शनिवार, 12 सितंबर 2009
पाश के ५९वे जन्मदिवस ९ सितम्बर २००९ पर उनकी एक कविता - "सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना"
श्रम की लूट सब से खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सब से खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सब से खतरनाक नहीं होती
बैठे-सोये पकड़े जाना - बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकडे जाना - बुरा तो है
पर सब से खतरनाक नहीं होता
कपट से शोर में
सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना - बुरा तो है
भींच कर जबड़े बस वक़्त काट लेना - बुरा तो है
सब से खतरनाक नहीं होता
सब के खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सब से खतरनाक होता है
हमारे सापनों का मर जाना
सब से खतरनाक वह घरी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़रों के लिए रुकी होती है
सब से खतरनाक वो आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी ठंडी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को
मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की
भाप पर मोहित हो जाती है
जो रोज़मर्रा की साधारणता को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के दुष्चक्र में ही गुम जाती है
सब से खतरनाक वो चाँद होता है
जो हर कत्ल कांड के बाद
वीरान हुए आंगनों में चदता है
लेकिन तुम्हारी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं लड़ता है
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
तुम्हारे कान तक पहुचनें के लिए
जो विलाप को लांघता है
डरे हुए लोगों के दरवाजे पर जो
गुंडे की तरह हुंकारता है
सब से खतरनाक वो रात होती है
जो उतरती है जीवित रूह के आकाशों पर
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते, गीदर हुआंते
चिपक जाता स्थायी अँधेरा बंद दरवाजों की चौगाठों पर
सब से खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप की कोई फाँस
तुम्हारे जिस्म के पूरब में चुभ जाए
श्रम की लूट सबसे खतरनाक नही होती
पुलिस की मर सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सब से खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सब से खतरनाक नहीं होती
बैठे-सोये पकड़े जाना - बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकडे जाना - बुरा तो है
पर सब से खतरनाक नहीं होता
कपट से शोर में
सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना - बुरा तो है
भींच कर जबड़े बस वक़्त काट लेना - बुरा तो है
सब से खतरनाक नहीं होता
सब के खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सब से खतरनाक होता है
हमारे सापनों का मर जाना
सब से खतरनाक वह घरी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़रों के लिए रुकी होती है
सब से खतरनाक वो आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी ठंडी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को
मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की
भाप पर मोहित हो जाती है
जो रोज़मर्रा की साधारणता को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के दुष्चक्र में ही गुम जाती है
सब से खतरनाक वो चाँद होता है
जो हर कत्ल कांड के बाद
वीरान हुए आंगनों में चदता है
लेकिन तुम्हारी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं लड़ता है
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
तुम्हारे कान तक पहुचनें के लिए
जो विलाप को लांघता है
डरे हुए लोगों के दरवाजे पर जो
गुंडे की तरह हुंकारता है
सब से खतरनाक वो रात होती है
जो उतरती है जीवित रूह के आकाशों पर
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते, गीदर हुआंते
चिपक जाता स्थायी अँधेरा बंद दरवाजों की चौगाठों पर
सब से खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप की कोई फाँस
तुम्हारे जिस्म के पूरब में चुभ जाए
श्रम की लूट सबसे खतरनाक नही होती
पुलिस की मर सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
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1 comments:
Communists in India should use web as much as possible to popularise their ideology as well as their work and also use web to attract new generation to their mainstream. Indians have no option for their miseries but to adopt marxism.
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