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बुधवार, 28 जुलाई 2010
at 8:56 am | 1 comments | आर. एस. यादव
अमरीका में हर महीने 13 बैंक फेल
दुनिया में मुक्त बाजार और डीरेगुलेशन (विनियंत्रण) का सबसे बड़ा समर्थक है अमरीका-हमारे प्रधानमंत्री का प्रेरणास्रोत अमरीका। और उसके जेबी संगठन हैंः विश्व बैक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठप-जिनके इशारे पर निर्देश से हमारी आर्थिक नीतियां तय होती हैं। जिसका नवीनतम उदाहरण पेट्रो-उत्पादो के मूल्य तय करने के काम को तेल कम्पनियों के हवाले किया जाना है, जिसके कारण डीजल, पेट्रोल, केरोसिन और रसोई गैस के मूल्य बढ़ गये हैं।
विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुदा कोष के इशारे पर हमारे प्रधानमंत्री बैंंिकंग, बीमा, पेंशन-गर्ज कि पूरे वित्त क्षेत्र में तथाकथित सुधारों के लिए बड़े व्याकुल हैं। पर खासकर वामपंथी पार्टियों के विरोध एवं ससंद का अंकगणित अनुकूल न होने के कारण वह इन सुधारों को कर नहीं पाये हैं। पर इन सुधारों के उन हिस्सों को, जिनके लिए संसद में जाने की जरूरत नहीं, वह आगे बढ़ाते जा रहे हैं।
वित्त क्षेत्र में जिन आर्थिक सुधारों के लिए प्रधानमंत्री इतने बेचैन हैं उनका स्वयं अमरीका में क्या नतीजा हुआ है, वह उसे भी देखने को तैयार नहीं। अमरीका वित्त क्षेत्र में जिन नीतियों पर चलता रहा है, उसके फलस्वरूप वह पिछले तीन वर्षों से गंभीर आर्थिक संकट-1929 और 1933 के बीच के महान आर्थिक संकट जैसे संकट से दो-चार है और तमाम कोशिश के बाद उस संकट से निकल नहीं पा रहा है।
जिस अमरीका को प्रधानमंत्री अपना प्रेरणास्रोत समझते हैं और जिन संस्थाओं-विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नीतियों को अपना मार्गदर्शक मानते हैं, उनकी नीतियों के चलते अमरीका के वित्त क्षेत्र की क्या दुर्गति हुई है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि अमरीका में वर्ष 2010 में हर महीने औसतन 13 बैंक फेल हो रहे हैं। इस वर्ष अब तक 90 बैंक डूब चुके हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसा, इस साल मई और जून में कुल 22 बैंकों को बंद करना पड़ा। अप्रैल में 23 बैंक फेल हुए थे। 2010 की पहली तिमाही में 41 बैंक फेल हुए। पिछले वर्ष कुल 140 बैंकों का कारोबार बंद हुआ था। तथाकथित आर्थिक सुधारों और खासकर वित्त क्षेत्र के डीरेगुलेशन की जो नीतियां अमरीका में ही फेल हो चुकी हैं तो क्या भारत में भी उनका वही हश्र नहीं होगा?
- आर. एस. यादव
विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुदा कोष के इशारे पर हमारे प्रधानमंत्री बैंंिकंग, बीमा, पेंशन-गर्ज कि पूरे वित्त क्षेत्र में तथाकथित सुधारों के लिए बड़े व्याकुल हैं। पर खासकर वामपंथी पार्टियों के विरोध एवं ससंद का अंकगणित अनुकूल न होने के कारण वह इन सुधारों को कर नहीं पाये हैं। पर इन सुधारों के उन हिस्सों को, जिनके लिए संसद में जाने की जरूरत नहीं, वह आगे बढ़ाते जा रहे हैं।
वित्त क्षेत्र में जिन आर्थिक सुधारों के लिए प्रधानमंत्री इतने बेचैन हैं उनका स्वयं अमरीका में क्या नतीजा हुआ है, वह उसे भी देखने को तैयार नहीं। अमरीका वित्त क्षेत्र में जिन नीतियों पर चलता रहा है, उसके फलस्वरूप वह पिछले तीन वर्षों से गंभीर आर्थिक संकट-1929 और 1933 के बीच के महान आर्थिक संकट जैसे संकट से दो-चार है और तमाम कोशिश के बाद उस संकट से निकल नहीं पा रहा है।
जिस अमरीका को प्रधानमंत्री अपना प्रेरणास्रोत समझते हैं और जिन संस्थाओं-विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नीतियों को अपना मार्गदर्शक मानते हैं, उनकी नीतियों के चलते अमरीका के वित्त क्षेत्र की क्या दुर्गति हुई है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि अमरीका में वर्ष 2010 में हर महीने औसतन 13 बैंक फेल हो रहे हैं। इस वर्ष अब तक 90 बैंक डूब चुके हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसा, इस साल मई और जून में कुल 22 बैंकों को बंद करना पड़ा। अप्रैल में 23 बैंक फेल हुए थे। 2010 की पहली तिमाही में 41 बैंक फेल हुए। पिछले वर्ष कुल 140 बैंकों का कारोबार बंद हुआ था। तथाकथित आर्थिक सुधारों और खासकर वित्त क्षेत्र के डीरेगुलेशन की जो नीतियां अमरीका में ही फेल हो चुकी हैं तो क्या भारत में भी उनका वही हश्र नहीं होगा?
- आर. एस. यादव
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1 comments:
वहां फेल होने के लिए ही बैंक खोले जाते हैं।
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