भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शनिवार, 8 दिसंबर 2012

दो मौतों पर कतारबद्ध पूंजीवादी राजनीतिज्ञ और मीडिया

कुछ ही दिनों पहले की बात है। दो व्यक्तियों की मौत होती है। एक व्यक्ति था - मुम्बई का बाल ठाकरे तो दूसरा था दो दशकों में खाकपति से अरबपति बनने वाला पोंटी चढ्ढा। एक मरा था अपनी उम्र के कारण स्वाभाविक मौत से तो दूसरे की हत्या हुई थी। दोनों ऐसे व्यक्तित्व नहीं थे जिनसे देश के जनमानस का कोई जुड़ाव रहा हो लेकिन उस दिन इलेक्ट्रानिक चैनलों के पास अन्य कोई खबर नहीं थी जो दोनों के ऊंचे कद के बारे में धारा प्रवाह प्रवचन दे रहे थे तो दूसरे दिन के अखबारों के पन्ने उनसे भरे हुए थे। यह तो था मीडिया का चरित्र तो दूसरी ओर देश के तमाम बड़े राजनीतिज्ञ इन दोनों को भरे गले से श्रद्धांजलि दे रहे थे। आश्चर्य हो रहा था इस गिरावट पर, हम कहां से कहां पहुंच गये हैं।
दहशत में मुम्बई बन्द रही क्योंकि वहां बाल ठाकरे के समर्थक कम उनसे आतंकित लोगों की संख्या ज्यादा है। कुछ लोग उन्हें बिहारी मानते हैं जो अन्य सामान्य भारतीयों की तरह बिहार से आकर रोजी-रोटी के लिए मुम्बई में बस गया था। शुरूआती दौर में वह एक स्ट्रग्लिंग कार्टूनिस्ट था। फिर वह बतौर कांग्रेसियों एवं पूंजीपतियों के एजेंट, वामपंथी ट्रेड यूनियनों को तोड़ने के लिए हिंसा के कारण चर्चा में आया था। इस दौर में वामपंथी ट्रेड यूनियनों पर ठाकरे और उसके समर्थकों ने हिंसक हमले किये थे। कामरेड कृष्णा देसाई की हत्या इन्हीं हिंसक घटनाओं के बीच में हुई थी। इसी दौर में मराठियों के रोजगार का प्रश्न उठाकर दक्षिण भारतीयों का विरोध शुरू किया, फिर मुम्बई में गुजरातियों का और अंत में उसने सभी गैर मराठियों पर हमले शुरू कर दिये। अंततः वह हिन्दुत्व के रथ पर सवार हो गया, अयोध्या के विवादित ढांचे को शिव सैनिकों द्वारा गिराये जाने का दावा करते हुए उसने कहा था कि उसे उन पर गर्व है। 1992-93 में मुम्बई में हुये दंगों में उसने जम कर हिस्सेदारी की। उसके भाषण और उसका लेखन हमेशा नागरिकों के मध्य घृणा फैलाता रहा परन्तु कभी भी कांग्रेसी और एनसीपी की सरकारों ने उसके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। एक बार चुनाव आयोग ने जरूर उसे 6 सालों के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया था। वह मराठी दलितों के खिलाफ भी काम करता रहा और उसे मंडल आयोग तथा दलित महत्वाकांक्षाओं का प्रखर विरोधी माना जाता रहा। अम्बेडकर की एक पुस्तक का महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशन करने का उसने विरोध किया और शिव सैनिकों ने दलितों पर जम कर हमले किये थे।
उसके बाद एक और घटना घटी। मुम्बई की बंदी पर एक बालिका ने किसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपने विचार लिख दिये और एक दूसरी बालिका ने उस विचार का समर्थन कर दिया। दोनों को पुलिस पकड़ कर थाने ले गयी और शिव सैनिकों ने एक के चाचा के अस्पताल को तहस-नहस कर दिया। देशव्यापी प्रक्रिया होने पर दोनों बालिकाओं को छोड़ दिया गया परन्तु उनके गिरफ्तार किये जाने के तथ्य ने एक बार फिर बाल ठाकरे और कांग्रेस के मध्य दुरभिसंधि की याद जरूर दिला दी।
 जहां तक पोंटी चढ्ढा का सवाल है, कहा जाता है कि दो दशक पहले वह एक देशी शराब के ठेके के सामने मछलियां तल कर बेचता था परन्तु दो दशकों में वह अथाह सम्पत्ति का मालिक बन गया। कैसे का जवाब तो नहीं दिया जा सकता परन्तु कहा जाता है कि उसके कारोबार में तमाम राजनीतिज्ञों की गलत कमाई का पैसा लगा हुआ था। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में शराब की आपूर्ति पर उसका एकाधिकार कायम हो गया था। वह कई मल्टीप्लेक्स एवं मॉल्स का मालिका हो गया था। वह मुलायम सिंह और मायावती का चहेता माना जाता था। मायावती ने उसे चीनी निगम की कई मिलों की बेशकीमती सम्पत्तियों को कौड़ियों के भाव दे दिया था। उसकी मौत पर शोक संतप्त होने वालों में मुलायम सिंह और मायावती के अलावा उत्तराखंड के कांग्रेसी एवं भाजपाई मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं दिल्ली के बड़े-बड़े राजनेता शामिल थे। इनमें से तमाम ने उसके अंतिम संस्कार में तो कईयों ने उसके घर पर बाद में होने वाले कर्मकांडों में शिरकत भी की।
यह दोनों मौतें ऐसी नहीं थीं कि उन पर कुछ लिखा जाये परन्तु उनकी मौतों पर कतारबद्ध हुये मीडिया और राजनीतिज्ञों ने एक बार फिर भारतीय राजनीति की उस गिरावट की ओर संकेत कर दिया है, जिस पर देश के हर नागरिक को चिन्तित होना चाहिए। इस गिरावट को रोकने का काम केवल जनता कर सकती है। कम से कम राजनीतिज्ञों पर नकेल कसने का काम उसका है।
- प्रदीप तिवारी 22.11.2012
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भाकपा चलायेगी - ”प्रदेश सरकार वायदा निभाओ“ अभियान

लखनऊ 8 दिसम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी गन्ना मूल्य निर्धारण तथा किसानों के कर्जे माफ करने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के साथ की गयी धोखाधड़ी के खिलाफ आन्दोलन छेड़ेगी। उक्त आशय का निर्णय आज यहां सम्पन्न भाकपा की राज्य कार्यकारिणी बैठक में लिया गया।
निर्णयों के सम्बंध में जानकारी देते हुए भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने गन्ने के जो मूल्य निर्धारित किये हैं, वे बेहद कम हैं। आज जबकि खाद, डीजल, कीटनाशक, बीज आदि सभी के दाम काफी बढ़ गये हैं और चीनी भी 40 रूपये किलो की दर से बिक रही है, ऐसे में गन्ने की कीमत कम से कम रू. 350.00 प्रति क्विंटल होनी चाहिए। भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने इस बात पर भी गहरा रोष व्यक्त किया कि अपने सम्पूर्ण चुनावी अभियान में सपा ने किसानों के पचास हजार रूपये के कर्जों की माफी की घोषणा की थी लेकिन केवल एक वित्तीय संस्थान का कर्ज भी काफी बंदिशों के साथ माफ करना घोषित किया गया है जबकि अधिकतर किसान ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ के जरिये राष्ट्रीयकृत बैंकों, सहकारी बैंकों एवं ग्रामीण बैंकों से कर्ज लेते हैं। प्रदेश के लगभग आठ करोड़ किसानों ने यही कर्जा ले रखा है जिसकी कोई माफी नहीं की गयी है। धान के खरीद केन्द्रों पर भी बेहद धांधलेबाजी है। नहरों में पानी आ नहीं रहा और बिजली की सप्लाई गांवों को जा नहीं रही। इन सबके चलते किसान बेहद परेशान है।
भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने उपर्युक्त सभी सवालों को केन्द्रीय मुद्दा बनाते हुए 21 दिसम्बर से समूचे उत्तर प्रदेश में ”उत्तर प्रदेश सरकार वायदा निभाओ“ अभियान चलाने तथा 3 जनवरी 2013 को इन्हीं सवालों पर जिला केन्द्रों पर जुझारू धरने-प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है।
इसके साथ ही खाद्य सुरक्षा के सवाल पर - हर परिवार को हर महीने 35 किलो अनाज 2 रूपये प्रति किलो की दर पर उपलब्ध कराने की कानूनी गारंटी तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को वृहत्तर और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के सवाल पर 21 दिसम्बर से ही हस्ताक्षर अभियान प्रारम्भ करने का निर्णय भी लिया है। केन्द्रीय आह्वान पर होने वाले इस कार्यक्रम में भाकपा उत्तर प्रदेश में 10 लाख हस्ताक्षर जुटायेगी। इसके लिए भाकपा के कार्यकर्ता गांव-गांव और घर-चौपाल जायेंगे तथा स्टेशनों, बाजारों, हाटों, चट्टियों, सरकारी दफ्तरों, बैंकों और बस अड्डों के सामने शिविर लगा करके हस्ताक्षर करायेंगे। इसके अलावा एफडीआई के सवाल पर सपा, बसपा और कांग्रेस के रवैये को जनता के बीच उजागर किया जायेगा। भाकपा इस बात को भी जनता के बीच रखेगी कि भाजपा की साम्प्रदायिक एवं संकीर्ण नीतियां और विपक्षी दलों की इन नीतियों पर भाजपा से दूरी बनाने के लिए बहानेबाजी आर्थिक सवालों पर विपक्ष की एकता में बाधक बन रही हैं। इसके लिए विचार गोष्ठियां, सभायें एवं नुक्कड़ सभायें आयोजित की जायेंगी।
भाकपा की जिला इकाईयों द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये सरकारी योजनाओं को लागू करने में बरती जा रही उदासीनता के खिलाफ 10 दिसम्बर को जिला केन्द्रों पर प्रदर्शन किया जायेगा।
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