फ़ॉलोअर
शनिवार, 31 जुलाई 2010
at 9:25 am | 2 comments | चतुरानन मिश्र
अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन की अनिवार्यता
विश्व के 20 देशों के प्रधानों की जो बैठक अभी कनाडा के टोरेण्टो शहर में हुई उससे उम्मीद की जाती थी कि 2008 से विश्व में जो भारी आर्थिक संक्ट (रिसेशन) आया और जिसमें करोड़ो लोग बेरोजगार हो गये, उनके घर बिक गये, पेन्सन के मूल्य में कटौतियां हुईं, भारी संख्या में आबादी दरिद्र हो गयी जिसमें अकेले चीन में 230 मिलियन और भारत में 3.37 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले आये और यूरोप अभी भारी संकट से गुजर रहा है तथा अमरीका में भारी संख्या में बेरोजगारी चल रही है उस गम्भीर समस्या के ऐसे समाधान पर विचार करेगी जिससे आगे फिर ऐसा संकट नहीं आये। इस पर भी विचार करेगी कि यह संकट वाशिंगटन कनसेनसल को लागू करने और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, विश्व टेªड सेन्टर आदि के जरिये उसे फैलाने जिसमें फ्री टेªड, न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप या व्यापार के संबंध में कोई सरकारी कानून नहीं रखना, बैंक पर भी सरकारी नियम नहीं रखना सिवाय मुद्रा प्रसार रोकने के लिए, पब्लिक सेक्टर का खानगीकरण आदि के कारण हुआ। शुरू में तो इस नीति के कारण भारी विकास हुआ लेकिन बाद में यह भारी संकट आया। इस संकट में गरीब तो और गरीब हो गये लेकिन करोड़पतियों की भारी वृद्धि हुई। न्यूज वीके 28 जून के मुताबिक इस भारी आर्थिक संकट के समय विश्व भर में 98 प्रतिशत, अमरीका में 15 प्रतिशत, चीन में 39 प्रतिशत, सिंगापुर में 35 प्रतिशत करोड़पतियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। भारत में 2005 में 3000 करेाड़पति थे और 2008 में 126756 हो गये। लेकिन 20 देशों के प्रधानों ने ऐसा कुछ नहीं किया। सरकारी खजाने से एक ट्रिलियन से भी ज्यादा ऋण या सहायता उन पूंजीपतियों को दी गयी जिन्होंने यह भारी संकट पैदा किया था। यह सहायता देना जारी रखा जाय इस पर ही हमारे प्रधानमंत्री ने जोर दिया वह न भोपाल हादसा का सवाल उठाया और न अमरीका के प्रेसीडेन्ट से उस पर बात की। अमरीकी राष्ट्रपति ने बैंकों पर और कम्पनियों पर टैक्स लगाने की बात की। उन्होंने अपने देश में मुक्त व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप का कानून बना रहे हैं। लेकिन यह कोई ऐसा बुनियादी परिवर्तन नहीं लायेगा जिससे ऐसा संकट फिर नहीं आये। विश्व विख्यात अर्थशास्त्री जोसेफ स्तीगलीज के मुताबिक वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में ऐसा छोटा संकट आता ही रहता है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “फ्री फॉल” में उन्होंने बताया है कि सन् 1950 और 2008 के बीच विभिन्न रूप में अलग-अलग देशों में 724 बार आर्थिक संकट आये हैं और उसमें अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने सिर्फ मदद नहीं की बल्कि उल्टे गलत सुझाव दिये।
साम्राज्यी शोषण रोकना
ग्लोबलाइजेशन तो रहना ही है और ग्लोबलाईजेशन के समय जो विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के जरिये शोषण होता है उसे रोकने के लिए भारत को नेहरू युग के निर्गुट आन्दोलन की तरह आन्दोलन उठाना चाहिए। जोसेफ स्तलिन्तज साहब ने लिखा है कि डालर को ग्लोबल रिर्जव सिस्टम रखकर अमरीका दूसरे देशों, गरीबों देशों का शून्य या न्यूनतम सूद पर अपने टेªजरी विल्स में डालर रखकर उसका उपयोग करता है। भारत का भी उसमें 36.977 डालर जमा है। इसलिए उनका सुझाव है कि गरीब देशों के इस शोषण को रोकने के लिए एक नया ग्लोबल रिर्जव सिस्टम बनाने की सख्त जरूरत है जिससे यह शोषण रूके। हमारे प्रधानमंत्री प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं लेकिन इस पर चुप हैं।
स्तगलिन्तज साहब का यह भी सुझाव है कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक का ऐसा सुधार हो जिससे गरीब देशों को समय पर उचित सहायता मिले।छोटे-छोटे कारखानों या कम्पनियों को ज्यादा सहायता मिलनी चाहिये जिससे ज्याद लोगों को काम मिले।
दुनिया के कुछ देश दूसरे देशों के भ्रष्टाचार वाले धन को अपने बैंकों में रखते हैं इसमंे लंदन और अमरीका भी है। इसे रोकने के लिए कारगार कानून बनाने की जरूरत हैं। ऐसे ही कुछ देश हैं जिसके जरिये बड़े पैमाने पर कर वंचना बहुराष्ट्रीय भी करते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय रोविन टैक्स का बहुत दिनों से आया हुआ है। अब तो जरूरत है अन्तरदेशीय कम्पनियों पर एक विशेष गरीबी दूर करने के लिए कर लगाया जाय।
जब तक ग्लोबल कोआरडिनेटेड उत्साहवर्द्धक व्यवस्था नहीं होगा और ग्लोबल कोआरडिनेटेड शासन नहीं होगा तब तक पूंजीवादी आर्थिक संकट को रोका नहीं जा सकता है।
प्रकृत का जो दोहन चल रहा है जिस कारण निकट दशाब्दियों में ही मानव जाति को विनाश का सामना करना होगा उसे रोकने के लिए भी अन्तर्राष्ट्रीय कड़ा कानून चाहिए जिससे बड़े-बड़े धनी देशों पर भी नियंत्रण हो।
अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन की अनिवार्यता
अगर ऐसा विश्वव्यापी जोरदार आन्दोलन नहीं होगा तो इस बार का भयानक आर्थिक संकट भी जैसे तैसे बातचीत में ही बीत जायेगा फिर दुनियां जैसी की तैसी गरीबों के भूखे मरने की बनी रहेगी। दक्षिण अमरीका का अमरीका विरोधी आन्दोलन भी ऐसी नयी व्यवस्था नहीं ला सका जिसमें बेरोजगारी नहीं हो, सभी को मकान हो, सभी बच्चे पढ़े, बिना इलाज कोई मरे नहीं, गरीबी नहीं रहे, सभी सम्मानजनक और आधुनिक स्तर के जीवन बिता सकें।
समेकित विकास के आधार
अभी विश्व भर में इन्क्लयूसिव ग्रोथ की बात भी चल रहा है, लेकिन इन्क्लयूसिव ग्रोथ छिटपूट कुछ कल्याणकारी कदम उठाना नहीं है। स्वीडेन में उसके जीडीपी का 48-49 प्रतिशत टैक्स पूंजीपति देते हैं और स्वीडेन अपनी जीडीपी का साढ़े तीन प्रशित विभिन्न विषयों के अनुसंधान पर लगाता है जिससे वहां कल कारखाने, दवा आदि आधुनिकतम तकनीक के हैं। वहां विश्व का सबसे ऊांचा जीवन स्तर है। भारत को कुछ ऐसा करना चाहिए जिसमें प्रत्येक नागरिक को:
1. ऐसा उचित अवसर मिले जिसमें आमदनी के बहुत तरीके उपलब्ध हों।
2. योग्यता: ऐसी व्यवस्था हो जिसमें नागरिक योग्यता हासिल करें जिसमें वह नये-नये अवसरों का उपयोग कर सके।
3. सामाजिक सुरक्षा: अस्थायी रूप में बेराजगार होने पर भी सामाजिक सुरक्षा रहे।
4. पिछडे़ क्षेत्रों के लिए विकास के लिए विशेष प्रोग्राम रहे।
5. खानगी और राजकीय सभी को यह सुरक्षा गारन्टी करना हो।
तभी सही में समेकित विकास हो सकेगा।विशाल गरीब आबादी में एक नयी जागृति लाना अनिवार्य हो गया है। सिर्फ एक वोट गिराना ही नहीं बल्कि सांसदों-विधायकों पर लगातार जन-दबाव। चुने हुये सांसदों-विधायकों को गलती करने पर वापस बुलाने का अध् िाकार भी हो। नौकरशाही पर ऐसा जन दबाव हो तभी गरीबी दूर हो सकेगी।
- चतुरानन मिश्र
साम्राज्यी शोषण रोकना
ग्लोबलाइजेशन तो रहना ही है और ग्लोबलाईजेशन के समय जो विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के जरिये शोषण होता है उसे रोकने के लिए भारत को नेहरू युग के निर्गुट आन्दोलन की तरह आन्दोलन उठाना चाहिए। जोसेफ स्तलिन्तज साहब ने लिखा है कि डालर को ग्लोबल रिर्जव सिस्टम रखकर अमरीका दूसरे देशों, गरीबों देशों का शून्य या न्यूनतम सूद पर अपने टेªजरी विल्स में डालर रखकर उसका उपयोग करता है। भारत का भी उसमें 36.977 डालर जमा है। इसलिए उनका सुझाव है कि गरीब देशों के इस शोषण को रोकने के लिए एक नया ग्लोबल रिर्जव सिस्टम बनाने की सख्त जरूरत है जिससे यह शोषण रूके। हमारे प्रधानमंत्री प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं लेकिन इस पर चुप हैं।
स्तगलिन्तज साहब का यह भी सुझाव है कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक का ऐसा सुधार हो जिससे गरीब देशों को समय पर उचित सहायता मिले।छोटे-छोटे कारखानों या कम्पनियों को ज्यादा सहायता मिलनी चाहिये जिससे ज्याद लोगों को काम मिले।
दुनिया के कुछ देश दूसरे देशों के भ्रष्टाचार वाले धन को अपने बैंकों में रखते हैं इसमंे लंदन और अमरीका भी है। इसे रोकने के लिए कारगार कानून बनाने की जरूरत हैं। ऐसे ही कुछ देश हैं जिसके जरिये बड़े पैमाने पर कर वंचना बहुराष्ट्रीय भी करते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय रोविन टैक्स का बहुत दिनों से आया हुआ है। अब तो जरूरत है अन्तरदेशीय कम्पनियों पर एक विशेष गरीबी दूर करने के लिए कर लगाया जाय।
जब तक ग्लोबल कोआरडिनेटेड उत्साहवर्द्धक व्यवस्था नहीं होगा और ग्लोबल कोआरडिनेटेड शासन नहीं होगा तब तक पूंजीवादी आर्थिक संकट को रोका नहीं जा सकता है।
प्रकृत का जो दोहन चल रहा है जिस कारण निकट दशाब्दियों में ही मानव जाति को विनाश का सामना करना होगा उसे रोकने के लिए भी अन्तर्राष्ट्रीय कड़ा कानून चाहिए जिससे बड़े-बड़े धनी देशों पर भी नियंत्रण हो।
अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन की अनिवार्यता
अगर ऐसा विश्वव्यापी जोरदार आन्दोलन नहीं होगा तो इस बार का भयानक आर्थिक संकट भी जैसे तैसे बातचीत में ही बीत जायेगा फिर दुनियां जैसी की तैसी गरीबों के भूखे मरने की बनी रहेगी। दक्षिण अमरीका का अमरीका विरोधी आन्दोलन भी ऐसी नयी व्यवस्था नहीं ला सका जिसमें बेरोजगारी नहीं हो, सभी को मकान हो, सभी बच्चे पढ़े, बिना इलाज कोई मरे नहीं, गरीबी नहीं रहे, सभी सम्मानजनक और आधुनिक स्तर के जीवन बिता सकें।
समेकित विकास के आधार
अभी विश्व भर में इन्क्लयूसिव ग्रोथ की बात भी चल रहा है, लेकिन इन्क्लयूसिव ग्रोथ छिटपूट कुछ कल्याणकारी कदम उठाना नहीं है। स्वीडेन में उसके जीडीपी का 48-49 प्रतिशत टैक्स पूंजीपति देते हैं और स्वीडेन अपनी जीडीपी का साढ़े तीन प्रशित विभिन्न विषयों के अनुसंधान पर लगाता है जिससे वहां कल कारखाने, दवा आदि आधुनिकतम तकनीक के हैं। वहां विश्व का सबसे ऊांचा जीवन स्तर है। भारत को कुछ ऐसा करना चाहिए जिसमें प्रत्येक नागरिक को:
1. ऐसा उचित अवसर मिले जिसमें आमदनी के बहुत तरीके उपलब्ध हों।
2. योग्यता: ऐसी व्यवस्था हो जिसमें नागरिक योग्यता हासिल करें जिसमें वह नये-नये अवसरों का उपयोग कर सके।
3. सामाजिक सुरक्षा: अस्थायी रूप में बेराजगार होने पर भी सामाजिक सुरक्षा रहे।
4. पिछडे़ क्षेत्रों के लिए विकास के लिए विशेष प्रोग्राम रहे।
5. खानगी और राजकीय सभी को यह सुरक्षा गारन्टी करना हो।
तभी सही में समेकित विकास हो सकेगा।विशाल गरीब आबादी में एक नयी जागृति लाना अनिवार्य हो गया है। सिर्फ एक वोट गिराना ही नहीं बल्कि सांसदों-विधायकों पर लगातार जन-दबाव। चुने हुये सांसदों-विधायकों को गलती करने पर वापस बुलाने का अध् िाकार भी हो। नौकरशाही पर ऐसा जन दबाव हो तभी गरीबी दूर हो सकेगी।
- चतुरानन मिश्र
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
The question of food security is being hotly discussed among wide circles of people. A series of national and international conferences, sem...
-
HUNDRED YEARS OF INTERNATIONAL WOMEN'S DAY (8TH MARCH) A.B. Bardhan Eighth March, 2010 marks the centenary of the International Women...
-
Something akin to that has indeed occurred in the last few days. Sensex figure has plunged precipitately shedding more than a couple of ...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
अयोध्या- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है , समाधान अभी बाकी है सर्वोच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ द्वारा राम जन्मभूमि- बाबरी मस्...
-
( 5 फरबरी 2019 को जिला मुख्यालयों पर होने वाले आंदोलन के पर्चे का प्रारूप ) झूठी नाकारा और झांसेबाज़ सरकार को जगाने को 5 फरबरी 2019 को...
-
(कामरेड अर्धेन्दु भूषण बर्धन) हाल के दिनों में भारत में माओवादी काफी चर्चा में रहें हैं। लालगढ़ और झारखंड की सीमा से लगे पश्चिमी बंगाल के मिद...
-
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मण्डल ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा बल SSF के गठन को जनतंत्र ...
-
लखनऊ- 13 अगस्त- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कमेटी ने गोरखपुर की ह्रदय विदारक घटना जिसमें कि अब तक 60 से अधिक बच्चों...
2 comments:
तुम्हारी सुनता कौन है?
भा रत में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है। दण्डी संन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को हीं भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया। स्वामीजी ने नारा दिया था-
जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा ,अब सो कानून बनायेगा,
ये भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वहीं चलायेगा।
ch.sanjeev tyagi (kutabpur waley)
09457392445,09760637861
एक टिप्पणी भेजें