भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

भाकपा की 90 वीं सालगिरह: साम्यवाद ही क्यों? विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित

भाकपा की 90वीं वर्षगांठ- साम्यवाद ही क्यों? विषय पर गोष्ठी आयोजित हाथरस- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 90 गौरवशाली साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह जनपद- हाथरस के कस्बा- मेंडू में आयोजित किया गया. गीत और संगीत के कार्यक्रमों के अतिरिक्त वहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया. गोष्ठी का विषय था- साम्यवाद ही क्यों? गोष्ठी को संबोधित करते हुये भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने और आजाद भारत में एक समानता, भाईचारे पर आधारित और सभी प्रकार के शोषण से मुक्त साम्यवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से भाकपा का गठन देश के उन क्रांतिकरियों ने किया था जो रुस की समाजवादी क्रांति से प्रेरित थे तथा मजदूरों- किसानों को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे. भाकपा की स्थापना से पहले और उसके बाद मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के विचारों से प्रेरित इन क्रांतिकारियों ने कदम ब कदम अनेक कदम उठाये जिनके चलते देश को आज़ाद कराने में भारी मदद मिली. लेकिन साम्यवादी समाज की रचना का काम आज भी शेष है. सबका साथ और सबका विकास की बात करने वाले आज के शासक अल्पसंख्यक समुदाय को कदम कदम पर हानि पहुंचा रहे हैं और गरीब तथा आम आदमी की कीमत पर कार्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचा रहे हैं. डा. गिरीश ने कहा कि आजादी के बाद शासक पूंजीपति वर्ग की पार्टियों – कांग्रेस, भाजपा, क्षेत्रीय और जातिवादी दलों ने मेहनतकशों को लुभावने नारे दे कर और उन्हें जाति, क्षेत्र और सांप्रदायिक आधारों पर बांट कर समाजवाद और साम्यवाद के लक्ष्य को भारी हानि पहुंचाई है. वहीं पार्टी में विभाजन करने वालों ने भी इस पावन उद्देश्य को कम हानि नहीं पहुंचाई. महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि आज विभाजन करने वाली पार्टियां उसी नीति और कार्यनीति पर चल रहे हैं जिनकी कि आलोचना करके उन्होने अलग पार्टियां बनायीं थीं. उन्होने कहा कि आजादी के बाद के इन 67 सालों में जनता ने हर पूंजीवादी दल की सत्ता का स्वाद चख लिया है. आज इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस पूरे कालखंड में किसान कामगार और अन्य मेहनतकश तवाह हुये हैं तथा पूंजीपति, माफिया और राजनेता मालामाल हुये हैं. हमें इन लुटे पिटे तबकों की चेतना को जगाना होगा. इसके लिये भारी मेहनत करनी होगी. लोगों को बताना होगा कि अब उन्हें पूंजीवादी दलों के मायाजाल से बाहर आना होगा. हमें अब सत्ता में पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा और संकल्प लेना होगा कि हम भाकपा की 100 वीं वर्षगांठ तक सत्ता शिखर तक अवश्य पहुंचेंगे. इसके लिये भाकपा को अपने संगठन की चूलें तो कसनी ही होगी तमाम संकीर्णताओं के प्रति वैचारिक विमर्श चलाते हुये वामपंथी एकता को भी मजबूत करना होगा. वामपंथ को मजबूत बना कर ही वाम जनवादी एकता का रास्ता हमवार होता है. बिना वामपंथ को मजबूत किये जनवादी एकता की बात बेमानी साबित होगी. भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. गफ्फार अब्बास ने कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा का खेल अब नहीं चलने दिया जायेगा. हम मेहनतकश 100 में नब्बे हैं जिनका हित केवल साम्य्वाद में ही संभव है. समाजवाद और फिर साम्यवाद ही हम सब को सम्रध्द और खुशहाल बना सकता है. गोष्ठी में डी.एस. छोंकर, बाबूसिंह थंबार, चरनसिंह बघेल, जगदीश आर्य, सत्यपाल रावल, द्रुगपाल सिंह, नूर मुहम्मद, आर. डी. आर्य, नैपाल सिंह( बी. डी. सी.), संजय खान, पप्पेंद्र कुमार, राजाराम कुशवाहा, आबिद अहमद एवं महेंद्र सिंह ने भी विचार व्यक्त किये. डा. गिरीशभा
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सोमवार, 28 दिसंबर 2015

जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुखों के चुनावों चल रही धींगामुश्ती को रोका जाये : भाकपा

लखनऊ- 28 दिसंबर- 2015 : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रि परिषद ने प्रदेश में जिला पंचायत और ब्लाक पंचायत के अध्यक्ष/ प्रमुखों के होने जारहे चुनावों में चल रही धींगामुश्ती, छीन-झपट और बल प्रयोग पर कडी आपत्ति जताते हुये इसे लोकतंत्र के लिये बहुत ही घातक बताया है. भाकपा ने इन कारगुजारियों पर अंकुश लगाने तथा ‘फ्री एंड फेयर’ चुनाव कराये जाने की मांग की है. उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल एवं मुख्य निर्वाचन अधिकारी को लिखे गये पत्र में भाकपा के राज्य साचिव डा. गिरीश ने कहा है कि हाल ही में प्रदेश की जनता द्वारा जिला पंचायत एवं ब्लाक समितियों के सदस्यों का निर्वाचन इस मकसद से किया है कि वे अपने निकायों का ऐसा मुखिया चुनेंगे जो सच्चाई और ईमानदारी के साथ विकास कार्यों को अंजाम देगा. लेकिन इनके निर्वाचित होते ही इनकी खरीद फरोक्त के लिये बोली लगना शुरु होगयी और धन बल बाहुबल और सत्ता बल के जरिये इनको अपने कब्जे में करने की होड लग गयी. वैसे तो प्रदेश की तीनों प्रमुख पार्टियां- सपा, भाजपा और बसपा इस अनैतिक और लोकतंत्र विरोधी कारगुजारी में लिप्त हैं, लेकिन सत्ता में होने के नाते सपा इस काम में औरों से आगे है. सपा प्रवक्ता ने तो बयान दिया है कि अध्यक्ष पद के प्रत्याशी तय करने में उनकी ‘ताकत और दबंगई’ का ध्यान रखा गया है. अपने पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि इन दोनों निकायों में विकास के लिये भारी धनराशि आबंटित होकर आती है. माफियातत्त्व इस धनराशि को हडप कर जाना चाहते हैं. अतएव वे सक्षम राजनैतिक दलों के प्रत्याशी बन कर चुनाव लड रहे हैं. राज नेता और राजनैतिक दल भी इस लूट खसोट के भागीदार बनना चाहते हैं. इससे जनता के धन के नेताओं की झोली में जाने का रास्ता तो खुला ही है लोकतंत्र और पंचायती राज सिस्टम भी गहरे संकट में है. इसको बचाने का प्रयास फौरन किया जाना चाहिये. डा. गिरीश ने दोनों संवैधानिक शख्सियतों से इस मामले में तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग की है. डा. गिरीश, राज्य सचिव
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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

गंगा आरती में नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे.

गत दिनों एक हिदी दैनिक में प्रकाशित इतिहासकार श्री रामचंद्र गुहा के एक लेख का उपसंहार कुछ इस प्रकार हुआ है – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि “बहुलता और सहिष्णुता का माहौल सतत आर्थिक विकास के लिये अनिवार्य है.” ऐसा नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी इस बात से सहमत हैं. वह एक साथ आर्थिक आधुनिकतावादी और सांस्कृतिक प्रतिक्रियावादी, दोनों बने रहना चाहते हैं. यह दो घोडौं की सवारी है, जिनमें से एक आगे जा रहा है और दूसरा पीछे. जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की यात्रा का संपूर्ण सार उपर्युक्त शब्दों पूरी तरह अभिव्यक्त है. इस यात्रा के मौके पर मोदी ने जापान के साथ जहाँ कई आर्थिक समझौते किये वहीं अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी जाकर शिंजो अबे के साथ पूरे एक घंटे तक गंगा आरती में भाग लिया. दोनों की तन्मयता देखते ही बनती थी. यहाँ दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा किये गये आर्थिक/ व्यापारिक समझौतों पर कोई टिप्पणी करना व्यर्थ है. आर्थिक नव उदारवाद और कार्पोरेट हितों के लिये समर्पित भारत सरकार के मुखिया से यह सब अपेक्षित ही है. लेकिन दोनों जनतंत्रों के मुखियाओं का गंगा आरती में पूरा का पूरा एक घंटे बिताना और एक अनापेक्षित तन्मयता का प्रदर्शन करना कई सवाल खडे करता है. धर्म और आस्था एक बिल्कुल निजी मामला है. किसी भी उच्च पदासीन व्यक्ति अथवा जनसाधारण को अपने धर्म और उसके प्रति उसकी आस्था को पाबंद नहीं किया जा सकता. लेकिन धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देशों के दो दो राष्ट्राध्यक्ष यदि गंगा आरती जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेंगे तो उनके इस कृत्य की नुक्ताचीनी अवश्य ही होगी. श्री मोदी का लक्ष्य स्पष्ट है. वे आर्थिक नव उदारवाद के एजेंडे पर सरपट दौड्ते हुये भी हिंदुत्व के अपने एजेंडे से हठना नहीं चाहते, यही वजह है वे दादरी जैसी घृणित घटनाओं पर मौन साधे रहे, असहिष्णुता के सवाल पर भी खामोश बने रहे, योग जैसी लोकप्रिय विधा को उन्होने हिंदुत्व की चाशनी में लपेट कर पेश करने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी, आये दिन अपनी पार्टी के नेताओं के विवादास्पद बयानों पर उन्होंने कभी लगाम नहीं लगाई और अब गंगा आरती में भाग लेकर अपनी धर्मपरायण और हिंदूपंथी छवि को पेश करने में कामयाब रहे. आरती के समय जिस तन्मयता का प्रदर्शन उन्होंने किया यदि ऐसी ही तन्मयता उन्होने गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के दौरान दिखाई होती तो बडे खून खराबे को रोका जा सकता था. शीर्षस्थ पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा किसी धार्मिक क्रिया में भाग लेने का प्रभाव तुरत फुरत होता है. आज ही हरिद्वार की गन्गा समिति ने 9 स्थानों पर आरती करने का और उसे भव्यता प्रदान करने का फैसला किया है. कल वारणसी में भी यही कहानी दोहराई जा सकती है. मोदी हो या शिंजे, कोई भी शासक यही चाहता भी है. धार्मिक कट्टरता बडे और लोग उसी में उलझ कर अपने रोजी रोटी के सवालों को तरजीह न दें, शासक वर्ग ऐसा ही चाहता है. इस आरती को भव्यता प्रदान करने, इसमें दोनों नेताओं की भागीदारी की व्यवस्थायें करने में जो भारी राजस्व का अपव्यय हुआ उससे वाराणसी जनपद के समस्त सरकारी अस्पतालों की एक सप्ताह की दवा खरीदी जा सकती थी. सुरक्षा इंतजामों या यात्रा पर हुये व्यय को जोड दिया जाये तो इस धनराशि से एक माह की दवायें वाराणसी के अस्पतालों को दी जा सकती थीं. पर मोदी को तो अपने हिंदुत्त्व के एजेंडे को जिंदा रखने और अपने वोट बैंक को साधे रखने की फिक्र है. इसके लिये वे लोकतांत्रिक परंपराओं को तहस नहस करने से भी नहीं चूक रहे. दास व्यवस्था, सामंती समाज तथा पूंजीवादी व्यवस्था सभी में बहुमत पर अल्पमत का शासन रहता है. समस्त संसाधनों पर अल्पमत समाज का कब्जा रहता है और बहुमत समाज उनके हितों की प्रतिपूर्ति का औजार बन कर रह जाता है. और इस तरह वह घोर अभावों में कष्टमय जीवन बिताने को मजबूर होता है. यह अभाव और कष्ट बहुमत समाज में अल्पमत समाज के प्रति आक्रोश और विद्रोह को जन्म देता है. शासक वर्ग इस आक्रोश और विद्रोह की ज्वाला को शांत करने को तमाम हथकंडे अपनाता है. धर्म और आस्था उनमें सबसे कारगर औजार हैं. मोदी और शिंजे दोनों शासक वर्ग के चतुर सिपहसालार हैं. अतएव एक ओर वे दोनों आर्थिक आधुनिकतावाद का अनुशरण कर रहे हैं, वहीं सांस्कृतिक कट्टरता को भी परवान चढाना चाहते हैं. वाराणसी में गंगा आरती में उनकी भागीदारी इसी उद्देश्य के लिये है. डा. गिरीश.
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सोमवार, 9 नवंबर 2015

असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति के खिलाफ आवाज बुलन्द करने का समय

हिटलर के समकालीन प्रसिद्ध जर्मन कवि मार्टिन नीमोलर की यह पंक्तियां आज की भारतीय राजनीति में बहुत साम्यिक हो गई हैं:
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था
फिर वे ट्रेड यूनियनिस्टों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनिस्ट नहीं था
फिर वे यहूदियों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
अंत में वे मेरे लिए आये
और मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं था
मोदी के सत्ता में आने के बाद संघ और उसके तमाम पुराने और नए पैदा हो गये सहयोगी संगठन जिस तरह से देश में असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति को फैला रहे हैं, वह भारत जैसे प्राचीन समय से बहुलवादी रहे देश, उसकी साझा संस्कृति, उसकी सम्प्रभुता, उसके संविधान सबके लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। इन ताकतों द्वारा सबसे पहले दाभोलकर की हत्या, फिर का. गोविन्द पानसरे की हत्या, फिर कलबुर्गी की हत्या कर दी गईं और सत्ता शिखरों से इनके हत्यारों को शह प्राप्त थी। उसके बाद जिस तरह बकरीद के ठीक बाद गौमांस घर पर रखने का आरोप एक मंदिर के लाउडस्पीकर से लगाकर साजिशन एक निरीह मुस्लिम अखलाक की हत्या दादरी के पास कर दी गई, तो शांतिप्रमियों के लिए एक जबरदस्त झटका रही। ऐसे तत्वों की दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि इन लोगों ने संघ के ही एक पुराने कार्यकर्ता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के सहयोगी रहे कुलकर्णी के भी चेहरे पर कालिख पोत दी।
इस असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की संघी राजनीति के प्रतिरोध की शुरूआत देश में लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर एक आवाज उठाई। उस आवाज के समर्थन में वैज्ञानिक, फिल्मकारों, इतिहासकार, डाक्टर, पर्यावरणविद्, पत्रकारों, पूर्व सैनिक आदि जनता के तमाम और तबके भी उठ खड़े होने लगे और पुरस्कार वापसी में पद्म पुरस्कार भी वापस किये जाने लगे। यह सिलसिला चल ही रहा था कि कल बिहार की जनता भी उठ खड़ी हुई और उसने मोदी-शाह की जोड़ी को जिस प्रकार जवाब दिया, वह भारतीय राजनीति में जन-मानस की बहुलतावादी प्रवृत्ति का द्योतक है।
बिहार चुनावों से पृथकतावादी यह तत्व कोई सबक लेने के बजाय आने वाले वक्त में और आक्रामक होंगे। लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, डाक्टरों, पर्यावरणविदों, पत्रकारों तथा पूर्व सैनिकों आदि तमाम तबकों ने अपनी आवाज को उठाकर अपना दायित्व पूरा कर दिया है, इन आवाजों को बुलन्दियों तक ले जाने का काम कौन करें, यह यक्ष प्रश्न हमारे सामने है।
जिस प्रकार सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल संघ से गलबहियां करते रहे हैं, यह साफ हो चुका है कि वे तो संघ और उसके सहयोगी संगठनों की आवाजों को ही बुलन्द करने में विश्वास करते हैं। दादरी प्रकरण में जिस तरह सपा सरकार ने भाजपा विधायक संगीत सोम को हिंसा के बाद उसी मंदिर पर जाकर हिंसा को और भड़काने की अनुमति दी और शान्तिकामी ताकतों को वहां जाने से रोका, उससे यह बात साफ हो चुकी है।
अस्तु, अंततः वे वामपंथी ही हैं जिन पर लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, डाक्टरों, पर्यावरणविदों, पत्रकारों तथा पूर्व सैनिकों आदि तमाम तबकों द्वारा असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति के खिलाफ उठाई गई आवाज को बुलन्द करने का दायित्व आता है। आओ साथियों आगे बढ़े और इस गुरूतर दायित्व को पूरा करने के लिए जनता के वृहत तबकों को लामबंद करने का काम शुरू करें।
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शनिवार, 7 नवंबर 2015

सांप्रदायिकता, असहिष्णुता, रूढ़वादिता और हिंसा की राजनीति के खिलाफ अभियान चलायेगी भाकपा

लखनऊ- 7 नवंबर - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल की दो दिवसीय बैठक आज यहाँ संपन्न होगयी. बैठक में आन्दोलन/ अभियान संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गए हैं. बैठक के निष्कर्षों की जानकारी देते हुये राज्य सचिव डा.गिरीश ने बताया कि राज्य काउंसिल ने केन्द्र सरकार द्वारा आज ही पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद कर में फिर से वृध्दि करने एवं सभी सेवाओं पर सेस लगाने के फैसलों को जनविरोधी बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने इस संबंध में पारित प्रस्ताव में कहा कि मोदी सरकार को आम जनता की कोई फ़िक्र नहीं है. बिहार के चुनाव समाप्त होते ही उसने जनता के ऊपर नए करों का बोझ लाद दिया. इससे महंगाई की मार से पहले से ही हाल- बेहाल जनता और भी बेहाल हो जायेगी. भाकपा ने जनहित में इन वृध्दियों को तत्काल रद्द करने की मांग की है और इस सवाल को जनता के बीच लेजाने का निश्चय किया है. भाकपा ने रूढ़वादिता, असहिष्णुता, सांप्रदायिकता एवं हिंसा की राजनीति के खिलाफ चरणबध्द अभियान छेड़ने का निश्चय किया है. अभियान के पहले चरण के रूप में 24 नवंबर को- "रूढ़वादिता, असहिष्णुता और हिंसा की राजनीति" विषय पर प्रत्येक जनपद में विचार गोष्ठियां आयोजित करने का निर्णय लिया है. दूसरे चरण में डा. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस (6 दिसंबर ) को अथवा उसकी पूर्व संध्या पर "सदभाव एवं संविधान की रक्षा" के उद्देश्य से गोष्ठियां, सभाएं अथवा अन्य आयोजन किये जायेंगे. तीसरे चरण में इन मुद्दों पर क्षेत्रीय रैलियाँ आयोजित की जायेंगी. हर कार्यक्रम में समाज के प्रबुध्द और सहिष्णु तबकों एवं शख्सियतों को शामिल किया जायेगा. इन अभियानों की प्रासंगिकता को जतलाते हुये राज्य काउंसिल द्वारा पारित रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र में मोदी सरकार के पदारूढ़ होने के बाद से आर.एस.एस. और दूसरी हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक शक्तियां और अधिक हमलावर होगयीं हैं. वे पूरी तरह निरंकुश होकर सेक्युलर, सहिष्णु एवं उदार शक्तियों के खिलाफ जहर उगल रही हैं और रूढ़वादिता के खिलाफ संघर्ष करने वाले व्यक्तियों की हत्यायें कर रही हैं. दादरी में अखलाक, कन्नड़ लेखक कलबुर्गी, कम्युनिस्ट नेता का.गोविन्द पानसरे तथा नरेन्द्र दाभोलकर की हत्यायें संघ द्वारा पोषित और केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित घ्रणित विचारों की देन हैं. मुस्लिम अल्पसंख्यक इनके खास निशाने पर है. अपनी इन निर्लज्ज करतूतों को वे राष्ट्रवाद का चोला पहना रही हैं. प्रधानमन्त्री ने इन हरकतों पर चुप्पी साध रखी है और उनके मंत्रिमंडल सहयोगी व प्रमुख भाजपाई निरंतर विषवमन कर समाज को बाँट रहे हैं और हिंसा की जघन्य वारदातों को वे स्वाभाविक आक्रोश की देन बता कर अपने पापों पर पर्दा डाल रहे हैं. देश में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और असहिष्णुता के खिलाफ साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्मी हस्तियों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और अन्य प्रबुध्द जनों ने अपनी आवाज उठायी है और उन्हें मिले शानदार पुरुस्कारों को वापस किया है. यह क्रम लगातार जारी है. भाकपा उनके इस संघर्ष में पूरी शिद्दत से उनके साथ है. अब संघ गिरोह ने कम्युनिस्टों और वामपंथियों के खिलाफ अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया है जो उनकी खीझ और बौखलाहट का परिचायक है. हम इन फासिस्ट कारगुजारियों के खिलाफ सदैव संघर्षरत रहे हैं और आगे भी रहेंगे, भाकपा ने संकल्प व्यक्त किया है. भाकपा ने इस बैठक में जिला एवं क्षेत्र पंचायत चुनावों कि समीक्षा की . भाकपा के पांच सदस्य और सात समर्थित प्रत्याशी जिला पंचायत में विजयी हुए हैं जबकि पिछली बार केवल एक प्रत्याशी ही जीता था. लगभग पचास बी. डी. सी. सदस्य भी विजयी हुये हैं. जाती, धन और बाहुबल के इस दौर में भाकपा प्रत्याशी बेहद कम संसाधनों और शुचिता के साथ चुनाव लड़े थे. निष्कर्ष है कि भाकपा अपनी चुनावी राजनीति को पुनः संगठित कर रही है. अब ग्राम प्रधान के चुनाव भी अधिकाधिक संख्या में लड़ने का निर्णय लिया गया है. डा. गिरीश, राज्य सचिव
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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

दशहरा, दुर्गा पूजा और मोहर्रम जैसे त्योहारों पर कडी चौकसी बरते उत्तर प्रदेश सरकार: भाकपा

लखनऊ- 16-10- 15. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने राज्य सरकार को आगाह किया है कि वह पूर्व के अनुभवों, प्रदेश के विषाक्त वातावरण और दशहरा, दुर्गा पूजा तथा मौहर्रम जैसे त्योहारों को देखते हुये प्रदेश को किसी अनहोनी से बचाने को कडे कदम उठाये. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत कई वर्षों से यह देखने में आरहा कि दशहरा, दुर्गा पूजा और मौहर्रम जैसे त्योहारों से पहले सांप्रदायिक और दूसरे अवांछनीय तत्व धार्मिक कर्मकांडों की आड में दंगा भडकाने का हर संभव प्रयास करते हैं. गत वर्ष भी इस दर्म्यान कई शहर और जिले दंगों की चपेट में आगये थे. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा कि इस बार दादरी, वाराणसी की घ्रणित घट्नायें और करहल, गोंडा सहित प्रदेश में सौ से अधिक दंगे होचुके हैं. त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों और बिहार में चल रहे विधान सभा चुनावों में वोटों को विभाजित करके लाभ उठाने की कोशिशें भी सांप्रदायिक शक्तियां लगातार कर रही हैं. अतएव राज्य सरकार के स्तर पर कडी चौकसी, निगरानी और कठोरतम कार्यवाही की जरुरत है. भाकपा को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने दल के स्वार्थो से ऊपर उठ कर प्रदेश में अमन, शांति और सद्भाव की रक्षा के लिये कठोर से कठोर प्रशासनिक कदम जरूर उठायेंगे. भाकपा ने राज्य सरकार को सुझाव दिये हैं कि वह सुनिश्चित करे कि किसी भी मिली जुली आबादी से किसी भी समुदाय का धार्मिक जुलूस न निकाला जाये, डी.जे. तथा अन्य वाद्य यंत्रों अथवा हथियारों का प्रदर्शन हर कीमत पर रोका जाये, प्रतिमाओं अथवा ताज़ियों का विसर्जन/ दफन अनुमति के आधार पर निर्धारित स्थानों पर ही किया जाये, खुफिया एजेंसियों को सक्रिय किया जाये तथा मिली जुली आबादियों के धर्मनिरपेक्ष लोगों को लेकर बनी शांति कमेटियों को सक्रिय किया जाये. जिलधिकारियों, कप्तानों, सैक्टर मजिस्ट्रेटों और थानाध्यक्षों को स्पष्ट निर्देश दे दिये जायें कि उनके क्षेत्रों में हुयी घटनाओं के लिये वे स्वयं जिम्मेदार ठहराये जायेंगे और कठोर कार्यवाही के पात्र होंगे. डा. गिरीश
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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को हठाने के फैसले का भाकपा स्वागत करती है

लखनऊ- 15. 10. 15—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री अनिल यादव की नियुक्ति को रद्द करने के निर्णय का स्वागत किया है. भाकपा ने उत्तर प्रदेश सरकार से श्री यादव की अवैध नियुक्ति की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करने का आग्रह किया है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि राज्य सरकार ने लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष जैसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद पर सारे नियम, कानून और परंपराओं को ताक पर रख कर श्री अनिल यादव को नियुक्त किया था. श्री अनिल यादव ने भी अपनी नियोक्ता उत्तर प्रदेश सरकार के ही नक्शे कदम पर चलते हुये और सरकार में बैठे लोगों के राजनैतिक और आर्थिक हितों को साधते हुये हर स्तर की नियुक्तियों में हर स्तर की धांधलेबाजी की थी. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में शर्मनाक तरीके से होरही इस घपलेबाजी से अभ्यर्थी ही नहीं समाज का बडा भाग परेशान था. छात्र- नौजवानों ने तमाम आंदोलन किये और राज्य सरकार मौन साधे रही. मजबूरन अभ्यर्थियों और कुछ अन्य को अदालत का दरवाजा खटखटाना पडा. कल उच्च न्यायालय ने अपना दो टूक निर्णय सुनाते हुये राज्य सरकार को भी कटघरे में खडा किया है. यह पहली नियुक्ति नहीं है जिसको लेकर राज्य सरकार बेनकाब हुयी हो. कुछ ही दिन पूर्व उच्चतर शिक्षा चयन आयोग और माध्यमिक शिक्षा चयन आयोग के अध्यक्षों और उच्चतर शिक्षा आयोग के तीन सदस्यों को भी उनकी अवैध नियुक्तियों के कारण उच्च न्यायालय के फैसलों के तहत हठाया जाचुका है. माध्यमिक शिक्षा चयन आयोग के तीन सदस्यों के कार्य पर भी न्यायालय ने रोक लगा रखी है. लोकपाल की नियुक्ति के सवाल पर भी राज्य सरकार अदालत के फैसले से बेनकाव होचुकी है. इन सभी के द्वारा की गयीं नियुक्तियों पर भी सैकडों सवाल खडे होरहे हैं. लेकिन राज्य सरकार पूरी तरह खामोश है. इससे राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश उमडना स्वाभाविक है. उत्तर प्रदेश में हर तरह की नियुक्तियों में हर स्तर पर धांधली चल रही है अतएव अक्सरकर नियुक्तियों को न्यायालय में चुनौती दे दी जाती है और नियुक्त अनियुक्त बेरोजगार हाथ मलते रह जाते हैं. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि एक के बाद एक अवैध नियुक्ति और उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अवैध करार दिये जाने के बावजूद राज्य सरकार ने न तो अपनी गलतियों को स्वीकारा है न ही इन धांधलियों की नैतिक जिम्मेदारी ली है. राज्य सरकार के मुखिया को इस सब की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिये और तदनुसार कदम उठाना चाहिये. डा. गिरीश,
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सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

महंगाई और दादरी प्रकरण के खिलाफ भाकपा ने राज्य भर में प्रदर्शन किये

लखनऊ- 5 अक्तूबर - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्देशानुसार आज समूचे उत्तर प्रदेश में आसमान लांघ रही महंगाई, भयावह सूखा, दादरी का जघन्य हत्याकांड, भाकपा कार्यकर्ताओं पर जगह जगह लगाये जारहे फर्जी मुकदमे, प्रदेश में सभी को एक समान शिक्षा की व्यवस्था तथा अनुसूचित जातियों की जमीनों को हडपने के लिये राज्य सरकार द्वारा कानून में बदलाव किये जाने जैसे सवालों पर जिला मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शन किये गये. कई जिलों में इन कार्यक्रमों में भाकपा के साथ अन्य वामपंथी दलों- क्रमशः माकपा, भाकपा- माले आदि ने भी शिरकत की. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि केन्द्र की एन डी ए सरकार द्वारा चलाई जारही नीतियों के चलते महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. दाल, सब्जी, तेल सहित जरूरी चीजों के आसमान छूरहे मूल्यों ने गरीब और आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है. इसका प्रमुख कारण केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियाँ हैं. उदाहरण के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बेहद कम होने के बावजूद सरकार ने पटल और डीजल आदि कि कीमतें काफी ऊंची कर रखी हैं. राज्य सरकार ने भी पेट्रोल डीजल पर टैक्स बढ़ा कर, बिजली की कीमतें बढ़ा कर तथा राशन प्रणाली को पंगु करके महंगाई की धार को और भी तीखा बना दिया है. उन्होंने कहाकि आज समूचे उत्तर और मध्य भारत में भयावह रूप से सूखा पड़ा हुआ है लेकिन न तो इन राज्यों को सूखा पीड़ित घोषित किया गया है और न सूखे से निपटने को कोई भी कदम केन्द्र और राज्य सरकार ने उठाये हैं. मौसम की मार से गत रबी और खरीफ की फसलों की हानि की एबज में किसानों को राहत दी नहीं गयी है. भाकपा इस बात पर गहरा रोष प्रकट करती है कि आरएसएस/ भाजपा की यह सरकार हर मोर्चे पर असफल होजाने के बाद लोगों को आपस में बांटने के लिए खुलकर सांप्रदायिकता फैला रही है, यहाँ तक निर्दोष गरीबों का खून बहा रही है. दादरी के बिसाहडा की घटना की जितनी निंदा की जाये कम है. इस घटना की आड़ में भाजपा और आरएसएस तो आग लगाने पर आमादा हैं ही राज्य सरकार भी राजनीति करने से बाज नहीं आरही. सच तो यह है कि वहां राज्य सरकार भाजपा को अपना खेल खेलने के लिये प्लेटफार्म मुहैया करा रही है और शांति चाहने वाले दलों की राह में रोड़े अटका रही है. वाराणसी, गोंडा और अन्य जिलों में भी दंगे कराने की हर कोशिश की जारही है. भाकपा माननीय उच्च न्यायालय के उस निर्णय जिसमें सभी को समान शिक्षा देने का राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है का पूर्ण समर्थन करती है. साथ ही अनुसूचित जाति के किसानों की जमीनों को हथियाने की गरज से राज्य सरकार द्वारा कानून में परिवर्तन किये जाने की साजिश की भर्त्सना करती है. भाकपा ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पूरी तरह असफल है और राज्य में उसकी पुलिस दमन और शोषण का पर्याय बन चुकी है. चूंकि भाकपा कार्यकर्ता उसकी करतूतों का जगह जगह विरोध कर रहे हैं तो बौखलाई पुलिस उन पर फर्जी मुकदमे लगा कर दमन चक्र चला रही है. हाल ही में अमरोहा में पुलिस ने भाकपा राज्य सचिव मंडल के सदस्य का. अजय सिंह, सागर सिंह एवं नरेश चन्द्र को संगीन धाराओं में बंद कर दिया और बिजनौर के जिला सचिव का. रामनिवास जोशी पर गैंगस्टर लगा दिया. लखनऊ में भाकपा के जिला सचिव मो. खालिक के नेतृत्व में उप्जिलाधिकरिनको ज्ञापन सौंपा गया तथा वामदलों के साथ मिल कर पटेल प्रतिमा पर धरना दिया गया. समाचार प्रेषित किये जाने तक आज़मगद, मेरठ, मुरादाबाद, हाथरस, आगरा, बाँदा सुल्तानपुर, जौनपुर, अलीगढ, गाज़ियाबाद गोरखपुर आदि लगभग ४० जिलों से धरने, प्रदर्शन और ज्ञापन देने की खबरें राज्य मुख्यालय को प्राप्त होचुकी हैं. डा.गिरीश
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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

उत्तर प्रदेश को दंगों की आग में झौंकने की संघ परिवार की साजिश. दादरी वारणसी और गोंडा की घट्नायें इसी उद्देश्य से.. भाकपा

लखनऊ- 1 अक्तूबर, 2015- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने भारतीय जनता पार्टी और आर.एस.एस. पर आरोप लगाया है कि वे अपने दीर्घकालीन और तात्कालिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिये उत्तर प्रदेश और समूचे देश को सांप्रदयिक्ता और सांप्रदायिक दंगों की आग में झौंकने की साजिश में जुटे हैं. क्षुद्र राजनैतिक उद्देश्यों की खातिर की जारही हिंसा, विभाजन की इन कार्यवाहियों की भाकपा ने कड़े शब्दों में निंदा की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में अलग अलग बहानों से भाजपा और संघ परिवार ने सांप्रदायिक विद्वेष फैला कर प्रदेश को दंगों की आग में झौंकने का काम किया है. सबसे ताजा घटना दिल्ली से सटे जनपद- गौतम बुध्द नगर (नोएडा ) की है जहां औद्योगिक क्षेत्र- दादरी के थाना- जारचा के गांव- विसाहड़ा में सोमवार की रात्रि लगभग एक हजार लोगों की उन्मादी भीड़ ने गांव के एक मुस्लिम परिवार के घर पर धाबा बोल दिया और घर के मुखिया इखलाक को पीट- पीट कर मार डाला तथा उसके बेटे दानिश को भी बुरी तरह पीटा जो अस्पताल में जीवन के लिये संघर्ष कर रहा है. उपद्रवियों ने घर की महिलाओं को भी नहीं बख्शा और घर का सारा सामान भी नष्ट- भ्रष्ट कर दिया. घटना को अंजाम देने के लिये इन उपद्रवियों ने एक मंदिर पर लगे माइक से सोची समझी साजिश के तहत यह प्रसारित किया कि इखलाक ने गोकशी की है और वहां पड़ा मांस का टुकड़ा गाय का है. यह संघ परिवार द्वारा समाज में घोले जारहे जहर का ही परिणाम है कि इस बे सिर पैर की अफवाह पर हजार एक लोग एकत्रित होगये और वर्षों पुराने अपने पडौसी के खून के प्यासे बन गये. भीड़ हिंसा करती रही और कोई भी पडौसी वचाव के लिये नहीं आया. पुलिस भी सूचना के काफी देर बाद पहुंची. पुलिस और प्रशासन की ढिलाई का ही परिणाम है कि पुलिस द्वारा पकड़े लोगों को छुडाने को भीड़ ने पुलिस पर हमला तक बोला. इतना ही नहीं अगले दिन आसपास के गांवों में अफ्वाहें फैला कर तनाव पैदा किया गया और विसाहड़ा से लगभग 5 कि.मी. दूरी पर स्थित गांव- ऊंचा अमीरपुर में कथित गोहत्या के दोषियों को फांसी पर लट्काने की मांग के बहाने बड़े पैमाने पर तोड़्फोड़ की गयी. इन घटनाओं से संपूर्ण क्षेत्र में तनाव व्याप्त है और विसाहड़ा सहित तमाम गांवों के अल्पसंख्यक पलायन कर रहे हैं. अभी पिछले ही सप्ताह प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में एक साधु गिरोह ने जो कि संघ परिवार का ही आउट्फिट है गंगा में गणेश प्रतिमायें विसर्जित करने के लिये हंगामा खड़ा कर दिया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गंगा में प्रतिमायें विसर्जित नहीं की जासकतीं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिये संघ परिवार गंगा को पवित्र बनाने के नाम पर तमाम नाटक नौटंकी करता रहता है. पुलिस प्रशासन यहाँ भी दो दिनों तक नाटक करता रहा और कठोर कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया. अब साधुओं की पिटाई के नाम पर भाजपा और संघ परिवार वहां तनाव बढाने को हर हथकंडा अपना रहे हैं. ठीक इसी तर्ज पर गत सप्ताह गोंडा शहर में मूर्ति विसर्जन को जारहे जलूस में पाबंदी के बावजूद डीजे लगाया गया जिसे पुलिस ने नहीं रोका. जब ये जुलूस अल्पसंख्यक बहुल आबादी में पहुंचा तो वहां तनाव व्याप्त होगया. मौके का लाभ उठा कर उपद्रवियों ने आगजनी और लूट्पाट की. समूचे उत्तर प्रदेश की इन दिनों ऐसी ही तस्वीर है जब त्योहारों के कर्मकाण्डों को बहाना बना कर दंगे फैलाने की साजिश रची जारही है. इसका तात्कालिक उद्देश्य उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों और बिहार विधान सभा के चुनावों में लाभ उठाना है. धर्मपरायणता और सांप्रदायिकता क्योंकि शासक वर्ग और उसकी सरकारों के जनविरोधी कार्यों को जनता में स्वीकार्य बनाती है, अतएव केंद्र और राज्य सरकार का रवैय्या दंगे फसाद रोकने का नहीं; उनके होजाने के बाद राजनैतिक रोटियां सैंकने का है. भाजपा जहां हर जगह खुल कर दंगाइयों के साथ खड़ी है वहीं मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने अपने को दरोगा की तरह धमकी देने और मुआबजा जारी करने तक सीमित कर रखा है. ऐसे में भाकपा समाज के सभी धर्मनिरपेक्षजनों से अपील करती है कि वे उत्तर प्रदेश की शांति और सहिष्णुता को बचाने के लिये आगे आयें. भाकपा राज्य सरकार से भी मांग करती है कि वह सांप्रदायिकता से निपटने को द्रढ इच्छाशक्ति का परिचय दे और तदनुसार अपनी पुलिस और प्रशासन की चूलें कसे. डा. गिरीश
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जनवादी क्रांतियों का इतिहास और उनसे सबक

सामाजिक क्रांति समाज के ढांचे में मूलभूत बदलाव या परिवर्तन होता है। कार्ल मार्क्स ने क्रांति की समझ को वैज्ञानिक आधार पर खड़ा किया। उन्होंने अपने युग के काल्पनिक (यूटोपियन) सामाजिवादियों का विरोध करते हुए वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांत का विकास किया। मार्क्स के अनुसार क्रांतिकारियों को समाज में सक्रिय वस्तुगत नियमों का वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिए। तभी हम समाजवाद और कम्युनिज्म की ओर बढ़ सकते हैं।
साम्राज्यवाद के युग में जनवादी क्रांति
लेनिन ने पूंजीवाद की साम्राज्यवादी मंजिल का सबसे पहले अध्ययन किया। उन्होंने क्रांति-संबंधी मार्क्स के सिद्धांत में कई नई बातें जोड़ीं। साम्राज्यवाद पूंजीवाद की अगली और उच्चतर मंजिल होती है। इसमें कुछ मुट्ठीभर सबसे बड़े पूंजीपति (इजारेदार) बाकी सारे समाज का शोषण करते हैं। बड़े पूंजीपति न सिर्फ मेहनतकशों, मजदूरों, किसानों, मध्यम तबकों, बुद्धिजीवियों का बल्कि गैर-इजारेदार पूंजीपतियों का भी शोषण करते हैं, उनके विकास में बाधा पहुंचाते हैं। इन गैर-इजारेदार पूंजीपतियों छोटे, मझोले और निम्न पूंजीपति शामिल होते हैं।
लेनिन ने ‘जनवादी क्रांति’ का सिद्धांत विकसित किया। समाजवादी क्रांति एक मंजिल या एक छलांग में नहीं होगी।
समाजवाद की ओर बढ़ने के लिए बीच की एक या कई मंजिलों से गुजरना होगा। इन्हें ही लेनिन ने ‘पूंजीवादी जनवादी क्रांति’ या जनवादी क्रांति कहा। इसके लिए सामंतों, बड़े पूंजीपतियों और साम्राज्यवाद के विरोध में एक व्यापक जनवादी मोर्चे की जरूरत है।
पंूजीवाद की इस मंजिल को ‘साम्राज्यवाद’ कहा जाता है। अमरीका जैसे देश सारी दुनिया में बड़ी पूंजी का प्रभुत्व कायम करते हैं। अमरीका-विरोधी मोर्चे में छोटे पूंजीपति और छोटे पूंजीवादी देश भी पिसते हैं।
आज के युग में क्रांति
जैसा कि हमने कहा, सारी जनता बड़े-बड़े इजारेदारों और साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष कर रही है। इस संघर्ष में न सिर्फ समाजवाद को मानने वाले लोग शामिल हैं बल्कि वे भी जो समाजवाद से सहमत नहीं हैं। अमरीका का विरोध करने वालों में न सिर्फ मजदूर और किसान शामिल हैं बल्कि मध्यम तबके, बुद्धिजीवी, छोटे और मझोले मालिक (पूंजीपति) भी उसमें हिस्सा ले रहे हैं।
इसलिए समाजवाद की ओर जाने का रास्ता कई मंजिलों से होकर गुजरता है। इस रास्ते में आजादी हासिल करनी होती है, बड़ी विशाल कम्पनियों पर रोक लगानी होती है, बड़ी वित्त पूंजी, विदेशी पूंजी की घुसपैठ और साम्राज्यवादी देशों की कार्रवाईयों पर अंकुश लगाना होता है।
इन बाधाओं को दूर करते हुए देश और समाज के ज्यादा से ज्यादा तबकों और वर्गों को एक मंच पर लाना होता है। इनमें से कई जनवादी होते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वामपंथी और समाजवादी ही हों।
इसे ही जनवादी एकता (मोर्चा) कहते हैं। ऐसी एकता जो काम पूरे करती है उसे जनवादी परिवर्तन कहते हैं।
जनवादी क्रांतियों का इतिहास
सबसे पहले सफल रूसी क्रांति (1917) में हुई जिसके नेता लेनिन थे। इसमें प्रमुख शक्तियां मजदूर और किसान थे। उन्होंने सोवियतें बनाई। इसलिए उस देश को सोवियत संघ कहा गया।
रूसी क्रांति के तीन मुख्य नारे थे - शंाति, रोटी और जमीन। ये तीनों जनवादी नारे हैं। शांति का मतलब साम्राज्यवादी युद्ध (1914-18) बंद करो। शांति और निःशस्त्रीकरण का नारा सबसे पहली बार दिया गया। यह समूची मानवता के लिए था, केवल कुछ मुट्ठी भर साम्राज्यवादियों को छोड़।
दूसरा नारा था सबकों का रोटी। यह सभी मेहनतकशों, मध्यमवर्गों और कामकाजी लोगों तथा किसानों के लिए था - वास्तव में सभी मानवों के लिए था।
तीसरा था जमीन का नारा। यह मुख्य रूप से किसानों के लिए था। लेकिन किसानों में भी भूमिहीनों और गरीब किसानों के लिए था। यह मुख्यतः बड़े सामंतों के खिलाफ और जमीन के बंटवारे (भूमि सुधारों) के लिए था।
इन तीनों को हम जनवादी कदमों का उद्देश्य कहते हैं। वे जनतांत्रिक बदलाव लाते हैं, समाजवाद के लिए आधार तैयार करते हैं लेकिन अभी समाजवाद नहीं हैं।
अन्य देशों में जनवादी आंदोलन
रूसी क्रांति ने दूसरे देशों में जनता का आंदोलन तेज कर दिया। कहीं आजादी की मांग उठने लगी, कहीं जनतंत्र की, तो कही समाजवाद की। भारत, चीन, वियतनाम, एशिया, अफ्रीका में आजादी की लड़ाई तेज हो गई। भारत आजाद हो गया। वियतनाम तथा चीन में क्रांतियां हो गईं। आगे चलकर पूर्वी यूरोप, क्यूबा और लैटिन अमरीका में भी जनवादी एवं समाजवादी क्रांतियां हो गईं।
पूर्वी योरप (यूरोप)
9 मई 1945 को हिटलर के जर्मन फासिस्टों ने आत्म-समर्पण कर दिया। हिटलर ने उससे पहले ही आत्महत्या कर ली। रूस की लाल सेना की मदद से पूर्वी योरप के देश आजाद हो गए - पोलैंड, बल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, आदि। इन देशों में जनता की मिली-जुली जनवादी सरकारें बनीं (1944-45 में)।
वियतनाम
उसने पहले फ्रांसीसियों, फिर जापानियों, फिर फ्रांसीसियों और अमरीका के खिलाफ आाजदी की लड़ाई लड़ी। वियतनाम सबसे पहले 2 सितंबर 1945 को आजाद हुआ। वियतनाम ने पहले देश की आजादी की लड़ाई लड़ी, फिर उसने जनवादी क्रांति का काम शुरू किया। लम्बे संघर्षों के बाद 1975 में पूरी तरह आजाद हुआ। लाओस और कम्पूचिया (कम्बोडिया) भी आजाद हुए। वियतनाम की क्रांति में कम्युनिस्टों के साथ बौद्ध धर्म वाले तथा छोटे मझोले मालिक भी शामिल हैं।
चीन
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में किसानों, और मालिकों और मजदूरों की लम्बी लड़ाई चली। जनतांत्रिक अधिकार, पार्टी बनाने के अधिकार तथा संसदीय प्रणाली न होने के कारण चीन में ज्यादातर हथियारबंद संघर्ष हुआ।
चीनी क्रांति की मांग सामंतवाद समाप्त करने, किसानों के बीच जमीन का बंटवारा करने और बड़े तथा विदेशी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने संबंधित था। इसलिए चीनी क्रांति को वहां की पार्टी ने जनवादी क्रांति बतलाया है। आज भी चीन में अर्थव्यवस्था ‘समाजवाद की ओर’ जा रही है, अभी समाजवादी नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की योजना के अनुसार चीन 21वीं सदी के मध्य तक ‘बाजार समाजवाद’ की ‘प्राथमिक मंजिल’ में रहेगा।
चीन में 1 अक्टूबर 1949 को क्रांति सम्पन्न हुई। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चार वर्गों के संयुक्त मोर्चा ने सत्ता संभाली। सरकार ने पहले जनवादी मंजिल के काम पूरा करने का फैसला लिया।
आज चीन उत्पादन बढ़ाने की शक्तियों, उसकी टेक्नालोजी के विकास तथा विकास दर बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है।
क्यूबा
क्यूबा में 21 जुलाई 1959 को क्रांतिकारियों ने सत्ता अपने हाथों में ले ली। वे आरम्भ में कम्युनिस्ट नहीं थे। उन्होंने कदम-ब-कदम जनतांत्रिक कदम उठाए और देश की अर्थव्यवस्था विकसित की। आज क्यूबा मध्यम दर्जे का देश है जहां आम जनता को कई प्रकार की सुविधाएं और अधिकार मिले हुए हैं।
भारत
अंग्रेजों के खिलाफ लम्बे साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष के बाद भारत ने 1947 में आजादी हासिल की। यह भी जनवादी क्रांति का ही एक रूप है, उसकी ही एक मंजिल। इसके लिए व्यापक शक्तियों ने मिल-जुल कर संघर्ष किया।
अब जनवादी क्रांति की अगली मंजिलें तय करने के लिए जनतांत्रिक शक्तियों को मिल-जुल कर मुख्य विरोधियों के संघर्ष करना होगा, जैसे साम्राज्यवाद, बड़े इजारेदार, वित्त पूंती।
इस संघर्ष में संसदीय प्रणाली की प्रमुख भूमिका होगी और जनसंघर्ष महत्वपूर्ण होाग।
अन्य देश
आज के समय में लैटिन अमरीका के दर्जन-भर देशों में महत्वपूर्ण जनवादी परिवर्तन हो रहे हैं। ब्राजील, बेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलीविया तथा अन्य देशों में संसदीय प्रणाली के जरिए तथा विशाल जन समर्थन की सहायता से वाम एवं जनवादी ताकतें चुनाव जीतकर सरकारें बना रही हैं। वे लगातार पिछले लगभग दो दशकों (20 वर्षों) से जीतती आ रही है।
यह नई किस्म की जनवादी क्रांति है जो संसदीय चुनावी मार्ग से सफल हो रही हैं। उनका समर्थन फौज कर रही है। इनमें व्यापक ताकतें शामिल हैं जिनमें छोटे मालिकों और उत्पादकों तथा साम्राज्यवाद-विरोधी पूंजीपति वर्ग के हिस्से भी शामिल हैं
लैटिन अमरीका के परिवर्तन पिछली सभी क्रांतियों से अलग हैं। आज जनता के हक में बड़े पंूजीवादी हितों के खिलाफ तथा गरीबी कम करने के लिए ये जनवादी सरकारें संघर्षरत हैं।
इनके अलावा नेपाल, योरप, दक्षिण अफ्रीका, इत्यादि में भी परिवर्तन चल रहे हैं।
आज की और भविष्य की क्रांतियां
आज हमारे देश और दुनिया भर में जनतांत्रिक अधिकारों और प्रजातांत्रिक तरीकों का महत्व बढ़ गया है। आज विश्व भर में सामाजिक परिवर्तन में चुनाव प्रणाली का महत्व पहले से ज्यादा हो गया है, जैसा कि लैटिन अमरीका की घटनाएं साबित करती हैं। चुनावों, वोट डालने और प्रेस-मीडिया के तथा अन्य अधिकार हमने लम्बे संघर्षों के जरिए जीते हैं। उनका प्रयोग करके वाम एवं प्रगतिशील शक्तियां सत्ता में आ सकती हैं और जनता के हक में कुछ करके दिख सकती हैं, यह अमल में साबित हो चुका है।
क्रांति कोई भविष्य में चीज नहीं रह गई है, वह इस समय जारी है। कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक-सामाजिक कदम उठाना भी जनतांत्रिक क्रांति का ही अंग है। आज हम जनतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करके जनवादी क्रांति पूरा कर सकते हैं। पुराने ढंग की क्रांतियों का युग चला गया।
आज नए किस्म की व्यापक जनतंत्रिक परिवर्तनों का युग है जो प्रजातांत्रिक तरीकों का प्रयोग कर रहे हैं।
- अनिल राजिमवाले
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सोमवार, 13 जुलाई 2015

केंद्र की भाजपा गठ्बंधन सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के जनविरोधी कृत्यों के खिलाफ सड्कों पर उतरेगी भाकपा

लखनऊ 13 जुलाई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल की दो दिवसीय बैठक यहां प्रो. सुहेव शेरवानी एवं का. मोतीलाल ऐडवोकेट की अध्यक्षता में संपन्न हुयी। बैठक में आंदोलन और संगठन संबंधी कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये।
बैठक में लिये गये निर्णयों की जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि केंद्र सरकार को सत्ता में आये अभी 14 महीने पूरे नहीं हुये लेकिन इसके और भाजपा की सारी राज्य सरकारों के तमाम घोटाले सामने आ चुके हैं। मोदीगेट में जहां केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया पर गंभीर आरोप हैं तो मानव संसाधन मन्त्री स्मृति ईरानी अपनी योग्यता के फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के आरोपों में घिरी हैं। मध्यप्रदेश में इसके मुख्यमंत्री व्यापमं घोटाले और उसके सबूत मिटाने के आरोपों में लिप्त हैं और प्रकरण की सीबीआई जांच घोषित हो जाने के बावजूद इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। महाराष्ट्र के दो-दो मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं तो छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भी सार्वजनिक धन के गोलमाल के आरोपों का सामना कर रहे हैं। लगता है भाजपा सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की पचास साल की लूट को पांच सालों में पीछे छोड देने की योजना पर काम कर रही है।
भाकपा का आरोप है कि तमाम मोर्चाें पर विफल हो चुकी उत्तर प्रदेश की सरकार भ्रष्टाचार में अन्य सरकारों से एक कदम भी पीछे नहीं है। भ्रष्टाचार राज्य में अघोषित वैधता हासिल कर चुका है। सिविल सेवा, पुलिस और अन्य भर्तियों में मनमाना कदाचार चल रहा है। राज्य में अवैध खनन अवैध कमाई का जरिया बन चुका है। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जनोपयोगी कार्य भी भ्रष्टाचार की जकड में हैं। सरकार के कई मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों के बावजूद उन्हें पदों से हटाया नहीं गया। शासन-प्रशासन में ऊपर से नीचे तक फैला भ्रष्टाचार आम जनता की लूट का औजार बना हुआ है।
भाकपा राज्य काउंसिल ने केंद्र और राज्य सरकार के घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्य वामदलों के साथ मिल कर 20 जुलाई को राज्य के सभी मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शन आयोजित कर संघर्षों की शुरूआत करने का फैसला लिया है।
भाकपा  राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि किसानों को तबाह करने के लिये केंद्र सरकार जमीन अधिग्रहण संबंधी कानून को पलटने जा रही है। वह किसानों की जमीनों को कारोबारियों को दे देना चाहती है। उत्तर प्रदेश में तो जमीन हड़पने का काम बडे पैमाने पर शुरु हो गया है। जमुना एक्स्प्रेस वे प्राधिकरण ने हाथरस जनपद के 421 गांवों को अपने अधीन लेने की अधिसूचना जारी की है। मौसम की मार से तबाह किसानों को पर्याप्त राहत नहीं प्रदान नहीं की गयी। गन्ना किसानों की भारी राशि आज भी उन्हें अदा नहीं की गयी। उनकी उपजों के लागत मूल्य भी उन्हें मिल नहीं पा रहे। वे गंभीर आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं। अतएव भाकपा ने किसान संगठनों द्वारा 1 सितंबर को प्रस्तावित आंदोलन को पूरी तरह समर्थन प्रदान करने का संकल्प लिया है।
इसी तरह भारत के श्रमिक वर्ग को कानूनी तौर पर असहाय बनाने और उद्योगपति-कारोबारियों को उनको हर तरह से शोषण करने में सक्षम बनाने को केंद्रीय श्रम कानूनों में परिवर्तन किया जा रहा है जिसके विरुद्ध देश के लगभग सभी श्रमिक संगठन 2 सितंबर को हड़ताल करने जा रहे हैं। भाकपा ने इस हड़ताल को संपूर्ण समर्थन प्रदान करने का निर्णय भी लिया है। इसके अलावा सांप्रदायिकता के खतरों से जनता को आगाह करने और महंगाई जैसे सवालों को लेकर पार्टी निरंतर अभियान चलाती रहेगी।
बैठक में भाकपा के सचिव का. अतुल कुमार अंजान खास तौर पर मौजूद थे। काउंसिल बैठक को संबोधित करते हुये उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होने उपर्युक्त सभी अभियानों को व्यापक और सफल बनाने की अपील की।
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शुक्रवार, 19 जून 2015

उत्तर प्रदेश में बिजली के दामों में वृध्दि का भाकपा ने किया विरोध. वापसी की मांग की.

लखनऊ-१९ जून २०१५. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत् नियामक आयोग द्वारा प्रदेश में एक साथ विद्युत् मूल्यों में की १७ प्रतिशत बढ़ोत्तरी की कड़े शब्दों में आलोचना की है. भाकपा ने राज्य सरकार से बढ़ी कीमतों को तत्काल वापस लेने की मांग की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि राज्य में बिजली की दरें पहले से ही कई राज्यों से अधिक हैं, अब उपभोक्ताओं पर एक साथ १७ प्रतिशत बिजली कीमतों की वृध्दि थोप दी गयी है. यह कैसी बिडंबना है कि जो सरकार जनता को उसकी जरूरत के लायक बिजली नहीं दे पारही, वह लगातार उसकी कीमतों में इजाफा करती जारही है. निजी उत्पादकों से महंगी बिजली खरीदने, विद्युत् विभाग में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार और यहाँ तक कि लाइन हानियों का भार भी आम उपभोक्ता पर लादा जारहा है. डा.गिरीश ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा चलायी जारही नीतियों के परिणामस्वरूप जनता पहले से ही महंगाई के बोझ तले दबी हुयी है. केन्द्र द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों की ऊँची कीमतें बसूलने के अलाबा कई कदम उठाये गये हैं जिनसे महंगाई ने छलांग लगाई है. इसके अतिरिक्त प्रदेश सरकार अपने नागरिकों से पेट्रोलियम पदार्थों पर पड़ोसी राज्यों की तुलना में अधिक वेट बसूल कर रही है, यहाँ अधिक वाहन कर बसूला जारहा है और वाहन कर बसूलने के बाद ऊपर से वाहनों पर टोल टेक्स भी बसूला जारहा है. जनता की लुटाई में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच होड़ मची है. महंगाई से जनता की कमर टूटी जारही है. बिजली की कीमतों में ताजा बढोत्तरी ने जनता की तबाही का रास्ता खोल दिया है. भाकपा इस पर कड़ा विरोध प्रकट करती है और राज्य सरकार से मांग करती है कि वह इस बढोत्तरी को तत्काल रद्द करे. भाकपा इस मुद्दे पर जनता के साथ है और सरकार ने इस वृध्दि को रद्द नहीं किया तो वह सडकों पर उतरने को बाध्य होगी. भाकपा ने अपनी जिला इकाइयों से भी अनुरोध किया है कि यदि बिजली कीमतों में हुयी वृध्दि को २४ घंटों के भीतर वापस नहीं लिया जाता तो वह जनता के हित में और जनता को साथ लेकर जनवादी तरीकों से विरोध प्रदर्शन करें. डा. गिरीश
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शुक्रवार, 12 जून 2015

पत्रकार जगेन्द्र की हत्या की जांच एस. आई. टी. से कराई जाये: भाकपा

लखनऊ- १२ जून : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने शाहजहांपुर के पत्रकार श्री जगेन्द्र की हत्या की कठोरतम शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने इस हत्या की एसआईटी से जांच कराने तथा हत्या की साजिश के आरोपी राज्य सरकार के राज्यमंत्री को पद से हठाने की मांग राज्य सरकार से की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि पत्रकार जगेन्द्र की हत्या शासन और प्रशासन की क्रूरता का परिचायक है. इसकी जितनी निन्दा की जाये कम है. यह घटना इसलिए और चिन्ताजनक है कि इसकी साजिश रचने में एक राज्य मंत्री का नाम आरहा है. अतएव सामान्य जांच से न्याय की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है. इसीलिये हत्या की जांच एसआईटी से कराने की मांग उठ रही है. चूंकि इस जघन्य वारदात के पीछे एक राज्यमंत्री का नाम आरहा है अतएव उन्हें हठाने के बाद ही निष्पक्ष जांच की अपेक्षा की जा सकती है. भाकपा इन दोनों मांगों का पुरजोर समर्थन करती है. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति बद से बदहाल है. हत्या, लूट के अलाबा महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों का उत्पीडन बड़े पैमाने पर होरहा है. अभी कुछ दिनों पहले शाहजहांपुर में ही दलित महिलाओं को शर्मनाक तरीके से बेइज्जत करने की वारदातें हुयीं. अत्याचारों और अन्याय का विरोध करने वाले राजनैतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हमले तेज होगये हैं. सता, अपराधी और पुलिस गठजोड़ आम आदमी पर भारी पड़ रहा है.राज्य सरकार को इसका निराकरण करना चाहिए. डा. गिरीश,
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पत्रकार जगेन्द्र की हत्या की जांच एस. आई. टी. से कराई जाये: भाकपा

लखनऊ- १२ जून : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने शाहजहांपुर के पत्रकार श्री जगेन्द्र की हत्या की कठोरतम शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने इस हत्या की एसआईटी से जांच कराने तथा हत्या की साजिश के आरोपी राज्य सरकार के राज्यमंत्री को पद से हठाने की मांग राज्य सरकार से की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि पत्रकार जगेन्द्र की हत्या शासन और प्रशासन की क्रूरता का परिचायक है. इसकी जितनी निन्दा की जाये कम है. यह घटना इसलिए और चिन्ताजनक है कि इसकी साजिश रचने में एक राज्य मंत्री का नाम आरहा है. अतएव सामान्य जांच से न्याय की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है. इसीलिये हत्या की जांच एसआईटी से कराने की मांग उठ रही है. चूंकि इस जघन्य वारदात के पीछे एक राज्यमंत्री का नाम आरहा है अतएव उन्हें हठाने के बाद ही निष्पक्ष जांच की अपेक्षा की जा सकती है. भाकपा इन दोनों मांगों का पुरजोर समर्थन करती है. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति बद से बदहाल है. हत्या, लूट के अलाबा महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों का उत्पीडन बड़े पैमाने पर होरहा है. अभी कुछ दिनों पहले शाहजहांपुर में ही दलित महिलाओं को शर्मनाक तरीके से बेइज्जत करने की वारदातें हुयीं. अत्याचारों और अन्याय का विरोध करने वाले राजनैतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हमले तेज होगये हैं. सता, अपराधी और पुलिस गठजोड़ आम आदमी पर भारी पड़ रहा है.राज्य सरकार को इसका निराकरण करना चाहिए. डा. गिरीश,
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शुक्रवार, 5 जून 2015

भाकपा महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम खुला पत्र


सेवा में, 
श्री नरेन्द्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री
नई दिल्ली

प्रिय श्री नरेन्द्र मोदी जी,
देष के प्रधानमंत्री के पद पर आपके आने के एक साल के पूरा होने के अवसर पर आपने ”देष के नागरिकों के नाम“ जो पत्र लिखा है उसे मैंने दिलचस्पी के साथ पढ़ा हैं। आपने इस अवधि में अपनी सरकार के कामकाज के बारे में खुलासा किया है। मैं आपकी उपलब्धियों और उनके परिणामों के संबंध में हम जो महसूस करते हैं उसके संबंध में लिख रहा हूं। 
मुझे मालूम है आप मेहनत कर रहे हैं, भारत में एफडीआई लाने के लिए अनेक देषों की यात्राएं कर रहे हैं, परन्तु यह एक उचित आलोचना है कि 18 देषों की यात्रा करने में पिछले एक साल में आपने 53 दिन खर्च किये परन्तु भारत में आपने केवल 48 दिन ही यात्राएं की। आप इसका संतुलन बनायें इसकी आषा की जाती है। परन्तु आपकी विदेष यात्राएं उस तरह की राजनीतिक यात्राएं नहीं हैं जैसाकि अबसे पहले के प्रधानमंत्री किया करते थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ‘बांडुंग’ जैसी कान्फ्रेंसों में देषों के प्रमुखों के साथ बातचीत और चाऊ एन लाई के साथ ‘पंचषील’ पर हस्ताक्षर जैसी यात्राएं ऐतिहासिक घटनाएं हैं। तथापि, हमारे पड़ोसियों के साथ संबंध बेहतर बनाने और एषिया एवं लैटिन अमरीका के देषों के साथ व्यापार संबंध बनाने की दिषा में आपकी कोषिषों का अच्छा नतीजा निकलना चाहिए, क्योंकि अमरीका और यूरोपीय देष संकट में हैं और भारत जैसे विकासषील देषों पर अपना बोझ फेंकने की कोषिष कर रहे हैं। 
परन्तु आपका यह दावा निराधार है कि आप ‘‘अंत्योदय’’ के सिद्धांत पर सबसे गरीब लोगों की हालत को बेहतर बनाने की कोषिष कर रहे हैं। इसके विपरीत, भूमि अधिग्रहण अध्यादेष किसानों के, खासकर गरीब किसानों के खिलाफ है। श्रम सुधार मजदूरों के खिलाफ है जो अपनी मेहनत और पसीने से देष के लिए दौलत पैदा कर रहे हैं। मजदूरों के लिए ट्रेड यूनियन बनाने के काम को मुष्किल करने का आपका सुझाव गरीबों के पक्ष में नहीं है बल्कि इससे केवल अमीर उद्योगपतियों को और अधिक शोषण करने में मदद मिलती है। 
मैं यहां उन चंद गरीब भारतीय लोगों की सूची दे रहा हूं जिन्हें आपके एक साल के राज में फायदा पहुंचा। निम्न कारपोरेटों की धन-दौलत में इस साल में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई।
गौतम अडानी - 50,000 करोड़ रूपये
भारती ग्रुप (सुनील मित्तल) 60,000 करोड़ रूपये
सन गु्रप 1,00,000 करोड़ रूपये
टाटा 1,10,000 करोड़ रूपये
कारपोरेट घरानों की धन दौलत में इस अवधि में कुल बढ़ोतरी 10 लाख करोड़ रूपये की हुई। जिनको फायदा पहुंचा उनमें महिन्द्रा, आईसीआईसीआई, विप्रो, एचवीएल एवं एचसीएल आदि शामिल हैं। (स्रोत: पीटीआई)।
इस एक साल में सभी आवष्यक वस्तुओं के दामों में लगातार बढ़ोतरी होती रही है क्योंकि बड़े कारोबारी जमाखोरी और फॉरवर्ड ट्रेडिंग के जरिए दामों में हेरफेर करने के लिए आजाद हैं। निष्चय ही यह जनता के पक्ष में कोई गर्व करने का रिकार्ड नहीं है। किसानों की आत्महत्याएं आज भी जारी हैं, गरीबी बढ़ रही है, अनाजों एवं अन्य सभी आवष्यक वस्तुओं के दाम बढ़ गये हैं। महिलाओं एवं दलितों पर अत्याचार और अल्पसंख्यकों पर आतंक में वृद्धि हो रही है। जिन लोगों से सर्वे किया गया उनमें 60 प्रतिषत से अधिक कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ गया है।
आपका दावा है कि सत्ता के दलालों का राज खत्म कर दिया गया है। परन्तु अब एक व्यक्ति का शासन पुरानी शैली वाले शासन में बदल गया है। आपका अभियान आपकी पार्टी द्वारा उस ”इंडिया शाइनिंग अभियान“ से मिलता-जुलता है जिसका 11 साल पहले आपकी पार्टी की बुरी तरह हार से पहले भारी प्रचार किया गया था। 
वित्त आयोग ने राज्यों के लिए 42 प्रतिषत की सिफारिष की है, इस बहाने पूर्वोत्तर राज्यों के स्पेषल स्टेट्स को खत्म करने की धमकी संघात्मक सिद्धांत के विरूद्ध है। परन्तु कुल मिलाकर यह राज्यों के पहले हिस्से से एक प्रतिषत कम है (छह प्रतिषत से पांच प्रतिषत)।
इसी प्रकार भाजपा शासित कुछ राज्यों में बीफ पर प्रतिबंध लगाना लोगों की खाने-पीने की आदतों के साथ हस्तक्षेप है। मुस्लिम, ईसाई, दलित, आदिवासी एवं कुछ अन्य जातियों के लोग बीफ खाते हैं। आपके मंत्री चाहते हैं कि यदि वे बीफ खाना चाहते हैं तो पाकिस्तान चले जायें। इससे यह इषारा मिलता है कि उनके कथनों, जो मूर्खतापूर्ण हैं और जो हमारी आबादी के बहुमत का अपमान करते हैं, पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है।
आपके एक साल के राज में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गये हैं। स्वयं देष की राजधानी में त्रिलोकपुरी में मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई है और चर्चो एवं अन्य इसाई संस्थानों पर भयानक हमले किये गये। 
संघ परिवार के विभिन्न संगठनों के जहरीले बयानों पर आपकी सोची-समझी खामोषी उनको उत्साह मिलने का मुख्य कारण है। कृपया अपनी खामोषी को छोड़ें और अपनी पार्टी और संघ परिवार की नीति के संबंध में अपने दृष्टिकोण के बारे में बतायें। इन चीजों से हमारे देष का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना खतरे में पड़ रहा है। 
प्रिय श्री मोदी जी,
मैंने केवल चंद उदाहरण दिये हैं। एक साल का समय निष्चय ही समीक्षा का समय है। अपनी नीतियों पर फिर से विचार करें, कारपोरेटों के चंगुल से बाहर निकलें और हमारी मातृभूमि के गरीब और शोषित लोगों के पक्ष में खड़े हों। दिलो-दिमाग से अंतर्निरिक्षण करें। तय करें कि आप शोषण करने वाले कारपोरेटों के साथ हैं या भारत की जनता के साथ। 
सम्मान के साथ,
आपका
(सुरवरम सुधाकर रेड्डी)
लोकसभा के पूर्व सदस्य,
महासचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 

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शुक्रवार, 29 मई 2015

CPI General Secretary Com. Survaram Sudhakar Reddy's open letter to Mr Narendra Modi, Prime Minister

New Delhi
29th May 2015

 

To,
          Shri Narendra Modi
          Hon’ble Prime Minister
          Government of India
          New Delhi.

Dear Shri Narendra Modiji,

I have read with interest your letter addressed to ‘fellow citizens of the country’ on the occasion of the completion of one year of your assumption to the post of Prime Minister of the nation. You have explained the activities of your government during the period. I felt that I should write to you regarding what we feel about your achievements and their results.

I know you are working hard visiting several countries to bring FDIs to India, though there is a valid criticism that you have spent 53 days to tour 18 countries in the last one year but have toured only 48 days in India. You may change the balance. But your tours are business ones not political ones as our earlier Prime Ministers did. Some of Prime Minister Jawaharlal Nehru’s interactions with Heads of Nations at conferences like ‘Bandung’ and his inking of ‘Panchseel’ with Chou en Lai are historic. However, your efforts to improve relations with our neighbours and trade relations with Asian, Latin American countries should yield positive results as the US and European countries are in crisis and trying to throw their burden on developing countries like India.

But your claim that your government is trying to improve the poorest on the principle of ‘Antyodaya’ is unfounded. Contrary, the Land Acquisition Ordinance is against the peasants particularly the poor peasants. Labour reforms are against the workers who are producing wealth by their sweat and blood. Your proposal to make it difficult for workers to organise trade unions certainly is not in favour of the poor but helps only the rich industrialists to exploit more.


I hereby give you the list of a few poor Indians who benefited in your one year rule. The following corporates added exorbitantly to their wealth this year.

Gautam Adani                         Rs 50,000 crore
Bharati Group (Sunil Mittal)   Rs 60,000 crore
HDFC                                      Rs 1,00,000 crore
SUN Group                                      Rs 1,00,000 crores
Tatas                                       Rs 1,10,000 crores

The total increase of corporate houses during this period is Rs 10 lakh crores. Those benefited are Mahindras, ICICI, Infosys Wipro, HVL and HCL etc. (Source PTI).
         
          The one-year has seen continuous rise in prices of all essential commodities as the big business are free to manipulate prices through hoarding and forward trading. Certainly this is not a proud record in favour of people. Suicides of farmers are still continuing, poverty is on increase, prices of food grains and all other essential commodities have gone up. Atrocities on women, dalits and terror on minorities are is on the increase. Among people who were surveyed, more than 60% are saying that corruption has increased.

          Your claim is that power brokers’ raj has been demolished. But now the one-man rule has got reduced to the old style. Your party campaign resembles the ‘India shining campaign’ of your party widely publicised before its miserable defeat 11 years back.

          The threat to abolish special status to north-eastern states is against the federal principle on the pretext that the Finance Commission has recommended 42% to states. But on the whole it is less by 1% than it was earlier to states’ share (6% to 5%).

          Also, banning of beef in some BJP ruled states is interfering with the food habits of people. Muslims, Christians, Dalits, Adivasis, OBCs, and some other caste people eat beef. Your minister wants all of them to go to Pakistan if they want to eat beef. This gives an impression that you do not have any control on their utterances, which are foolish and insulting majority of our population.

          Under your one-year rule, attacks on the minorities have increased. In the national capital itself, there had been anti-Muslim violence in Trilokpuri and ghastly attacks on churches and other Christian institutions.

          Your calculated silence on vicious outbursts of leaders of various outfits of Sangh Parivar is the main cause of their encouragement. Please break your silence and explain your approach on the policy of your party and Sangh Parivar. It is going to destroy the secular fabric of our country.         

Dear Shri Modiji,

          I have quoted only a few examples. One year is certainly a review time. Rethink about your policies, come out from the clutches of corporates and stand with the poor and exploited people of our mother land. Introspect with heart and soul. Decide whether you are with the exploiting corporates or with the people of India.

          With regards,

Yours Sincerely,


(Suravaram Sudhakar Reddy)
Former Member of Lok Sabha

General Secretary, CPI
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शनिवार, 16 मई 2015

डीजल, पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की भाकपा ने की निन्दा - सरकार से उत्पाद कर हटाने की मांग की

लखनऊ 16 मई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य सचिव मंडल ने एक महीने में तीसरी बार पेट्रोल और डीजल के दामों में हुई बेतहाशा वृद्धि को आम और गरीब जनता पर एक भारी बोझ बताया है। इन बढ़ोत्तरियों की निन्दा करते हुए भाकपा ने कहा कि इससे हाल ही के दिनों में बढ़ी मंहगाई और भी कुलांचे भरेगी और इससे जनता का जीवनयापन कठिन से कठिनतर हो जायेगा।
भाकपा ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल के दामों में इस दौरान कोई ऐसी बढ़ोतरी नहीं हुई है और न ही रूपये की कीमत में कोई विशेष गिरावट आई है जिससे एक माह में ही तीन बार बहुत ज्यादा कीमतों में इजाफे की जरूरत होती। फिर भी रिलायंस जैसी निजी पेट्रोलियम कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा एक माह के अन्दर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इतनी अधिक बढ़ोतरी की गई है।
यहां जारी एक बयान में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि जब पेट्रोल और डीजल की कीमतें घट रहीं थी तो सरकार ने उत्पाद कर लगा कर घटती हुई कीमतों का लाभ जनता को मिलने से वंचित कर दिया था लेकिन अब जब कीमतें बढ़ाई जा रही हैं तो उस बढ़े हुए उत्पाद कर वापस लेने की जरूरत है। भाकपा मांग करती है कि विगत माहों में पेट्रोलियम पदार्थों पर अतिरिक्त रूप से बढ़ाए गए उत्पाद करों को वापस ले और साथी ही इन बढ़ी हुई कीमतों को वापस लें।
भाकपा ने अपनी सभी जिला कमेटियों को निर्देशित किया है कि वे पेट्रोल डीजल के दामों में हुई इस बढ़ोतरी के खिलाफ और उत्पाद कर को घटाने के लिए सोमवार 18 मई को राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे।
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गुरुवार, 14 मई 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश तथा मौसम की मार से बरवाद किसानों को पर्याप्त मुआवजा न देने के खिलाफ भाकपा के देशव्यापी आन्दोलन को उत्तर प्रदेश में जबर्दस्त सफलता

लखनऊ 14 मई। भाकपा के राष्ट्रीय आह्वान पर केन्द्र सरकार द्वारा थोपे जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने और मौसम की मार से बरवाद हुए किसान और ग्रामीण मजदूरों को पर्याप्त राहत दिलाने की मांगों को लेकर आज उत्तर प्रदेश में भी भाकपा के लगभग 50 हजार कार्यकर्ता ने सड़कों पर उतर कर विभिन्न स्थानों पर रास्तों पर जाम लगाकर जनता के आक्रोश को आवाज दी। प्रेस बयान जारी किये जाने तक 60 से अधिक जिलों में भाकपा कार्यकर्ताओं के गिरफ्तार किये जाने के समाचार राज्य मुख्यालय को प्राप्त हो चुके हैं।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगभग 200 भाकपा कार्यकर्ता पार्टी के राज्य मुख्यालय कैसरबाग से जुलूस की शक्ल में सड़कों पर उतरे, जुलूस विशेश्वर नाथ रोड होते हुए विधान सभा मार्ग पर पहुंचा और जीपीओ पर रास्ता रोकने का सफल प्रयास किया। अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट के निर्देश पर पुलिस ने सभी भाकपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। भाकपा कार्यकर्ताओं का नेतृत्व भाकपा के राज्य नेता अरविन्द राज स्वरूप, श्रीमती आशा मिश्रा और सदरूद्दीन राना के साथ ही जिला मंत्री मो. खालिक तथा सह मंत्री डा. अशोक सेठ ने किया।
सुल्तानपुर में भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश तथा जिला मंत्री शारदा पाण्डेय के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने अलीगंज बाजार में जाम लगाया। लगभग 2 घंटे के बाद पुलिस ने कार्यवाही करते हुए 500 भाकपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है जो अभी हिरासत में हैं।
मऊ में राज्य सह सचिव एवं पूर्व विधायक इम्तियाज अहमद तथा राज्य कार्यकारिणी सदस्य विनोद राय के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने नेशनल हाईवे पर जाम लगाया जबकि बुलन्दशहर में भाकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य अजय सिंह के नेतृत्व में भाकपा कार्यकर्ताओं ने बुगरासी में हाईवे पर जाम लगाया। फैजाबाद में भाकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य अतुल सिंह तथा जिला मंत्री अशोक तिवारी के नेतृत्व में सैकड़ों भाकपा कार्यकर्ताओं ने कचेहरी गेट पर तथा रोडवेज चौराहे पर रास्ता जाम किया।
इसी तरह भाकपा कार्यकर्ताओं ने बहराईच में गोण्डा मार्ग पर, गोण्डा में लखनऊ रोड पर, बलरामपुर में गोण्डा रोड पर तथा उतरौला में, मुरादाबाद में नेशनल हाईवे पर, कानपुर नगर के बिल्हौर में जी. टी. रोड पर, कानपुर देहात में माती रोड पर, औरैया में तहसील के सामने, जालौन में कचेहरी पर, आजमगढ़ के लालगंज में आजमगढ़-वाराणसी मार्ग पर, झांसी में कचेहरी चौराहे पर तथा मऊरानीपुर तहसील के सामने, ललितपुर में कचेहरी के सामने, भदोही में तहसील के सामने, मथुरा में आगरा रोड पर, प्रतापगढ़ में कचेहरी पर, सोनभद्र के चोपन में, खलीलाबाद में नेशनल हाईवे पर, गाजीपुर में लंका चौराहे पर, वाराणसी में कचेहरी पर, इलाहाबाद में कचेहरी पर, फतेहपुर में खागा चौराहे पर, सीतापुर में कचेहरी पर, बरेली में जिलाधिकारी आवास के सामने, बाराबंकी में कचेहरी के सामने, बिजनौर के अफजलगढ़ में, ज्योतिर्बाफूलेनगर के मंडी धनौरा में, देवरिया में जिला मुख्यालय पर, मुजफ्फरनगर के जानसठ में, पीलीभीत में कचेहरी पर, हाथरस के मेंडू में, महाराजगंज में कचेहरी पर, बदायू में कचेहरी के सामने, अलीगढ़ में मथुरा रोड पर, बलिया में मेन रोड पर जाम लगाया।






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मंगलवार, 12 मई 2015

भाकपा का देशव्यापी आन्दोलन 14 मई को

लखनऊ 12 मई। केन्द्र सरकार द्वारा थोपे जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने और मौसम की मार से बरवाद हुए किसान और ग्रामीण मजदूरों को पर्याप्त राहत दिलाने की मांगों को लेकर के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 14 मई को पूरे देश में जुझारू आन्दोलन छेड़ रही है। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में पार्टी के कार्यकर्ता 14 मई को बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतर कर जिलों-जिलों में रास्ता रोकेंगे। इस आन्दोलन के लिए भाकपा का नारा है - ”खेत बचाओ, किसान बचाओ, कारपोरेट से देश बचाओ“।
गत दिन उत्तर प्रदेश में आन्दोलन की तैयारियों की समीक्षा करने के लिए पार्टी की मंत्रिपरिषद की बैठक यहां सम्पन्न हुई और पाया गया कि 1 मई से ही जिलों-जिलों में भाकपा कार्यकर्ता जन सम्पर्क अभियान चला रहे हैं और बड़े पैमाने पर पूरे प्रदेश में रास्ता रोकने की तैयारियों में जुटे हैं।
मंत्रिपरिषद ने अपने समस्त राज्य कार्यकारिणी सदस्यों को किसी न किसी जिले में आन्दोलन का नेतृत्व संभालने का निर्देश दिया है। राज्य सचिव डा. गिरीश सुल्तानपुर में आन्दोलन का नेतृत्व करेंगे जबकि सह सचिव अरविन्द राज स्वरूप और राज्य सचिव मंडल सदस्य आशा मिश्रा एवं सदरूद्दीन राना लखनऊ में, राज्य सह सचिव इम्तियाज अहमद मऊ में, मंत्रि परिषद सदस्य अतुल कुमार सिंह फैजाबाद में एवम् अजय सिंह बुलन्दशहर में आन्दोलन का नेतृत्व करेंगे।
भाकपा ने यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में जनता के व्यापक तबकों से अपील की है कि वह अधिक से अधिक संख्या में भाकपा के आन्दोलन में शामिल हो और सहयोग प्रदान करें। 
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शनिवार, 9 मई 2015

एक प्रासंगिक वर्षगांठ

9 मई फासीवाद पर जीत की 70वीं वर्षगांठ है। इसे मनाये जाने की आवश्यकता है ना केवल असंख्य लोगों द्वारा किये गए सर्वोच्च बलिदानों, विशेषकर पूर्व सोवियत संघ की लाल सेना के कारण बल्कि इससे भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू दोनों मोर्चों पर सामाजिक आर्थिक विकास के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता के लिए भी। काफी विकसित अर्थव्यवस्थाएं 2008 में शुरू हुई आर्थिक मंदी के कारण आर्थिक संकट में फंस गयी हैं और अभी भी नव उदारवाद के संरक्षक इसे बड़ी मंदी का नाम दे रहे हैं और फासीवादी रूझानों के शासन तहत आ रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय वित्त पंूजी के आर्थिक हितों की सेवा करने वाली राजनीतिक शक्तियां इन देशों में सभी विभाजक मतांध नारों का सहारा ले रही हैं जिसमें आप्रवास के विरोध की पकड़ में रहने वाला नस्लवाद भी शामिल है। वैश्विक मंदी पंूजीवाद का नियमित संकट नही है बल्कि यह दुनिया में अपना राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व कायम करने के लिए वित्त पंूजी द्वारा चले जा रहे विशेष दांव के कारण है। वित्त पंूजी के इस संकट से निकलने में विफल रहने के कारण इसके बोझ को विकासशील देशों, विशेषकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और उनके लोगों पर डाल रही है। युद्ध और तनाव थोपे जा रहे हैं, ना केवल प्राकृतिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण बनाये रखने के लिए बल्कि युद्ध उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए, विशेषकर सेना और उद्योग गठजोड़ के लिए। दुनिया फासिवादी हमले के गंभीर खतरे का सामना कर रही है और वित्त पंूजी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए और अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
घरेलू स्तर पर भी कारपोरेट पंूजी, दक्षिणपंथी विचारधारा और फासीवादी रूझानों वाली सांप्रदायिकता के निकृष्तम रूप वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के कारण देश एक बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। सत्ता में आने का इसका इस महीने एक साल पूरा होने वाला है। इस छोटे से समय में ही यह सरकार आपना सामाजिक और आर्थिक चेहरा पूरी तरह बेनकाब करवा चुकी है। पिछली सरकार की तरह ही यह सरकार भी पूरी तरह से आर्थिक नव उदारवाद को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। जैसे कारपोरेट पंूजी ने उसे सत्ता में लाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाया तो मोदी सरकार भी बेशर्मी और नंगई से बचे हुए नव उदारवाद के एजेंडे को ‘‘सुधार प्रक्रिया‘‘ के नाम पर आगे बढ़ा रही है। इसमें प्रत्येक संभावित छूट की बारिश कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों पर की गई है और मजदूर वर्ग द्वारा लड़ कर हासिल किये गए अधिकारों को कुचलने के लिए एक के बाद एक कानून बनाये जा रहे हैं। यह स्पष्ट है कि “श्रम सुधार“ इसके लिए सरकार का अर्थ केवल पंूजीपतियों को मजबूत करके श्रमिकों के अधिकारों को बेदर्दी से खत्म करने और हायर एण्ड फायर की नीति को थोपने से है। 
इसके साथ ही, इसने साफ कर दिया है कि उसमें जनता के जनवादी अधिकारों और जनवादी व्यवस्था के प्रति कोई सम्मान नही है।
संसदीय जनवाद को सोची समझी योजना के तहत अपमानित किया जा रहा है। सरकार अपना आर्थिक एजेंड़ा आगे बढ़ाने के लिए अध्यादेश राज की राह पकड़ रही है। इसके अलावा जनता को अधिकार प्रदान करने वाले कुछ कानून भी संशोधन की सूची में हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम और व्हिसिल ब्लोअर की सुरक्षा का कानून विशेषकर इस हिट लिस्ट में हैं। यह भ्रष्टाचार की सुरक्षा करने के लिए भी है। 
जनता पर नए आर्थिक बोझ लादे जा रहे हैं। अनिवार्य वस्तुओं के दाम विशेषकर खाद्य वस्तुएं जिसमें अनाज और दालें शामिल हैं नई सरकार के तहत आसमान छू रहे हैं। सरकार को जनता की दुर्दशा की कम ही चिंता है। यह अच्छे दिन सब इनके अपने लोगों के हैं। इसे सुनियोजित तरीके से किया जा रहा जाति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण दोगुना कर रहा है। मोदी-अमित शाह की जोड़ी द्वारा किया जा रहा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण केवल राजनीतिक रणनीति के आधार पर ही नही है बल्कि इसे जनता का ध्यान उनकी वास्तविक सामाजिक आर्थिक समस्याओं से हटाने के लिए भी किया जा रहा है। एक प्रभुत्ववादी मनोदशा के मुखिया वाली सरकार देश को एक फासीवादी सत्ता को सुपूर्द करने के लिए इन सभी आर्थिक, सामाजिक और सांप्रदायिक हालात को पका रही है। 
इन परिस्थितियों में एक अनेकों सर वाले राक्षस का कोई एक पहलू लेने का कोई उपयोग नही होगा। खतरे को संपूर्णता में देखा जाना चाहिए और उससे समग्रता में लड़ा जाना चाहिए। जब सांप्रदायिकता के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए एक संभावित एकता की कोशिश कर रहे हैं, हमें जनता को लामबंद करके वैकल्पिक नीतियों के लिए लड़ने के लिए सड़कों पर लाना होगा। इन दोनों को साथ लेकर ही सभी पंूजीवादी राजनीतिक दलों और बुनियादी रूप से उनके नव उदारवाद नीतियों के प्रति प्रतिबद्धता का विकल्प बनाने के लिए जनता को जागरूक बनाने की आवश्यकता है। एक वाम जनवादी विकल्प बनाने का यही रास्ता है जोकि फासीवादी कब्जे के खतरे को विफल करेगा।
(”मुक्ति संघर्ष“ का सम्पादकीय)
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गुरुवार, 7 मई 2015

सोंख और शामली की घटनाओं पर भाकपा ने राज्य सरकार की आलोचना की

लखनऊ 7 मई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है कि सोंख (मथुरा) और शामली में कानून-व्यवस्था के मामलों को हल न करने के कारण उन्होंने उग्र रूप ले लिया और यह घटनायें साम्प्रदायिकता का रूप लेते लेते बचीं। भाकपा ने इसके लिए राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि सोंख में गत एक सप्ताह से एक मामले को लेकर तनाव व्याप्त था और उसकी खबरें समाचार पत्रों में भी लगातार आ रहीं थीं। इसी तरह शामली में जमातियों पर हुए हमलों के बाद तनाव पैदा हो गया था। लेकिन स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार ने अपरिहार्य कदम नहीं उठाये। शामली में तो सपा के विधायक ही लोगों को भड़काने में अगुआ थे। सरकार, प्रशासन और शासक पार्टी की वजहों से इन स्थानों पर तनाव पैदा हुआ और उन्होंने आपसी मुठभेड़ों का रूप ले लिया। अगर समय रहते जरूरी प्रशासनिक कदम उठाये गये होते तो शायद यह वारदातें नहीं हो पातीं। 
भाकपा ने इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है कि इन छोटी-छोटी वारदातों का लाभ साम्प्रदायिक शक्तियां और दूसरे निहित स्वार्थी तत्व बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिकता भड़काने को उठा सकते हैं जैसाकि उन्होंने लोक सभा चुनावों के पहले किया था। अतएव भाकपा राज्य सरकार से मांग करती है कि ऐसे मामलों में ठोस राजनैतिक पहल और प्रशासनिक कार्यवाही करने की आदत डाले वरना उत्तर प्रदेश की शान्ति और सौहार्द को ठेस पहुंच सकती है।



कार्यालय सचिव
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शनिवार, 2 मई 2015

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की 21वीं कांग्रेस (विशाखापट्नम) के उद्घाटन सत्र में 14 अप्रैल को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी का भाषण

सर्वप्रथम मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जिसकी 22वीं पार्टी कांग्रेस हाल ही में पुडुचेरी में हुई, की नवनिर्वाचित राष्ट्रीय परिषद की तरफ से आप सबका अभिनंदन करता हूं। मजदूर वर्ग के संघर्षों के गौरवपूर्ण इतिहास वाले, ऐतिहासिक बन्दरगाह शहर विशाखापट्नम में यहां आपकी कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को दिए गए आमंत्रण के लिए मैं आपकी पार्टी, हमारे देश में सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्यों को धन्यवाद करता हूं।
पटना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस के बाद से, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पिछले तीन सालों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति पर गंभीर विचार-विमर्श एवं गहन विश्लेषण से ताजा-ताजा आते हुए, मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की तरफ से इस तथ्य को रेखांकित करना चाहता हूं कि हमारे देश के हाल के राजनीतिक घटनाचक्र ने हमारे देश और जनता को दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी सांप्रदायिक एवं फूटपरस्त ताकतों के चंगुल से बचाने की जिम्मेदारी हमको सौंपी है। हमारी पार्टी कांग्रेस विश्व पूंजीवाद के गहरे संकट और हमारे देश में दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया के सत्ता में आ जाने की पृष्ठभूमि में हो रही है।
यह एक हकीकत है कि 2014 में हुए आम चुनावों के बाद भारत की संसद में कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम हो गया है। यद्यपि हम यह महसूस करते हैं कि यह एक गंभीर चुनावी विफलता है परंतु भारत की जनता ने कम्युनिस्टों को अस्वीकार नहीं किया है। इसके बजाय, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में पूरी तरह बदनाम तत्कालीन यूपीए-2 सरकार के विकल्प के संघर्ष में जनता ने उस समय उपलबध एक मात्र विकल्प अर्थात भाजपा और उसके गठगंधन एनडीए का विकल्प चुना इस उम्मीद के साथ कि एक बार जब वे सत्ता में आ जाएंगे तो हालात में बेहतरी की दिशा में बदलाव होगा।
उनकी उम्मीदों के साथ विश्वासघात हुआ और हमारे समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं सम्प्रभु गणतंत्र के सामने अभूतपूर्व चुनौतियों के साथ हालात जल्दी ही बदतर हो गए। इस समय हमारी देश की जनता विपत्ति, हताशा की स्थिति में है जो धीरे-धीरे आक्रोश में बदल रही है। जब दिल्ली विधानसभा का जनादेश हाल मे बनी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जबरदस्त तरीके से आया तो यह बात अच्छी तरह साबित हो गई। भाजपा विधानसभा में नगण्य से छोटे समूह में घटकर रह गई जबकि कांग्रेस पार्टी का पत्ता साफ हो गया। दिल्ली चुनाव ने साबित किया कियदि हम जनता में विश्वास जगा सकें तो भाजपा और उसकी दक्षिणपंथी राजनीति का प्रतिरोध किया जा सकता है और उसे हराया जा सकता है। वामपंथ को इसके सबक लेने की जरूरत है।
पुडुचेरी में कामरेड सी.के. चन्द्रप्पननगर में होने वाले समूचे विचार-विमर्श में और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 22वीं कांग्रेस के समापन दिवस पर आम सभा में जो बात गूंज रही थी वह थी और अधिक मजबूत वाम एकता और उसे मजबूत करने का आह्वान। मैं यह बात भी रिकॉर्ड पर रखना चाहताूं कि कामरेड प्रकाश करात समेत भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति ने न केवल हमारे डेलीगेटों को बल्कि हमारे शुभचिंतकों  एवं वामपंथी आंदोलन के मित्रों को भी अनुप्राणित किया जिन्होंने बाद में हमारे पार्टी मुख्यालय को अपने संदेशों के जरिये इसका वामपंथी एकता, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय संकट की इस नाजुक घड़ी में सर्वाधिक आवश्क है, के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में स्वागत किया।
भूख, बेरोजगारी, अल्परोजगार, लोकतांत्रिक एवं मानव अधिकारों का दमन और पूंजीवाद द्वारा निर्मम शोषण- ये सब आज की कठोर एवं नग्न वास्तविकताएं हैं। पूंजीवाद गहरे संकट में है, विशेषकर अमरीका और यूरोप में। सुपर मुनाफों की इसकी ललक के साथ मुक्त बाजार का नजीता हजारों बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के दिवालियेपन के रूप में निकला, इसके फलस्वरूप बेरोजगारी और बढ़ी, महंगाई अधिक बढ़ी और साथ ही जनता की मुश्किलें-तकलीफें बढ़ी।
संकट के बावजूद, कारपोरेटों और अन्य धनी व्यक्तियों की धन-दौलत बढ़ती जा रही है और अमीर और गरीब के बीच का फासला असामान्य तरीके से बढ़ रहा है। संकट के बोझ को बेरहमी के साथ मेहनमकश लोगों, गरीबों और यहां तक कि वृद्ध आयु के पेंशनयाफ्ता लोगों के ऊपर डाला जा रहा है।
मजदूरों, किसानों और आम आदमी को जिंदा रहने और शालीन जिंदगी गुजराने के बुनियादी अधिकार तक से वंचित कर जनता की कीमत पर अमीर परस्त एजेंडे पर अमल किया जा रहा है। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पहले पूरे केंद्रीय बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक क्षेत्र की स्कीमों के बजट आवंटनों में अत्यंत अमानवीय बड़ी कटौती की घोषणा की गई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के तहत ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम को खत्म किया जा रहा है। इस प्रकार ग्रामीण भारती में गरीबों को जो न्यूनतम सरकारी मदद मिल रही थी उसे खत्म किया जा रहा है। सबसे बेरहम हमला किसानों पर संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल 2015 के रूप में किया गया; प्रधानमंत्री स्वयं अमीरों, कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों की तरफ से इस संशोधित बिल को पारित कराने के लिए अपनी पूरी ाकत के साथ लगे हुए हैं।
यही गंभीर हमला है कि जिसके विरूद्ध हमारी पार्टी कंाग्रेस ने 14 मई 2015 को पैशाचिक, किसान विरोधी, राष्ट्र विरोधी भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के विरूद्ध अखिल भारती विरोध दिवस मनाने का फैसला किया है। हमारी पार्टी कंाग्रेस ने आगामी अवधि में एकताबद्ध वामपंथ के झंडे के तले वर्ग संघर्ष छेड़ने का आह्वान किया है। हमारा विश्वास है कि यह दशक वर्ग संघर्षों का दशक होगा। मुझे पक्का विश्वास है कि आपकी पार्टी कांग्रेस वामपंथी एकता और संयुक्त संघषोें के संबंध में विचार करेगी। आइए, वर्तमान एनडीए सरकार ने जो चुनौतियां पेश की हैं, क्रांतिकारी पार्टियां होने के नाते उन्हें नाकाम करने के लिए हर संभव कोशिश करेें।
आइए, हम अपने आपको आश्वस्त करें कि हमने सब कुछ नहीं खो दिया है। अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट एवं वर्कर्स पार्टियों के परिवार का हिस्सा होने के नाते हमें यूरोप में महान संघषों के जरिये कम्युनिस्ट पार्टियों के पुनः प्रादुर्भाव के संकेतों पर गर्व होना चाहिए। जनता नव-साम्राज्यवादी ताकतों के एक धु्रवीय, तानाशाही भरे तरीकों को चुनौती े रही है। जहां कहीं भी वामंपथ में कुछ ताकत है जबरदस्त हड़तालें और प्रदर्शन हो रहे हैं। ग्रहस में हाल के चुनावों ने यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को एक झटका दिया है।
किफायतशारी के जिन कदमों ने मेहनतकश तबकों की जिंदगी में तबाही ढायी उनके विरूद्ध ग्रीस की जनता के दृढ़ संकल्प से निश्चय ही यूरोप के लोगों को यूरोपीय संघ द्वारा आम आदमी पर किये जाने वाले हमलों के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा मिलेगी। रूस, जापान और नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की ताकत में वृद्धि को संतोष के साथ नोट किया जाना चाहिए। लैटिन अमेरिका में वामपंथी एवं समाजवादी ताकतों की बढ़ती मजबूती और अमेरिका द्वारा यह स्वीकार करना कि क्यूबा के विरूद्ध उसकी पुरानी पड़ी नाकेबंदी एक विफलता थी- ये बातों क्यूबा और लैटिन अमेरिका की ऐहिासिक जीतें हैं। इसी प्रकार बसंत क्रांति अमेरिकी सरकार की उन कठपुतली सरकारों के विरूद्ध अरब के आम लोगों के आक्रोा की अभिव्यक्ति है जो भ्रष्टाचारी और तानाशाही किस्म की है, यद्यपि फिलहाल वह कमजोर पड़ गई है। यह एक ज्वालामुखी है जो कभी भी फिर से फूट सकता है। जनता के विभिन्न समुदायों के बीच गृहयुद्ध छेड़ने के लिए साम्राज्यवादी ताकतें अंध-उन्मादग्रस्त इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों की मदद कर रही है ताकि आम लोगों का ध्यान मुख्यधारा संघर्षों से डायवर्ट हो जाए। साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा आईएसआईएस आतंकवादियों को जबरदस्त तरीके से हथियाबंद किया गया जिसका नतीजा भयंकर खून-खराबे और हजारों मासूम लोगों की मौत के रूप में सामने आ रहा है।
हमारे देश में 28 करोड़ लोग घनघोर गरीबी के शिकार हैं और अत्यंत दयनीय हालत में जिंदगी गुजार रहे हैं जबकि 68। परिवार या कारपोरेट घराने हमारी राष्ट्रीय धन-दौलत के 25 प्रतिशत हिस्से को लूट रहे हैं। किसाल बदहाल है; विदर्भ, तेलंगाना, कर्नाटक एवं अन्य स्थानों पर कर्ज के जाल से बचने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार इन तथ्यों को स्वीकार करने से इंकार करती है।
एक तरफ, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार हमेशा की तरह बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री के कामकाज की शैली तानाशाह, गोपनीय एवं व्यक्तिवादी किस्म की है। दूसरी तरफ, हिन्दुत्ववादी ताकतें “घरवापसी” - जो धर्मांतरण की एक किस्म है- के नाम पर अल्पसंख्यक विरोधी आतंक अभियान छेड़ रही है। ईसाई चर्चों पर दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर हमले किए जा रहे हैं, उनमें तोड़-फोड़ की जा रही है। संघ परिवार के मार्ग दर्शन में सांस्कृतिक आतंकवाद पर आचरण किया जा रहा है। ऐतिहासिक  पुस्तकों को जलाने का आह्वान, उनकी सनक के अनुसार  उनका पुनर्लेखन, वैज्ञानिक मनोवृति, कलाकारों एवं लेखकों पर हमले जैसी घटनाएं अधिकाधिक शुरू की जा रही है। महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलनों के अन्य नेताओं की छवि को उनक स्थान पर गोडसेपंथ को लाने के लिए बिगाड़ा जा रहा है।
देश के प्रमुख मुद्दों से जनता का ध्यान डायवर्ट करने के लिए तनाव एवं भय मनोवृत्ति पैदा करने के लिए देश को धार्मिक लाइनों पर बांटने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं, असहिष्णुता एवं घृणा में वृद्धि हो रही है। हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दक्षिणपंथी ताकतों के विरूद्ध अनथक योद्ध एवं कामरेड गोविन्द पानसरे सांप्रदायिकता के विरूद्ध और वैज्ञानिक मनोवृत्ति के प्रसार के लिए अपने निरंतर संघर्ष में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पहले शहीद बन गए हैं।
परंतु जन विरोधी आर्थिक नीतियों और सांप्रदायिकता की गंदी चालों के विरूद्ध जनता आवाज बुलंद कर रही है। तमाम केंद्रीय टेªड यूनियन संगठनों द्वारा कोयला हड़ताल, बैंक हड़ताल, पोस्टल डिपार्टमेंट कर्मचारियों की हड़ताल, केंद्र सरकार के कर्मचारियों की प्रस्तावित हड़ताल, केंद्रीय टेªड यूनियनों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन, किसान संघर्ष- ये इसका हिस्सा है।
हमारे महान देश की एकता को बचाने के लिए धर्मनिरपेक्षता की हर कीमत पर रक्षा करनी होगी। लोकतंत्र की रक्षा की जानी है। अमीर और ताकतवर लोगों के हमले ने मेहनतकश लोगों के कठिन संघर्षों के बाद प्राप्त अधिकारों को छीन लिया है। इन अधिकारों को वापस हासिल करना है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।
हमारी पार्टी कांग्रेस ने रेखांकित किया है कि इस कठिन लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए हमें जनता का विश्वास हासिल करने की जरूरत है। हम जिस व्यापक वामपंथी लोकतांत्रिक एकता को हासिल करना चाहते हैं उसके लिए वामपंथी एकता पूर्व शर्त है। आइए, एकताबद्ध हों और जनता में विश्वास पैदा करे। आइए, अपने आधारों को मजबूत बनाएं। आइए, जनता के मुद्दों पर और उनसे फिर से जुड़ने के लिए वर्ग संघर्ष छेड़ें।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विश्वास है कि हमारा देश आज जिस मुश्किल स्थिति का सामना कर रहा है वामपंथ उस पर अवश्य पार पायेगा और एकताबद्ध होकर आत्मविश्वास एवं साहस के साथ आगे बढ़ेगा। वामपंथ ही अकेला है जो हमारे लेखकों, इतिहासकारों, कलाकारों, धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों, आदिवासी किसानों एवं मेहनतकश लोगों के तमाम हिस्सों की रक्षा कर सकता है जो बड़ी उम्मीद की नजरों से वामपंथी की तरफ देख रहे हैं।
प्रिय कामरेडों, पश्चिम बंगाल में भाकपा (मा) तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का सबसे बड़ा निशाना बन गई है जिसके फलस्वरूप अनेक हत्याएं, हमले, भाकपा (मा) दफ्तरों को जलाने की घटनाएं हो रही हैं। भाकपा (मा) और वामपंथ इस आतंक के विरूद्ध और नागरिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोकतंत्र के लिए इस संघर्ष में हम आपके साथ हैं। हम अपने समर्थन एवं एकजुटता का भरोसा दिलाते हैं। पश्चिम बंगाल में हमें भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों के विरूद्ध संघर्ष करना है। हमें पक्का विश्वास है कि इन संघर्ष में हमारी  जीत होगी।
प्रिय कामरेडों, इन शब्दों के साथ मैं आपकी कांग्रेस की पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।
आप सबको लाल सलाम!
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिन्दाबाद!
वामपंथ की एकता जिन्दाबाद!
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बुधवार, 29 अप्रैल 2015

हाशिमपुरा कांड: उच्च न्यायालय की देखरेख में विशेष जाँच दल से करे जाये जाँच.

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने हाशिमपुरा कांड की उच्च न्यायालय की निगरानी में विशेष जाँच दल द्वारा जाँच कराने की अपनी मांग को पुनः दोहराया है और कहा है कि राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में अपील करने मात्र से कुछ भी हल निकलने वाला नहीं है. कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार कि हाशिमपुरा कांड पर निरंतर आलोचना झेल रही सरकार ने अब उच्च न्यायालय में अपील करने का निर्णय लिया है; पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि सरकार का यह कदम मामले पर लीपा- पोती करने वाला साबित होगा. भाकपा इसे कदापि स्वीकार नहीं करेगी. भाकपा का स्पष्ट मानना है कि जब जाँच एजेंसियों ने २७ साल के दरम्यान सही तथ्य व गवाह अदालत के सामने नहीं पेश किये और इस आधार पर आरोपियों को बरी कर दिया गया, उन्हीं तथ्यों, उन्हीं सबूतों तथा उसी मनोदशा के साथ किसी भी अदालत में जाया जाये नतीजा क्या निकलेगा? इसलिए जरूरी है कि मामले की फिर से जाँच कराके पर्याप्त सबूत और गवाहियाँ कराना जरूरी है. यह तभी संभव है जब मामले की जाँच माननीय उच्च न्यायालय की निगरानी में विशेष जाँच दल से कराई जाये. डा. गिरीश ने कहा कि भाकपा अपनी इस मांग पर अडिग है और इसको लेकर प्रदेश व्यापी अभियान चलाएगी. डा. गिरीश
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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

भूकंप पीड़ितों की हर संभव सहायता करेगी भाकपा

लखनऊ-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने भारत और नेपाल में भूकंप से हुयी तबाही पर गहरा दुःख जताया है. पार्टी ने इस त्रासदी में मृतकों और घायलों के प्रति गहरी संवेदनाओं का इजहार किया है तथा बड़े पैमाने पर हुयी तबाही पर गहरी चिंता व्यक्त की है. भाकपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी समस्त जिला इकाइयों से अनुरोध किया है कि वे संकट की इस घड़ी में नेपाल की हर संभव मदद करने को आगे आयें और जरूरी चीजें और फंड एकत्रित कर जल्द से जल्द राज्य कार्यालय को भेजें ताकि उसे शीघ्र से शीघ्र नेपाल पहुँचाया जा सके. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत दिनों आये प्रचंड भूकंप से भारत और निकट पड़ौसी राज्य नेपाल में भारी जन और धन की हानि हुयी है. नेपाल में जहाँ मृतकों की संख्या दस हजार तक पहुँचने का अनुमान है वहीं लाखों लोग घायल हैं. हर तीसरा आदमी बेघर हुआ है. निर्माणाधीन और चालू तमाम योजनायें ध्वस्त होचुकी हैं. टूरिस्म पर वर्षों के लिए ग्रहण लग गया है. ऐसे में नेपाल को हर स्तर पर भारी मदद की दरकार है. अच्छी बात है कि भारत- चीन जैसे पड़ौसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी ने हर तरह की मदद के लिए हाथ बढाया है. लेकिन बार बार आरहे भूकंप के झटकों और वारिश ने विपत्ति को गहरा बना रखा है. भाकपा और समस्त भारतीय जनमानस संकट की इस घड़ी में नेपाल की जनता के साथ है, और नेपाल के नव निर्माण में हर तरह की मदद की जायेगी. इस मदद में हाथ बंटाने में भाकपा पीछे नहीं रहने वाली है. अतएव भाकपा ने अपनी समस्त जिला इकाइयों से आग्रह किया है कि वे नेपाल की जनता की सहायतार्थ तत्काल धन एवं आवश्यक वस्तुओं के संग्रह में जुट जाएँ और शीघ्र से शीघ्र उसे राज्य कार्यालय को प्रेषित करें. भाकपा अपने सभी सहयोगियों से भी अपील करती है कि भाकपा के इस मिशन में ह्रदय से सहयोग करें. डा. गिरीश
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गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

किसानो! भागो नहीं, परिस्थितियों का मुकाबला करो: भाकपा

लखनऊ- २३ अप्रैल २०१५. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल ‘आप’ की रैली के दौरान एक किसान द्वारा की गयी आत्महत्या, प्रतिदिन देश भर में सैकड़ों की तादाद में होरही किसानों की आत्महत्याओं और सदमे से होरही मौतों को अत्यंत दुखद और असहनीय बताया है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब राजधानी दिल्ली में किसी किसान ने अपनी आपदा से पीड़ित होकर सरेआम अपनी जान दी हो और प्रशासनिक मशीनरी और राजनीतिक लोग तमाशबीन बने रहे हों. आजादी के बाद यह भी पहला अवसर है जब देश के बड़े हिस्से में किसान जानें देरहे हैं और उनकी सदमे से जानें जारही हैं और पूरी की पूरी व्यवस्था उन्हें ढाढस बंधाने में नाकामयाब रही है. डा.गिरीश ने कहा कि यह वक्त राजनैतिक रोटियां सैंकने का नहीं ठोस प्रयास करने का है. यदि शीघ्र ही समस्या का ठोस समाधान न निकाला गया तो हालात और भी बिगड़ेंगे. अभी तो किसान ही संकट में है, खाद्यान्नों और रोजगार का संकट पैदा होने से अन्य गरीब तबके भी इन्ही हालातों में पहुंचने जारहे हैं. भाकपा ने किसान भाइयों से अपील की है कि वे धैर्य न छोड़ें और अपने परिवार और देश के हित में अपनी जानों को यूं ही न गवायें. भाकपा उनके सुख दुःख में उनके साथ खड़ी है और साथ खड़ी रहेगी. किसानों की इस व्यापक पीड़ा की ओर सरकार और व्यवस्था का ध्यान खींचने को ही भाकपा ने पूरे देश में १४ मई को किसानों के प्रति एकजुटता आन्दोलन का निर्णय लिया है. उत्तर प्रदेश में यह आन्दोलन ‘रास्ता रोको’ के रूप में होगा. डा.गिरीश ने भाकपा के समस्त कार्यकर्ताओं और हमदर्दों से अनुरोध किया है कि ग्रामीण जीवन में आई इस महाविपत्ति की घडी में वे अपना हर पल हर क्षण ग्रामीण जनता के बीच बितायें और आमजनों को “भागो नहीं, समस्या का मुकाबला करो” का संदेश दें. साथ ही १४ मई के आन्दोलन के लिए किसानों कामगारों को लामबंद करें. डा.गिरीश
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