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बुधवार, 31 दिसंबर 2014
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भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस लो वरना आन्दोलन होगा: भाकपा
लखनऊ-३१ दिसंबर २०१४- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने केन्द्र सरकार द्वारा गत दिन पारित किये गये भूमि अधिग्रहण संबंध्दी अध्यादेश को पूरी तरह किसान विरोधी एवं पूंजीपतियों तथा कारपोरेट घरानों का हित संरक्षक बताते हुये उसे तत्काल वापस लेने की मांग की है. भाकपा ने चेतावनी दी कि यदि इस अध्यादेश को तत्काल वापस नहीं लिया गया और इसके तहत किसानों की जमीनों को मनमाने तरीके से हथियाने का कोई भी प्रयास किया गया तो भाकपा इसका कड़ा विरोध करेगी.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहाकि देश के किसानों, किसान हितैषी संगठनों जिनमें भाकपा प्रमुख है ने लम्बी जद्दोजहद के बाद १८९४ के भूमि अधिग्रहण कानून में २०१३ में संशोधन कराकर इसे किसान हितों के सरक्षण वाला रूप दिलाया था. सभी जानते हैं कि पहले दादरी में सपा सरकार द्वारा अंबानी को सौंपी गयी २७६२ एकड़ जमीन को किसानों को वापस कराने के लिये भाकपा ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री वी.पी.सिंह एवं भाकपा के तत्कालीन महासचिव का. ए.बी. बर्धन के नेतृत्व में जंगजू आन्दोलन चलाया था जिसके परिणामस्वरूप किसानों की जमीनें आज उन्हें वापस मिल सकी है. इसके बाद जब बसपा की राज्य सरकार ने नोएडा, अलीगढ़, आगरा एवं मथुरा आदि में बढ़े पैमाने पर किसानों की जमीनें हड़प कर उसे जे.पी. समूह तथा अन्य औद्योगिक घरानों को सौंपा तो भाकपा फिर से किसानों के साथ खड़ी हुयी और १८९४ के उपनिवेशी कानून को बदलवाने में अहम भूमिका निभाई. आज केन्द्र की मोदी सरकार ने पुनः १८९४ के कानून की बहाली करके उपनिवेशी शासन की याद दिलादी है.
डा.गिरीश ने कहाकि यह कानून किसानों से उनकी मर्जी के बिना मनमानी कीमतों पर जमीनों को छीन कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों, उद्योगपतियों एवं भूमाफियायों की झोली में डाल देगा जिसे देश का किसान कभी बर्दाश्त नहीं करेगा. किसानों से अच्छे दिन लाने का वायदा करने वाली यह सरकार आज पूरी तरह से किसानों के खिलाफ युध्द छेड़ चुकी है, भाकपा इसका सडकों पर उतर कर मुकाबला करेगी. जल्दी ही इस संबंध्द में आन्दोलन का निर्णय लिया जायेगा. भाकपा किसान हित में सभी वामपंथी दलों और जनवादी ताकतों को एकजुट करेगी, राज्य सचिव ने कहा है.
डा.गिरीश, राज्य सचिव
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मंगलवार, 16 दिसंबर 2014
at 2:23 pm | 0 comments |
भाजपा और कांग्रेस का विकल्प केवल वामपंथ
पिछले 25 सालों से घूम फिर कर केन्द्र में और तमाम राज्यों में जो भी गैर वामपंथी सरकारें बनी, इन सबने सरमायेदारों के अधिकतम मुनाफे के लिए काम किया है और विदेशी पूंजी मंगाने के नाम पर आने वाली पीढ़ियों पर लगातार बोझ लादा है। स्वदेशी, राम राज्य और पता नहीं विकास के किन-किन नारों के साथ कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए भाजपा केन्द्रीय सत्ता में आसीन हो गई और वामपंथ भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया। आज लोक सभा एवं राज्य सभा में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के साथ-साथ तमाम तरह के संकीर्णतावाद और फूटपरस्ती से संघर्ष करने वाली शक्तियां गिनी-चुनी बची हैं। लेकिन न तो यह इतिहास का अंत है और न ही भारतीय लोकतंत्र में अभी दो-दलीय शासन व्यवस्था कायम होने का कोई दौर ही शुरू हो गया है।
ऐसे मौके पर भाजपा के विरोध के नाम पर लोहिया के तमाम पुराने समाजवादी सहयोगियों यानी जनता दल के पुराने कुनबे को जोड़ने की कवायद हाल में शुरू की गयी है। सियासी तौर पर तो जमा हुए 6 दलों का वर्तमान लोक सभा में विशेष वजूद नहीं है। कुल मिला कर 15 संसद सदस्य मात्र हैं। दूसरे इन दलों का चन्द राज्यों को छोड़ कर कहीं जमीनी धरातल भी नहीं है। बिहार में नितीश और लालू का एक मंच पर आना उनकी राजनैतिक मजबूरी है और यह गठजोड़ भी आने वाले बिहार विधान सभा चुनावों में भाजपा को कितना रोक पायेगा, यह तो वक्त ही बतायेगा। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी है। उसके वोट बैंक में इस गठजोड़ से कोई इजाफा होने से रहा। जनता दल सेक्यूलर का भी वजूद बहुत सीमित दायरे में है। इनेलो नेतृत्वहीनता की शिकार है, ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला चुनाव ही नहीं लड़ सकते। यही संकट लालू के सामने भी है। छठा दल चन्द्रशेखर की सजपा (राष्ट्रीय) है। चंद्रशेखर के एक पुत्र सपा से राज्य सभा में हैं तो दूसरे भाजपा से। सियासी वजूद के रूप में शून्य हो चुकी उनकी विरासत को कमल मुरारका अभी तक ढो रहे हैं, कोई भाव नहीं देता तो मुलायम के घर बैठक में पहुंच गये।
इन दलों के एकीकरण का काम करने के लिए मुलायम सिंह को अधिकृत किया गया है। मुलायम की स्वयं की विश्वसनीयता सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाकपा तथा माकपा को धोखा देने के साथ ही वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, अजित सिंह, ममता आदि तमाम लोगों को धोखा दिया है। उन्होंने समाजवादी आन्दोलन को कभी आगे नहीं बढ़ाया। उनका समाजवाद और पिछड़ों के कल्याण का एजेंडा केवल उनके परिवार तक और उनके गांव तक सीमित रहा है। मुजफ्फरनगर में लोग मरते रहे और वे सैफई में नाच देखते रहे। कमोबेश यही हालत इस मोर्चे से कुछ अन्य नेताओं के साथ है, चाहे वे चौटाला परिवार हो या लालू परिवार।
इन सभी पार्टियों ने अपने-अपने सूबों में अपनी सरकार चलाते समय वही सब किया है जो केन्द्र में कांग्रेस, भाजपा और दूसरे दल करते रहे हैं। सभी पूंजीवाद के हितैषी तथा उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीयकरण के ध्वजवाहक हैं। सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। इसलिए वे केन्द्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस विकल्प हो ही नहीं सकते। उनका वास्तविक विकल्प वही दल प्रस्तुत कर सकते हैं जो 25 सालों से केन्द्र में चलाई जा रही नीतियों के उलट चलने की बात करते हो और उनका इतिहास ऐसा रहा हो।
पिछले 25 सालों में देश का जो विकास किया गया है, उससे आम जनता को कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। चिकित्सा और शिक्षा दो बुनियादी मुद्दे हैं जिनकी आम जनता तक पहुंच हेतु भारत का संविधान अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता है। परन्तु इन दोनों ही क्षेत्रों का असीमित निजीकरण किया गया है। शिक्षा संस्थान और अस्पताल खोलना आज एक व्यवसाय बन चुका है। आजादी के पहले और आजादी के बाद भी लम्बे वक्त तक शिक्षा संस्थान और अस्पताल धर्मादा उद्देश्य से खोले जाते थे या सरकार खोलती थी। लेकिन आज इनसे ज्यादा मुनाफा देने वाला कोई व्यवसाय नहीं है। देशी और विदेशी पूंजीपति इन दोनों क्षेत्रों में निवेश को व्याकुल हैं। गरीबों को चिकित्सा और शिक्षा दोनों से वंचित होना पड़ रहा है। खाने को तो उन्हें पेट भर मिलता ही नहीं है। वामपंथी दलों को छोड़ कर उनकी बात करने वाला भी कोई नहीं है। लेकिन मुलायम के नेतृत्व में खड़ा हो रहा तथाकथित मोर्चा ऐसे बयान जारी कर रहा है कि वे अपने साथ वामपंथ को भी जोड़ेंगे। ये सभी वामपंथ का पहले ही बहुत दोहन कर चुके हैं अतएव वामपंथ को अब इनकी बैसाखी नहीं बनना चाहिए और वाम पंथी दलों ने जो अपना आत्मनिर्भरता और एकता का रास्ता पकड़ा है, उसी पर चलना चाहिए। हमें आत्मविश्वास के साथ कहना चाहिए कि भाजपा और कांग्रेस की नीतियों का विकल्प वामपंथ ही देगा और हमें उसी के लिए अपने सारे प्रयास करने चाहिए। इस स्थिति से भटकाव वामपंथ को फिर से और पीछे ले जा सकता है।
इस समय पूरे देश में वामपंथ का संयुक्त आन्दोलन चल रहा है। मीडिया में उसकी आवाजें भले न सुनाई पड़ रहीं हो परन्तु सड़कों पर उनकी हलचल धीरे-धीरे बढ़ रही है। वामपंथी दलों और उसमें विशेषकर भाकपा का पूरे देश में संगठन है। भारतीय जन मानस को जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठ कर वामपंथी विकल्प के पीछे ही कतारबद्ध होना चाहिए।
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014
at 5:13 pm | 0 comments |
विभाजन और घ्रणा की राजनीति का नया हथकंडा है- धर्मान्तरण : भाकपा
बंटवारे की घ्रणित राजनीति का नया हथकंडा है धर्मान्तरण : भाकपा
लखनऊ- १२ दिसंबर : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि आगरा, अलीगढ़ एवं अन्य स्थानों पर संघ परिवार के घटकों द्वारा छेड़ा गया ‘धर्मान्तरण जेहाद’ भाजपा एवं आर.एस.एस. द्वारा मोदी सरकार की वायदा खिलाफी से ध्यान हठाने और वोट के लिये बंटवारे की घ्रणित राजनीति करने का ही हथकंडा है. यदि जनता जनार्दन ने भाजपा और संघ की इन ओछी हरकतों को पहचानने में देरी की और धर्मनिरपेक्ष दलों ने ससमय इन करतूतों का जबाव नहीं दिया तो यह देश को गंभीर संकट में डाल देगा. भाकपा ने समाजवादी पार्टी और उसकी राज्य सरकार पर आगरा के धर्मान्तरण प्रकरण में मुज़फ्फर नगर कांड जैसी दोमुहीं रणनीति अपनाने का आरोप लगाया है.
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा देने वाली भाजपा की केन्द्र सरकार जब कारपोरेटों और पूंजीपतियों के हित चिन्तन में जुट गयी और आम जनता की तबाही का रास्ता खोल दिया तो सरकार की विश्वसनीयता पर संकट के बादल मंडराने लगे. महंगाई, भ्रष्टाचार और अन्य जनविरोधी नीतियों से त्राहि त्राहि कर रही आमजनता का ध्यान इन समस्यायों से हठाने और विभाजन के जरिये वोट बैंक को बनाये रखने के उद्देश्य से भाजपा और संघ परिवार तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, और इस फहरिस्त में अब एक और स्टंट जुड़ गया है- धर्मान्तरण.
सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद संघ परिवार ने पहले लव जेहाद को उछाला. फिर गाँधी, नेहरु, पटेल, विवेकानंद, शहीद भगतसिंह एवं राजा महेन्द्र प्रताप की विरासत को हड़पने की कोशिश की. इससे जुड़े भगवा वस्त्रधारी महंतों, साध्वियों एवं महाराजों ने अल्पसंख्यकों एवं उनके प्रति उदार द्रष्टिकोण अपनाने वालों के खिलाफ घिनौनी और भड़काऊ शब्दावली में विष वमन किया. फिर गीता को राष्ट्रीय पुस्तक बनाने का शिगूफा छोड़ा गया. भाजपा के एक सांसद द्वारा महात्मा गाँधी के हत्यारे को देशभक्त और राष्ट्रवादी बताया गया. इससे भी बढ कर अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का राग इसके अलग अलग भोंपू लगातार अलापते रहते हैं जिनमें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल सबसे आगे हैं. राज्यपाल श्री नाइक ने इस संवैधानिक पद की गरिमा और मर्यादा को भारी क्षति पहुंचाई है. इसका उद्देश्य विपक्षी दलों को इन्हीं मुद्दों पर उलझाये रखना है ताकि वे सरकार के जनविरोधी कामों पर पर्याप्त आक्रमण न कर पायें.
यहाँ यह भी आश्चर्यजनक है कि देश विदेश में भारत की छवि निखारने का दंभ पाले प्रधानमंत्री मोदी इन घटनाओं पर खामोश हैं और भाजपा निर्लज्जता से इन सभी को जायज ठहराने में जुटी है.
भाकपा ने सभी विपक्षी दलों से अपील की कि वह भाजपा और संघ परिवार की दोहरी चालबाजियों पर चहुंतरफा हमला करे. भाकपा ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की कि वह आगरा धर्मान्तरण प्रकरण के दोषियों के खिलाफ अविलम्ब कारगर कार्यवाही करे तथा इस हेतु अलीगढ़ में २५ दिसंबर को प्रस्तावित आयोजन पर रोक लगाये. भाकपा ने सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से अपील की कि खुल कर संघ के एजेंडे पर काम कर रहे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाइक को वापस बुलाने की मांग राष्ट्रपति महोदय के समक्ष उठायें. भाकपा राज्यपाल के संविधान विरोधी कृत्यों के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रही है.
डा.गिरीश ने बताया कि वामपंथी दल केन्द्र सरकार के जनविरोधी क्रियाकलापों एवं भाजपा एवं संघ की सांप्रदायिक करतूतों के खिलाफ ८ दिसंबर से ही सारे देश और उत्तर प्रदेश में आन्दोलन चला रहे हैं जिसके तहत प्रतिदिन प्रदेश के विभिन्न जिलों में धरने प्रदर्शन होरहे हैं. इसी क्रम में कल लखनऊ में भी वामदल सडकों पर उतरेंगे.
डा.गिरीश
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सोमवार, 8 दिसंबर 2014
at 5:46 pm | 0 comments |
केन्द्र सरकार के जनविरोधी कदमों के खिलाफ वामदलों का आन्दोलन शुरू
लखनऊ- देश के छह वामपंथी दलों के आह्वान पर केन्द्र सरकार के जनविरोधी कारनामों के खिलाफ और दस सूत्रीय मांगपत्र को लेकर वामदलों का संयुक्त आन्दोलन आज समूचे देश में शुरू होगया.
उत्तर प्रदेश में भी आज से ही इसकी धमाकेदार शुरुआत हुयी और आन्दोलन में शामिल दलों – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भाकपा(माले), फार्बर्ड ब्लाक, आरएसपी एवं एसयूआईसी ने आज प्रदेश के अलग अलग जिलों में सभायें कीं सम्मेलन किये और जनपद हाथरस में भाकपा के तत्वावधान में एक धरने का आयोजन किया गया.
यह आन्दोलन प्रमुखतः मनरेगा को सीमित करने के प्रयासों, श्रम कानूनों में किये गये प्रतिकूल बद्लाबों, बीमा रेलवे रक्षा एवं अन्य आधारभूत क्षेत्रों को एफडीआई के हवाले किये जाने, महंगाई को काबू में न किये जाने, काले धन की वापसी के मामले में सरकार की हीला हवाली, भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की कोशिशों, महिलाओं दलितों सहित सभी कमजोर तबकों पर लगातार बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ तथा देश और देश की जनता को सांप्रदायिकता के जरिये बाँटने की साजिशों के विरुध्द चलाया जारहा है.
वामदलों का आरोप है कि पिछले छह माहों में केन्द्र की मोदी सरकार ने एकतरफा कार्पोरेट और पूंजीपति घरानों को लाभ पहुंचाया है और किसान कामगार तथा दूसरे नागरिकों को तबाही की ओर धकेला है. यहाँ तक कि केरोसिन पर सब्सिडी खत्म कर दी गयी जबकि रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को सीधे उपभोक्ताओं के खाते में भेजने का ढोंग रचा जारहा है. बेचारे उपभोक्ता इसे हासिल करने के लिए की जारही तमाम ओपचारिकताओं को पूरा करने की कबायद से परेशान हैं और वह यह भी आरोप लगा रहे हैं कि यह सब्सिडी उसी तरह उन्हें नहीं मिल पायेगी जिस तरह विभिन्न पेंशन योजनाओं की धनराशि उन्हें नहीं मिल पाती. गरीब लोगों को तो पहले ही पूरी कीमत देकर सिलेंडर खरीदना असंभव सा लग रहा है. सरकार को इन कदमों को वापस लेना चाहिये.
वामदलों का दावा है कि अपने कार्यकाल के पहले छह महीनों में इस सरकार से जनता के मोहभंग की शुरुआत होगयी है. ऐसा पहले कभी देखने को नहीं मिला. यही वजह है की जनता के तमाम हिस्से सडकों पर उतर रहे हैं.
वामदलों का यह आन्दोलन उत्तर प्रदेश में १५ दिसंबर तक जारी रहेगा. हर जिले में अलग अलग तारीखों में सभायें, धरने, प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे जिसका समापन इलाहाबाद में १५ दिसंबर को संयुक्त धरने से किया जायेगा.
डा.गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
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