हुयी है. यही नहीं इस भोज में संघ के प्रमुख पदाधिकारियों के अतिरिक्त अन्य विशिष्ट जनों को भी बुलाया गया था. प्रदेश और देश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि वे कौन से प्रमुख विषय हैं जिन पर राज्यपाल महोदय एवं श्री मोहन भागवत के बीच बातें हुयीं हैं तथा वो कौन कौन से विशिष्ट लोग हैं जो रात्रि भोज में उपस्थित थे. बयान में यह सवाल उठाया गया है कि राज्यपाल महोदय ने इन स्थितियों का संज्ञान क्यों नहीं लिया कि आर.एस.एस. ने विचारणीय मुद्दों में धर्मान्तरण, लव जेहाद, कथित घुसपैठ आदि आदि ऐसे ऐसे विन्दु रखे हैं जिनसे समाज में तनाव, विग्रह एवं सांप्रदायिक विद्वेष पैदा होता रहा है. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में संघ के समीपस्थ नेताओं ने ऐसे-ऐसे बयानात दिये थे जिन पर इलेक्शन कमीशन तक को संज्ञान लेना पड़ा था. राज्यपाल महोदय से मिलने वाले संघ के एक पदाधिकारी पर तो अजमेर बोम्ब ब्लास्ट तथा हैदराबाद की मस्जिद में बम ब्लास्ट मामले में जांच चल रही है. डा.गिरीश ने कहा कि राज्यपाल महोदय ने सांप्रदायिक संगठन के पदाधिकारियों को रात्रिभोज देकर अपने संवैधानिक दायित्वों से इतर कार्य किया है जो अत्यन्त आपत्तिजनक है. डा. गिरीश, राज्य सचिव.
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शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

नेहरू और मोदी

भाजपाई प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एक ओर बड़ी तेजी से अंतर्राष्ट्रीय पूंजी को रिझाने के लिए तमाम करतब लगातार कर रहे हैं तो दूसरी ओर वे कांग्रेस से गांधी-नेहरू-इंदिरा की विरासत को भी छीन लेने को व्यातुर हैं। गांधी जयंती के दिन उन्होंने अपना महत्वाकांक्षी अभियान ”स्वच्छ भारत“ बड़े प्रचार के साथ एक थाना परिसर में झाडू लगा कर शुरू किया जो इंदिरा जयंती (19 नवम्बर) तक चलेगा तो दूसरी ओर उन्होंने नेहरू जयंती (बाल दिवस 14 नवम्बर) बड़े पैमाने पर मनाने की घोषणा करके कांग्रेस को अजीबोगरीब स्थितियों में डाल दिया। उन्होंने संघ परिवार और भाजपा को भी वैचारिक संकट में डाल दिया है।
भगत सिंह, डा. बी. आर. आम्बेडकर, जवाहर लाल नेहरू, पूरन चन्द जोशी और अजय घोष आधुनिक भारत को नई राजनीतिक चेतना एवं दृष्टि से लैस करने वाले नेता रहे हैं। ये सभी वैचारिक जड़ता को तोड़ने का साहस, प्रचलित धारणाओं के खिलाफ बोलने और वक्त के आगे की सोचने वाले नेता रहे हैं। धार्मिक नेताओं में विवेकानन्द ने भी यही भूमिका अदा की थी। पूरन चन्द जोशी और अजय घोष के बारे में जानने वालों की संख्या लगातार सीमित होती गई जबकि डा. बी. आर. आम्बेडकर अभी भी दलित राजनीति का सबसे अधिक प्रचलित नाम है, बात दीगर है कि उनके विचारों और कार्यों को जानने वालों की संख्या भी सीमित हाती जा रही है। भाजपा आम्बेडकर को छू-छू कर उनसे हमेशा दूर होती रही। उसने एक बार विवेकानन्द और एक बार भगत सिंह को अपनाने की असफल कोशिशें जरूर कीं परन्तु उनके वैचारिक करन्ट को वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। उस दौर में जनता राजनीति में अधिक जागरूक थी और जनता ने भाजपा पर प्रश्नों की बौछार तेज कर दी थी कि भाजपा उनसे छिटक कर दूर खड़ी हो गयी। भाजपा गांधीवादी समाजवाद के नाम गांधी को भी अपनाने की असफल कोशिश कर चुकी है।
नेहरू अब तक भाजपा एवं संघ परिवार के लिए सबसे अधिक अछूत रहे हैं। ये लोग इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक की प्रशंसा कर चुके हैं परन्तु नेहरू हमेशा उनके निशाने पर रहे हैं। पहली बार भाजपा के किसी नेता ने नेहरू को स्वीकार करने की बात की है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पिछले लोक सभा चुनाव का माहौल अपने पक्ष में बनाने के लिए संघ-भाजपा एवं मोदी सभी ने नेहरू के बरक्स सरदार पटेल को खड़ा करने की कोशिश इस तरह की थी मानो सरदार पटेल न ही कांग्रेसी थे और न ही नेहरू के सहयोगी। जनता को याद होना चाहिए कि यहां तक कहा गया था कि ”अगर नेहरू की जगह पटेल प्रधानमंत्री बनते.......“ और पटेल की लौह प्रतिमा गुजरात में स्थापित करने के लिए गांव-गांव लोहा इकट्ठा किया गया था। अभी कुछ दिनों पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक काल्पनिक स्थिति देश के सामने रखने की कोशिश की थी कि कश्मीर मामले को अगर पटेल ने संभाला होता तो इसके एक हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा न होता। कुछ दिनों से फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा एक अभियान चल रहा था कि गांधी और नेहरू अगर चाहते तो भगत सिंह को फांसी नहीं होती।
भाजपा एवं संघ के साथ समस्या यह रही है कि जब तक भारतीय राजनीति में नेहरू और अजय घोष (भाकपा के महासचिव एवं शहीद भगत सिंह के साथी) के जीवन काल में जनसंघ (भाजपा का पूर्व संस्करण) संसद में दूसरे दल के रूप में स्थापित नहीं हो पाई थी। जनसंघ अमरीका और विकसित यूरोपीय देशों के पक्ष में अपनी राजनीतिक-आर्थिक नीतियों को निरूपित करता रहा था जबकि नेहरू ने भारत के विकास के लिए और उसे स्वयं पर निर्भर अर्थव्यवस्था बनाने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का वैकल्पिक मॉडल पेश किया था और वे उसी रास्ते पर आगे बढ़े। नेहरू अमरीका और विकसित यूरोपीय देशों की आर्थिक दासता स्वीकार करने के बजाय उसे चुनौती पेश कर रहे थे और सोवियत संघ के सहयोग से जहां एक ओर भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे वहीं वैश्विक राजनीति में वे अमरीकी साम्राज्यवाद के सामने झुकने से इंकार करते हुए नासिर और टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आधार शिला रखने में व्यस्त थे। नेहरू का मानना था कि अगर प्रचलित धारणाओं के खिलाफ नए तथ्य सामने आने पर हमें अपनी सोच को बदल लेना चाहिए और उन्होंने भारतीय जनता में वैज्ञानिक मिजाज यानी साइंटिफिक टेम्पर विकसित करने पर जोर दिया था।  नेहरू का यही काम आस्था को मुद्दा बनाकर अपनी राजनीति करने वाली जनसंघ के साथ-साथ संघ के लिए सबसे ज्यादा कष्टकर और असहज परिस्थितियां पैदा करने वाला था। नेहरू का ही कथन था कि अफवाहें देश की सबसे बड़ी दुश्मन हैं और दक्षिणपंथी एवं कट्टरपंथी ताकते अफवाहों को अपना सबसे कारगर हथियार समझते हैं। हिटलर झूठ को कला के स्तर तक ले ही गया था और इसी रणनीति के सहारे भाजपा पिछले लोकसभा चुनावों में विजयी हुई है।
नेहरू और इंदिरा गांधी की विरासत पर राजनीति करने वाली कांग्रेस उनके आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा भटक चुकी है। नेहरू की आर्थिक एवं वैश्विक राजनीतिक समझ से वह बहुत ज्यादा दूर जा चुकी है। आज की उसकी नीतियां वही हैं जो भाजपा की हैं। कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री शशि थरूर ने तो उस दौर की आर्थिक एवं राजनीतिक नीतियों को मूर्खतापूर्ण तक कह डाला था। कांग्रेस नेहरू पर अपना दावा एक तरह से छोड़ चुकी है।
आने वाले वक्त में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी नेहरू के साथ कितनी दूर तक चल पाते हैं और संघ परिवार की इस पर क्या प्रतिक्रिया होती है? यह देखना और दिलचस्प होगा कि इस दौर में जनता नेहरू को लेकर भाजपा के सामने किस तरह के प्रश्न खड़ी करती है और क्या भाजपा और संघ को असहजता की उसी स्थिति तक धकेल पाती है अथवा नहीं जिस असहजता में वह विवेकानन्द और भगत सिंह को अंगीकार करने के दौर में भाजपा को खड़ी कर चुकी है।
- प्रदीप तिवारी
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गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

महंगाई के खिलाफ भाकपा १६ अक्टूबर को सडकों पर उतरेगी.

लखनऊ- केन्द्र सरकार को पदारूढ़ हुये साढ़े चार माह बीत गये. अपने चुनाव अभियान में भी भाजपा ने सत्ता में आते ही महंगाई को समाप्त करने का वायदा किया था. लेकिन आज भी महंगाई लोगों के सामने बड़ी समस्या बनी हुयी है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महंगाई को कारगर रूप से नीचे लाने को 16 अक्टूबर को देश भर में धरने-प्रदर्शन आयोजित करेगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में बिजली के दामों में बड़ी वृध्दि कर महंगाई को बढ़ाने में आग में घी का काम किया है, अतएव भाकपा प्रदेश सरकार के इस कदम की वापसी की मांग भी करेगी. उत्तर प्रदेश में सूखा और बाढ़ की तबाही से किसान-कामगारों को राहत दिलाने की मांग भी केंद्र और राज्य सरकार से की जायेगी. उपर्युक्त जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा.गिरीश ने बताया कि जिलों-जिलों में प्रदर्शनों के उपरान्त दो अलग अलग ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे जायेंगे. पहला ज्ञापन राष्ट्रपति तो दूसरा राज्यपाल को संबोधित होगा. राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में केन्द्र सरकार को महंगाई को नीचे लाने हेतु जरूरी निर्देश दिए जाने की मांग की जायेगी. इस हेतु जरूरी वस्तुओं की जमाखोरी और उनके वादा कारोबार पर रोक लगाने, हर परिवार को हर माह 35 किलो खाद्यान्न २ रु. प्रति किलो की दर से मुहैय्या कराने, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट को देखते हुये पेट्रोल डीजल एवं गैस की कीमतों में उल्लेखनीय कमी की जाने तथा रेल किराया और मालभाड़े में कमी लाने जैसी मांगें की जायेंगी. राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन में बिजली की बढ़ी दरों को वापस लेने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने, पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट कम करने तथा सूखा और बाढ़ से प्रभावित किसानों-कामगारों के हित में ठोस कदम उठाने हेतु राज्य सरकार को निर्देश दिये जाने की मांग की जायेगी. यहाँ जारी एक बयान में भाकपा राज्य सचिव ने बताया कि जिलों-जिलों में प्रदर्शनों की तैयारियां चल रही है. भाकपा कार्यकर्ता जन संपर्क में जुटे हैं तथा नुक्कड़ सभायें आदि आयोजित की जारही हैं. डा.गिरीश
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बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

बिजली दरों में बढ़ोतरी की भाकपा द्वारा कटु निन्दा

लखनऊ 1 अक्टूबर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने विद्युत नियामक आयोग द्वारा घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरों में औसत 12 प्रतिशत तथा कृषि के लिए औसत 12.20 प्रतिशत की बढ़ोतरी के लिए आज दी गई अनुमति की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि एक साल पहले ही बिजली दरों में औसत 30 प्रतिशत बढ़ोतरी एक साल पहले ही की गई थी और इस बढ़ोतरी से सामान्य घरेलू उपभोक्ताओं के साथ-साथ किसानों की कमर टूट जायेगी। ज्ञातव्य हो कि उद्योगों को आपूर्ति की जाने वाली बिजली की दरों में केवल 7.38 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है जबकि वाणिज्यिक कनेक्शनों पर केवल 6.28 प्रतिशत औसत बढ़ोतरी की गई है।
भाकपा के राज्य सचिव मंडल की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने उत्तर प्रदेश सरकार से मामले में हस्तक्षेप कर प्रस्तावित बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग की है। भाकपा ने कहा है कि सपा सरकार के वर्तमान कार्यकाल के दौरान बिजली की दरों में डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ोतरी की जा चुकी है। इस वृद्धि का असर लगातार बढ़ रही महंगाई पर भी पड़ेगा।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि सरकार शहरों को भी 12 घंटे विद्युत आपूर्ति नहीं कर पा रही है और न ही बिजली चोरी को रोकने का प्रयास कर रही है। उल्टे सामान्य उपभोक्ताओं पर लगातार असहनीय भार लादती चली जा रही है। अगर राज्य सरकार इस बढ़ोतरी को वापस नहीं लेती है तो भाकपा पूरे प्रदेश में जनता को इस बढ़ोतरी के खिलाफ लामबंद करेगी और इसके खिलाफ जनसंघर्ष आयोजित करेगी।



कार्यालय सचिव

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