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बुधवार, 7 फ़रवरी 2018
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गरीबों को गरीब तथा अमीरों को अमीर बनाने वाला है आम बजट
“ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको
हमने ठगा नहीं.” सैकड़ों सालों से कानपुर के प्रसिध्द ‘ठग्गू के लड्डू’ बेचने वाले
का यही नारा है. अपने केन्द्रीय वित्तमंत्री जी ने भी बजट बनाते हुए ठग्गू के लड्डू
बेचने वाले के इसी नारे पर अमल किया है.
यूं तो आज़ादी के बाद से
पूंजीवादी और अब कारपोरेटी सरकारों द्वारा पेश किये जाते रहे हर बजट को सरकारें
लोक लुभावन होने का दावा करती रही हैं लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी जनता की हालत
में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. देश के तीस करोड़ से अधिक लोग आज भी गरीबी की
सीमा के नीचे हैं तो 12 करोड़ जिनमें अधिकतर बच्चे हैं, कुपोषण के शिकार हैं. बजट
दर बजट आते रहे और गरीबी अमीरी के बीच खाई निरंतर चौड़ी होती रही. गत साढ़े तीन
सालों में यह खाई और भी चौड़ी होती गयी और देश के कई धनवान व्यापारिक घराने दुनिया
के धनाढ्यों की सूची में आगये हैं. देश की दौलत केवल 1 से 10 प्रतिशत तक लोगों के
हाथों में सिमटती जारही है जबकि गरीबों की संख्या लगातार बढ़ती जारही है. केंद्र
सरकार का यह बजट इस खाई को और अधिक चौड़ा
करेगा. यही वजह है कि उद्योग जगत ने इसकी तारीफ़ की है और व्यापारी, लघु उद्यमी,
मध्य वर्ग, किसान, मजदूर, महिलायें, विद्यार्थी और नौजवान आदि सभी इससे निराश हुए
हैं.
सबसे ज्यादा धोखाधडी किसानों
के साथ हुयी है जिनसे गत लोकसभा चुनावों के समय उनकी आमदनी दोगुना करने का झांसा
दिया गया था. बाद में सरकार अपने इस वायदे से मुकर गयी और सर्वोच्च न्यायालय में
लिखित रूप से कहाकि किसानों की आमदनी को डेढ़ गुना नहीं किया जासकता. अब अचानक बजट
भाषण में उनकी आमद डेढ़ गुना बढाने का दावा किया गया है. बिना यह बताये कि किसानों
की जरूरत वाली चीजों के दाम कितने घटाए जायेंगे और सभी फसलों का समर्थन मूल्य कितना
बढाया जाएगा. फसलों की मौजूदा कीमत में लगभग पचास फीसद बढ़ोत्तरी की दरकार है और
पिछले साढ़े तीन साल के अनुभव बताते हैं कि समर्थन मूल्यों में मामूली वृध्दि ही
होगी. फसल बीमा योजना के आंकड़े बताते हैं कि उसके जरिये निजी क्षेत्र की कंपनियों
ने अरबों रुपये प्रीमियम के रूप में किसानों की जेब से निकलवा लिए और फसल हानि की
भरपाई के नाम पर उन्हें प्याज के टुकड़े ही मिले.
मध्यवर्ग और अच्छी तनख्वाह पाने
वाले जिनका बड़ा हिस्सा भाजपा और उसकी सरकार का पिट्ठू बना हुआ है, को उम्मीद थी कि
उन्हें आयकर आदि में रियायतें मिलेंगी. लेकिन उन्हें इस बजट से भारी निराशा हुयी
है. सरकार की ठग प्रवृत्ति का इससे बढ़ा उदहरण क्या मिलेगा कि पेट्रोल डीजल पर दो
फीसद उत्पाद कर घटाया तो उतना ही उस पर सेस लगा दिया. अंबानी का पेट्रोल महँगा बिक
सके इसलिये विश्व बाज़ार में कच्चा तेल सस्ता होने के बावजूद उसे उपभोक्ताओं के लिए
महंगा बनाया हुआ है. नोटबंदी और जीएसटी से लुटा पिटा लघु उद्यमी और व्यापारी राहत
की आस लगाए बैठा था मगर उसे भी निराशा ही हाथ लगी है. महिलाओं की मौजूदा स्थिति
में बदलाव शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सुरक्षा के जरिये ही आसकता है, पर बजट इस
पर मौन है.
मजदूर वर्ग इस सरकार की
प्राथमिकता में कभी नहीं रहा और इस बजट में भी उसकी घनघोर उपेक्षा की गयी है. यहाँ
तक कि ग्रामीण रोजगार देने वाली मनरेगा को भी अपेक्षित बजट आबंटन नहीं मिला.
शिक्षा का बजट 4 फीसद भी नहीं किया गया. सरकार शिक्षा ऋण पर जोर देती रही है. पर
बिना रोजगार की गारंटी किये यह ऋण उन्हें पकोड़ा बेचने को ही बाध्य करेगा और यही
सरकार की मंशा भी है. रोजगार देने वाली योजनाओं की नामौजूदगी और चार साल में कीगयी
उपेक्षा से नौजवानों में भारी निराशा है. वे आवेदनों की लहीम सहीम फीस, साक्षात्कारों
के बाद भी नियुक्तियां न होने और भर्ती की आयुसीमा घटने से भी नाखुश हैं. उज्ज्वला
योजना ने इस सरकार को वोट दिलाये हैं अतएव उसे जारी रखा गया है. लेकिन बहुचर्चित
स्वास्थ्य बीमा योजना का धन बीमा कंपनियां हडप जायेंगी और इसका भी हश्र फसल बीमा
योजना जैसा होगा.
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति,
राज्यपालों और सांसदों के वेतनों में अप्रत्याशित वृध्दि गरीबों और आम जनता के जले
पर नमक छिडकने वाली है.
आज़ादी के बाद यह पहला बजट
है जिसमें एक भी नई रेल चलाने या उनके फेरे बढाने की कोई घोषणा नहीं हुयी. बुलट
ट्रेन के सपने दिखाने वाली सरकार को आम आदमी की सुगम यात्रा की कोई फ़िक्र नहीं है.
जहां तक हाथरस का सवाल है यहाँ
के लोगों को आशा थी कि उन्होंने भाजपा को सांसद, विधायक और नगरपालिका का चेयरमेन
दिया है, इसका उसे पुरूस्कार मिलेगा. लेकिन हाथरसवासियों को न तो कोई नयी ट्रेन
मिली न बहुप्रतीक्षित ओवरब्रिज. न कोई उद्योग मिला न शिक्षण संस्थान. हाथरस के लोग
अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं.
इस सरकार का पिछला बजट भी
इसी तर्ज पर था. इसने भी गरीबी अमीरी की खाई को चौड़ा किया है. ओक्सफेम की रिपोट के
अनुसार 2017 में अर्जित कुल संपत्ति का 73 प्रतिशत भाग मात्र एक प्रतिशत लोगों के
हाथों में चला गया जबकि शेष 99 प्रतिशत लोगों को इसका केवल 27 प्रतिशत हिस्सा ही
मिला. इन 1 प्रतिशत लोगों की संपत्तियां बढ़ कर 20. 9 लाख करोड़ होगयी हैं. इस
सर्वेक्षण के अनुसार देश की कुल संपत्ति का 58 फीसद भाग एक फीसद लोगों के पास है
जबकि विश्व स्तर पर यह अनुपात कम है और 1
फीसद लोगों के पास 50 फीसद संपत्ति है. जाहिर है भारत में गरीबी और अमीरी की खाई
दुनिया में सबसे अधिक है और इसी विषमता पर पर्दा डालने को भाजपा और संघ परिवार
कृत्रिम मुद्दे उठा कर हिन्दू मुस्लिम विभाजन पैदा कर रहे हैं.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
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