- जमीन के मालिक किसानों से उनकी रज़ामंदी के बिना जमीन नहीं ली जा सकेगी और जमीन लेने का क्या सामाजिक प्रभाव पड़ेगा, उसका भी पहले आकलन किया जायेगा।
- किसान को अपनी जमीन के बेहतर मुआवजे के लिए मोल-तोल का अधिकार मिले, उसकी कोई मजबूरी न हो तथा उसका मुआवजा एडवांस में दिया जाये।
- पूरे मुआवजे के भुगतान के बाद और पुनर्वास एवं पुनः व्यवस्थापन के पूरे इंतजाम के बाद ही जमीन पर कब्जा लिया जाये।
- किसानों और पंचायतों की रज़ामंदी के बिना जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू नहीं की जायेगी।
- बहुफसली और सिंचित जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा।
- अधिग्रहण की प्रक्रिया के पहले किसानों, आजीविका के लिए निर्भर अन्य लोगों एवं समुदाय पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जायेगा।
- सभी विस्थापित परिवारों को पहले से बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित किया जायेगा।
फ़ॉलोअर
रविवार, 19 अप्रैल 2015
मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण का सच
किसानों की जमीन छीन कर पूंजीपतियों को सौंपने पर आमादा मोदी सरकार
14 मई को देशव्यापी विरोध
उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर रास्ता रोको
बहनों एवं भाईयों,
किसानों के निरन्तर आन्दोलनों और बलिदानों के कारण 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को 2013 में संसद में सर्वसम्मति से बदला गया था।
बदले कानून में सुनिश्चित किया गया था:
मोदी सरकार किसानों के इन अधिकारों को छीन कर जमीन को पूंजीपतियों को देना चाहती है। उसने लोकशाही की सारी परम्पराओं को त्याग कर 3 अप्रैल 2015 को पुनः अध्यादेश जारी करके अपने किसान विरोधी इरादों का पुनः परिचय दिया है।
सरकार का यह दावा झूठ और मिथ्यापूर्ण प्रचार है कि विकास कार्य क्योंकि रूके पड़े हैं, इसलिए कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाना जरूरी है।
दरअसल अध्यादेश का मतलब किसानों से रज़ामंदी के बिना और बिना सामाजिक प्रभाव का आकलन किये जमीनों को किसानों से छीनना है जबकि 2013 का कानून सुनिश्चित करता है कि जिन लोगों से जमीन ली जानी है, उनके 70 प्रतिशत लोग अपनी रज़ामंदी दें और यदि जमीन किसी निजी कम्पनी के लिए ली जा रही है तो उसके लिए 80 प्रतिशत लोगों की रज़ामंदी होनी चाहिए।
सरकारी दावा इससे और भी झूठा साबित हो जाता है कि वर्ष 2013 तक सरकार बड़े पैमाने पर जमीन का अंधाधुंध अधिग्रहण करती रही है। हालत यह है कि बड़ी मात्रा में अधिगृहीत जमीन का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बड़ी मात्रा में भूमि को कारपोरेट भूमाफिया ने हड़प लिया है जो उसे विकास के लिए इस्तेमाल करने के बजाय बढ़े दामों पर बेचकर पैसा कमा रहे हैं।
कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट दिनांक 28 नवम्बर 2014 के अनुसार विशेष आर्थिक परियोजनाओं के लिए ली गई 45,635.63 हेक्टेयर जमीन में से केवल 28,488.49 हेक्टेयर जमीन का ही इस्तेमाल हुआ है। गुजरात में स्वीकृत 50 विशेष आर्थिक क्षेत्रों में से केवल 15 ही आपरेशनल हैं। वहां प्रधानमंत्री के चहेते अडानी को 2009 में 6,472.86 हेक्टेयर जमीन दी गई जिसमें से 87.11 प्रतिशत जमीन का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है। कैग ने रिलायंस, एस्सार, डीएलएफ, यूनीटेक्स आदि डेवलपरों को फटकार लगाते हुए कहा है कि इन्होंने विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के नाम पर बड़ी मात्रा में जमीनें हथिया ली हैं परन्तु केवल एक मामूली हिस्से का ही इस्तेमाल किया गया है। मुकेश अंबानी ने महाराष्ट्र के द्रोणगिरि में 1,250 हेक्टेयर जमीन ली परन्तु वहां 2006 से अब तक एक भी कारखाना स्थापित नहीं किया गया है। कैग ने स्पष्ट कहा है - ”सरकार द्वारा किसानों से जमीन का अधिग्रहण ग्रामीण आबादी से कारपोरेट जगत को दौलत का हस्तांतरण साबित हो रहा है।“
वास्तविकता, मोदी सरकार के तमाम दावों को खोखला और मिथ्या साबित करती है। वास्तव में मोदी सरकार कारपोरेट घरानों, धन्नासेठों तथा पूंजीपतियों को जमीनें देने और किसानों को बेसहारा करने के लिए ही यह झूठी और खोखली दलीलें देकर देश की जनता की आंख में धूल झोकना चाहती है।
किसान भाईयों,
18 औद्योगिक गलियारों के लिए मोदी सरकार के प्रस्तावों के द्वारा खेती योग्य भूमि का 35 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आ जायेगा जिससे हजारों गांव लुप्त हो जायेंगे और करोड़ों लोगों को रोजी-रोटी छीनने का रास्ता साफ हो जायेगा। उसके कारण बड़े पैमाने पर सामाजिक विघटन और सामाजिक अराजकता पैदा हो जायेगी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई किसानों, खेत मजदूरों, ट्रेड यूनियनों, नागरिक समाज एवं आम जनता का आह्वान करती है कि मोदी सरकार के घृणित मंसूबों को नाकाम करने के लिए बड़े पैमाने पर 14 मई 2015 को ”रास्ता रोको“ कार्यक्रम को सफल बना कर किसान एवं देश विरोधी अध्यादेश का विरोध करें।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...8 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
अखनूर बस हादसे के लिये उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह जिम्मेदार: डा॰ गिरीश भाकपा नेता ने म्रतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की , घायलों क...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
REVERSE DEREGULATION OF FUEL PRICES The Congress led UPA II Government has totally failed to contain inflation and to cont...
-
“यदि सरकार ने कोरोना से जंग के लिये नीतियां तय करने से पहले महामारीविदों और अन्य विशेषज्ञों से राय ली होती तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती...
-
लखनऊ 3 सितम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं अन्य वामपंथी दलों द्वारा खाद्य सुरक्षा, महंगाई तथा भ्रष्टाचार के सवाल पर 12 सितम्बर को उत्तर...
-
The Hindu today published the following item : The Left parties will stage protests against fuel price hike during Prime Minister Manmohan S...
-
साम्राज्यवाद का दुःस्वप्नः क्यूबा और फिदेल आइजनहावर, कैनेडी, निक्सन, जिमी कार्टर, जानसन, फोर्ड, रीगन, बड़े बुश औरछोटे बुश, बिल क्लिंटन और अब ...
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस सामान्यतः हर तीसरे साल की जाती है। पार्टी कांग्रेस भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का ...
-
The demand to divide Uttar Pradesh into separate states has been raised off and on for the last two decades. But the bitter truth r...
-
अक्तूबर क्रांति और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता डा. गिरीश कुछ प्रगतिशील और अतिवादी वाम- बुध्दिजीवी कहते हैं कि सोवियत संघ इसलि...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें