उत्तर प्रदेश सरकार/लखनऊ विश्वविद्यालय
राजभवन
लखनऊ
महामहिम राज्यपाल/कुलाधिपति महोदय,
हम आपका ध्यान लखनऊ विश्वविद्यालय में व्याप्त चरम शैक्षिक अराजकता की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए हम कुछ उदाहरण दे रहे हैं।
- समाचार-पत्रों में लगातार प्रकाशित हो रहे समाचारों से आपको आभास हो चुका होगा कि लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में किस हद तक गैर-जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया जा रहा है। छात्रों से उत्तर पुस्तिकाओं को दिखाने के लिये प्रति पुस्तिका पांच सौ रूपये वसूला जा रहा है। छात्र उसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। राज्य सूचना आयोग के निर्देशों और न्यायालय के आदेशों के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें दिखाना नहीं चाहता।
- प्रमाणपत्रों, अंकतालिकाओं तथा बैक पेपर के लिए ली जाने वाली फीस को इतना अधिक बढ़ा दिया गया है कि 80-90 प्रतिशत छात्र उसे अदा करने की क्षमता नहीं रखते। उदाहरण के तौर पर एक बैक पेपर के लिए पांच सौ से लेकर एक हजार रूपये तक की फीस ली जाती है। यह छात्रों की निर्मम लूट है।
- स्ववित्तपोषित कोर्सों के लिए अत्यधिक फीस वसूलने के बावजूद इन कोर्सों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मानकों के मुताबिक व्यवस्था नहीं की जाती। उदाहरण के तौर पर बी.ए. में फिजिकल एजुकेशन को एक विषय के रूप में लेने वाले छात्रों से रू. 10,000/- प्रति सेमेस्टर अतिरिक्त वसूला जाता है (अन्य विश्वविद्यालयों तथा इसी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों में यह फीस रू. 3,000 सालाना से भी कम है) जबकि इसकी शिक्षा देने के लिए आवश्यक व्यवस्था ही विश्वविद्यालय में नहीं है।
- इसी प्रकार पत्रकारिता के लिए तीस हजार रूपये लिये जाते हैं जबकि समसामयिक पत्रकारिता प्रशिक्षण के लिए आवश्यक उपकरण विश्वविद्यालय में उपलब्ध ही नहीं हैं।
- ऐकेडेमिक टूअर्स के नाम पर छात्रों से अनाप-शनाप पैसा वसूल कर हजम कर लिया जाता है। छात्रों को टूर पर भेजा ही नहीं जाता है।
- छात्रवृत्ति एवं फीस रिफंड में व्यापक धांधलियां की जा रहीं हैं। बड़ी संख्या में छात्रों को इसका भुगतान मिल ही नहीं पाता है।
- माइग्रेशन, ट्रांसफर सर्टीफिकेट, डिग्री एवं अंक तालिकाओं की दूसरी प्रति प्राप्त करने को भारी फीस वसूल की जा रही है तथा उनमें अंकित त्रुटि में सुधार कराने के लिये अलग से फीस वसूली जाती है।
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं ;मगजतं बनततपबनसंत ंबजपअपजपमेद्ध यानी खेल-कूद, वाद-विवाद आदि में छात्रों को प्रोत्साहित करने के बजाय उन्हें हर प्रकार से हतोत्साहित किया जाता है। प्रतिभाओं के कैरियर की किस तरह हत्या की जाती है, वह यहां के शिक्षकों की एक लॉबी से सीखा जा सकता है।
- विश्वविद्यालय के अंदर खिलाड़ियों के लिए किसी कोच की व्यवस्था नहीं की जाती है। निरंतर चलने वाली अंतर-संकाय प्रतियोगिताओं को बिलकुल बन्द कर दिया गया है। इन प्रतियोगिताओं में परफार्मेन्स के बजाय किसी को भी मनमाने तरीके से ऐन मौके पर टीमों में रख लिया जाता है।
- टीम के चयन के लिए नियमानुसार किसी एनआईएस कोच को बुलाना चाहिए परन्तु कोई भी खड़ा होकर प्रतियोगिता के दो-तीन दिन पहले टीम चुन लेता है। अभी 30 सितम्बर को जालंघर में आयोजित हो रही राष्ट्रीय फुटबाल प्रतियोगिता के लिए अकस्मात 25 सितम्बर को छात्रों को ट्रायल पर बुलाया गया और ट्रायल के पहले उनसे पचासी-पचासी रूपये वसूले गये। टीम को चयनित कर बिना रिजर्वेशन के 28 सितम्बर को जालंधर जाने को कह दिया गया। अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि ट्रेन की भीड़ में घुस कर जालंधर जाने वाले थके हुए खिलाड़ी 30 सितम्बर को मैच में कैसा खेलेंगे?
- चयनित छात्रों को किट के नाम पर चार-चार सौ रूपये बांट कर कहा जाता है कि कच्छा-बनियान खरीद लो। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति अंदाज लगा सकता है कि बिना विश्वविद्यालय के ”लोगो“ के कोई टीम किसी प्रतियोगिता के उद्घाटन मार्च पास्ट में कच्छा-बनियान पहन कर उतरेगी तो कितनी हतोत्साहित होगी।
- इस प्रकार खेल-कूद के नाम से सभी छात्रों से ली जा रही फीस तथा सरकार एवं यूजीसी से प्राप्त होने वाली अनुदान राशियों को गबन कर लिया जाता है।
- चूंकि गरीब छात्र बार-बार न्यायालय का दरवाजा खटखटाने लायक पैसे की व्यवस्था नहीं कर सकते, अतएव न्यायालयों के आदेशों की अवहेलना आम बात हो गयी है।
राज्य एवं विश्वविद्यालय के संवैधानिक मुखिया होने के साथ-साथ आप विश्वविद्यालय के छात्रों के स्थानीय अभिवावक भी हैं। अतएव हम आपसे अनुरोध करते हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों के इस शोषण के मामले में आप हस्तक्षेप करने का कष्ट करें और सम्पूर्ण मामलों की जांच अपने कार्यालय के किसी उच्चाधिकारी अथवा उच्चाधिकारियों की टीम से करवाने का कष्ट कीजिए जिससे छात्रों को इन संकटों से निजात मिल सके।
हमें विश्वास है कि आपके हस्तक्षेप से लखनऊ विश्वविद्यालय और उससे सम्बद्ध महाविद्यालयों के छात्रों को शोषण से मुक्ति मिलेगी और यहां का शैक्षणिक वातावरण सुधरेगा।
सादर,
(डा. गिरीश)
राज्य सचिव