भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

रोजगार का आउटसोर्सिंग-एक बड़ा खतरा

1. प्रस्तावना
1. बैंकों के नियमित एवं स्थायी काम का आउटसोर्सिंग टेक्नालाजी से ज्यादा खतरनाक है। यह उस प्रक्रिया का अंग है जिसके तहत किसी संस्थान का काम बाहरी एजेंसियों को दिया जाता है जो ये काम मजदूरों से कराती हैं। यह तरीका विश्व भर में मालिकों द्वारा अपनाया गया ताकि कर्मचारियों पर खर्च को कम किया जा सके तथा अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके, साथ ही यूनियन न बनने दिया जाये और यदि यूनियन है तो उसे काम करने नहीं दिया जाय। आउटसोर्सिंग की प्रक्रिया में असंगठित मजदूरों की संख्या बढ़ गयी है तथा संगठित या यूनियनकृत मजदूरों की संख्या घट गयी है। इससे मालिकों को मजदूर वर्ग का ज्यादा से ज्यादा शोषण करने और हायर एंड फायर नीति (जब चाहो रखो, जब चाहो निकाल दो) पर अमल करने में मदद मिली है। लगभग सभी विकसति और विकासशील या अविकसित देशों में संगठित या असंगठित मजदूरों की संख्या 7 प्रतिशत से 8 प्रतिशत घट गयी है।
ऊंचे स्तर और नीचे स्तर के मजदूरों के बीच अपवाद नहीं है। पिछले दशक में नव-उदारवादी आर्थिक नीति के तहत ऐसे तरीके अपनाने से संगठित/यूनियनकृत मजदूरों की संख्या कम होती जा रही है तथा असंगठित मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसके लिए कोई सेवाशर्तें नहीं हैं, सामाजिक सुरक्षा और श्रम कानून नहीं है।
2. आउटसोर्सिंग या ठेके पर काम करने या सेवा लेने के कारण बैंकिंग उद्योग में संगठित कर्मचारियों की संख्या कम होत जा रही है तथा असंगठित कर्मचारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बैंकिंग सेवाओं तथा नियमित और स्थायी काम का आउटसोर्सिंग बढ़ते जाने से स्थायी कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है जिससे यूनियनों की समझौता वार्ता करने की शक्ति क्षीण होती जा रही है तथा नौकरी की सुरक्षा और अस्तित्व को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। जन-बैंकिग को वर्ग-बैंकिंग में बदला जा रहा है। ग्राहकों पर भी सेवा सुरक्षा तथा उनके एकाउंट एवं ट्रांजेक्शन के मामले में इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। आउटसोर्सिंग किये जाने से धोखाधड़ी बढ़ती जा रही हंै।
3. बैंक उद्योग में आउटसोर्सिंग या ठेके पर काम करने वाले मजूदरों की संख्या बढ़ती जा रही है। मालिक और मजदूर के बीच का संबंध बदल रहा है। फलस्वरूप इस समय बैंकों में काम करने वाले कुल कर्मचारियों में से असंगठित कर्मचारियों की संख्या करीब 38 प्रतिशत है और यदि इसे रोका नहीं गया तो एक दिन ऐसा आ सकता है जब रोजगार तो होगा, बैंक की ब्रांचे होंगी, बैंकों को मुनाफा भी होगा लेकिन स्थायी कर्मचारी नहीं रहेंगे और उनकी यूनियनों भी नहीं हांेगी। इससे हमारी सामूहिक समझौता वार्ता करने की ताकत भी धीरे-धीरे कम हो जायगी।
4. बैंकों में खासकर विदेशी बैंकों में वहां की यूनियनों के साथ द्विपक्षीय समझौते के जरिए बैंकों में आउटसोर्सिंग आॅफ जाॅब की अनुमति दी गयी है। नई पीढ़ी के निजी बैंकों में कामकाज पूरी तरह से बाहरी एजेंसियों या ठेके पर निर्भर है। पुराने निजी क्षेत्र के बैंक तेजी से बाहरी एजेंसियों के जरिये आउटसोर्सिंग कर रहे हैं या ठेके पर कर्मचारियों को रख रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी अपना काम आउटसोर्सिंग कर रहे हैं। 2 जून 2005 को हुए द्विपक्षीय समझौते के अनुसार जहां बैंक के पास अपनी क्षमता एवं सुविधा नहीं है वहां बैंक आईटी एवं इससे संबंधित काम को आउटसोर्स कर सकते हैं।
2. बैंकिंग उद्योग एवं आउटसोर्सिग-वर्तमान स्थिति
5. पिछले दस वर्षों से बैंक अपने नियमित एवं स्थायी काम का आउटसोर्सिंग कर रहे हैं। वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार द्वारा बैंकों में आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा अधिकृत किया जा रहा है। बैंक तेजी से अपना काम आउटसोर्सिंग कर रहे हैं तथा खर्चा कम करने और निपुणता हासिल करने के नाम पर उसे उचित ठहरा रहे हैं। बैंक की सेवाओं या काम को आउटसोर्सिंग करने को तीसरी पार्टी को यह काम सौंपने या अधिकृत करने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिसके बदले में कमीशन या बैंक और तीसरी पार्टी के बीच हुए समझौते के अनुसार भुगतान किया जाता है।
6. हमारे उद्योग में निम्नलिखित क्षेत्रों में सेवा और रोजगार को आउटसोर्सिंग किया जा रहा हैः
(ए) सुरक्षागार्ड/सेवाएं-एटीएम, ब्रांच, आफिस एवं कैश रेमिटेंस।
(बी) एटीएम, ब्रांच एवं आफिसों में झाडू लगाना।
(सी) चपरासी/सबोर्डिनेट स्टाफ- क्लीयरिंग चैकों को ब्रांच से सर्विस सेंटर लाना-ले जाना। कैश रेमीटेंस, डिस्पैच, डिपार्टमेंट का काम, ब्रांच और आफिस
(डी) ब्रांचों से क्लीरिंग चेक लाना तथा उन्हें क्लीयरिंग हाउसेज ले जाना-लाना।
(ई) करेंसी चेस्ट का कमा करना तथा ब्रांचों को एक ब्रांच से दूसरी ब्रंाच में कैश रेमीटेंस करना।
(एफ) एटीएम में कैश भरना।
(जी) डाटा इन्ट्री, डाटा प्रोसेसिंग, डाटा तैयार करना आदि।
(एच) बैंक एकाउंट खोलना तथा ग्राहकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना और डोर बैंकिंग के नाम पर चेक/इंस्ट्रुमेंट/आर्डर का ग्राहकों के घर नगदी भुगतान करना और लाना।
(आई) ऋण लेने वालों की पहचान करना, ऋण आवेदन जमा करना, ऋण लेने वालों के बारे में प्राथमिक जानकारी की जांच करना, ऋण से संबंधित कागजात तैयार करना तथा कम कर्जें के चेक या स्वीकृत पत्र ग्राहकों को देना और स्वीकृति के बाद मानीटरिंग करना
(जे) कर्ज, एनपीए की वसूली आदि।
(के) बैंक के विभिन्न उत्पादों-क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, हाउसिंग लोन, पर्सनल लोन आदि की मार्केटिंग करना, प्रोसेसिंग, मानीटरिंग तथा लोन की वसूली संबंधी काम।
(एल) क्लर्क, कंप्युटर आपरेटर, ब्रांचों/आफिसों में सब-स्टाफ का काम करना।
(एम) विभागीय जांच करना।
7. भारतीय रिजर्व बैंक में करेंसी मैनेजमेंट, सार्वजनिक ऋण प्रबंधन, विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन, नोटों क जांच आदि में आउटसोर्सिंग शुरू की गयी है।
8. आउटसोर्सिंग का काम 1. बाहरी एजेंसियों, 2. उसी बैंक के सहायक या संबंद्ध ब्रांच, 3. कर्मचारियों/अधिकारियों जिन्हें व्यक्तिगत ठेके पर रखा जाता है,
4. सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारियों, डाकघरों, एनजीओ, फार्मर्स क्लब, कोपरेटिव, सामुदायिक, संगठनों, कार्पोरेट संगठनों, बीमा एजेंटो, पंचायतों, ग्रामीण ज्ञान केन्द्रों, सोसाइटियों, ट्रस्टों, 1956 के कम्पनी कानून की धारा 25 के अंतर्गत बनी कंपनियों को दिया गया है। गैर बैंकिग वित्त निगम को भी कमीशन के आधार पर नियुक्त किया जाता है जो आरबीआई द्वारा 25.01.2006 को जारी किये गये सर्कुलर की शर्तों के अनुसार बिजनेस फेसिलिटेटर या बिजनेस करस्पोंडेंट के रूप में नियमित या सामान्य बैंक कामकाज करते हैं।
3. अतीत में बैंकिंग उद्योग में ठेके पर काम कराना
9. 1946 के पहले जब एआईबीए नहीं बना था, बैंक तो थे लेकिन कर्मचारियों के लिए कोई सेवाशर्तें नहीं थीं। मुख्य रूप से कैश विभाग और गोदामों में ठेके पर काम कराने की प्रथा और आउटसोर्सिंग से काम कराने का रिवाज था। इसे कंट्रेक्टर ट्रेजरी सिस्टम कहा जाता था। 20 अप्रैल, 1946 को एआईबीईए के गठन के बाद बैंक कर्मचारियों ने समुचित मजदूरी और सेवाशर्तों के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया तथा कंट्रेक्टर ट्रेजरी सिस्टम आदि का विरोध किया। शास्त्री अवार्ड में बैंक कर्मचारियों को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया (ए) स्थायी कर्मचारी, (बी) प्रोबेशनर, (सी) अस्थायी कर्मचारी तथा (डी) पार्टटाइम कर्मचारी। साथ ही उनका दर्जा परिभाषित किया गया और उनकी मजदूरी एवं सेवा शर्तें तय की गयी। शास्त्री अवार्ड में बैंक द्वारा नियुक्त किये जाने वाले वेतन प्राप्त प्रशिक्षुओं और रसोइये तथा घरेलू नौकरों को भी कर्मचारी माना गया। एआईबीईए द्वारा लगातार संघर्ष चलाने के कारण बाद में बैंकों में कंट्रेक्टुअल ट्रेजरी सिस्टम भी समाप्त हो गया तथा सभी कैशियर और गोदाम के रखवाले बैंक के नियमित कर्मचारी बन गये। कैशियर और गोदाम के रखवाले जब कंट्रेक्री ट्रेजरी सिस्टम के अंतर्गत थे तब भी उन्हें समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाती थी, क्लर्क के लिए जो सेवाशर्र्तें थी वहीं उनके लिए भी थी।
4. टेक्नालाजी और आउटसोर्सिंग
10. आमतौर पर यह कहा जाता है कि टेक्नालाजी आने से रोजगार में कमी हो जाती हैं। यह आंशिक रूप से सच है। टेक्नालाजी ने हमेशा परंपरागत रोजगार को छीना है। लेकिन इससे विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न तरह के रोजगार के सृजन में भी मदद मिलती है। उदाहरण के लिए बैंकिंग उद्योग में टेक्नालाजी के इस्तेमाल से हाथ से काम करने वाले कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है। लेकिन इससे आईटी से संबंधित रोजगार का सृजन भी हुआ है तथा बिजनेस प्रोफाइल को बदलकर और नयी प्रतिस्पर्धात्मक जरूरतों को पूरा करके उत्पादों की बिक्री आदि के रोजगार भी बढ़े हैं।
11. हमारे चारो तरफ एटीएम खुल गये हंै। आमतौर पर एक एटीएम में तीन सुरक्षा गार्ड, स्वीपर, कैश स्टाफ आदि की जरूरत पड़ती है। लेकिन ज्यादातर बैंकों में,चाहे सार्वजनिक क्षेत्र बैंक हो या निजी क्षेत्र के, ये काम बिना यह सोचे कि कितना खर्च आयेगा, बाहरी एजेंसियों को आउटसोर्सिंग कर दिया गया है। ज्यादातर विदेशी बैंकों तथा नई पीढ़ी के निजी बैंकों में जो नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों की देन है, जहां विकसित टेक्नालाजी बैंकिग कारोबार को नियंत्रित करती है, वहां बैंक के काम को आउटसोर्स कर दिया गया है। वहां नवसृजित काम जैसे क्रेडिट कार्डों की मार्केटिंग करना, अन्य उत्पादों की मार्केटिंग करना, पर्सनल एवं हाउसिंग लोन के वितरण आदि को आउटसोर्स कर दिया गया है। एक दशक पहले कोलकाता में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की ब्रांचों में करीब 700 कर्मचारी काम करते थे। अब कर्मचारियों की संख्या घट कर केवल 70 रह गयी है। लेकिन 2500 से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी हैं जिन्हें बाहरी एजेंसियों या बैंक की सबसिडियरी द्वारा रखा गया है जो ठेके पर रखे गये हैं, वे बैंकों के रोजाना के कामकाज कर रहे हैं। अनेक विदेशी बैंकों और नई पीढ़ी के निजी बैंकों में केवल आउटसोर्स या ठेके पर रखे कर्मचारी ही कामकाज संभाल रहे हैं। वहां अब स्थायी कर्मचारी नहीं हैं। निजी बैंक आउटसोर्स तथा ठेके पर रखे गये कर्मचारियों की संख्या बढ़ा रहे हैं।
5. आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण
12. लेकिन आज ठेके पर रखे गये या आउटसोर्स कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। बाहरी एजेंसियों को बैंक से जो पैसे मिलते हैं उन्हीं में से वे वेतन देती हैं जो बैंकों में नवनियुक्त कर्मचारियों की शुरू के वेतन से काफी कम होते हैं। अनेक मामलों में ऐसे कर्मचरियों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जाती। भारत के संविधान के अनुच्छेद 39वें में समान काम के लिए समान वेतन देने को नीति निर्देशक सिद्धांत के यप में स्वीकार किया गया है। आउटसोर्स या ठेके पर रखे जाने वाले कर्मचरियों को 40 साल की उम्र में नौकरी से हटा दिया जाता है और उन्हें बेकार का आदमी घोषित कर दिया जाता है ताकि उन्हें कहीं और काम पर नहीं रखा जा सके। यही कारण है कि हमारे देश में ऐसे कर्मचारियों में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। मजदूर वर्ग के अंग के रूप में हमें इस प्रकार के शोषण पर खामोश नहीं रहना चाहिए।
6. ठेका मजदूरी (नियमन एवं खत्म करने का) कानून, 1970
13. ठेका मजदूरी (नियमन एवं खत्म करने का) कानून, 1970 को संक्षेप में सीएलआरए एक्ट कहा जाता है जो 10 फरवरी, 1971 को लागू हुआ ताकि ठेका मजदूरी के तहत दिये जाने वाले रोजगार को नियमित किया जा सके तथा कुछ श्रेणियों में इसे समाप्त किया जा सके। यह कानून उन सभी कारखानों पर लागू होता है जहां 20 या उससे ज्यादा कर्मचारी रखे जाते हैं तथा प्रत्येक उस ठेकेदार पर लागू होता है जो 20 या उससे ज्यादा मजदूर काम पर रखते हैं। सीएलआरए एक्ट के खंड 10 में नियमित एवं स्थायी रोजगार के मामले में ठेके पर मजदूर रखने पर प्रतिबंध है। इस खंड के अंतर्गत सरकार को ऐसी किसी प्रतिष्ठाान में जिसमें स्थायी स्वभाव का काम है ठेके पर काम कराने पर रोक लगाने के लिए अधिसूचना जारी करने का अधिकार है। केन्द्र सरकार ने 9.12.1996 को अधिसूचना जारी करके ऐसे प्रतिष्ठान के भवन को साफ-सुथरा रखने और देखभाल करने जैसे काम के लिए ठेके पर मजदूरों को रखने पर रोक लगा दी जिनका समुचित नियंत्रण केन्द्र सरकार के पास है। लेकिन सवोच्च न्यायालय ने स्टील आथोरिटी आॅफ इंडिया लि. बनाम नेशनल यूनियन्स आॅफ वाटर फ्रंट वर्कमैन मामले में तकनीकी आधार पर इस अधिसूचना को रद्द कर दिया। बैंक वाले इस फैसले का फायदा उठा रहे हैं। इससे बैंकों को अपना काम आउटसोर्स करने का अधिकार नहीं मिलता। इस फैसले के बाद भी केन्द्र सरकार ने अपने विभिन्न प्रतिष्ठानों में झाडू-पोंछा, सफाई आदि के लिए ठेके पर मजदूरों को रखने से रोकने के लिए समय-समय पर अधिसूचना जारी की। लेकिन हमारे उद्योग में हमारी मांग के बावजूद स्वीपिंग, क्लीनिंग, डस्टिंग, वाचमैन, सुरक्षागार्ड, क्लर्क, चपरासी आदि जैसे काम को जो स्थायी स्वभाव के हैं, आउटसोर्स करने से रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने अभी तक अधिसूचना जारी नहीं की है; और बैंकों में काम अस्थायी नहीं होते जिसके लिए ठेके पर काम कराने या आउटसोर्स करने की जरूरत हो। किसी प्रतिष्ठान में ठेका मजदूरी को नियमित करने तथा स्थायी काम के लिए ठेके पर मजदूर रखने को रोकने के लिए सीएलआरए एक्ट लागू किया गया था।
14. बैंकिंग उद्योग में मालिक सीएलआरए एक्ट के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे हैं। इस कानून के खंड-7 के अनुसार किसी प्रतिष्ठान के मालिक को जहां यह कानून लागू होता है, ठेके पर मजदूर रखने के लिए अपने प्रतिष्ठान को समुचित आथारिटी के यहां पंजीकृत कराना जरूरी है। ठेकेदार को भी अपने को पंजीकृत कराना होगा। यदि इस कानून के अंतर्गत प्रतिष्ठान या ठेकेदार पंजीकृत नहीं है तो ठेके पर मजदूरी कराने पर रोक है। प्रतिष्ठान के पंजीकृत नहीं होने पर ठेका मजदूर उस मुख्य (प्रिंसीपल) मालिक का सीधा मजदूर समझा जायेगा। खंड-7 के अंतर्गत प्रतिष्ठान का पंजीकरण नहीं कराने का प्रभाव यह होगा कि ठेकेदार का मजदूर प्रतिष्ठाान के मालिक का मजदूर समझा जायेगा। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट किया है कि इस कानून के तहत ठेकेदार द्वारा नियुक्त किये गये मजदूरों को नियमित मजदूरों को मिलने वाले वेतन पाने का अधिकार होगा। ठेका मजदूर को इस कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत मिलने वाले कल्याणकारी लाभों से भी वंचित रखा जाता है।
15. सुरक्षा गार्डों को बंदूक मुहैया कराने के मामले में ठेकेदार आम्र्स एक्ट, 1959 और उसके तहत बने आम्र्स रूल, 1962 के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे हैं।
7. आउटसोर्सिंग और ग्राहक
बैंकों में स्थायी स्वभाव के काम में आउटसोर्सिंग मजदूरों तथा ठेका मजदूरों से काम लेना जमाकर्ताओं और बैंक कारोबार के हित में भी नहीं है। ऐसे में जमाकर्ताओं और ग्राहकों के लिए खतरा एवं परेशानी की संभावना रहती है। आउटसोर्सिंग के बाद हमारे उद्योग में वसूली प्रक्रिया में जोर-जबर्दस्ती, ग्राहकों को ब्लैकमेल करने, धोखाधड़ी, सेवा चार्ज और दंडनीय चार्ज अधिक लेने की घटनाएं बढ़ी हैं। ग्राहकों की शिकायतें मुख्यरूप से निजी क्षेत्र बैंकों में, जहां आउटसोर्सिंग एवं ठेके पर बहुत ज्यादा काम होता है, आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा जोर जबर्दस्ती करने, परेशान करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं तथा अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस बारे में बराबर खबरें आ रही हैं। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी आईसीआईआई बैंक को वसूली के लिए अपराधियों को रखने के लिए फटकार लगायी थी।
8. आउटसोर्सिंग के खिलाफ संघर्ष
17. आउटसोर्सिंग के खिलाफ संघर्ष भी शुरू हो गया है। जब आरियंटल बैंक आॅफ कामर्स ने ग्लोबल ट्रस्ट बैंक को खरीदा तो ओरियंटल बैंक आॅफ कामर्स में एआईबीईए एवं एआईबीओए यूनियनों ने आउटसोर्सिंग के खिलाफ संघर्ष किया और संघर्ष के फलस्वरूप पूर्व जीटीबी के आउटसोस्र्ड एवं ठेका मजदूरों को ओबीसी में रखना पड़ा। फेडरेल बैंक में एआईबीईए यूनियन आउटसोर्सिंग का विरोध कर रही है तथा इसके लिए हड़ताल भी करवाती है। आउटसोर्सिंग का विरोध करने के लिए केरल में यूनियन के एक पदाधिकारी को बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी का आदेश वापस लेने के लिए यूनियन संघर्ष कर रही है।
पश्चिम बंगाल में विभिन्न यूनियनों ने खासकर यूबीआई, बैंक आॅफ बड़ौदा, कार्पोरेशन बैंक आदि में आउटसोर्सिंग आॅफ जाॅब के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया और इन बैंकों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। एआईबीईए की राज्य इकाई बीपीबीईए ने आउटसोस्र्ड एवं ठेका मजदूरों की यूनियन बनाने के लिए उन्हें संगठित करना शुरू कर दिया है। यूएफबीयू भी आउटसोर्सिं का विरोध कर रही है।
9. हामरा कर्तव्य
आउटसोर्सिंग के खिलाफ हमें अपना रूख तय करना है तथा सामूहिक कार्रवाई के जरिए जिसमें हड़ताल भी शामिल हैं, इसे रोकना है। हमें निम्नलिखित मांगे करनी चाहिए तथा इसे अत्यंत महत्वपूर्ण काम समझना चाहिए ताकि हम अपने रोजगारों को बचा सकें और रोजगार की सुरक्षा बनाये रखे तथा हमारे उद्योग में आउटसोस्र्ड एवं ठेका मजदूरों का शोषण और उनके साथ होने वाले अन्याय को खत्म किया जा सके।
(ए) भारत सरकार को कंट्रक्ट लेबर (आरएंडए) एक्ट 1970 के खंड-10 के तहत स्वीपर, वाच एंड वार्ड स्टाफ,सब-ओरिडिनेट स्टाफ, क्लर्क आदि नियमित एवं स्थायी रोजगार को ठेका पर देने या आउटसेर्स करने को रोकने के लिए अधिसूचना जारी करना चाहिए।
(बी) 2 जून, 2005 को द्विपक्षीय समझौते में जिन पर सहमति हुई उसके अलावा किसी और जाॅब का आउटसोर्सिंग नहीं हो।
(सी) बैंक कर्मचारियों को ठेके के आधार पर नहीं रखा जाये।
(डी) बैंकों के वे सारे काम जो नियमित एवं स्थायी हैं स्थायी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को सौंपे जाने चाहिए तथा ऐसे काम आउटसोर्सिंग या ठेके पर नहीं कराये जाने चाहिएं।
(ई) बैंकों के वे सारे काम जो नियमित और स्थायी हैं और जिन्हें आउटसोर्सिंग किया गया है या ठेके पर दिया गया है उन्हें तुरन्त स्थायी कर्मचारियों को सौंपा जाना चाहिए।
(एफ) आटसोस्र्ड या ठेका मजदूर जो अभी काम कर रहे हैं उन्हें बैंकों के स्थायी कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले उसी काम के लिए जो वेतन दिये जाते हैं वहीं वेतन उन्हें भी दिया जाना चाहिए तथा उनकी सेवा शर्तें शास्त्री अवार्ड या बाद के अवार्ड में जो संशोधन किये गये या जो समझौते हुए उसके अनुसार निर्धारित होनी चाहिए।
(जी) वर्तमान सभी कंट्रैक्ट और आउटसोस्र्ड कर्मचारियों को नियमित किया जाना चाहिए तथा उन्हें बैंकों के स्थायी कर्मचारियों के रूप में रखा जाना चाहिए।
(एच) आउटसोस्र्ड एवं ठेके पर रखे गये कर्मचारियों को ट्रेड यूनियन के रूप में संगठित किया जाना चाहिए।
आइये, हम आउटसोस्र्ड एवं ठेके पर रखे गये कर्मचरियों के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ और हमारे रोजगार एवं रोजगार सुरक्षा पर हो रहे हमले के खिलाफ अभियान को तेज करें।

राजेन नागर
(लेखक आल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं।)

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