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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
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Press Note of CPI, U.P.
नोएडा में नमाज पर दुर्भावना
से लगाई पाबंदी निरस्त की जाये: भाकपा
लखनऊ- 28 दिसंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव
मंडल ने नोएडा प्रशासन द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा करने पर लगाई पाबंदी को
पूरी तरह अनुचित बताया है। कल ही केन्द्र सरकार ने लोकसभा में तीन तलाक रोकने के नाम
पर एक ऐसा बिल पास कराया जिसका मुस्लिम महिलाओं के हितों से दूर दूर तक कोई रिश्ता
नहीं। भाकपा ने भाजपा की केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों पर आरोप लगाया कि वे वोटों
के ध्रुवीकरण के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एकतरफा युध्द छेड़े हुये है।
सभी जानते हैं कि नोएडा प्रशासन ने अनुमति न होने के
नाम पर पार्कों व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पड़े जाने पर रोक लगादी है। इतना ही
नहीं प्रशासन ने नमाज रोकने के नाम पर पार्क में पानी भर दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश
की सरकार बिना किसी अनुमति के तमाम पार्कों में आरएसएस की शाखाएं लगाने की छूट दिये
हुये है। जबकि नमाज एक धार्मिक क्रिया है जबकि संघ की शाखाओं में विद्वेष और हिसा फैलाने
का वैचारिक आधार तैयार किया जाता है। गत दिनों तो इन शाखाओं में सुप्रीम कोर्ट के विरोध
में समूह गान गाया जारहा था। सुबह पार्कों में शुध्द वातावरण की तलाश में आने वाले
लोगों को संघ की इन देशविरोधी संविधान विरोधी गतिविधियों से ठेस पहुंचती है। अतएव संघ
की शाखाओं को सार्वजनिक स्थल पर लगाने से रोका जाना चाहिए।
भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय
और उत्तर प्रदेश के राज्य पाल से अपील की है कि वे हस्तक्षेप करें और नोएडा प्रशासन
की इस कार्यवाही को निरस्त करायें।
डा॰ गिरीश
गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
at 7:37 pm | 0 comments |
बिखराव की ओर एनडीए और टूट की ओर भाजपा
अपने घनघोर कट्टरपंथी एजेंडे को जनता पर जबरिया थोपने, 2014 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं से किये
वायदों से पूरी तरह मुकरने और काम करने की जगह थोथी बयानबाजी के
चलते राष्ट्रीय
जनतान्त्रिक गठबंधन (एनडीए) और भाजपा के प्रति जनता में भारी आक्रोश पैदा हुआ है।
हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार और पिछले दिनों हुये लोकसभा
और विधानसभा की सीटों के उपचुनावों में उसकी उल्लेखनीय पराजय ने आग में घी का काम किया है। यही वजह है कि आज एनडीए बिखर रहा है
और भाजपा कण कण करके टूट रही है। हालात ये हैं कि 2019 के चुनाव आते आते एनडीए के ध्वंसावशेष ही
दिखेंगे और
भाजपा 2014 के पूर्व की स्थिति में पहुँच जायेगी।
तेलगू देशम पार्टी ने तो एनडीए को पहले ही तलाक देदिया था तो आतंकवाद से निपटने में असफलता के चलते बदनामी
झेल रही भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी से खुद ही हाथ छुड़ा लिया। अब एनडीए के आधा दर्जन से अधिक घटक दल खुल कर विद्रोह पथ पर हैं तो अन्य कई के अंदर अंदर आग सुलग रही है। उनका धैर्य
कब जबाव दे जाएगा और विलगाव के स्वर कब फूट पड़ेंगे कहा नहीं जासकता।
यूपी के फूलपुर और गोरखपुर
के लोकसभा उपचुनावों से शुरू हुयी और कैराना में परवान चढ़ी विपक्षी एकता ने ऐसा ज़ोर पकड़ा कि साल का अन्त
आते आते एनडीए के विखराव की आधारशिला तैयार होगयी। इन चुनावों में सपा,
बसपा और रालोद ने वामपंथी दलों के सहयोग से तीनों प्रतिष्ठापूर्ण सीटें जीत लीं।
इस जीत ने विपक्ष और जनता में आत्मविश्वास जगाया कि भाजपा को हराया जासकता है। तीन
हिन्दी भाषी राज्यों की सत्ता भाजपा के हाथ से निकल जाने पर तो यह आत्मविश्वास
हिलोरें लेने लगा। सत्तापक्ष की हताशा के चलते एक के बाद एक सहयोगी दल के असंतोष
से एनडीए दरकने लगा। भाजपा एक मजबूत पार्टी से मजबूर पार्टी की स्थिति में आगयी।
इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा और असुरक्षा की भावना के चलते भाजपा से भी
लोग किनारा करने लगे।
बिहार की राष्ट्रीय लोक समता
पार्टी साढ़े चार साल तक सत्ता में साथ निभाने के बाद एनडीए को छोड़ कर संप्रग का
हिस्सा बन गयी। उसने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने पिछड़ों और गरीबों के लिये कोई
काम नहीं किया।
कार्पोरेट्स नियंत्रित आज
की राजनीति में विचार और सिध्दांत की जगह चुनावों में जीत हार और सत्ता प्राप्ति
की संभावना पार्टियों के बीच हाथ मिलाने का आधार बनते हैं। जब तक ये संभावनायें
भाजपा के पास थीं, पार्टियों का प्रवाह भाजपा की ओर था। 2014 में
मोदी लहर में जिनको जीत और सत्ता दिख रही थी वे भाजपा के साथ आये,
उनको लाभ मिला। पर आज हालात बदल गये हैं और इस प्रवाह की दिशा भी उलट चुकी है।
केन्द्र सरकार के शासन के
साड़े चार सालों में दलितों के साथ भारी अन्याय हुआ है। इससे वे उद्वेलित और
आंदोलित हैं। इससे विचलित बिहार के दुसाधों के आधार वाली पार्टी लोजपा भी असुरक्षित
समझने लगी। उसके नेताओं ने ताबड़तोड़ बयानबाजी कर भाजपा को बैक फुट पर लादिया। गत
लोकसभा चुनावों में बिहार में 30 सीटें लड़ कर 22 सीटें जीतने वाली भाजपा को मात्र
17 सीटों पर संतोष करना पड़ा। उसे जीती हुयी पांच सीटों की कुर्बानी लोजपा और जदयू
के लिये करनी पड़ी। एक राज्यसभा सीट भी लोजपा को देनी पड़ी।
राजनीति के पर्यवेक्षक अभी
भी इसे स्थायी समाधान नहीं, “पैच अप” मान रहे हैं। यदि भाजपा ने साख बचाने की
गरज से मंदिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाने की कोशिश की तो दोनों की राहें जुदा
होसकतीं हैं। क्योंकि दोनों के जनाधार के समक्ष मंदिर नहीं,
किसान- कामगारों की दयनीय स्थिति का मुद्दा प्रमुख है। नीतीश कुमार की भी यही स्थिति
है। वे कह भी चुके हैं कि राम मंदिर का मुद्दा सहमति या अदालत से हल होगा।
महाराष्ट्र में भाजपा की
पुश्तैनी सहयोगी रही शिवसेना भी आँखें तरेर रही है। वह लगातार भाजपा को कठघरे में
खड़ा कर रही है। इसके सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने तो यहाँ तक कह डाला कि 'दिन
बदल रहे हैं, चौकीदार ही अब चोरी कर रहे हैं।'
उद्धव राफेल विमान सौदे में घोटाले को उजागर करने की मांग भी जोरदारी से कर रहे
हैं।
सुभासपा के नेता और योगी
सरकार में काबीना मंत्री श्री ओमप्रकाश राजभर राज्य सरकार के गठन के दिन से ही उस
पर खुले हमले बोल रहे हैं। सुभासपा ने अब भाजपा के केंद्रीय नेत्रत्व पर भी
हल्ला बोल दिया है। वह आरक्षण को तीन
भागों में बांटने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही है। भाजपा की हिम्मत नहीं
कि उसे बाहर का रास्ता दिखा सके।
जातीय और क्षेत्रीय पहचान तथा सामाजिक न्याय के
प्रश्न पर क्षेत्रीय पार्टियों का अभ्युदय हुआ था। भाजपा और संघ का हिन्दुत्वनामी
कट्टरपंथ क्षेत्रीय दलों की आकांक्षाओं को रौंद रहा है। अतएव एनडीए के घटक अपना दल
को भी अपना अस्तित्व खतरे में नजर आरहा है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने प्रदेश
सरकार पर सम्मान न देने का आरोप लगाया। उन्होने कहाकि ‘मौजूदा हालात में सोचना पड़ेगा कि जहां सम्मान न हो,
स्वाभिमान न हो, वहां क्यों रहें?’
उन्होने केन्द्र में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की अनदेखी का आरोप भी लगाया और सभी
विकल्प खुले रखने का संकेत दिया। उल्लेखनीय है कि अपना दल ने पांच साल में यह पहला
बड़ा हमला बोला है।
पंजाब में अकाली दल ने आँखें दिखाना शुरू कर दीं
हैं तो तमिलनाड्डु में भाजपा खोखली होचुकी एआईएडीएमके की बैसाखियों पर निर्भर है।
पूर्वोत्तर में विपरीतधर्मी पार्टियों के साथ हनीमून के दौर से गुजर रही भाजपा से
उनका कब तलाक होजायेगा कोई नहीं जानता।
एनडीए ही नहीं 2019 में पुनर्वास की चिन्ता में डूबी
भाजपा भी आंतरिक विघटन की पीड़ा से गुजर रही है। एक एक कर सहयोगी दल भाजपा से छिटक
रहे हैं। इससे भाजपा में छटपटाहट है। कर्नाटक में जीत के जादुयी आंकड़े से दूर रही
भाजपा के पांच राज्यों में चुनावी हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल और भी टूटा है। वे
अब मोदी के करिश्मे और संघ की दानवी ताकत पर भरोसा नहीं कर पारहे हैं। हार की
ज़िम्मेदारी तय न करने पर भी सवाल उठ रहे हैं। श्री नितिन गडकरी ने इशारों इशारों
में नरेन्द्र मोदी और अमितशाह पर सवाल उठाया कि ‘सफलता के
कई पिता होते हैं पर असफलता अनाथ होती है। कामयाब होने पर उसका श्रेय लेने को कई
लोग दौड़े चले आते हैं, पर नाकाम होने पर लोग एक दूसरे पर
अंगुलियां उठाते हैं।‘
जहाज डूबने को होता है तो चूहे भी उसे छोड़ कर भागने
लगते हैं। पाला बदलने का दौर शुरू होगया है। हर दिन किसी न किसी भाजपाई के पार्टी
छोड़ने की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। 40 से 50
फीसदी सांसदों की टिकिटें काटने की भाजपा की योजना है। टिकिट गँवाने वाले ये सांसद
क्या गुल खिलायेंगे, सहज अनुमान लगाया जासकता है।
कार्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने और किसान कामगारों की
उपेक्षा के चलते समस्याओं का अंबार लग गया है और पीड़ित तबके उनसे जूझ रहे हैं। हाल
ही में देश के कई भागों और राजधानी में किसानों ने बड़ी संख्या में एकत्रित हो
हुंकार भरी है। देश के व्यापकतम मजदूर तबके 8 व 9 जनवरी को हड़ताल पर जाने वाले
हैं। शिक्षक, बैंक कर्मी, व्यापारी, दलित, पिछड़े और महिलाएं सभी आंदोलनरत हैं। जमीनी
स्तर पर वंचित और उपेक्षित तबकों की हलचल जिस तेजी से बड़ रही है उसी तेजी से संघ
और भाजपा की बेचैनी बड़ रही है। स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि साढ़े चार साल में
पहली बार भाजपा नेताओं की सभाओं में लोग प्रतिरोध जता रहे हैं। एक ओर लोग ‘मन्दिर नहीं तो वोट नहीं’ जैसे नारे लगा रहे हैं तो
दूसरी ओर महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से आजिज़ युवक सभाओं में पत्थर फेंक रहे
हैं।
दशहरे पर अपने भाषण में मन्दिर राग छेड़ने वाले संघ प्रमुख
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से उसकी निस्सारिता को समझ चुके हैं। परन्तु अन्य
कोई विकल्प सामने न देख संघ “मन्दिर शरणम गच्छामि” के उद्घोष
को मजबूर है। गंगा, गाय, नामों के बदलने
और मूर्तियों के निर्माण से भी हानि की भरपाई हो नहीं पारही है। ऐसे में न्यायालय
से मन्दिर- मस्जिद प्रकरण पर जल्द फैसला आता न देख विश्वसनीयता की रक्षा के लिए केन्द्र
सरकार मन्दिर निर्माण के लिये अध्यादेश ला सकती है।
इस अध्यादेश का हश्र क्या होगा यह तो वक्त ही
बताएगा पर बचे- खुचे एनडीए को खंड खंड करने और भाजपा के विघटन के लिये यह काफी
होगा । भाजपा के गैर संघी लोगों को अब यह राह स्वीकार्य नहीं।
डा॰ गिरीश
27- 12- 2018
बुधवार, 12 दिसंबर 2018
at 1:34 pm | 0 comments |
बुलंदशहर की घटना के असली मुजरिमों को बचाने में जुटी है उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मातहत मशीनरी
लखनऊ- उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद में 3 दिसंबर
को हुये अराजकता के नाच को जिसमें कि एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या
और एक तमाशवीन युवक की दर्दनाक मौत हुयी, के दस दिन बीतने
के बाद भी पुलिस और प्रशासन इस पर से रहस्य की चादर हठा नहीं पारहे हैं। उलटे
पुलिस और प्रशासन के रवैये से लग रहा है कि वह येन केन प्रकारेण असली अपराधियों जो
कि स्पष्टतः संघ गिरोह से संबन्धित हैं, को क्लीन चिट देकर
कुछ निर्दोषों और तमाशवीनों को बलि का बकरा बना रहे हैं।
ज्ञातव्य होकि जनपद बुलन्दशहर की स्याना कोतवाली के
अंतर्गत महाव गांव के एक किसान के गन्ने के खेत में कुछ म्रत पशुओं के अवशेष खेत
मालिक को 3 दिसंबर को सुबह पड़े मिले थे। किसान ने इसकी सूचना स्याना पुलिस को दी
तो वह घटनास्थल पर पहुंची और उपस्थित ग्रामीणों को रिपोर्ट लिख कर उचित कार्यवाही
करने का आश्वासन भी दिया। ग्रामीण इससे संतुष्ट भी होगये। पर सुनियोजित उद्देश्यों
के लिये हिंसा भड़काने को उतारू संघ गिरोह को यह मंजूर नहीं था।
अतएव बजरंगदल के जिलाध्यक्ष और भाजपा के दूसरे
आंगिक संगठनों ने वहाँ कथित गोकशी की अफवाहें फैला कर कई गांवों की भीड़ इकट्ठी कर
ली। वे म्रत पशुओं के अवशेष एक ट्रेक्टर में डाल कर पुलिस चौकी चिंगरावटी पर ले आए
और वहां जाम लगा दिया। संघियों ने अपने उत्तेजक बयानों और नारे बाजी से भीड़ को उकसाया
और पथराव शुरू होगया। इस बीच पुलिस को बल प्रयोग भी करना पड़ा। बेहद दुखद है कि
संघियों द्वारा लगाई इस आग के चलते स्याना कोतवाली के इंचार्ज की ह्त्या कर दी गयी
और एक स्थानीय युवक सुमित भी मारा गया।
ज्यों ज्यों समय व्यतीत होरहा है घटना की परतें और
साजिशें सामने आती जारही हैं। बुलंदशर में घटना के कई दिनों पहले से मुस्लिमों का
इज़्तजा चल रहा था जिसमें कि अल्पसंख्यकों की भारी भीड़ जुटी थी। पश्चिमी उत्तर
प्रदेश को हिंसा की आग में झौंकने के लिये संघ गिरोह ने इसे एक नायाब मौका समझा।
उन्होने ग्रामीण क्षेत्रों में अफवाहें फैलायीं कि मुस्लिमों के समारोह में आए
लोगों को गोमांस परोसने के लिये बड़े पैमाने पर गायें काटी जारही हैं। लेकिन आम
जनता सच्चाई जानती थी और वह टस से मस नहीं हुयी। उलटे कई ग्रामों में गैर
मुस्लिमों ने मुस्लिम समारोह में आये अल्पसंख्यकों को नमाज पढ़ने के लिये मंदिरों
और अपने आवासों में जगह दी। इससे संघी बौखला गये।
अपनी साज़िशों को अंजाम देने के लिये संघियों ने
पशुओं की खाल उतारने वाले मजदूरों से गन्ने के खेत में म्रत पशुओं के अंग गिरवा
दिये और बिना जांच के ही कुछ गरीब मुस्लिमों को गिरफ्तार करने को दबाव बनाया। पर
पुलिस इंस्पेक्टर स्याना बिना जांच किए गिरफ्तारी करने को तैयार नहीं थे।
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह दादरी के अखलाक हत्याकांड की जांच से भी जुड़े थे और
उन्हें लगातार धमकियाँ भी मिल रहीं थीं।
अब जनता के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या
संघियों ने एक तीर से कई निशाने साधने की साजिश की थी? क्या उनका उद्देश्य छत्तीसगड और मध्य प्रदेश के चुनावों में भाजपा की
दुर्गति की खबरों के बीच राजस्थान चुनाव से पहले ध्रुवीकरण को अंजाम देने की साजिश
रची थी? अथवा लोकसभा चुनावों से पहले पूर्व की भांति पश्चिमी उत्तर प्रदेश को फिर से हिंसा और हिंसा
के जरिये विभाजन पैदा करने का कोई महाषडयंत्र था?
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पुलिस इंस्पेक्टर की
हत्या ने संघियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया। इस हिंसा से पुलिसकर्मियों और आम
जनता के बीच योगी सरकार और संघ गिरोह के विरोध में जबर्दस्त गुस्सा था जिसकी
चिनगारियों से संघ गिरोह के पंख झुलसते नजर आये। अब कई किस्म की जाँचें बैठा दी
गईं हैं। संघ गिरोह के लोगों को बचाने के प्रयास जारी हैं। एक फौजी को हत्यारा
साबित करने की कवायद चल रही है। डीजीपी सहित तमाम आला अधिकारी पहले तो संघ परिवार
का नाम लेने से बचते रहे और अब संघ परिवार को क्लीन चिट देने को तत्पर जान पड़ते
हैं। पर अब इसका फैसला जनता की अदालत में
होना बाकी है, भले ही कार्यपालिका मामले पर कितनी ही लीपापोती
क्यों न कर दे।
भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने उसी दिन हुयी उस घटना पर गहरा दुख और
आक्रोश व्यक्त किया था। एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया
था कि समूची घटना के पीछे भाजपा, बजरंग दल और आरएसएस के
समर्थकों की साजिश है जो 2019 के चुनावों से पहले दंगा भड़काने, समाज को बांटने और कानून व्यवस्था को भंग करने पर उतारू हैं।
भाकपा का आरोप है कि जनता के बीच पूरी तरह बेनकाब
होचुके संघ और भाजपा अब सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने पर उतारू हैं। जगह जगह
गोहत्या का नाटक खड़ा कर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जारहा है। धर्मसभा, कमल यात्रा और अन्य कई तरीकों से उन्माद और भय पैदा किया जारहा है।
लोकसभा चुनावों से पहले ऐसी तमाम वारदातों को अंजाम देने की साजिश है। कुत्सित
राजनैतिक उद्देश्यों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मुजफ्फरनगर की तरह फिर से दंगों
की आग में झौंकने का षडयंत्र है।
भाकपा ने कहाकि
योगीजी यूपी में रामराज्य की बातें करते रहे हैं लेकिन वो रामराज्य तो दूर दूर तक
नहीं दिखाई देरहा। अब तक उनकी गैर कानूनी सेनाएं अल्पसंख्यकों, दलितों और कमजोरों पर हमले बोल रही थीं, अब उनके
निशाने पर पुलिस भी आगयी है। योगीजी और भाजपा को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
भाकपा ने यह भी कहाकि माननीय उच्च न्यायालय को
स्वतः संग्यान लेकर जांच के लिये गठित टीमों की जांच पर निगरानी रखनी चाहिये क्योंकि सत्ता
के दबाव में जांच को हत्याकांड से हठा कर कथित गोकशी की ओर मोड़ा जासकता है और संघ
गिरोह को क्लीन चिट दी जासकती है। भाकपा
ने लावारिश गायों और सांडों को बाड़ों में बंद करने की मांग भी की है जो न केवल किसानों
की फसलें उजाड़ रहें अपितु तमाम लोगों की
जानें भी लेरहे हैं।
भाकपा ने प्रदेश की जनता से अपील की है कि वह
प्रदेश को दंगों और विभाजन की आग में झौंकने की भाजपा और संघ की साजिश से सावधान
रहें और हर कीमत पर शान्ति बनाए रखें। भाकपा ने शहीद इंस्पेक्टर और म्रतक ग्रामीण
के परिवारों को न्याय दिये जाने की मांग भी की है।
डा॰ गिरीश
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
at 7:06 pm | 0 comments |
CPI on Bulandashahar carnage
बुलन्दशहर की त्रासद घटना संघ और भाजपा की साजिश का
परिणाम
यूपी में रामराज्य कहाँ है बतायें योगी: भाकपा
लखनऊ- 3 दिसंबर 2018, भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव मण्डल ने आज जनपद बुलन्दशहर की स्याना कोतवाली के अंतर्गत हुयी
उस घटना पर गहरा दुख और आक्रोश व्यक्त किया है जिसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक ग्रामीण
की हत्या होगयी।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने आरोप लगाया कि समूची घटना के पीछे भाजपा, बजरंग दल और आरएसएस के समर्थकों की साजिश है जो 2019 के चुनावों से पहले दंगा
भड़काने, समाज को बांटने और कानून व्यवस्था को भंग करने पर उतारू
हैं।
भाकपा का आरोप है कि जनता के बीच पूरी तरह बेनकाब होचुके
संघ और भाजपा अब सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने पर उतारू हैं। जगह जगह गोहत्या का नाटक
खड़ा कर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जारहा है। धर्मसभा, कमल यात्रा और अन्य कई तरीकों से उन्माद और भय पैदा किया जारहा है। 6 दिसंबर
से पहले ऐसी तमाम वारदातों को अंजाम देने की साजिश है। कुत्सित राजनैतिक उद्देश्यों
से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मुजफ्फरनगर की तरह फिर से दंगों की आग में झौंका जासकता
है।
डा॰ गिरीश ने कहाकि योगीजी यूपी में रामराज्य की बातें
करते रहे हैं लेकिन वो रामराज्य तो दूर दूर तक नहीं दिखाई देरहा। अब तक उनकी गैर कानूनी
सेनाएं अल्पसंख्यकों, दलितों और कमजोरों पर हमले बोल रही
थीं, अब उनके निशाने पर पुलिस भी आगयी है। योगीजी और भाजपा को
इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि माननीय उच्च न्यायालय को
स्वतः संग्यान लेकर जांच के लिये गठित एसआईटी की जांच पर निगरानी रखनी चाहिये क्योंकि
सत्ता के दबाव में जांच को हत्याकांड से हठा कर कथित गोकशी की ओर मोड़ा जासकता है। भाकपा
ने लावारिश गायों और सांडों को बाड़ों में बंद करने की मांग भी की है जो न केवल फसलें
उजाड़ रहें अपितु लोगों की जानें भी लेरहे हैं।
भाकपा ने प्रदेश की जनता से अपील की है कि वह प्रदेश
को दंगों और विभाजन की आग में झौंकने की भाजपा और संघ की साजिश से सावधान रहें और हर
कीमत पर शान्ति बनाए रखें। भाकपा ने शहीद इंस्पेक्टर और म्रतक ग्रामीण के परिवारों
को न्याय दिये जाने की मांग भी की है।
डा॰ गिरीश
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