फ़ॉलोअर
सोमवार, 13 अप्रैल 2015
at 10:54 am | 0 comments | जया मेहता
भागो-भागो, विकास आया, पहले से तेज आया
वित्त मंत्री द्वारा हर वर्ष बजट पेष करना सरकार और मीडिया के लिए एक वार्षिकोत्सव जैसा होता है। बजट के आँकड़ों और घोषणाओं के साथ-साथ सेंसेक्स का उतार-चढ़ाव नाटकीय ढंग से दिखाया जाता है। राजनेताओं से उनके रुख को जाना जाता है। कॉर्पोरेट घरानों की नुमाइंदगी करने वाले लोग और अर्थषास्त्री स्टूडियो में आकर अपना विषेषज्ञ विष्लेषण देते हैं। मीडिया रिपोर्टर बीच-बीच में आम लोगों से बजट पर उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं। गृहणियों व महिलाओं से और रास्ते चलते युवाओं से भी कुछ सवाल पूछे जाते हैं। ज़ाहिर है कि सरकार और सरकार के हिमायती बजट की तारीफ़ करते हैं और विपक्षी दलों के लोग और सरकार विरोधी सोच से प्रभावित लोग बजट को और कुछ नहीं, बस गलतियों का पुलिंदा भर मानते हैं।
इस बार भी सरकार का कहना है कि मोदी का (माफ़ कीजिए, अरुण जेटली का) वर्ष 2015-16 का बजट बजट देष की अर्थ व्यवस्था का कायाकल्प कर देगा। वहीं काँग्रेस सरकार में वित्तमंत्री रहे चिदाम्बरम का कहना है कि न तो सरकार ने इस बजट में राजकोषीय और वित्तीय संतुलन पर ध्यान दिया है और न ही पुनर्वितरण संबंधी कोई कदम उठाये हैं कि जिनसे ग़रीब तबक़ों को कुछ तो हासिल हो।
इस सारे उत्सव को देखकर कोई अगर यह सोचे कि बजट देष की आर्थिक नीति की दिषा तय करता है तो ये उसका भोलापन ही कहा जाएगा। बजट केवल सरकार द्वारा चुनी गई आर्थिक नीति पर मुहर लगाता है। वो तय तो पहले ही की जा चुकी होती है। मोदी सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ का आह्वान, बीमा और ज़मीन अधिग्रहण के अध्यादेष और ऐसे तमाम आदेष स्पष्ट संकेत देते हैं कि सरकार की प्रतिबद्धता देषी और विदेषी पूँजी के मुनाफ़े के रास्ते को आसान और सुविधाजनक बनाना है। अरुण जेटली के शब्दों में कहें तो, ‘कुछ तो फूल खिलाए हमने, और कुछ फूल खिलाने हैं।’ देष की ग़रीब जनता की बढ़ती हुई बदहाली से सरकार का कोई ख़ास सरोकार नहीं है।
वर्ष 1991 से हिंदुस्तान में नई आर्थिक नीति अपनाने के बाद से प्रत्येक वर्ष के बजट का केन्द्र बिंदु वित्तीय घाटे को सीमा में बाँधे रखने का रहता है। राजग-1 के कार्यकाल के दौरान वित्तमंत्री यषवंत सिन्हा ने ‘राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन’ संबंधी विधेयक पेष किया था जिसे 2003 में बाकायदा कानून बना दिया गया। उक्त विधेयक का मकसद राजकोषीय अनुषासन को संस्थागत रूप देना था। इस कानून में कुछ समयबद्ध लक्ष्य तय किये गए। एक लक्ष्य था 2008 तक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 प्रतिषत तक ले आना और दूसरा लक्ष्य था राजस्व घाटे को शून्य पर ले आना।
बहरहाल 2007-8 में वैष्विक वित्तीय संकट से मंदी का खतरा सारी दुनिया पर मंडराया। तब दुनियाभर के देषों ने ‘कीन्सियन’ नसीहत के अनुसार राजकोषीय घाटे से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का नुस्खा अपनाया। हिंदुस्तान में भी मंदी का ख़तरा सामने देख 2003 में बनाये गए क़ानून के सारे लक्ष्य भुला दिए गए और 2008-9 और 2009-10 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.9 और 6.5 प्रतिषत के स्तर तक पहुँच गया।
अब चिदांबरम कह रहे हैं कि 2008-9 और 2009-10 में जो खर्चीली राजकोषीय नीतियाँ अपनायी गईं, वे ही महँगाई का और इस तरह काँग्रेस नेतश्त्व वाली संप्रग सरकार के चुनाव हारने का कारण बनीं। दरअसल राजकोषीय घाटे का महँगाई या भुगतान संतुलन के संकट के साथ सीधा संबंध स्थापित करना सही नहीं है। लेकिन नवउदारवाद के साँचे में बार-बार यही दुहाई देकर तीसरी दुनिया की राजकोषीय स्वतंत्रता पर यह अंकुष लगाया जा रहा है कि अगर किसी देष को उसकी जनता के लिए कुछ कल्याणकारी काम शुरू करने के लिए खर्च करना की ज़रूरत है तो भी वह देष इस पर खर्च न कर सके। वस्तुतः यह मेट्रोपोलिटन वित्तीय पूँजी का तीसरी दुनिया के व योरप के कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले मुल्कों की आर्थिक संप्रभुता पर सीधा हमला है। जब भी कोई देष व्यापार या कर्ज के संकट में होता है तो उसे मदद करने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौतों की ये शर्त होती है कि वह पहले अपने देष में ख़र्च कम करे या तथाकथित ‘ऑस्टेरिटी मेजर्स’ अपनाये जैसा अभी ग्रीस में हुआ। इसका सीधा आषय है कि अगर आप अपने राजकोषीय घाटे को अपने देष की जनता की ज़रूरत के मुताबिक कम या ज़्यादा करना चाहते हैं तो ये अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी को चुनौती देना है। और ये काम न तो संप्रग के बस का था और न ही राजग के बस का है। इसलिए राजकोषीय घाटे को पटरी पर लाना, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी चाहती है, हमारी सरकारों की मजबूरी है। बस यही हमारे वित्तमंत्रियों की योग्यता का पैमाना है। अरुण जेटली की उपलब्धि यह है कि वे पिछले साल के 4.1 प्रतिषत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में समर्थ हैं। उनका वादा है कि इस वर्ष का राजकोषीय घाटा 3.9 प्रतिषत रहेगा और अगले तीन सालों में यह कम होकर 3 प्रतिषत हो जाएगा।
पिछले साल के 4.1 प्रतिषत के लक्ष्य को कायम करने के लिए जो कवायद की गई उसे नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। पिछले वर्ष के बजट में जो अनुमानित आय करों से और सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेष से बतायी गई, वो वास्तविकता से कहीं ज़्यादा थी। असल में आय अनुमान से काफ़ी कम हुई और राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए ये ज़रूरी था कि ख़र्च को काफ़ी कम किया जाए। यहाँ ये जानना ज़रूरी है कि कुछ ख़र्चों को कम करने का अख़्तियार वित्तमंत्री के वष में भी नहीं होता मसलन ब्याज भुगतान या रक्षा बजट। ये करने ही होते हैं। जो कम किया जा सकता है, वो सामाजिक क्षेत्र पर होने वाला व्यय ही है।
पिछले वर्ष के 4.1 प्रतिषत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए मंत्रालयों के केन्द्रीय योजना के बजट समर्थन में 20 से 50 प्रतिषत तक की कमी की गई। इनमें स्वास्थ्य मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय प्रमुख हैं। इस वर्ष के बजट में ये किस्सा दोहराया जाएगा कि नहीं, ये तो अगले ही साल पता चलेगा लेकिन 3.9 प्रतिषत का लक्ष्य तय करते समय अरुण जेटली ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि आय और व्यय, दोनों ही दृष्टियों से कॉर्पोरेट सेक्टर और अमीर तबक़े को फायदा हासिल हो। टैक्स से होने वाली आमदनी बढ़ाने के लिए उन्होंने सर्विस टैक्स बढ़ा दिया जिससे रुपये 23383 करोड़ का राजस्व मिलेगा। इसका अपेक्षाकृत अधिक भार ग़रीब तबक़े पर पड़ेगा। दूसरी तरफ़ कॉर्पोरेट टैक्स की दर 30 प्रतिषत से कम करके 25 प्रतिषत कर दी गई है और संपत्तिकर हटा दिया गया है। इससे राजस्व की आमदनी में रुपये 8315 करोड़ की कमी आएगी।
जहाँ तक व्यय का सवाल है, उसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए भारी वश्द्धि की गई है। इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण का अर्थ कोई गाँव व ग़रीबों के लिए सुविधाजनक जीवन स्थितियों का निर्माण नहीं, बल्कि एक्सप्रेस हाइवे, आधुनिक एयरपोर्ट, आधुनिक सूचना-संचार सुविधाएँ और कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए अन्य सुविधाएँ बढ़ाना ही है। मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कोषिष की थी कि देष के इस इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास पब्लिक प्राइवेट पार्टनरषिप के तहत हो। मनमोहन-मोंटेक मॉडल से प्राइवेट और कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए बनी जगह में मुनाफ़े की आस में तमाम कंपनियाँ इस क्षेत्र में दाख़िल हो गईं जिन्हें सार्वजनिक बैंकों से सस्ती दरों पर भारी-भरकम कर्ज मुहैया कराया गया। नतीजा ये है कि अब बैंकों के पास नॉन परफॉर्मिंग असेट्स का अंबार लग गया है। जेटली जी ने इस मुष्किल का समाधान ये निकाला कि उन्होंने कॉर्पोरेट को रियायत देते हुए कहा कि कोई बात नहीं। अगर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरषिप भी आपको रास नहीं आ रही तो पब्लिक सेक्टर ही आपके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर देगा।
कॉर्पोरेट सेक्टर को ये सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए जिन मदों में बजट में कटौती की गई है, वे हैं आईसीडीएस (आँगनवाड़ी और आषा), सर्वषिक्षा अभियान, कृषि, एससी-एसटी सबप्लान, पेयजल, पंचायती राज, आदि वे सभी मदें जो ग़रीबों की ज़िंदगी को थोड़ी राहत पहुँचाती हैं। तर्क ये है कि चूँकि राज्यों को आबंटित किया जाने वाला कोष बढ़ा दिया गया है इसलिए केन्द्र की इस कटौती की भरपाई राज्य सरकारों द्वारा की जाएगी।
अंत में मनरेगा का उल्लेख करना ज़रूरी है। बजट में मनरेगा को 34000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 34600 करोड़ रुपये कोष आवंटित किया गया है। ये ज़रूरत के सामने कितना अपर्याप्त है इसका अंदाज़ा एक इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि मनरेगा में ऐसे बहुत से मामले हैं जहाँ लोगों से काम करवा लिया गया लेकिन पैसे न होने से भुगतान नहीं किया गया। इसका जो आंषिक भुगतान राज्य सरकारों ने अपने कोष से कर दिया था, अभी उसका ही केन्द्र सरकार को 6000 करोड़ रुपया देना बाकी है। और फिर अब तो मनरेगा पर खर्च की कोई सीमा नहीं बाँधी जा सकती क्योंकि अब यह लोगों का संवैधानिक अधिकार है कि अगर वे काम माँगें तो उन्हें काम देना सरकार की जिम्मेदारी होगी। संक्षेप में इस बजट का विष्लेषण यही है कि मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह देष को जिस दिषा में ले जा रहे थे, मोदी और जेटली हमें उसी दिषा में और तेज रफ्तार के साथ धकका देने के लिए कमर कसे हैं।
- जया मेहता
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...8 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
अखनूर बस हादसे के लिये उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह जिम्मेदार: डा॰ गिरीश भाकपा नेता ने म्रतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की , घायलों क...
-
Political horse-trading continued in anticipation of the special session of parliament to consider the confidence vote on July 21 followed b...
-
REVERSE DEREGULATION OF FUEL PRICES The Congress led UPA II Government has totally failed to contain inflation and to cont...
-
“यदि सरकार ने कोरोना से जंग के लिये नीतियां तय करने से पहले महामारीविदों और अन्य विशेषज्ञों से राय ली होती तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती...
-
लखनऊ 3 सितम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं अन्य वामपंथी दलों द्वारा खाद्य सुरक्षा, महंगाई तथा भ्रष्टाचार के सवाल पर 12 सितम्बर को उत्तर...
-
The demand to divide Uttar Pradesh into separate states has been raised off and on for the last two decades. But the bitter truth r...
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस सामान्यतः हर तीसरे साल की जाती है। पार्टी कांग्रेस भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का ...
-
साम्राज्यवाद का दुःस्वप्नः क्यूबा और फिदेल आइजनहावर, कैनेडी, निक्सन, जिमी कार्टर, जानसन, फोर्ड, रीगन, बड़े बुश औरछोटे बुश, बिल क्लिंटन और अब ...
-
The three days session of the National Council of the Communist Party of India (CPI) concluded here on September 7, 2012. BKMU lead...
-
अक्तूबर क्रांति और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता डा. गिरीश कुछ प्रगतिशील और अतिवादी वाम- बुध्दिजीवी कहते हैं कि सोवियत संघ इसलि...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें