भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

भाजपा शासन की चूलें हिला देगा महिलाओं और अबोध बालिकाओं का यह चीर हरण




लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के सचिव एवं भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा. गिरीश ने कहाकि यह कैसा रामराज्य है जिसमें न महिलायें सुरक्षित हैं न अबोध बालिकायें. पल पल महिलाओं का अपमान होरहा है. यहां तक कि खुद भाजपा की अनुसूचित वर्ग की महिला विधायक के मन्दिर प्रवेश के बाद उसे गंगाजल से धोया जाता है.
मुजफ्फरपुर की 34 बालिकाओं के साथ बालिका गृह में हुये बलात्कार और हमीरपुर में भाजपा की ही एक विधायक के मन्दिर में जाने के प्रवेश के बाद ग्रामीणों द्वारा मंदिर को धोये जाने की घटनाओं पर गहरा आक्रोश प्रकट करते हुये भाकपा नेता ने कहाकि ये वारदातें युगांडा या अल्बानियां में नहीं अपितु उस देश में होरही हैं जिसके तीन चौथाई भाग पर अपना शासन होने का ढिंढोरा पीटते भाजपा थकती नहीं है.
डा. गिरीश ने मांग की कि इन घटनाओं की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई द्वारा की जानी चाहिये. क्योंकि अब तक इन घटनाओं पर नीतीश और योगी का रवैया लीपापोती करने का रहा है. भाकपा यौन शोषण के आरोपों के घेरे में आये अन्य सभी बालग्रहों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की भी मांग करती है.
बिहार समाज कल्याण विभाग द्वारा सरकारी सहायता से राज्य के 38 जिलों में चलाने वाले 110 बालिकाग्रहों का आडिट कराया गया तो पता चला कि मुजफ्फरपुर सहित कुल 15 बाल संरक्षण ग्रहों में अबोध बालिकाओं का लगातार यौन शोषण हुआ है. पहले बिहार सरकार ने इसे दबाने की कोशिश की पर जब यह मामला बिहार से संसद तक गूंजा तो मुख्यमंत्री दबाव में आये और उन्होंने मुजफ्फरपुर मामले की प्राथमिकी दर्ज कर सीबीआई जांच की सिफारिश की है. पर आज भी इस घटना पर आक्रोश जताने वाले संगठनों पर दमनचक्र चलाया जारहा है.
भाकपा नेता ने कहाकि इस घटना का मुख्य आरोपी बिहार राज्य की समाज कल्याण मंत्री का पति है तो हमीरपुर में मंदिर धुलवाने वाले भाजपा समर्थक हैं. भाजपा भारतीय संस्कृति की अलमबरदार होने का दाबा करते नहीं थकती. लेकिन जिस भारतीय संस्कृति का सूत्रवाक्य है  “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” भाजपा शासन में इस सूत्र की ही बखिया उधेड़ी जारही है और महिलाओं की इज्जत आबरू तार तार की जारही है.
डा. गिरीश ने कहाकि जांच से पता चला है कि बलात्कार की शिकार बालिकाओं में से ज्यादातर की उम्र 7 से 14 साल है और उनमें से कम से कम 3 का गर्भपात कराया गया है और अभी तीन अन्य गर्भवती हैं. तीन तलाक मामले में मुस्लिम महिलाओं के लिये सांप्रदायिक आंसू बहाने वाले प्रधानमंत्री मौन हैं और योगी आदित्यनाथ ने भी हमीरपुर की घटना पर अभी तक मौन नहीं तोडा. हर मामले में विपक्ष पर जिम्मेदारी डालने की आदी भाजपा को अब मुहँ दिखाने की जगह नहीं मिल रही क्योंकि यह सब उन्हीं के शासन काल में घटित होरहा है. उन्होंने दागी 14 अन्य बलिकाग्रहों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराये जाने की मांग की.
डा. गिरीश ने चेतावनी दी कि दिल्ली के मात्र एक निर्भया काण्ड ने तूफ़ान मचा दिया था और उस समय के सत्तासीनों को उसका परिणाम भुगतना पडा था. द्रौपदी के अपमान ने कौरवों का वंश नष्ट कर दिया था. अब इतनी अबोध बालिकाओं के साथ यह जघन्य कृत्य और एक अनुसूचित महिला विधायक का अपमान भाजपा शासन की चूलें हिला कर रख देगा.
डा. गिरीश

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बुधवार, 18 जुलाई 2018

इस नए आपातकाल का अभी नामकरण किया जाना शेष है: डा. गिरीश




आपातकाल और उसकी ज्यादतियां इतिहास की वस्तु बन गयी हैं. संघ, उसके पिट्ठू संगठनों, भाजपा और उनकी सरकार ने विपर्यय की आवाज को कुचलने की जो पध्दति गड़ी है इतिहास को अभी उसका नामकरण करना शेष है. फासीवाद, नाजीवाद, अधिनायकवाद, तानाशाही और इमरजेंसी आदि सभी शब्द जैसे बौने बन कर रह गये हैं. चार साल में जनहित के हर मुद्दे पर पूरी तरह से असफल होचुका सत्ताधारी गिरोह जनता की, विपक्ष की, गरीबों की, दलितों महिलाओं और अल्पसंख्यकों की प्रतिरोध की हर आवाज को रौंदने में कामयाब रहा है.
झारखंड में स्वामी अग्निवेश पर भारतीय जनता युवा मोर्चा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा किये गये कातिलाना हमले से उन लोगों की आँखों से पर्दा हठ जाना चाहिये जो आज भी संघ गिरोह को एक धर्म विशेष के रक्षक के रूप में माने बैठे हैं. स्वामी अग्निवेश एक ऐसे सन्यासी हैं जो पाखण्ड और पोंगा पंथ की व्यवस्था से जूझ रहे हैं. वे मानव द्वारा मानव के शोषण पर टिकी लुटेरी व्यवस्था के उच्छेद को तत्पर समाजसेवी हैं. उन पर हुआ कातिलाना हमला दाभोलकर, कालबुर्गी, गोविन्द पंसारे और गौरी लंकेश की हत्याओं की कड़ी को आगे बढाने वाला है.
अभी कल ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मौब लिंचिंग की घटनाओं पर सरकारों को फटकार लगायी थी और उसके विरुध्द क़ानून बनाने का निर्देश दिया था. क़ानून अब भी कई हैं और एक नया क़ानून और भी बन जाएगा पर क्या यह क़ानून सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े गिरोह पर लागू होपायेगा यह सवाल तो आज से ही मुहँ बायें खडा है.
अग्निवेश पर हमला उस विद्यार्थी संगठन ने किया है जो “ज्ञान शील और एकता” का मुखौटा लगा कर भोले भाले छात्रों को मारीच- वृत्ति से बरगला कर कतारों में शामिल कर लेता है और फिर उन्हें कथित बौध्दिक के नाम पर सांप्रदायिक और उन्मादी नागरिक बनाता है. उत्तर प्रदेश के कासगंज में इस संगठन द्वारा मचाये उत्पात की भेंट इन्हीं की कतारों का एक नौजवान चढ़ गया था जिसका दोष उस क्षेत्र के अल्पसंख्यकों के मत्थे मढ़ दिया गया. मैंने उस वक्त भी यह सवाल उठाया था कि अभिवावक अपने स्कूल जाने वाले बच्चों को इस गिरोह की गिरफ्त से बाहर रखें ताकि वे इसकी साजिशों के शिकार न बनें. यह सवाल में आज फिर दोहरा रहा हूँ.
पर सवाल कई और भी हैं. शशि थरूर ने जिस शब्दाबली का प्रयोग किया उससे असहमत होते हुये भी कहना होगा कि उससे कई गुना आपत्तिजनक और दूसरों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली शब्दाबली भाजपा नेता, मंत्रीगण और प्रवक्ता आये दिन प्रयोग करते रहते हैं. तब न विद्यार्थी परिषद का खून उबलता है, न युवा मोर्चा का न बजरंग दल का. पर थरूर के दफ्तर पर हमला बोला जाता है.
दादरी से शुरू हुयी मौब लिंचिंग आज तक जारी है और उसके निशाना दलित और अल्पसंख्यक बन रहे हैं. प्रतिरोध की आवाज उठाने वाले संगठन ‘भीम सेना’ के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को जेल के सींखचों के पीछे डाला जाता है तो कलबुर्गी और गोविन्द पंसारे के कातिलों को क़ानून के हवाले करने के लिये उच्च न्यायालय को जांच एजेंसियों को बार बार हिदायत देनी पड़ रही है. जिसने भी भाजपा की घोषित कुटिलताओं के खिलाफ बोला संघ के अधिवक्तागण अदालतों में मुकदमे दर्ज करा देते हैं. हर सामर्थ्यवान विपक्षी नेता के ऊपर कोई न कोई जांच बैठा दी जाती है. ऊपर से प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष आये दिन धमकी भरे बयान देते रहते हैं.
यहाँ तक कि गांधी नेहरू जैसे महापुरुषों को अपमानित करना और विपक्ष के नेताओं पर अभद्र टिप्पणी करना रोजमर्रा की बात होगई है. लेकिन यदि कोई विपक्षी किसी महापुरुष पर टिप्पणी कर दे तो यह आस्था का सवाल बन जाता है और उस पर चहुँतरफा हमला बोला जाता है. फिल्म, पेंटिंग और कला के अन्य हिस्सों को दकियानूसी द्रष्टिकोण से हमले का शिकार बनाया जाता है.
अफ़सोस की बात है इन सारी अर्ध फासिस्टी कारगुजारियों को मीडिया खास कर टीवी चैनलों से ख़ासा प्रश्रय मिलता है. मीडिया का बड़ा हिस्सा आज तटस्थ द्रष्टिकोण पेश करने के बजाय शासक गिरोह का माऊथपीस बन कर काम कर रहा है.
आपातकाल के दिनों में लोगों पर शासन आपातकाल के विरोध का आरोप मढ़ता था और उन्हें जेलों में डाल देता था. संजय गांधी के नेतृत्व वाली एक युवा कांग्रेस थी जो उत्पात मचाती थी. लेकिन वह न तो इतनी संगठित थी और न इतनी क्रूर. कोई सुनिश्चित लक्ष्य भी नहीं थे. शुरू की कुछ अवधि को छोड़ मीडिया ने भी ज्यादतियों के खुलासे करना शुरू कर दिया था. अदालतें भी काम कर रहीं थीं. शूरमा संघी तो इंदिरा गांधी के बीस सूत्रीय कार्यक्रम और संजय गांधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम में आस्था व्यक्त कर रिहाई पारहे थे. आज लोकतान्त्रिक सेनानी पेंशन और अन्य सुविधायें पाने वालों में से अधिकतर वही आपातकाल के भगोड़े हैं.
पर आज स्थिति एकदम विपरीत है. न आरोप लगाने वाली कोई वैध मशीनरी है न कोई न्याय प्रणाली है. गिरोह अभियोग तय करता है और सजा का तरीका और सजा भी वही तय करता है. ‘कातिल भी वही है मुंसिफ भी वही है.’ सत्ता शिखर यदि तय कर ले कि क़ानून हाथ में लेने वाले क़ानून के हवाले होंगे तो इनमें से कई का पतलून गीला होजायेगा. पर वह या तो मौन साधे रहता है या फिर कभी फर्जी आंसू बहा कर कि – ‘मारना है तो मुझे मार दो’ एक ओर उन्हें शह देता है तो दूसरी ओर झूठी वाहवाही बटोरता है.
हालात बेहद नाजुक हैं. कल दाभोलकर, कालबुर्गी, गोविन्द पानसरे और गौरी लंकेश निशाना बने थे तो आज स्वामी अग्निवेश को निशाना बनाया गया. कल फिर कोई और निशाने पर होगा. पर ये तो जनहानि है जो दिखाई देरही है. पर जो प्रत्यक्ष नहीं दिख रहा वह है लोकतंत्र की हानि, संविधान की हानि और सहिष्णुता पर टिके सामाजिक ढांचे की हानि है. समय रहते इसकी रक्षा नहीं की गयी तो देश और समाज एक दीर्घकालिक अंधायुग झेलने को अभिशप्त होगा.
डा. गिरीश.
( लेखक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल के सचिव एवं भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं )

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मंगलवार, 17 जुलाई 2018

सिर से पैर तक भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में डूबी है उत्तर प्रदेश की योगी सरकार: भाकपा




लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सिर से पैर तक भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में डूबी है और डिबाई( बुलंदशहर ) के कोतवाल के सीयूजी नंबर से जारी व्हाट्सएप मैसेज से उसकी कलई खुल कर रह गयी है.
ज्ञात हो कि उक्त पुलिस अधिकारी के सीयूजी नंबर से जारी ये व्हाट्सएप मैसेज जारी हुआ- ‘ये योगी सरकार है भाई हर जगह पैसा चल रहा है. पैसा कौन नहीं लेता बस माध्यम पता होना चाहिये, बस डाइरेक्ट कोई नहीं लेता. एडीजी को कैंप कार्यालय पर लिफाफा पहुंचाओ और एसएसपी को उनके जानकार द्वारा पैसे पहुंचा दो और मनमाफिक पोस्टिंग- तैनाती पा लो.’
अपने किसी सुपरिचित से चैटिंग में कोतवाल योगी सरकार में जमकर विभाग में पैसे चलने की बात कहते हैं. साथ ही वे अपने बारे में बताते हैं कि उन्होंने नोएडा से बुलंदशहर आने के लिये 50 हजार रुपये एडीजी मेरठ रेंज के कैंप आफिस पर तैनात एक बाबू को दिये थे. उसके बाद उनका बुलंदशहर तबादला हुआ है. चैटिंग करने वाले शख्स ने जब कोतवाल से बुलंदशहर के एसएसपी के बारे में पूछा तो जबाबी मैसेज में कहा गया कि पैसा कौन नहीं लेता बस माध्यम पता होना चाहिये. साथ ही कहा गया कि डिबाई कोतवाली का चार्ज लेने के लिये उन्होंने एसएसपी के किसी ख़ास आदमी को तीन लाख रुपये पहुंचाये हैं.
जाहिर है पुलिस विभाग की कलई खोलने वाले इस मैसेज के बाद उस पर लीपापोती शुरू होगयी है और किसी न किसी को बलि का बकरा बनाया जा सकता है पर यह योगी सरकार के हर विभाग में चल रही घूसखोरी और भ्रष्टाचार का आईना है. कई विभागों में रिश्वतखोरी पांच गुना तक बढ़ गयी है तो निर्माण कार्यों में कमीशनखोरी डेढ़ गुना. सडकों को गड्ढामुक्त बनाने के लिये चले कार्यक्रम के तहत फर्जी कार्य दिखा कर रकमें डकारी गयीं तो गरीब आवास, शौचालय और मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों तक में कमीशनखोरी धड़ल्ले से चल रही है. रोजगार दिलाने के नाम पर नौजवानों से ठगी करने वाले कई गिरोह काम कर रहे हैं और इन गिरोह सरगनाओं की भाजपा नेताओं से नजदीकियां जगजाहिर हैं.
डा. गिरीश ने आरोप लगाया कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के जनपद आजमगढ़ और मिर्जापुर में हुयी प्रधानमंत्री की बेहद खर्चीली रैलियों के लिये सरकारी विभागों से पैसा बसूला गया, यहाँ तक  कि गरीब स्वच्छताकर्मियों तक को नहीं बख्शा गया. प्रधानमंत्री का जुमला ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ अब बदल कर ‘खाओ और खाने दो’ में तब्दील होगया है.
भाकपा मोदी और योगी की सरकार की भ्रष्ट कारगुजारियों का पर्दाफ़ाश करने को 1 से 14 अगस्त के मध्य व्यापक अभियान चलायेगी, डा. गिरीश ने बताया है.

डा. गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश


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शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

भाकपा ने लिये कई अहम फैसले


उत्तर प्रदेश में भाकपा ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू की

भाजपा को हराना है प्रमुख लक्ष्य

भाकपा और वामपंथ का प्रतिनिधि लोकसभा में पहुंचाने के लिए किये जायेंगे ठोस प्रयास

लक्ष्यों को हासिल करने को त्रिस्तरीय रणनीति बनाई


लखनऊ- 13 जुलाई 2018, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं. यहाँ संपन्न भाकपा की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हुयी और आगामी चुनाव में भाकपा के लक्ष्य निर्धारित किये गये. भाकपा ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में भाजपा को परास्त करने, भाकपा और वामपंथ का प्रतिनिधित्व लोकसभा में हासिल करने तथा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को सशक्त बनाने की रणनीति पर विचार किया है.
भाकपा कार्यकारिणी बैठक के निष्कर्षों की जानकारी देते हुये राज्य सचिव डा. गिरीश ने यहाँ जारी एक बयान में बताया कि उपर्युक्त लक्ष्यों को हासिल करने को भाकपा ने त्रिस्तरीय रणनीति तैयार की है.  पहली- पार्टी जनता के ज्वलंत सवालों पर जन आन्दोलनों को धार देगी, दूसरी- लोकतांत्रिक खासकर वामपंथी शक्तियों के साथ संबंधों की कड़ियाँ मजबूत करेगी तथा तीसरी- भाकपा की सांगठनिक मशीनरी को चुस्त- दुरुस्त करेगी और जनाधार को विकसित और शिक्षित करेगी.
उपर्युक्त उद्देश्यों को हासिल करने को भाकपा राज्य कार्यकारिणी ने सीमित संख्या में सीटें लड़ने का निश्चय किया है. बैठक में कई सीटों को चिन्हित कर चुनाव की तैयारी करने का निर्देश संबन्धित जिला कमेटियों को दे दिया गया है. लड़ी जाने योग्य अन्य सीटों पर भी शीघ्र निर्णय लिया जायेगा. मुद्दों के आधार पर धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक शक्तियों से लक्ष्य के अनुरूप साझा समन्वय स्थापित करने का प्रयास भी किया जायेगा. आगामी 4 और 5 अगस्त को राजधानी दिल्ली में होने जारही भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी लोकसभा और जल्दी ही होने वाले तीन राज्य विधान सभा चुनावों की तैयारी के बारे में विचार किया जायेगा.
भाकपा राज्य कार्यकारिणी बैठक में निरंतर बढ़ रही महंगाई, विस्फोटक रूप लेरही बेरोजगारी, न थमने वाली किसानों की आत्महत्याओं, दिन ब दिन उजागर होरहे घोटाले और भ्रष्टाचार, महिलाओं दलितों अल्पसंख्यकों पर बढ़ रहे जुल्म- सितम तथा अराजकता की स्थिति तक पहुँच चुके अपराधों के खिलाफ और मोदी/ योगी सरकार की विफलताओं को उजागर करने को 1 से 14 अगस्त के मध्य 'भाजपा हटाओ संविधान बचाओ' अभियान चलाने का कार्यक्रम तैयार किया गया है. इस अवधि में प्रदेश भर में सभायें, नुक्कड़ और मौहल्ला सभाएं, गाँव सभायें तथा प्रदर्शन आदि करने की रूपरेखा तैयार की गयी. इस सवाल पर कुछ पुस्तिकायें प्रकाशित की गयीं हैं और व्यापक पैमाने पर पर्चे बांटे जायेंगे.
अभियानों की सफलता और जिला कमेटियों के मार्गदर्शन के लिये कार्यकारिणी सदस्यों को जिम्मेदारी बांटी गयी है. मार्गदर्शक नियुक्त किये गए कार्यकारिणी सदस्य जिला काउंसिलों में अभियानों की रूपरेखा तैयार करायेंगे, उनके अनुपालन पर निगरानी रखेंगे और संगठन के विस्तार और सुचारू संचालन में जिलों की मदद करेंगे. अभियान की सफलता सुनिश्चित करने को कई क्षेत्रीय कार्यकर्ता बैठकें भी आयोजित की जायेंगीं. अलीगढ़ और आगरा मंडल के जनपदों की एक संयुक्त बैठक 23 जुलाई को मथुरा में आयोजित किया जाना तय होचुका है.
पार्टी कार्यकर्ताओं का राजनैतिक स्तर ऊंचा उठाने को कई शिक्षण शिविर आयोजित करने का निश्चय भी किया गया है.
भाकपा और अन्य वामपंथी दल मिल कर आगामी 20 अगस्त को लखनऊ में समानुपातिक चुनाव प्रणाली और चुनाव सुधारों के लिये एक राज्य स्तरीय कन्वेंशन भी आयोजित करने जा रहे हैं. कन्वेंशन में वामपंथी दलों के राष्ट्रीय नेतागण भाग लेंगे. साथ ही अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों के नेताओं तथा बुध्दिजीवियों को भी आमंत्रित किया जासकता है.
डा. गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा,  उत्तर प्रदेश   


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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

भाजपा ने किसानों को फिर दिखाया ठेंगा: समर्थन मूल्य वायदे से काफी कम- डा. गिरीश




खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) में कल की गयी ऐतिहासिक वृध्दि के दाबे की खबर का भांडा किसानों तक पहुंचते पहुंचते फूट गया. स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किसानों को दिया भरोसा कि वे ऐतिहासिक फैसला लेने वाले हैं, छलावा ही साबित हुआ.
एमएसपी में वृध्दि की यह घोषणा भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में किये गए वायदे के पूरे चार साल बाद ऐसे समय में की गयी है जबकि एक साल के भीतर लोकसभा और कुछ ही माहों में कई महत्वपूर्ण राज्यों के विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. इसलिये इस वृध्दि के राजनैतिक निहितार्थ भी निकाला जाना स्वाभाविक है.
यह परख की कसौटी पर इसलिये भी हैं कि भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनावों के समय जारी घोषणापत्र में वायदा किया था कि किसानों को फसल की लागत से पचास फीसदी अधिक कीमतें मुहैया करायी जायेंगी. श्री मोदी ने बार बार चुनाव सभाओं में इसे न केवल दोहराया था बल्कि वे आज भी 2022 तक किसानों की आमद दो गुना करने का वायदा कर रहे हैं.
जिस स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर विपक्ष पर ताने कसते हुये ये वायदा किया गया था उसका कहना है कि एमएसपी में इजाफा लागत के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा रिटर्न देने वाला होना चाहिए. तब उपज का दाम डेढ़ गुना होगा. लेकिन सरकार द्वारा कल की गयी बढोत्तरी गत एमएसपी पर आधारित है और उसकी तुलना में  4 से लेकर 50 प्रतिशत है न कि लागत से 50 प्रतिशत अधिक रिटर्न पर आधारित.
किसान और किसान संगठन मांग करते रहे हैं कि स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश सी- 2 लागत यानीकि फसल की पैदाबार से संबंधित हर जमा लागत के ऊपर 50 प्रतिशत जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिये, जैसाकि भाजपा ने वायदा किया है. इसका अर्थ है कि मूल लागत (ए-2 ) + पारिवारिक श्रम ( एफएल ) + जमीन का किराया + ब्याज आदि समूची लागत में आते हैं. पर सरकार द्वारा घोषित एमएसपी मात्र ए-2 और एफएल पर आधारित है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये इन्हीं तथ्यों को अपने ढंग से उजागर किया है. उनके अनुसार धान की एक एकड़ फसल तैयार करने पर जुताई पर रुपये 4800, रोपाई पर 2800, सिंचाई पर 6000, उर्बरक पर 3000, कीटनाशक पर 1000 और जमीन का किराया 15000 आता है. इसको देखते हुये धान के एमएसपी में कम से कम 600 रूपये प्रति कुंतल का इजाफा होना चाहिये.
यहाँ एक और मजेदार तथ्य यह भी है कि दो मुख्य फसलों- धान और गेहूँ को छोड़ कर सभी के समर्थन मूल्य बाजार दर से कम रहते रहे हैं. घोषित मूल्य न मिल पाना एक और अहम समस्या रही है. किसान अब भी सशंकित हैं कि उन्हें घोषित मूल्य मिल पायेगा.
वेतनभोगी लोगों की तरह किसानों की आमद में निरंतरता नहीं होती. उसे लगभग छह माह के अंतराल पर फसल से आमद होती है. इस दरम्यान उसे परिवार और अगली फसल दोनों पर खर्च करना होता है. पैदाबार हाथ में आते ही उसे बेचने को मजबूर होना पड़ता है. जमाखोर उसे कम मूल्य पर खरीद लेते हैं. घाटे का शिकार किसान निरंतर कर्जग्रस्त होता जाता है. सरकार इन चार सालों में इस समस्या का निदान कर नहीं पायी और किसान आत्महत्याएं करते रहे. ताजा घोषित मूल्य भी उसे इस संकट से उबार नहीं पायेंगे.
सरकार की अन्य नीतियाँ भी किसानों की कमर तोड़ने वाली हैं. वह कीमतें नियंत्रित करने के नाम पर कृषि उत्पादों के निर्यात पर पाबन्दी और आयात खोलती रही है. वैश्वीकरण और उदारीकरण के लाभों से भी वह वंचित रहा है. कृषि उत्पादों के समुचित विपणन और उन्नत खेती से भी औसत किसान दूर ही है. ऐसे में देर से और आँखों में धूल झोंकने की गरज से की गयी इस मूल्यवृध्दि से किसानों के चिरकालिक संकट का निदान दिखाई नहीं  देरहा है.
( डा. गिरीश )


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बुधवार, 4 जुलाई 2018

एएमयू प्रकरण- संघ के निशाने पर वे शिक्षा केन्द्र हैं जहां हिंदुत्व का एजेंडा नहीं चल पारहा: भाकपा




लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दूसरे अल्पसंख्यक संस्थानों में एससी, एसटी एवं अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के मामले में खुद भाजपा और आरएसएस की नीयत साफ़ नहीं है और इस मुद्दे के जरिये एक ही ईंट से कई निशाने साधना चाहते हैं.
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि भाजपा और संघ को दलित हितों से कोई लेना देना नहीं है. यदि उन्हें दलितों/पिछड़ों की शिक्षा की जरा भी फ़िक्र होती तो वे उनके लिये सरकार के चार साल के कार्यकाल में कई विश्विद्यालय बना कर खड़े कर सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. रोहित वेमुला प्रकरण, ऊना में दलितों के साथ की गयी दरिन्दगी, भीमसेना के नेता को जेल में डालने तथा समूचे देश में दलितों, पिछड़ों पर होरहे अत्याचार की वारदातों से उत्पन्न गुस्से को भटकाने के लिए वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं.
उन्होंने कहाकि भाजपा और संघ के निशाने पर वे शिक्षा केन्द्र पहले से ही हैं जहां उनका कथित हिन्दुत्व का एजेंडा नहीं चल पारहा है. सभी जानते हैं कि पहले उन्होंने जेएनयू और आईआईएम को निशाना बनाया. फिर जिन्ना की तस्वीर के बहाने एएमयू को निशाना बनाया गया और अब आरक्षण के नाम पर उस पर ताला जड़ने की कोशिश की जारही है. अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में नामांकित संघी उसका अनुदान समाप्त करने की धमकियां देरहे हैं और एएमयू प्रशासन को नोटिस भी थमाया जारहा है. यह समाज के कमजोर वर्गों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश का हिस्सा है.
भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि भाजपा और संघ जनता से किये गए वायदों को पूरा करने में पूरी तरह विफल होचुके हैं और चार साल के सरकार के कार्यकाल की सफलता के नाम पर उसके हाथ पूरी तरह खाली हैं. अतएव वो समाज के विभाजन के लिये हर हथकंडा अपना रहे है. मदरसों में ड्रेस कोड का शिगूफा और एएमयू में आरक्षण का मुद्दा ऐसे ही ताजा हथकंडे हैं. भाकपा इन हथकंडों को कामयाब नहीं होने देगी और सरकार और भाजपा की विफलताओं के पर्दाफ़ाश के लिये अगस्त माह में व्यापक अभियान चलायेगी.
डा. गिरीश
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